पाकिस्तान में पिछले आम चुनावों के दौरान 890 यहूदी वोटर थे. लेकिन इस बार की वोटर लिस्ट में एक भी यहूदी नहीं है. आखिर कहां गए पाकिस्तान के यहूदी?
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पांच साल के भीतर सैकड़ों यहूदी वोटरों का इस तरह से गायब हो जाना बड़ी हैरानी की बात है. डीडब्ल्यू की छानबीन में पता चला कि पाकिस्तान के किसी विभाग को इस बारे में जानकारी नहीं है कि देश में यहूदियों की कुल संख्या कितनी है.
सच तो यह है कि ज्यादातर यहूदी पाकिस्तान छोड़ चुके हैं और जो पाकिस्तान में मौजूद हैं, वे वोटर के तौर पर अपना नाम रजिस्टर करा कर अपनी पहचान जाहिर नहीं करना चाहते. पाकिस्तान में बढ़ता चरमपंथ देश की गैर मुस्लिम बिरादरी में असुरक्षा की भावना पैदा कर रहा है और इसीलिए वे एक नागरिक के तौर पर मताधिकार से भी वंचित हो रहे हैं.
पाकिस्तान की लगभग 20 करोड़ की आबादी में गैर मुसलमान लगभग पांच फीसदी हैं और उनके वोटों की संख्या 36 लाख से ज्यादा है. इनमें हिंदू, ईसाई, अहमदी, सिख, बौद्ध, पारसी और जिकरी जैसे समुदाय शामिल हैं. इनके अलावा छोटे गैर मुस्लिम समुदायों में यहूदी भी शामिल हैं. अनुमान है कि पाकिस्तान में यहूदियों की आबादी एक हजार से भी कम है.
जानिए दुनिया में किस धर्म के कितने लोग?
दुनिया में किस धर्म के कितने लोग हैं?
दुनिया में दस में से आठ लोग किसी ना किसी धार्मिक समुदाय का हिस्सा हैं. एडहेरेंट्स.कॉम वेबसाइट और पियू रिसर्च के 2017 के अनुमानों से झलक मिलती हैं कि दुनिया के सात अरब से ज्यादा लोगों में कितने कौन से धर्म को मानते हैं.
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ईसाई
दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी ईसाइयों की है. विश्व आबादी में उनकी हिस्सेदारी 31.5 प्रतिशत और आबादी लगभग 2.2 अरब है.
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मुसलमान
इस्लाम दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है, जिसे मानने वालों की आबादी 1.6 अरब मानी जाती है. विश्व आबादी में उनकी हिस्सेदारी 1.6 अरब है.
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धर्मनिरपेक्ष/नास्तिक
जो लोग किसी धर्म में विश्वास नहीं रखते, उनकी आबादी 15.35 प्रतिशत है. संख्या के हिसाब यह आंकड़ा 1.1 अरब के आसपास है.
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हिंदू
लगभग एक अरब आबादी के साथ हिंदू दुनिया में तीसरा बड़ा धार्मिक समुदाय है. पूरी दुनिया में 13.95 प्रतिशत हिंदू हैं.
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चीनी पारंपरिक धर्म
चीन के पारंपरिक धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या 39.4 करोड़ है और दुनिया की आबादी में उनकी हिस्सेदारी 5.5 प्रतिशत है.
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बौद्ध धर्म
दुनिया भर में 37.6 करोड़ लोग बौद्ध धर्म को मानते हैं. यानी दुनिया में 5.25 प्रतिशत लोग भारत में जन्मे बौद्ध धर्म का अनुकरण कर रहे हैं.
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जातीय धार्मिक समूह/अफ्रीकी पारंपरिक धर्म
इस समूह में अलग अलग जातीय धार्मिक समुदायों को रखा गया है. विश्व आबादी में 5.59 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ इनकी संख्या 40 करोड़ के आसपास है.
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सिख
अपनी रंग बिरंगी संस्कृति के लिए दुनिया भर में मशहूर सिखों की आबादी दुनिया में 2.3 करोड़ के आसपास है
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यहूदी
यहूदियों की संख्या दुनिया भर में 1.4 करोड़ के आसपास है. दुनिया की आबादी में उनकी हिस्सेदारी सिर्फ 0.20 प्रतिशत है.
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जैन धर्म
मुख्य रूप से भारत में प्रचलित जैन धर्म के मानने वालों की संख्या 42 लाख के आसपास है.
