कहां जा रहे हैं इस्लामिक स्टेट के हजारों लड़ाके?
४ अक्टूबर २०१७![Irak IS-Wandbeschriftung auf verlassenes Tor in Tal Afar](https://static.dw.com/image/40542698_800.webp)
चारों तरफ से हमला झेल रहे इस्लामिक स्टेट के हाथ से लीबिया की सिरते, इराक का मोसुल और रमादी निकल चुका है और बहुत जल्द ही उसे सीरिया के अपने गढ़ रक्का से भी रुखसत होना पड़ेगा ऐसे आसार दिख रहे हैं. इस्लामिक स्टेट जब उफान पर था तब उसके साथ हजारों लड़ाके थे. अमेरिकी अधिकारियों का अनुमान है कि बीते सालों में 40 हजार से ज्यादा लड़ाके इस्लामिक स्टेट के साथ मिले हैं.
इस्लामिक स्टेट पर हमला कर रही सेनाएं बड़ी तादाद में इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों के पकड़े या मारे जाने की खबर दे रही हैं. हालांकि ये आंकड़े बहुत पक्के नहीं हैं और इनकी स्वतंत्र रूप से पुष्टि भी नहीं हो सकती. अमेरिका समर्थित सीरियन डेमोक्रैटिक फोर्सेज यानी एसडीएफ के प्रवक्ता मुस्तफा बाली का कहना है, "हम पक्के तौर पर यह नहीं बता सकते कि कितने लोगों की पकड़े गये हैं लेकिन हम कह सकते हैं कि हमारी सेनाओं ने अच्छी संख्या में गिरफ्तारियां की हैं." एसडीएफ सीरिया में इस्लामिक स्टेट से लड़ रहा है.
इराक के मोसुल में पत्रकारो ने जंग में मारे गये जिहादियों के शव सड़कों पर पड़े देखे है लेकिन उनकी संख्या एक वक्त में दर्जन भर से ज्यादा नहीं रही. इसके उलट अधिकारी युद्धक अभियानों में सैकड़ों की तादाद में आईएस लड़ाकों के मारे जाने की बात कहते हैं. बहुत से आईएस लड़ाकों को पकड़ कर फांसी भी दी गयी है. जुलाई में मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि इराकी सेना की एक यूनिट संदिग्ध जिहादी कैदियों को बड़ी जल्दबाजी में फांसी की सजा दे रही है.
इस्लामिक स्टेट पर हमला कर रहे सैनिक लगातार यह डर जता रहे हैं कि इन लड़ाकों की कोशिश आम लोगों की आबादी में मिल जाने की होगी जो या तो उन इलाकों से भाग रहे हैं या फिर वहीं घरों में रह रहे हैं.
मि़डिल इस्ट फोरम में रिसर्च फेलो अयमान अल तमीमी का कहना है, "भागने वाले आम लोगों में लड़ाकों का मिल जाना निश्चित रूप से एक बड़ा मुद्दा है."
सीरिया में मुस्तफा बाली ने बताया कि कुछ आईएस लड़ाके विस्थापितों को कैंप में रहते हुए मिले हैं. इसके अलावा कुछ लड़ाके आम लोगों में मिल गये हैं जिनकी पहचान आम लोगों ने करने के बाद इसकी जानकारी भी दी है. मानवाधिकारों नजर रखने वाली सीरियाई ऑब्जरवेटरी के निदेशक रामी अब्देल रहमान का कहना है कि इसके बाद भी कुछ लड़ाके ऐसे हैं जो लोगों की नजर में नहीं आए हैं. इसकी वजह ये है कि आम लोगों ने डर की वजह से कुछ लड़ाकों के बारे में जानकारी नहीं दी है.
इराकी सैनिकों ने सीरिया की तरह ही एक डाटाबेस का इस्तेमाल कर आम लोगों के बीच रह रहे संदिग्ध आईएस लड़ाकों की पहचान की है. हालांकि इराक के एक स्थानीय अधिकारी का कहना है, "बड़ी संख्या में दाएश के लोग मोसूल की आबादी में घुल मिल कर रह रहे हैं खासतौर से पुराने शहर में." इस्लामिक स्टेट का अरबी में दाएश कहते हैं. जिहादी गतिविधियों के विशेषज्ञ माने जाने वाले रिसर्चर हिशाम अल हाशिमी का कहना है, "रोज रोज की हत्याओं और बम धमाकों से उनकी मौजूदगी का पता चलता है."
बहुत से गैरअरबी विदेशी लड़ाके भी इस्लामिक स्टेट में शामिल हैं और वो अपने रंग और जुबान के कारण भागने वाले लोगों में शामिल नहीं हो पा रहे हैं. एसडीएफ को मदद दे रही गठबंधन सेना के शीर्ष कमांडर ने कहा, "बहुत से विदेशी लड़ाके मोर्चा छोड़ने को तैयार नहीं हैं और वो कड़ी लड़ाई लड़ना चाहते हैं."
हाशिमी का यह भी कहना है कि आमतौर पर आत्मघाती हमलों को विदेशी लड़ाके ही अंजाम देते हैं इसलिए हर जंग के बाद जो जिंदा बचते हैं उनमें विदेशी लड़ाकों की संख्या बहुत कम होती है. इन लोगों के घर लौट पाने की उम्मीद भी बहुत कम होती क्योंकि खुफिया एजेंसियां इन लोगों की गतिविधियों पर बारीकी से नजर गड़ाए रहती हैं. तुर्की की सीमा पर भी इन दिनों कड़ी निगरानी है.
सीरिया और इराक में सिमटती जमीन देख इस्लामिक स्टेट अब फरात नदी घाटी की तरफ के संसाधनों पर अपना ध्यान लगा रहा है, यह इलाका सीरिया और इराक की सीमा पर है. कट्टरता और राजनीतिक हिंसा पर शोध करने वाले एक एक अंतरराष्ट्रीय रिसर्च सेंटर के सीनियर फेलो चार्ली विंटार का कहना है, "इस्लामिक स्टेट की धुरी अब खिसक रही है यह अब सीरिया के दीयर एजोर प्रांत के पूर्व में मायादीन और अल्बू कमाल की तरफ जा रही है. इस्लामिक स्टेट बड़े व्यवस्थित तरीके से अपने संगठन और आबादी को इस इलाके में जमा कर रहा है."
विंटर का कहना है कि रक्का और मोसुल जैसे इलाकों में समर्पण से पहले इस्लामिक स्टेट बड़ी संख्या में अपने लड़ाकों को इन इलाकों में पहुंचा देना चाहता है. इसका एक मतलब यह भी है कि मायादीन और अल्बू कमाल के इलाकों में लड़ाई और भयानक हो सकती है.
एनआर/ओएसजे (एएफपी)