बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद पर आए अदालत के फैसले से एक बरसों से सोया हुआ विवाद फिर जाग गया है. आशंका है कि कहीं इस मसले का हश्र भी राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद जैसा ना हो.
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ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर विवाद नया नहीं, बल्कि कई दशक पुराना है. मस्जिद के इतिहास के मुताबिक इसे मुगल बादशाह औरंगजेब ने 17वीं शताब्दी में बनवाया था. कुछ लोग मानते हैं कि औरंगजेब ने मस्जिद 2500 साल पुराने काशी विश्वनाथ मंदिर को आंशिक रूप से तुड़वा कर बनवाई थी.
यही मान्यता एक दशकों पुराने विवाद की जड़ भी है जो आज भी इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित है. इसी बीच राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बनारस के जिला सिविल कोर्ट में ज्ञानवापी मस्जिद पर भी एक याचिका दायर कर दी गई. ताजा फैसला उसी याचिका पर आया है.
याचिका में मस्जिद की पूरी भूमि हिन्दुओं को देने की अपील की गई थी, इसी दावे के आधार पर कि वो भूमि मूल रूप से काशी विश्वनाथ मंदिर की थी और औरंगजेब ने मंदिर के एक हिस्से को तोड़ कर उसे बनवाया था. मस्जिद की प्रबन्धन समिति ने याचिका का विरोध किया था और मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाए जाने के दावे को ठुकरा दिया था.
अदालत ने कहा कि चूंकि याचिका में किए गए दावों को मस्जिद पक्ष ने ठुकरा दिया है, तो अदालत को ही सच्चाई का पता लगाना पड़ेगा. इसके लिए अदालत ने पुरातत्व विभाग को मस्जिद का विस्तार से सर्वेक्षण करने के लिए कहा है. अदालत ने एक पांच सदस्यीय समिति के गठन का भी आदेश दिया जिसका काम यह पता लगाना होगा कि मस्जिद जहां है वहां उसके पहले कोई हिन्दू मंदिर था या नहीं.
समस्या यह भी है कि यह मामला 1998 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में भी लाया गया था और यह वहां अभी तक लंबित है. ऐसे में कोई निचली अदालत ने कैसे इस मामले पर फैसला दे दिया, इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य डॉ कासिम रसूल इलियास ने डीडब्ल्यू को बताया कि उनकी नजर में यह फैसला असंवैधानिक है और वो इसे चुनौती देंगे.
इलियास ने यह भी कहा, "ऐसा लगता है कि जज ने बाबरी मस्जिद के संदर्भ में यह फैसला सुनाया है." दरअसल 2019 में बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद ही कुछ लोगों ने "अयोध्या तो बस झांकी है, अभी काशी-मथुरा बाकी है" जैसे नारे लगाने शुरू कर दिए थे. कुछ लोगों ने बाकायदा घोषणा की थी कि अब बनारस और मथुरा में भी अयोध्या जैसे पुराने मंदिर-मस्जिद विवादों के समाधान का वक्त आ गया है.
इसी वजह से अयोध्या के इस विवाद को लेकर भी अयोध्या जैसी अप्रिय स्थिति बनने की आशंका व्यक्त की जा रही है. देखना होगा कि निचली अदालत के इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी जाती है या नहीं.
अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में बुधवार को राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया और मंदिर की आधारशिला रखी. कोरोना वायरस की वजह से इस कार्यक्रम को सीमित रखा गया था और टीवी पर इसका सीधा प्रसारण हुआ.
तस्वीर: AFP/P. Singh
राम मंदिर भूमि पूजन
5 अगस्त 2020 भारतीय इतिहास में उस तारीख के रूप में दर्ज हो गई जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया गया. लंबे कानूनी झगड़े के बाद अयोध्या में विशाल राम मंदिर निर्माण होने जा रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन किया.
तस्वीर: AFP/P. Singh
राम मंदिर की नींव
नरेंद्र मोदी ने राम जन्मभूमि मंदिर की नींव में नौ शिलाएं रखीं. भूमि पूजन का शुभ मुहूर्त 12 बजकर 44 मिनट पर था. तय कार्यक्रम के मुताबिक पूरे विधि विधान से पूजा पाठ किया गया. अयोध्या पहुंचकर सबसे पहले मोदी ने हनुमान गढ़ी जाकर दर्शन किए और आरती उतारी. टीवी चैनलों पर सुबह से ही कार्यक्रम का सीधा प्रसारण किया जा रहा था.