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शिंटो
यह धर्म जापान में पाया जाता है, हालांकि इसे मानने वालों की संख्या सिर्फ 40 लाख के आसपास है.
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इस बारे में जानकारी पाने के लिए डीडब्ल्यू ने जिन अधिकारियों से भी संपर्क किया, उन्होंने कहा कि हाल में जो वोटर लिस्ट तैयार की गई है, उसका आधार 2017 की जनगणना है. इस जनगणना में सिर्फ पांच बड़े धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों की गिनती की गई थी. इनमें हिंदू, ईसाई, अहमदी, पारसी और सिख शामिल थे. बाकी दूसरे छोटे छोटे अल्पसंख्यक समुदायों से संबंध रखने वाले समुदायों को छठी श्रेणी यानी 'अन्य' में रख दिया गया. इस तरह पाकिस्तान चुनाव आयोग के पास इस बात का कोई रिकॉर्ड नहीं है कि अगर देश में यहूदी वोटर हैं तो उनकी संख्या कितनी है.
पाकिस्तान में जनगणना विभाग के प्रवक्ता हबीबुल्लाह खटक कहते हैं, "हमारे पास पाकिस्तानी यहूदियों को लेकर अलग से कोई डाटा नहीं है. हमने सिर्फ धार्मिक समुदायों पर ही ध्यान दिया. सबसे पहले बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी, फिर अल्पसंख्यकों में हिंदू, ईसाई, पारसी और अहमदी हैं. बाकी सब को एक साथ अन्य के खाने में रख दिया गया. इसलिए हमारे पास ऐसे कोई आंकड़े नहीं कि जो बता सकें कि पाकिस्तान में यहूदियों की कितनी आबादी है."
दूसरी तरफ, पाकिस्तानी चुनाव आयोग के प्रवक्ता अल्ताफ अहमद कहते हैं, "यहूदी वोटरों के बारे में हमने अभी तक कोई वोटर लिस्ट जारी नहीं की है, तो आंकड़ों का पता कैसे लगाया जा सकता है. हम अभी इस पर काम कर रहे हैं. जब पूरे आंकड़े मिल जाएंगे तो वोटर लिस्ट जारी कर दी जाएगी."
अल्ताफ अहमद कहते हैं कि पाकिस्तानी यहूदी भी देश के नागरिक हैं. उनके मुताबिक कोई मुसलमान हो या गैर मुसलमान, अगर उसके पास राष्ट्रीय पहचान पत्र है तो उसका नाम वोटर के तौर पर दर्ज किया ही जाएगा.
जानिए यहूदियों के देश इस्राएल को
क्या है इस्राएल
मुस्लिम देश इस्राएल को मध्यपूर्व में विवादों का केंद्र कहते हैं. एक तरफ उसके आलोचक हैं तो दूसरी तरफ उसके मित्र. लेकिन इस रस्साकसी से इतर बहुत कम लोग जानते हैं कि इस्राएल आखिर कैसा है.
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राष्ट्र भाषा
आधुनिक हिब्रू के अलावा अरबी इस्राएल की मुख्य भाषा है. ये दोनों 1948 में बने इस्राएल की आधिकारिक भाषाएं हैं. आधुनिक हिब्रू 19वीं सदी के अंत में बनी. पुरातन हिब्रू से निकली आधुनिक हिब्रू भाषा अंग्रेजी, स्लाविक, अरबी और जर्मन से भी प्रभावित है.
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छोटा सा देश
1949 के आर्मिस्टिक समझौते के मुताबिक संप्रभु इस्राएल का क्षेत्रफल सिर्फ 20,770 वर्ग किलोमीटर है. इस समझौते पर मिस्र, लेबनान, जॉर्डन और सीरिया ने दस्तखत किए थे. लेकिन फिलहाल पूर्वी येरुशलम से लेकर पश्चिमी तट तक इस्राएल के नियंत्रण में 27,799 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है. इस्राएल के उत्तर से दक्षिण की दूरी 470 किमी है. देश का सबसे चौड़ा भूभाग 135 किलोमीटर का है.
अनिवार्य सैन्य सेवा
इस्राएल दुनिया का अकेला ऐसा देश है जहां नागरिकों और स्थायी रूप से रहने वाली महिला व पुरुषों के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य है. 18 साल की उम्र के हर इस्राएली को योग्य होने पर तीन साल सैन्य सेवा करनी पड़ती है. महिलाओं को दो साल सेना में रहना पड़ता है.
