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कहां गई साबरमती के संत की शिक्षा

२ अक्टूबर २००९

भारत समेत दुनिया के कई देशों में आज गांधी जयंती मनाई जा रही है. बापू को याद करते हुए आज का दिन दुनिया भर में विश्व अहिंसा दिवस के रूप मनाया जाता है. लेकिन इसके साथ कई सवाल भी जुड़े हैं.

चार महीने के उपवास में बैठे महात्मा गांधीतस्वीर: AP

बराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बनने से पहले ही महात्मा गांधी की खुलकर तारीफ़ करते रहे हैं. राष्ट्रपति बनने के बाद भी उन्होंने भारत के राष्ट्रपिता की कई बार तारीफ़ की. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन महात्मा गांधी पर एक किताब लिखने की तैयारी में हैं. कई विदेशी कलाकार दुनिया भर में उनकी मूर्तियां लगाने की तैयारी कर रहे हैं. ये बापू की सीख का ही कमाल है कि उनकी जयंती को संयुक्त राष्ट्र भी विश्व अहिंसा दिवस के रूप मनाता है.

बापू की 1931 में खींची गई तस्वीरतस्वीर: AP

लेकिन सत्य और अहिंसा के पुजारी को उनका अपना देश भारत कितना याद करता है. एक सरकारी छुट्टी, राजघाट पर जाकर उन्हें श्रद्धाजंलि देने की रस्म और दो अक्टूबर को उनकी बातें बस! महात्मा गांधी की तस्वीरें यूं तो भारत भर के सरकारी दफ़्तरों में लगी रहती है लेकिन सच्चाई ये भी है कि भ्रष्टाचार के मामले में भी भारत पीछे नहीं है. 'समान श्रम और समान कानून' के सिद्धांत को मानने वाले बापू के देश में आज ये चीज़ें कम ही दिखाई पड़ती हैं.

महात्मा गांधी को याद करते हुए महान वैज्ञानिक आइनस्टीन की वो पक्तियां भी याद आती है जो उन्होंने बापू के निधन के वक्त कही थी. तब आइनस्टीन ने कहा था कि, ''आने वाली पीढ़ियां इस बात पर यकीन नहीं कर सकेंगी कि इस दुनिया में गांधीजी जैसा इंसान भी था.''

अतीत और वर्तमान में झांके तो इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि महात्मा गांधी ने अपने नाम का फायदा अपने परिवार को कतई नहीं उठाने दिया. भारत के लोग आज उनके बेटों या पोते पोतियों के बारे में कम ही जानते हैं. बापू के परिवार को कोई भी सदस्य भारतीय राजनीति में नहीं है.

रंगभेद को लेकर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ बड़ी लड़ाई लड़ने वाले महात्मा गांधी के देश भारत पर भी अब नस्लभेद और रंगभेद के आरोप लगने लगे हैं. इन सबके अलावा भारत में ही कई जुमले ऐसे भी हैं जिनमें बापू की अच्छी छवि तो कतई पेश नहीं की जाती है. उनका संदेश लेकर हाल ही मैं लगे रहो मुन्नाभाई जैसी फिल्में भी आईं लेकिन इसके बावजूद बापू के संस्कार और उनका बताया रास्ता पर्दे तक ही सीमित रह गया या फिर किताबों में ही पड़ा रहा.

रिपोर्ट: ओ सिंह

संपादन: एस गौड़

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