करीब 8 किमी प्रति सेकेंड की रफ्तार से उड़ते रॉकेट को बिल्कुल सही समय पर सैटेलाइट रिलीज करनी पड़ती हैं. जरा सी भी चूक हुई तो करोड़ों डॉलर स्वाहा हो जाते हैं. रूस की अंतरिक्ष एजेंसी दो बार ऐसी चूक कर चुकी है.
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रूस के उप प्रधानमंत्री दिमित्री रोगोजिन के मुताबिक 2.6 अरब रूबल की लागत से बनी सैटेलाइट लापरवाही का शिकार हुई. देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रभारी रोगोजिन ने कहा कि सैटेलाइट लॉन्चिंग के लिए गलत कंप्यूटर प्रोग्रामिंग की गई थी. लंबे वक्त बाद यह पहला मौका है जब एक के बाद एक रूस के दो सैटेलाइट लॉन्च फेल हुए हैं.
इससे पहले अप्रैल 2016 में रूस ने एकदम नए वोस्तोचिनी कॉस्मोड्रोम रॉकेट के जरिये कई सैटेलाइटें भेजीं. लेकिन सभी कक्षा में स्थापित होने में नाकाम रहीं. नवंबर 2017 में एक बार फिर नए वोस्तोचिनी कॉस्मोड्रोम रॉकेट का सहारा लिया गया. इस बार रॉकेट में मेटेनॉर-एम नाम की सैटेलाइट भी थी, जिसे विकसित करने में 5.8 करोड़ डॉलर खर्च हुए थे. उसे वेदर सैटेलाइट कहा गया. लेकिन अब वह अंतरिक्ष में कहीं गुम हो चुकी हैं.
मेटेनॉर-एम के साथ ही वोस्तोचिनी कॉस्मोड्रोम रॉकेट पर जर्मनी, नॉर्वे, स्वीडन, अमेरिका, जापान और कनाडा की सैटेलाइटें भी थीं. उप प्रधानमंत्री के मुताबिक इंसानी गलती की वजह से मिशन नाकाम हुआ. जांच का आदेश देते हुए रूस ने यह भी बताया कि पहले लॉन्च की गई अंगोला की पहली सरकारी सैटेलाइट अंगोसैट-1 भी गुम हो चुकी है. मिशनों की नाकामी के बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने जांच में दखल दिया है. रूसी राष्ट्रपति कार्यालय के प्रवक्ता दिमित्री पेशकोव के मुताबिक, "हालात की समीक्षा की जा रही है."
(कूड़ेदान बना अंतरिक्ष)
कैसे होगी अंतरिक्ष की सफाई
1957 से अब तक इंसान पृथ्वी की कक्षा में करीब 7,000 उपग्रह भेज चुका है. इनमें से दो तिहाई बेकार हो चुकी हैं. उनके छोटे छोटे टुकड़े अंतरिक्ष में आफत फैला रहे हैं.
तस्वीर: ESA–David Ducros, 2016
टक्कर का खतरा
सैटेलाइटों के टकराने से बना मलबा 40,000 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से चक्कर काटता है. इतनी रफ्तार से चक्कर काटता एक मूंगफली का दाना भी टकराने पर ग्रेनेड जैसा असर करता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
मंडराता संकट
अंतरिक्ष का कचरा पृथ्वी में पलने वाले जीवन के लिए भी खतरा है. अगर कोई बड़ा टुकड़ा वायुमंडल में दाखिल होते समय पूरी तरह नहीं जला तो काफी तबाही मचा सकता है.
धरती पर धड़ाम
इस तस्वीर में भी कुछ ऐसा ही नजारा दिखता है. गनीमत रही कि मलबा बेहद कम आबादी वाले रेगिस्तानी इलाके में गिरा.
तस्वीर: NASA
सफाई कैसे
अंतरिक्ष में मौजूद कूड़े को साफ करने के लिए कई आइडिया पर काम हो रहा है. इन्हीं में से एक है गारबेज रोबोट. इस स्पेस रोबोट में एक हाथ होगा जो सैटेलाइट को पकड़ कर वापस धरती पर लेकर आएगा. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ईएसए 2023 में इस रोबोट को लॉन्च करने की तैयारी कर रही है.
तस्वीर: ESA–David Ducros, 2016
अंतरिक्ष में ही स्वाहा
एक दूसरा विचार है कि कचरे को वहीं जला दिया जाए. जर्मनी की अंतरिक्ष एजेंसी डीएलआर इसके लिये एक लेजर तकनीक विकसित कर रही है. लेजर शॉट से मलबे को वहीं भस्म कर दिया जाएगा.
तस्वीर: DLR
जाल और लैसो इलेक्ट्रिक
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा एक इलेक्ट्रो नेट पर काम कर रही है. यह जाल एक बड़े इलाके में मौजूद कचरे को बांधेगा और फिर से धरती के वायुमंडल में लाएगा. पृथ्वी के वायुमंडल से दाखिल होते समय ज्यादातर कचरा खुद जल जाएगा. लेकिन इस विचार पर अभी ठोस काम होना बाकी है.
तस्वीर: ESA–David Ducros, 2016
इलेक्ट्रोडायनैमिक सुरंग
इलेक्ट्रोडायनैमिक सुरंग
जापान की अंतरिक्ष एजेंसी जाक्सा के पास इलेक्ट्रोडायनैमिक माइन का प्रपोजल है. 700 मीटर लंबी इलेक्ट्रोडायनैमिक सुरंग स्टेनलैस स्टील और एल्युमीनियम की बनी होगी. यह सुरंग कचरे की तेज रफ्तार परिक्रमा को धीमा करेगी और उसे धीरे धीरे वायुमंडल की तरफ धकेलेगी. रिपोर्ट: जुल्फिकार अबानी/ओएसजे