क्या 2,000 के नोट ने भारत के कैश सिस्टम को मुश्किल में डाल दिया है? जानिये नोटों की सप्लाई के पीछे छुपे इस संकट की कहानी.
विज्ञापन
भारत में मुद्रा से जुड़े अधिकार केंद्रीय बैंक यानि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास हैं. बाजार और अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए रिजर्व बैंक नोटों की छपाई का फैसला करता है. नए नोटों की छपाई के पीछे सबसे अहम भूमिका आम तौर पर मुद्रास्फीति निभाती है. मुद्रास्फीति बढ़ने के दौरान सेवाओं और उत्पादों का मूल्य बढ़ जाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो मुद्रा का मूल्य गिर जाता है. ऐसे में रिजर्व बैंक बाजार से नकदी सोखने की कोशिश करता है. इन कोशिशों के तहत नए नोटों की छपाई नहीं की जाती. साथ ही बैंकों के लिए रेपो रेट और कैश रिजर्व रेश्यो में इजाफा किया जाता है. रेपो रेट वह दर है जिसके तहत अल्प अवधि के लिए बैंक रिजर्व बैंक से कर्ज लेते हैं. अगर यह कर्ज महंगा हो जाए तो बैंक भी आम तौर पर कर्ज महंगा कर देते हैं और बाजार से ज्यादा नकदी बैंकों की तरफ लौटने लगती हैं.
कैश रिजर्व रेश्यो के तहत बैंकों को अपनी कुल नकदी का एक खास हिस्सा रिजर्व बैंक के पास सुरक्षित रखना होता है. इस रेश्यो को बढ़ाते ही नकदी फौरन रिजर्व बैंक के पास लौटने लगती है.
अर्थशास्त्र को ऐसे समझिये
अर्थव्यवस्था से जुड़ी खबरों में कुछ ऐसे शब्द होते हैं जिन्हें समझे बिना कुछ पता नहीं चलता. चलिये समझते हैं इन शब्दों को.
तस्वीर: Getty Images/Afp/Indranil Mukherjee
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी)
एक वित्तीय वर्ष के दौरान किसी देश में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
राजस्व घाटा
जब सरकार का खर्च, उसके राजस्व से ज्यादा हो तो ऐसी स्थिति को राजस्व घाटा कहते हैं. अच्छा अर्थशास्त्री इस घाटे को कम से कम करने की कोशिश करता है.
तस्वीर: PIB/Government of India
राजकोषीय घाटा
जब सरकार का कुल खर्च, आय और गैर ऋण पूंजियों से हुई आदमनी से ज्यादा हो जाए तो उसे राजकोषीय घाटा कहा जाता है. इसमें सरकार द्वारा लिये गये कर्जे भी शामिल होते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Gupta
सब्सिडी या रियायत
अक्सर सरकारें जरूरी महंगी चीजों को लोगों के लिए सस्ता रखती हैं. महंगी खरीद के बावजूद सरकारें अपनी जेब से कुछ पैसा देकर सेवाओं के मूल्य में कमी बनाए रखती हैं. इस रियायत को ही सब्सिडी कहा जाता है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Pillai
व्यापार घाटा
जब आयात, निर्यात से ज्यादा होता है तो विदेशी मुद्रा देश से बाहर जाती है. अंतरराष्ट्रीय कारोबार में आमदमी से ज्यादा खर्चे को व्यापार घाटा या ट्रेड डेफिसिट कहा जाता है. यह रकम करंट अकाउंट डेफिसिट में जाती है.
तस्वीर: Imago/Hoch Zwei Stock/Angerer
डायरेक्ट टैक्स
आय के स्रोत पर वसूले जाने वाले प्रत्यक्ष कर को डायरेक्ट टैक्स कहा जाता है. कॉरपोरेट, इनकम और कैपिटल गेन टैक्स इसी के तहत आते हैं.
