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कहां पढ़ें सोमाली बच्चे

२७ जुलाई २०१३

दशकों से सोमालिया में सरकार नहीं है और वहां पढ़ाई का कोई तंत्र नहीं बचा है. सिर्फ 40 फीसदी बच्चे स्कूल जा पा रहे हैं और ये स्कूल भी कोई तरीके का नहीं है, बस मां बाप किसी तरह खुद ही बच्चों को पढ़ा रहे हैं.

तस्वीर: Bettina Rühl

क्लासरूम को जाने वाले रास्ते में धूल जमी है. पेड़ों से गिरे पत्ते टूट कर यहां बिखर गए हैं. गृहयुद्ध में जब मोगादीशू का यह स्कूल बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ, तो उसके बाद से किसी ने यहां सफाई करने की जहमत नहीं उठाई. 2011 के बाद से इस क्लासरूम में किसी ने पढ़ाई नहीं की है. पड़ोस की बिल्डिंग में कुछ कमरे लिए गए हैं, वहीं पढ़ाई हो रही है.

वैसे तो सोमालिया में गर्मी की छुट्टियों का मौसम है लेकिन बुरी तरह क्षतिग्रस्त कमरों की मरम्मत भी तो करनी है. प्रिंसिपल हसन अदावे अहमद का कहना है, "हम फिलहाल पांच क्लासरूम की मरम्मत कर रहे हैं. पिछले साल हमने सात कमरों को ठीक करा लिया है."

इस प्रोजेक्ट के लिए डीजीबी नाम की सहायता संस्था पैसे दे रही है, जिसे जर्मनी के एनजीओ कारिटास और डायाकोनी काटास्ट्रोफेनफिल्फे से वित्तीय सहायता मिलती है. सोमालिया में 20 साल से ज्यादा गृहयुद्ध चला और उस दौरान अहमद जो स्कूल चलाते हैं, वह तीन बार बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुआ. अल शहाब संगठन के आतंकवादी इस स्कूल में छिप गए और बाद में अफ्रीकी संघ की सेना ने उन पर हमला किया. (सोमालिया में अल शहाब कमजोर)

प्रिंसिपल अहमद के पांच बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं, "आखिरी हमले के बाद छत पूरी तरह गिर गई, शटर और दरवाजे चुरा लिए गए." उन्होंने बताया कि कुछ क्लासरूम को दोबारा तैयार किया गया है, इन्हें दोबारा पेंट किया गया है, "बहुत जल्दी हम फिर से यहां बच्चों को पढ़ा पाएंगे."

मरियम सालेबेन ओबोकोरतस्वीर: Bettina Rühl

स्कूल का नाम है उलुमहूरा, जो आम तौर पर सोमालिया में महिलाओं का नाम होता है. जब वक्त अच्छा था, तो 3000 बच्चे यहां पढ़ने आते थे. अब सिर्फ 600 बच्चे हैं. ये गृहयुद्ध का नतीजा है. जब युद्ध ज्यादा हिंसक होता है, तो ज्यादा लोग घर बार छोड़ कर भागते हैं.

पिछले साल से स्थिति कुछ बेहतर हुई है. पिछले 20 साल में पहली बार सोमालिया में राष्ट्रपति हसन शेख महमूद के नेतृत्व में कोई सरकार बनी है. यह स्कूल तो नई सरकार से बहुत पुरानी है. यहां तो 18 साल से पढ़ाई हो रही है.

मरियम सालेबेन अबोकोर ने इस काम की शुरुआत की, "मैंने जब अपने आस पास बच्चों को देखा, तो मुझे इसका ख्याल आया. वे सड़कों पर घूम रहे थे क्योंकि युद्ध के बाद स्कूल बंद हो गए थे. मुझे डर लगा कि कहीं ये बच्चे अपराधी न बन जाएं क्योंकि उन्हें पढ़ने का मौका नहीं मिल रहा है."(सोमालिया को सुधारने की कवायद)

वह अपनी पड़ोसी के पास गई और मिल कर स्कूल के लिए काम करने का प्रस्ताव रखा. तय हुआ कि देश का माहौल चाहे जैसा हो, पढ़ाई चलेगी. मरियम बताती हैं कि दूसरे मां बाप फौरन राजी हो गए और 18 साल पहले यह स्कूल बना. हर कोई अपने हिसाब से इसमें शामिल हुआ. कुछ ने पैसे दिए, दूसरों ने मरम्मत में मदद की या काम के बाद सफाई में. मोगादीशू और सोमालिया के दूसरे हिस्सों में कई स्कूल और संस्थाएं इसी तरह चल रही हैं. चाहे वह धार्मिक संस्था हों या सामाजिक.

हसन अदावे अहमदतस्वीर: Bettina Rühl

हालांकि यहां एक सरकार पिछले साल भर से है, पढ़ाई का जिम्मा मां बाप पर ही है. वही तय करते हैं कि स्कूल की फीस कितनी होनी चाहिए और टीचरों को कितने पैसे मिलने चाहिए. सोमालिया में स्कूल की फीस 400 रुपये से 700 रुपये के बीच होती है. अनुमान है कि इस तरह 40 फीसदी सोमाली अपने बाहरी रिश्तेदारों की मदद के भरोसे हैं. उलुमहूरा स्कूल में टीचरों की आमदनी है 8500 रुपये और प्रिंसिपल की 9000 रुपये.

अहमद का कहना है, "इतना पैसा काफी नहीं है." लेकिन उनके आठ में से पांच बच्चे यहां पढ़ते हैं, इसलिए वह अपना काम कर रहे हैं. स्कूल में किसी तरह का यूनिफॉर्म नहीं है.

सोमालिया में स्कूल का समर्थन करने वालों ने भी दो संस्थाएं बनाई हैं, जो फाइनल इम्तिहान के बाद सर्टिफिकेट बांटने का काम करती हैं. इसे सामान्य शिक्षा व्यवस्था की तरह बनाने की कोशिश की गई है. हालांकि अहमद और उनके साथी उम्मीद कर रहे हैं कि नई सरकार शिक्षा को लेकर अपनी जिम्मेदारी पूरी करे.

रिपोर्टः बेटिना रूह्ल, मोगादीशू/एजेए

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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