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फलीस्तीन के समर्थक
नेतुरेई कार्टा का मतलब है कि "सिटी गार्ड्स." यह 1939 में बना एक यहूदी संगठन है. यह इस्राएल की स्थापना का विरोध करता है. इस संगठन का कहना है कि एक "यहूदी मसीहा" के धरती पर आने तक यहूदियों को अपना देश नहीं बनाना चाहिए. इस संगठन को फलीस्तीनियों का समर्थक माना जाता है.
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राष्ट्रपति पद ठुकराया
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइनस्टाइन भले ही पूजा नहीं करते थे, लेकिन जर्मनी में यहूदियों के जनसंहार के दौरान उनका यहूदी धर्म की तरफ झुकाव हो गया. उन्होंने यहूदी आंदोलन के लिए धन जुटाने के लिए ही अमेरिका की पहली यात्रा की. बुढ़ापे में उन्हें इस्राएल का राष्ट्रपति बनने का न्योता दिया गया, आइनस्टाइन ने इसे ठुकरा दिया.
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ईश्वर को चिट्ठियां
हर साल येरुशलम के डाक घर को 1,000 से ज्यादा ऐसे खत मिलते हैं, जो भगवान को लिखे जाते हैं. ये चिट्ठियां कई भाषाओं में लिखी होती हैं और विदेशों से भी आती हैं. ज्यादातर खत रूसी और जर्मन में होते हैं.
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येरुशलम की पीड़ा
इतिहास के मुताबिक येरुशलम शहर दो बार पूरी तरह खाक हुआ, 23 बार उस पर कब्जा हुआ, 52 बार हमले हुए और 44 बार शहर पर किसी और का शासन हुआ. गिहोन झरने के पास शहर का सबसे पुराना इलाका है, कहा जाता है कि इसे 4500-3500 ईसा पूर्व बनाया गया. इसे मुसलमानों, ईसाइयों और यहूदियों का पवित्र शहर कहा जाता है.
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पैसेंजर फ्लाइट का रिकॉर्ड
24 मई 1991 को इस्राएली एयरलाइन कंपनी एल अल का बोइंग 747 विमान 1,088 यात्रियों को लेकर इस्राएल पहुंचा. किसी जहाज में यह यात्रियों की रिकॉर्ड संख्या है. इथियोपिया के ऑपरेशन सोलोमन के तहत यहूदियों को अदिस अबाबा से सुरक्षित निकालकर इस्राएल लाया गया.
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खास है मुद्रा
इस्राएली मुद्रा शेकेल दुनिया की उन चुनिंदा मुद्राओं में से है जिनमें दृष्टिहीनों के लिए खास अक्षर हैं. दृष्टिहीनों की मदद करने वाली मुद्राएं कनाडा, मेक्सिको, भारत और रूस में भी हैं.
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पाकिस्तान में रहने वाले यहूदियों की संख्या क्यों घटती जा रही है या फिर इस समुदाय के सामने क्या दिकक्तें हैं, इस बारे में किसी यहूदी से बात करना खासा मुश्किल है. फिर भी, रावलपिंडी में रहने वाले एक बुजुर्ग यहूदी ने नाम ना जाहिर करने की शर्त पर बताया, "लगभग तीस साल पहले तक लगभग 45 परिवार रावलपिंडी, इस्लामाबाद और गुरजाखान में रहते थे. मेरे परिवार समेत कई यहूदी परिवार अब यूरोप, अमेरिका या फिर दक्षिण अफ्रीका में जाकर बस गए. कम से कम छह यहूदी परिवार कराची जा चुके हैं."
वह कहते हैं, "एक ऐसे समाज में, जो साफ तौर पर धार्मिक हो, जहां चरमपंथी मुस्लिम गुट सांप्रदायिकता को बढ़ावा देते हों, वहां अल्पसंख्यकों के लिए अपने धार्मिक विश्वासों के अनुसार सुरक्षित और खुले आम जिंदगी गुजारना मुश्किल होता है. हम यहूदियों के लिए तो ऐसी जिंदगी लगभग असंभव है."
