केंद्र सरकार कश्मीर की ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के कट्टर और नरम दोनों धड़ों पर बैन लगाने पर विचार कर रही है. सवाल उठ रहे हैं कि अगस्त 2019 के बाद से हुर्रियत वैसे ही निष्क्रिय है, तो फिर इस कदम की जरूरत क्या है?
तस्वीर: picture-alliance/dpa/F. Khan
विज्ञापन
मीडिया में आई खबरों में दावा किया जा रहा है कि हुर्रियत के दोनों धड़ों पर यूएपीए के तहत प्रतिबंध लगाने की तैयारी चल रही है. इस तरह के प्रतिबंध लगाने के बाद सरकारी एजेंसियां ना सिर्फ इन दोनों धड़ों को मिलने वाली आर्थिक मदद रोक पाएंगी, बल्कि उन्हें इनके नेताओं और सदस्यों को गिरफ्तार करने में भी मदद मिलेगी.
ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का जन्म नौ मार्च 1993 को हुआ था. उस समय इसके बैनर तले कश्मीर के 26 राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संगठन साथ आए थे. इनका सभी संगठनों का उद्देश्य था कि कश्मीर को भारत से अलग करने की मांग को आगे बढ़ाया जाए.
खत्म होता वर्चस्व
दशकों तक हुर्रियत के कहने पर आम कश्मीरी कश्मीर को लेकर केंद्र की नीतियों के खिलाफ सड़कों पर उतर आते थे. इस तरह के प्रदर्शन कश्मीर में 2016 तक भी हुआ करते थे. हालांकि बीते दो दशकों में हुर्रियत काफी कमजोर हुई है. 2003 में यह दो अलग अलग धड़ों में बंट गई और अभी तक बंटी हुई है.
पूर्व हुर्रियत नेता सैय्यद अली शाह गिलानीतस्वीर: Getty Images/AFP/S. Hussain
एक धड़े का नेतृत्व मीरवाइज उमर फारूक करते हैं, जिन्हें कश्मीरियों के सबसे बड़े आध्यात्मिक नेता के रूप में देखा जाता है. इस धड़े को मॉडरेट या नरमपंथी धड़े के रूप में जाना जाता है. मीरवाइज कश्मीरियों के अपना भविष्य खुद तय करने की अधिकार की मांग को लेकर दिल्ली से बातचीत करने का समर्थन करते हैं.
दूसरे धड़े को हार्डलाइन या कट्टरपंथी धड़ा कहा जाता है. इसका नेतृत्व हाल तक सैयद अली शाह गिलानी करते थे. 2010 में उन्हें उनके ही घर में नजरबंद कर दिया गया था और तब से उनका अधिकांश जीवन नजरबंदी में ही बीता है. जुलाई 2020 में उन्होंने खुद को हुर्रियत से अलग कर लिया था.
क्या होगा असर
इसके अलावा 2018 में केंद्रीय एजेंसियों ने हुर्रियत के कई नेताओं और उनसे जुड़े प्रमुख लोगों के खिलाफ धन शोधन के आरोपों की जांच शुरू की जिसके बाद छापों और गिरफ्तारियों का एक ऐसा सिलसिला चला जो अभी तक जारी है.
जून 2021 में कश्मीरी नेताओं से मिलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीतस्वीर: Indian Prime Ministry/AA/picture alliance
पांच अगस्त 2019 को केंद्र ने जम्मू और राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को प्रभावशाली रूप से निष्क्रिय कर दिया और राज्य का दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजन कर दिया. इसके बाद कश्मीर की राजनीति में हुर्रियत की भूमिका और भी ज्यादा सिमट गई.
इसलिए कुछ जानकारों का कहना है कि मृत्यु शैय्या पर पड़े इस संगठन पर बैन लगा देने से कुछ विशेष हासिल नहीं होगा. वरिष्ठ पत्रकार जफर इकबाल ने डीडब्ल्यू से कहा कि अव्वल तो अभी इस बारे में केवल अटकलें लग रही हैं और इसे लेकर ना कोई सरकारी अधिसूचना जारी हुई है ना बयान आया है.
फिर पनपेगा आतंकवाद?
इकबाल ने यह भी कहा कि यासीन मालिक, शब्बीर शाह, आसिया अंद्राबी जैसे हुर्रियत के चोटी के नेता पहले से जेल में हैं और गिलानी बहुत बूढ़े हो गए हैं. ऐसे में अगर हुर्रियत पर बैन लगता भी है तो इसका क्या असर होगा यह अभी कहा नहीं जा सकता.
गांदेरबल में असम राइफल की महिला कर्मी आने जाने वालों की चेकिंग करते हुएतस्वीर: imago images/Hindustan Times
हालांकि कुछ और लोगों की राय इससे अलग है. श्रीनगर में रहने वाले पत्रकार रियाज वानी मानते हैं कि संगठन पर बैन लगा देने के कई दुष्परिणाम हो सकते हैं. उनका कहना है कि बैन लगा देने से केंद्र से नाराज कश्मीरी युवाओं के पास आतंकवाद के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचेगा.
वानी का यह भी अनुमान है कि ऐसा करने से कश्मीरी अलगाववादियों में सरकार से बातचीत करने वाला कोई नहीं बचेगा और ऐसे में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में बैठे अलगाववादियों का कश्मीर में हस्तक्षेप बढ़ जाएगा.
