कांग्रेस के मराठा सैनिक का निधन
१४ अगस्त २०१२बीजेपी के दिवंगत नेता प्रमोद महाजन की तरह शख्सियत और संपर्क, शरद पवार की तरह जनता के बीच पैठ और प्रणव मुखर्जी की तरह कूटनीतिक समझ. विलासराव देखमुख का व्यक्तित्व इन तीनों नेताओं का मिला जुला रूप है. 67 साल की उम्र में देशमुख का चेन्नई के अस्पताल में निधन हो गया. बताया जाता है कि उन्हें गुर्दे की बीमारी थी.
गंभीर लेकिन आकर्षक
धीर गंभीर लेकिन प्रभावी शख्सियत के मालिक विलासराव में थोड़ा ग्लैमर का पुट भी था. हो सकता है ये फिल्मी सितारों से नजदीकी का असर हो. उनको करीब से देखने का मौका मिला था पिछले साल अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान जब प्रधानमंत्री ने उन्हें अपना दूत बनाया था. जाहिर है अब जबकि वो इस दुनिया में नहीं हैं, तो उनके न होने की सबसे ज्यादा कमी कांग्रेस को ही खल रही होगी. सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री ने उनकी मौत पर शोक जाहिर किया है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, "वह एक विश्वसनीय सहयोगी और काबिल प्रशासक थे. पंचायत से लेकर राज्य और केन्द्र तक उन्होंने प्रशंसनीय काम किया."
देशमुख में विरोधियों के बीच तालमेल बिठाने की अद्भुत क्षमता थी. वह एक साथ अन्ना हजारे से लेकर मुंबई के फिल्मी सितारों तक और सोनिया गांधी से लेकर बड़े बडे़ उद्योगपतियों तक को खुश रख सकते थे. उनके निधन के बाद विपक्षी दलों में भी शोक है. बीजेपी के प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर का कहना है, "विलासराव देशमुख बड़े दिल के नेता थे. किसानों से लेकर शहरी युवाओं तक वह सभी का ख्याल करते थे. वह एक जिंदादिल इंसान थे. हमें उनकी मौत का गरहा दुख है."
विवादों से नाता
राजनीति में संतुलन साधना विलासराव को आता था. इसी का फायदा भी उन्हें मिला. उनकी छवि कभी जुझारू नेता की नहीं रही लेकिन सत्ता के संघर्ष में कैसे जीत हासिल की जाती है, ये उन्हें मालूम था. उन्होंने राजनीति की शुरुतात पंचायत से की. 1974-76 में सरपंच बनने के बाद 1980 में पहली बार विधायक बने. इसके 19 साल बाद 1999 में मुख्यमंत्री बन गए.
राजनीति की लंबी सड़क पर इतनी जल्दी मंजिल तक कोई कोई ही पहुंचता है. देशमुख उनमें से एक थे. 2004 में वह दूसरी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने लेकिन मुंबई हमलों के बाद 2008 में उन्हें गद्दी छोड़नी पडी़.
सफेद झक कुर्ते और कड़क चूड़ीदार पायजामे में नजर आने वाले देशमुख का राजनीतिक करियर हालांकि उतना बेदाग नहीं रहा. उन पर आदर्श घोटाले में शामिल होने के आरोप लगे. मुंबई हमले के बाद फिल्म निर्देशक रामगोपाल वर्मा और अभिनेता बेटा रितेश देशमुख को लेकर वह ताज होटल का मुआयना करने गए. इस पर भी काफी हो हंगामा मचा. आम जनता से दूरी और हाई प्रोफाइल लाइफ स्टाइल उन्हें खास लोगों का नेता बनाती थी.
मराठा नेता की छवि
शरद पवार के कांग्रेस से अलग होने के बाद विलासराव को मराठा नेता की हैसियत मिल गई. 90 के दशक बीतते बीतते वह महाराष्ट्र के राजनीतिक पटल पर तेजी से उभरे और छाते चले गए. महाराष्ट्र में कांग्रेस की डूबती नैया को उनकी कुशलता ने संभाल लिया. हालांकि राज्य की राजनीति से उनका लगाव ज्यादा था लेकिन केन्द्र में भी उनकी पकड़ कमजोर नहीं रही. कुर्सी से वो ज्यादा देर तक दूर नहीं रह पाते थे. मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद राज्यसभा के रास्ते उन्हें 2009 में केन्द्र में मंत्री बनाया गया. इसके बाद 2011 में उन्हें विज्ञान और तकनीक का भारी भरकम मंत्रालय सौंप दिया गया.
राजनीति में ऊपर तक पहुंचने के बाद भी देशमुख ने जमीन से संपर्क नहीं तोड़ा. उनके परिवार में तीन बेटे और पत्नी हैं. एक बेटा रितेश बॉलीवुड में ठीक ठाक जगह बना चुका है. उनकी बहू जेनेलिया डिसूजा भी बॉलीवुड की जाने पहचाने चेहरों में हैं.
देशमुख का पार्थिव शरीर बुधवार को लातूर लाया जाएगा फिर बाभलगांव में उनका अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा. ये वही गांव है जहां से उन्होंने अपनी जिंदगी और राजनीतिक सफर शुरू किया था.
रिपोर्टः विश्वदीपक (पीटीआई)
संपादनः ए जमाल