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कहां से आए उड़ने वाले ड्रैगन

२६ अप्रैल २०१४

वैज्ञानिकों को चीन में 16 करोड़ साल पुराना एक जीवाश्म मिला है जो पृथ्वी के इतिहास में उड़ने वाले जीवों की सबसे पुरानी किस्म माना जा रहा है. इन्हीं से आगे चल कर सबसे भारी उड़ने वाले सरीसृप बने होंगे और बाद में पक्षी.

तस्वीर: Courtesy Wenders Images

जुरासिक काल के माने जा रहे ये नए जीव क्रिप्टोड्रैकॉन प्रोजैनिटर प्रजाति के हैं. क्रिप्टोड्रैकॉन का मतलब है 'छिपा हुआ ड्रैगन'. चीन के गोबी रेगिस्तान में खुदाई के दौरान मिले ये जीवाश्म मध्यम आकार वाले हैं और इनके पंखों की लंबाई करीब चार से साढ़े चार फीट के बीच रही होगी. वैज्ञानिकों का मानना है कि जीवों की इसी शाखा से आगे चलकर उड़ने वाले पहले सरीसृप बने. इससे ठीक पहले तक पाए जाने वाले टेरोसॉरस जैसे सरीसृप काफी विशाल हुआ करते थे जिनके पंख 35 फीट तक लंबे हुआ करते थे.

करीब 22 करोड़ साल पहले टेरोसॉरस धरती पर उड़ सकने वाले पहले ऐसे जीव थे जिनकी रीढ़ की हड्डी थी. इसके बाद सीधे 15 करोड़ साल पहले पक्षियों के बनने का सुबूत मिलता है. वहीं चमगादड़ तो केवल 5 करोड़ साल पहले ही आए. टेरोसॉरस ट्रायसिक काल में धरती पर प्रकट हुए. यह डायनासोरों के आने के कुछ बाद की घटना है. उनके पंखों की संरचना से पता चलता है कि पंख असल में हाथ के पंजे की चौथी अंगुली के लंबे होने से बने थे. लाखों साल तक टेरोसॉरस ऐसे ही लंबी पूंछ और छोटे से सिर वाले जीव रहे.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

जुरासिक काल तक आते आते उनमें कुछ बदलाव आने लगे. टेरोडैक्टिलॉइड्स कहे जाने वाले इन ने तरह के जीवों के सिर काफी भारी और बड़े हो गए और उनके दांत चले गए. अब वैज्ञानिकों को जिस क्रिप्टोड्रैकॉन प्रजाति के जीवाश्म मिले हैं वह इन्हीं दोनों प्रजातियों के बीच की कड़ी रहे होंगे. यूनिवर्सिटी ऑफ फ्लोरिडा के जीवाश्मविज्ञानी ब्रायन आंद्रेस बताते हैं, "हम इनके शरीर की आंतरिक संरचना देख कर जान सकते हैं कि इनमें ऐसे कौन से बदलाव आए थे जिसके कारण आगे चलकर यह (उड़ने वाला) समूह इतना सफल हुआ."

इसके अलावा वैज्ञानिकों को इस प्रजाति में एक और अनोखी बात दिखाई दी है. क्रिप्टोड्रैकॉन ही वह जीव था जिसने सबसे पहले घर की परिकल्पना की होगी. वह ज्यादातर समुद्र से काफी दूर, नदियों के आसपास रहा. इन जगहों पर उस समय के डायनासोर भी रहा करते थे. इनके बाद की कड़ी उड़ने वाले टेरोसॉरस समंदर पर उड़ान भरते थे और मछलियां खाते थे. यह रिसर्च करंट बायोलॉजी नाम के जरनल में प्रकाशित हुआ है.

आरआर/एएम (रॉयटर्स)

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