यूएपीए की धारा 35 के तहत भारत सरकार संगठनों को आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रतिबंधित कर सकती है. इस समय 42 ऐसे संगठन हैं जिन पर ऐसे बैन लागू हैं. इनमें अल कायदा, इस्लामिक स्टेट, लश्कर-ए-तैयबा, हिज्बुल मुजाहिदीन, एलटीटीई, बब्बर खालसा, सीपीआई (माओवादी), उल्फा, सिमी जैसे संगठन शामिल हैं.
कहानी पुलित्जर जीतने वाले भारतीय फोटो पत्रकारों की
समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस के तीन भारतीय फोटोग्राफरों ने प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार जीता है. जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद पाबंदियों के बीच उन्होंने आखिर कैसे खींची और भेजीं तस्वीरें?
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Khan
"चूहा-बिल्ली" का खेल
"ये हमेशा चूहा-बिल्ली का खेल था" - एसोसिएटेड प्रेस के फोटोग्राफर डार यासीन ने अगस्त 2019 में कश्मीर में लागू हुई तालाबंदी की कहानियों को तस्वीरों में कैद करने के तजुर्बे को कुछ यूं बयान किया है. यासीन और उनके दो और सहयोगियों मुख्तार खान और चन्नी आनंद को इस दौरान जम्मू और कश्मीर में खींची गई तस्वीरों के लिए 2020 के फीचर फोटोग्राफी के पुलित्जर पुरस्कार से नवाजा गया है. देखिये इनमें से कुछ तस्वीरें.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Dar Yasin
घोषणा
अगस्त में जम्मू में एक इलेक्ट्रॉनिक्स सामान की दुकान पर टीवी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण सुनते लोग. 5 अगस्त को केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा खत्म कर उसे दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया था. कश्मीर तब से एक तरह के लॉकडाउन में है जिसके तहत वहां के नागरिकों पर कई कड़े प्रतिबंध लागू हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP/C. Anand
विरोध
अगस्त में श्रीनगर में कर्फ्यू के बीच अर्धसैनिक बल के जवानों पर दूर से पत्थर फेंकता एक प्रदर्शनकारी. श्रीनगर में एपी के फोटोग्राफर मुख्तार खान और यासीन डार को प्रदर्शनकारियों और सेना के जवानों दोनों का ही अविश्वास झेलना पड़ता था.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. Yasin
पहरा
अगस्त में श्रीनगर में कंटीली तारों से बंद एक सुनसान सड़क पर पहरा देता एक सुरक्षाकर्मी. श्रीनगर में खान और यासीन कई बार कई दिनों तक घर नहीं लौट पाते थे और अपने परिवारों तक अपनी खबर भी नहीं पहुंचा पाते थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. Yasin
बंदूकें और बूट
पिछले साल अगस्त में श्रीनगर में तालाबंदी के दौरान ड्यूटी पर तैनात दो सुरक्षाकर्मी. खान और यासीन अपनी खींची हुई तस्वीरें दिल्ली ऑफिस तक पहुंचाने के लिए एयरपोर्ट पर अनजान यात्रियों से अपील करते थे. कुछ यात्री डर कर अपील ठुकरा देते थे तो कुछ मान लेते थे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Dar Yasin
नमाज
अगस्त 2019 में जम्मू में मस्जिद में ईद पर नमाज अदा करते हुए लोग. आनंद जम्मू में काम करते हैं और कहते हैं कि पुरस्कार से वो अवाक रह गए. वे बीस साल से एपी के लिए काम कर रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Anand
ये कैसी ईद
अगस्त 2019 में ईद पर जम्मू में सुरक्षाबलों की भारी तैनाती के बीच अपने रास्ते पर जाता एक मुस्लिम व्यक्ति. एपी के अध्यक्ष गैरी प्रुइट ने कहा कि इस टीम की बदौलत ही दुनिया कश्मीर में आजादी की लंबी लड़ाई में हुई एक नाटकीय तेजी देख पाई.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/C. Anand
वापसी
अगस्त में प्रवासी श्रमिक जम्मू और कश्मीर को छोड़ अपने अपने घर जाने के लिए जम्मू रेलवे स्टेशन पर एक ट्रेन में बैठे हुए. कर्फ्यू और फोन और इंटरनेट के बंद होने के बावजूद ये तस्वीरें एपी के इन फोटोग्राफरों ने खींचीं और किसी तरह भेजीं.
तस्वीर: picture-alliance/AP/C. Anand
पुलिस
सितंबर 2019 में श्रीनगर में शिया प्रदर्शनकारियों पर डंडे चलाता एक पुलिसकर्मी. एपी के फोटोग्राफरों ने कभी अंजान लोगों के घर में छिप कर तो कभी कैमरों को सब्जियों के थैलों में छिपा कर तस्वीरें खींची.
तस्वीर: picture-alliance/AP/M. Khan
बंदूकों के साए में
नवंबर में श्रीनगर में एक बाजार में हुए एक विस्फोट के स्थल की जांच करता हुआ एक सुरक्षाकर्मी. यासीन कहते हैं कि उनके काम का उनके लिए पेशे-संबंधी और व्यक्तिगत दोनों मतलब है. वे कहते हैं इन तस्वीरों में सिर्फ दूसरों की नहीं बल्कि उनकी खुद की भी कहानी है.