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कहां तक पहुंचे भारत और चीन

५ अक्टूबर २०१२

भारत खुद को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहता है. वहां आजाद प्रेस और न्यायपालिका है, लेकिन करोड़ों भूखे बच्चे हैं. चीन पर कम्युनिस्ट पार्टी का निरंकुश शासन है, लेकिन वह दुनिया की दूसरी बड़ी आर्थिक सत्ता है.

तस्वीर: Getty Images

दोनों पड़ोसी हैं, जिसे 3500 किलोमीटर की सीमा बांटती है. सीमा कहां से गुजरती है, इस पर युद्ध के पांच दशक बाद भी दोनों असहमत हैं.

बर्लिन के राजनीति शास्त्री एबरहार्ड जांडश्नाइडर कहते हैं, "विवाद बहुत व्यापक हैं." भारत चीन के साथ प्रतिस्पर्धा में है. भारत में हर बात में चीन के साथ तुलना होती है, नतीजतन भारत को काफी कुछ करना है. इसके अलावा सुरक्षा नीति से संबंधित मुद्दे भी हैं. जांडश्नाइडर के अनुसार, "भारतीय नजरिए से चीन उसके चारों ओर समुद्र पर कब्जा करके उसे घेर लेना चाहता है, जो चिंता की बात है." इसके अलावा सीमा विवाद भी हल नहीं हुआ है. भारत विशेषज्ञ की राय में तिब्बत के प्रति भारत की नीति भी संवेदनशील है, क्योंकि उसने दलाई लामा और तिब्बत की निर्वासित सरकार को शरण दे रखी है.

पानी का विवाद

भविष्य में दोनों देशों के बीच जांडश्नाइडर विवाद का एक और कारण देखते हैं, वह है हिमालय के इलाके की नदियों का पानी. ब्रह्मपुत्र सहित दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया की कुछ महत्वपूर्ण नदियां तिब्बत से निकलती हैं. उसका पानी भारत के बड़े हिस्से और बांग्लादेश के लिए बहुत जरूरी है. जांडश्नाइडर को डर है कि "उत्तरी चीन और भारत में सूखे की समस्या को देखते हुए पानी के इस्तेमाल का मुद्दा नए प्रकार के विवाद की संभावना रखता है."

दलाई लामा के साथ निर्वासित तिब्बत सरकार के नए प्रधानमंत्री लोबसांग सांगेतस्वीर: AP

यही आकलन अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अध्ययन का भी है. ग्लोबल वॉटर सिक्योरिटी के लेखकों का कहना है कि आने वाले दिनों में पानी को लेकर ज्यादा झगड़े होंगे. आबादी के बढ़ने और जलवायु परिवर्तन के कारण संसाधन घट रहे हैं और मांग बढ़ रही है. चीन ने मेकांग, सालवीन और ब्रह्मपुत्र नदियों पर बांध बनाना शुरू कर दिया है. नदियों के निचले हिस्से वाले देशों में इस पर चिंता है कि उनके हिस्से में नदियों में पानी कम हो सकता है.

चीन में इस तरह की योजनाएं हैं कि ब्रह्मपुत्र के पानी को सूखा प्रभावित इलाकों में मोड़ दिया जाए. तकनीकी रूप से यह फिलहाल संभव नहीं है, लेकिन भारत चिंतित है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इस मुद्दे को चीनी नेताओं के साथ बातचीत में उठाया है. भारत के रक्षा अध्ययन संस्थान के जगरनाथ पंडा का कहना है कि पानी ने पहले कभी भारत चीन संबंधों में कोई भूमिका नहीं निभाई है. वे कहते हैं, "सीमा का मुद्दा नहीं, क्षेत्रीय और विश्व स्तर पर भारत और चीन क्या भूमिका निभाएगा यह मुद्दा नहीं, पानी का मुद्दा अगले पांच से 10 साल में दोनों देशों के बीच मुख्य मुद्दा होगा."