तस्वीर: Getty Images
इनडायरेक्ट टैक्स
दूसरे शब्दों में, अप्रत्यक्ष कर. यह एक छुपा हुआ टैक्स है जो सेवाओं और सामान पर लगाया जाता है, जैसे सर्विस चार्ज, एक्साइज, वैट, सेल्स टैक्स आदि. विदेश से लाने वाले सामान पर यह कस्टम शुल्क के तौर पर लगाया जाता है.
तस्वीर: imago/Indiapicture
मुद्रास्फीति
नई मुद्रा जारी करने से बाजार में मुद्रा की मात्रा बढ़ जाती हैं. ऐसे में सेवाओं और उत्पादों का मूल्य बढ़ जाता है. इसे मुद्रास्फीति कहते हैं. एक अच्छी अर्थव्यस्था में 5-8 फीसदी की मुद्रास्फीति अच्छी मानी जाती है.
तस्वीर: Reuters/Danish Siddiqui
महंगाई
मुद्रास्फीति और महंगाई में फर्क है. कई बार नई मुद्रा जारी किये बिना भी बाजार में वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य बढ़ जाता है. इसे महंगाई कहा जाता है. महंगाई को आम तौर पर मांग और आपूर्ति व भंडारण प्रभावित करते हैं.
तस्वीर: DW/S.Bandopadhyay
9 तस्वीरें1 | 9
भारत में इस वक्त देखी जा रही नोटों की कमी को मुद्रा संकट कहना गलत होगा. मौजूदा समस्या नोटों की सप्लाई से जुड़ी है. एटीएम मशीनों का बड़ा नेटवर्क अचानक जरूरत के मुताबिक सप्लाई नहीं दे पा रहा है. वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक हाल के समय में अचानक कैश की मांग बहुत तेजी से बढ़ी है. यह असामान्य डिमांड हैं, लेकिन इसके कारण पता नहीं चले हैं.
वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा के मुताबिक नवंबर 2016 की नोटबंदी के बाद देश ने मुद्रा संकट देखा. 1,000 के नोटों पर बैन लगाने के बाद सरकार ने 2,000 रुपये के नोट छापे. आरबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक बाजार में फैले नोटों में 2,000 रुपये के नोट की हिस्सेदार 50.2 फीसदी हो गई. इसके बाद जुलाई 2017 में इन नोटों की छपाई बंद हो गई. लेकिन छपाई बंद होने के बाद धीरे धीरे यह नोट भी बाजार से गायब हो गए हैं. अब इस बात का जवाब मिलना चाहिए कि ये नोट आखिर है कहां?
विकास दर और पुराने खराब हो चुके नोटों की संख्या के आधार पर नई मुद्रा बीच बीच में जारी होती रहती है. भारत में नोट चार टकसाल और चार बैंक नोट प्रेस में नोट छापे जाते हैं. विदेश से आने वाले हाई सिक्योरिटी पेपर पर नोटों छापने के बाद रिजर्व बैंक अपने 18 इश्यू ऑफिसेस के मार्फत देश भर में नोट सप्लाई करता है. इन इश्यू ऑफिसेस के जरिए नई मुद्रा देश भर में फैले 4,200 से ज्यादा करेंसी चेस्ट में पहुंचती है. ये करेंसी चेस्ट आम तौर शहर या जिले का कोई बड़ा बैंक होता है. इसी करेंसी चेस्ट से मुद्रा सारे बैंकों की शाखाओं में पहुंचती है. कटे फटे और गल से चुके नोटों को कर्मशियल बैंक एक साथ जमा करते हैं और फिर करेंसी चेस्ट वापस भेजते हैं. यशवंत सिन्हा के मुताबिक इस वक्त करेंसी चेस्ट में भी 2,000 के नोट नहीं पहुंच पा रहे हैं और समस्या देश के कई इलाकों तक फैली हुई दिख रही है.
ATM के 50 साल
50 साल, पहले दुनिया ने पहली एटीएम मशीन देखी. आज भी बैंकिंग के इतिहास में शायद इससे बड़ी खोज नहीं हुई. एक नजर इसके इतिहास और भविष्य पर.