इस यहूदी बुजुर्ग का कहना है, "70 के दशक में रावलपिंडी में दो यहूदी प्रार्थना स्थल (सिनेगॉग) थे, लेकिन फिर इन्हें इसलिए बंद कर दिया गया क्योंकि उनके लिए रब्बी ही नहीं मिलते थे. जहां तक वोटर लिस्ट की बात है तो यहूदियों ने वोटर लिस्ट में खुद को रजिस्टर कराना इसलिए छोड़ दिया क्योंकि इससे हमारे हालात में तो कुछ बदलने वाला है नहीं."
वह कहते हैं, "पाकिस्तान में यहूदी समुदाय कभी राजनीति में सक्रिय नहीं रहा. लेकिन जिया उल हक की तानाशाही के बाद बहाल होने वाले लोकतंत्र के अस्थिर होने की वजह से और लगभग सभी सियासी पार्टियों की यहूदियों में खास दिलचस्पी न होने की वजह से हमारी दिलचस्पी भी खत्म हो गई. मैंने खुद अपना वोट आखिरी बार 1990 के चुनाव में डाला था. इसके बाद कभी वोट डालने का मन नहीं हुआ."
एक छत के नीचे तीन धर्म
तीन धर्म एक छत
जर्मनी की राजधानी बर्लिन में एक प्रोजेक्ट के जरिए तीन धर्मों को एक छत के नीचे एक किया जा रहा है. यहां मुसलमान, कैथोलिक और यहूदी धर्मावलम्बी एक ही जगह प्रार्थना कर सकेंगे. यह प्रार्थनागृह आम लोगों के चंदे से बनेगा.
तस्वीर: Lia Darjes
एक छत के नीचे
बर्लिन में जल्द ही एक ऐसी जगह होगी जहां तीन धर्मों के लोग एक ही छत के नीचे प्रार्थना और ईश वंदना कर सकेंगे. यह प्रार्थना भवन तीन अब्राहमी धर्मों इस्लाम, ईसाइयत और यहूदियों को एक साथ लाएगा.
तस्वीर: KuehnMalvezzi
तीन की पहल
हाउस ऑफ वन के विचार को पास्टर ग्रेगोर होबैर्ग, रब्बी तोविया बेन-चोरिन और इमाम कादिर सांची अमली जामा पहना रहे हैं. कादिर सांची का कहना है कि तीनों धर्म अलग अलग रास्ता लेते हैं लेकिन लक्ष्य एक ही है.
तस्वीर: Lia Darjes
इतिहास वाली जगह
जहां इस समय साझा प्रार्थना भवन बन रहा है वहां पहले सेंट पेट्री चर्च था जिसे शीतयुद्ध के दौरान नष्ट कर दिया गया. आर्किटेक्ट ब्यूरो कुइन मालवेजी ने हाउस ऑफ वन बनाने के लिए चर्च के फाउंडेशन का इस्तेमाल किया है.
तस्वीर: Michel Koczy
शुरुआती संदेह
शुरू में कोई मुस्लिम संगठन इस प्रोजेक्ट में शामिल नहीं होना चाहता था. बाद में तुर्की के मॉडरेट मुसलमानों का संगठन एफआईडी राजी हो गया. उन्हें दूसरे इस्लामी संगठनों के उपहास का निशाना बनना पड़ा.
तस्वीर: KuehnMalvezzi
आलोचना का निशाना
इस प्रोजेक्ट को नियमित रूप से आलोचना का निशाना बनाया गया है. कैथोलिक गिरजे के प्रमुख प्रतिनिधि मार्टिन मोजेबाख को शिकायत है कि इमारत की वास्तुकला इसकी धार्मिकता का प्रतिनिधित्व नहीं करती.
तस्वीर: Lia Darjes
चंदे पर भरोसा
हाउस ऑफ वन प्रोजेक्ट के संचालक इसके विकास में आम लोगों की भूमिका के महत्व से वाकिफ हैं. इसलिए वे चंदे पर भरोसा कर रहे हैं. इमारत बनाने में 43.5 लाख ईंटें लगेंगी. हर कोई इन्हें खरीद सकता है.
तस्वीर: KuehnMalvezzi
शांति की कोशिश
इस प्रोजेक्ट के कर्णधारों की उम्मीद है कि नई इमारत तीनों धर्मों के लोगों के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान का केंद्र बनेगी और इसकी वजह से पारस्परिक आदर पैदा होगा. पड़ोसी के बारे में जानना उन्हें करीब लाता है.