असम के गांव बुधाबुधी से ब्रह्मपुत्र नदी का एक दृश्यतस्वीर: picture alliance / dpa

गहरा अविश्वास

1962 में युद्ध के बाद से भारत में चीन के प्रति गहरा अविश्वास है. इस अविश्वास को इस बात से और बल मिलता है कि चीन भारत के विकास को रोकना चाहता है. इसका एक उदाहरण सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट पाने की भारत की कोशिश है. बॉन के राजनीति शास्त्री गू शुईवु इसकी पुष्टि करते हैं कि "चीन भारत को सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट देने के विचार से उत्साहित नहीं है लेकिन उसने कभी खुल कर इसके खिलाफ बोला नहीं है." चीन ने हमेशा कहा है कि इसके लिए अंतरराष्ट्रीय तौर पर व्यापक सहमति की जरूरत है.

चीनी मूल के गू भारतीयों के लिए एक तकलीफदेह जानकारी देते हैं, "चीन भारत को अपने लीग का खिलाड़ी नहीं मानता. चीन अमेरिका के साथ एक धरातल पर खेलना चाहता है न कि भारत के साथ. इसलिए चीन को पाकिस्तान की जरूरत है, ऊर्जा सुरक्षा, हिंद महासागर में प्रवेश और चीनी विदेश व्यापार के परिवहन की सुरक्षा के लिए." सचमुच चीन और भारत के धुर दुश्मन पाकिस्तान के रिश्ते बहुत करीबी हैं. दोनों सभी मौसम वाली दोस्ती की बात करते हैं. पिछले दिनों में इस्लामाबाद और वाशिंगटन के बीच बढ़ती दूरी ने चीन और पाकिस्तान को और निकट ला दिया है. चीन ने हाल में पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट की जिम्मेदारी संभाल ली है. भारत को डर है कि वह उसे नौसैनिक अड्डा बना सकता है.

चीन की मदद से पाकिस्तान के कराची शहर में बना ग्वादर बंदरगाहतस्वीर: AP

तेल पर विवाद

दक्षिण चीनी सागर में गंभीर हो रहे क्षेत्रीय विवाद में चीन और भारत आपस में टकरा रहे हैं. मामले की जड़ में संवेदनशील मुद्दा तेल है. चीन लगभग पूरे दक्षिणी चीन सागर पर अपना दावा कर रहा है. वियतनामी तट से 70 किलोमीटर दूर चीन तेल के नौ कुएं अंतरराष्ट्रीय खरीदारों को दे रहा है. लेकिन इनमें से दो कुएं वियतनाम ने पहले से ही भारत को देने का वायदा कर रखा है. चीन पर नजर रखने वाले हलकों में कहा जाता है कि चीनी अर्थव्यस्था से तेज विकास सिर्फ एक का हो रहा है, वह है चीनियों का आत्मविश्वास. इसी के अनुरूप वह चीन सागर के विवाद में पेश आ रहा है.

चीन का पहला विमानवाहक युद्धपोततस्वीर: Getty Images

सितंबर मध्य में चीन ने अपना पहला विमानवाही पोत सेना में शामिल किया है. यह ऐसी हथियार प्रणाली है जो उसकी सुरक्षा के लिए जरूरी नहीं है बल्कि उसका लक्ष्य सैनिक सत्ता का प्रदर्शन है. लेकिन भारत के आत्मविश्वास को भी पिछले सालों के आर्थिक विकास के कारण पड़ लग गए हैं, भले ही पिछले दिनों में आर्थिक विकास का मोटर खटारा हो गया हो. पिछले दिनों देश के इतिहास में बिजली गुल होने की सबसे बड़ी घटना के बाद लोगों का ध्यान इस बात पर गया कि 30 करोड़ लोगों के पास अभी भी बिजली नहीं है. परमाणु सत्ता भारत इस समय दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आयातक है. भारतीय सेना की निगाहें सिर्फ पाकिस्तान पर नहीं हैं, बल्कि ज्यादा से ज्यादा उत्तर की ओर मुड़ रही हैं, बड़े पड़ोसी चीन की ओर.

रिपोर्ट: मथियास फॉन हाइन/एमजे

संपादन: अनवर जे अशरफ

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