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राम के दर्शन
मोदी ने राम जन्मभूमि मंदिर का शिलान्यास करने के बाद कहा कि राम मंदिर राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय भावना का प्रतीक है. उन्होंने अपने संबोधन में कहा, "आज पूरा देश राममय और हर मन दीपमय है. सदियों का इंतजार समाप्त हुआ." सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दशकों पुराने मामले का निबटारा करते हुए अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ कर दिया था. मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन मिली है.
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राम भक्तों का जश्न
राम मंदिर निर्माण की नींव रखे जाने से भारत में राम भक्तों के बीच खुशी की लहर दौड़ पड़ी. कोरोना वायरस की वजह से राम मंदिर भूमि पूजन के लिए सीमित संख्या में मेहमानों को आमंत्रित किया गया था. ज्यादातर लोगों ने ढोल और नगाड़े बजाकर अपनी खुशी का इजहार किया. इस तस्वीर में बीजेपी युवा मोर्चा के कार्यकर्ता जश्न मनाते दिख रहे हैं. राम मंदिर आंदोलन के सहारे ही बीजेपी सत्ता के शिखर तक पहुंच पाई.
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खुशी से झूमती महिलाएं
नई दिल्ली में विश्व हिंदू परिषद के कार्यालय के बाहर महिलाएं खुशी से झूमती हुईं. राम मंदिर के लिए वीएचपी, आरएसएस और बीजेपी ने आंदोलन चलाया. आंदोलन से जुड़े दो वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी राम मंदिर भूमि पूजन कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए.
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पटाखों के साथ खुशी
अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए आधारशिला रखने के बाद नई दिल्ली में बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने पटाखे फोड़े और हवा में रंग उड़ाए. कई शहरों में राम भक्तों ने लड्डू बांटे और एक दूसरे को इस अवसर पर बधाई दी.
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खास मेहमान
पिछले कई महीनों से अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास को लेकर हलचल तेज थी और तैयारियां जोरों पर थीं. राम मंदिर तीर्थ ट्रस्ट ने भूमि पूजन के लिए खास तैयारी की थी. चुनिंदा मेहमानों के अलावा भूमि पूजन के लिए आम लोगों को जाने की इजाजत नहीं थी. लोग दूर से इस पल का गवाह बने.
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सीधा प्रसारण
राम मंदिर भूमि पूजन का सीधा प्रसारण टीवी पर किया गया. कोरोना वायरस के कारण लोगों ने बड़ी स्क्रीन पर मंदिर निर्माण के लिए भूमि पूजन कार्यक्रम देखा. कई शहरों में इसके लिए खास इंतजाम किए गए थे.
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लड्डू का प्रसाद
अयोध्या में प्रसाद के तौर पर पिछले कुछ दिनों से लड्डू बनाने का काम चल रहा था. भूमि पूजन के बाद 1,11,000 डिब्बों में प्रसाद के रूप में देसी घी के लड्डू वितरित किए गए. इन लड्डूओं को कई तीर्थ क्षेत्रों में वितरित भी किया जाएगा.
तस्वीर: IANS
अयोध्या में सैनिटाइजेशन
कोरोना वायरस के कारण पूरी अयोध्या नगरी को सैनिटाइज किया गया. तमाम रास्तों, गलियों, मंदिरों और भूमि पूजन से जुड़ी जगहों को स्वास्थ्य कर्मचारियों ने सैनिटाइज किया. भूमि पूजन के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में कहा, "कोरोना से बनी स्थितियों के कारण भूमि पूजन का कार्यक्रम मर्यादाओं के बीच हो रहा है."
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सख्त पहरा
अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन के पहले ही सुरक्षा कड़ी कर दी गई थी. भूमि पूजन से पहले ही अयोध्या में तीन चक्र की सुरक्षा के इंतजाम किए गए थे. स्थानीय पुलिस, अर्धसैनिक बल और एसपीजी के जवान तैनात किए गए थे.
तस्वीर: Reuters/P. Kumar
अयोध्या
अयोध्या में पिछले कुछ हफ्तों से सजावट का काम चल रहा था. जगह-जगह दीवारों पर राम के चित्र बनाए गए और सड़कों पर रंगोली बनाई गई. सरयू नदी पर मंगलवार से ही मनमोहक नजारा दिख रहा है. नदी के किनारे को भूमि पूजन के लिए रंगीन रोशनी और रंगोली से सजाया गया.