तस्वीर: picture-alliance/AP Images/J. Kerlin
पहली मशीन
वैसे तो पहली बार नोट गिनने की मशीन 50 साल पहले स्कॉटलैंड के जॉन स्टीफर्ड-बैरन ने बनाई. लेकिन इसकी ज्यादा चर्चा नहीं हुई. बैरन की मशीन के आधार पर 1968 में पहली बार गिनकर नोट देने वाली मशीन लॉन्च की गई. कैपिटल नेशनल बैंक ऑफ मायामी के निदेशक ने इस पहली एटीएम मशीन को बैंक की लॉबी में लगवाया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Images/J. Kerlin
सीमा के पार
अमेरिका में लॉन्च हुई एटीएम मशीन ने दुनिया भर में तहलका मचा दिया. 1970 के दशक में यूरोप में भी पैसा निकालने वाली मशीनें बेहद लोकप्रिय हो गईं. 1970 के दशक में एटीएम ऐसा दिखाई पड़ता था.
तस्वीर: picture-alliance/ZB/M. Förster
कैसे काम करती है मशीन
एटीएम मशीन एक सॉफ्टवेयर के जरिये ऑपरेट करती है. मशीन के भीतर लगे खांचों में नोट भरे जाते हैं. सॉफ्टवेयर मशीन को नोट निकालने का निर्देश देता है. हर मशीन इंट्रानेट कनेक्शन से जुड़ी होती है, जिसके चलते कैश निकालने के बाद सीधे बैंक खाता भी अपडेट हो जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/ZB/J. Kalaene
आम जिंदगी का हिस्सा
एटीएम के चलते बैंकों और आम लोगों के बड़ी राहत मिली है. अब पैसा निकालने के लिए बैंक जाने की और पासबुक अपडेट कराने की जरूरत नहीं पड़ती. इन मशीनों के जरिये बैकिंग में कागज का इस्तेमाल 50 फीसदी कम हुआ है.
तस्वीर: Reuters/R.D. Chowdhuri
यूनिवर्सल सिस्टम
एटीएम मशीन चाहे दुनिया के किसी हिस्से में हो, उनके कुछ बटन एक जैसे होते हैं. एंटर के लिए हरा और कैंसल के लिए लाल. इसी एकरूपता के चलते आपको भाषा भले ही समझ न आए लेकिन एटीएम इस्तेमाल किया जा सकता है.
तस्वीर: DW/E. Danejko
नकदी का जलवा
आज एटीएम मशीन का जलवा पूरी दुनिया में है. कड़े नियमों वाले इस्लामिक देशों में भी इस मशीन को खूब इस्तेमाल किया जाता है. इस्लाम में जमा पैसे पर ब्याज लेना हराम माना जाता हो, लेकिन एटीएम मशीन तो मुस्लिम देशों में घनघनाती है.
तस्वीर: MEHR
एटीएम नहीं मिनी बैंक
समय के साथ ये मशीनें भी इंटेलिजेंट हुई हैं. अब इनमें पैसा जमा और ट्रांसफर भी किया जा सकता है. हल्की फुल्की इंटरनेट बैंकिंग की सुविधा भी मिलने लगी है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
अपराधियों की भी पसंदीदा मशीनें
भारत में बुल्डोजर से एटीएम मशीन उखाड़ने के मामले सामने आ चुके हैं. जर्मनी में धमाका कर मशीन क्रैक करने के मामले सामने आ चुके हैं. जर्मनी में करीब हर महीने ही कहीं न कहीं एटीएम को निशाना बनाया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M.Gambarini
भविष्य कितना लंबा
अब एटीएम मशीनों के दिन भी लदते दिख रहे हैं. कैश से प्लास्टिक मनी तक पहुंची दुनिया अब कैशलेस होने की ओर बढ़ रही है. विशेषज्ञों के मुताबिक अगले 5-10 साल में परंपरागत एटीएम खत्म होने लगेंगे. इनकी जगह मोबाइल कनेक्टिविटी वाली कोडिंग मशीनें लेने लगेंगी.
रिपोर्ट: टीके/ओएसजे