भारत की कांग्रेस पार्टी और जर्मनी की सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी में कई समानताएं हैं, लेकिन अस्तित्व बचाने के संघर्ष में दोनों पार्टियां में कोई समानता नहीं है. एसपीडी ने सदस्यों के बीच जाने का रास्ता अपनाया है.
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भारत की कांग्रेस पार्टी और जर्मनी की सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी दुनिया की सबसे पुरानी पार्टियों में शामिल हैं. लेकिन उनमें और भी कई समानताएं हैं. दोनों पार्टियां मध्यमार्गी पार्टियां हैं, दोनों समाज के कमजोर तबकों के हितों के प्रतिनिधित्व का दावा करती है, दोनों समाज के व्यापक तबके का प्रतिनिधित्व करती रही हैं और एक तरह जनता की पार्टियां रही हैं और अब दोनों ही पार्टियां अस्तित्व बचाने के संघर्ष में लगी हैं. एसपीडी पहली बार सीडीयू-सीएसयू और ग्रीन पार्टी के बाद जनमत सर्वे में तीसरे स्थान पर पहुंच गई है. पूरब और पश्चिम के बीच तनाव घटाने वाले चांसलर विली ब्रांट की पार्टी को इस समय सिर्फ करीब 14 प्रतिशत लोग चुनने के लिए तैयार हैं.
पार्टियों पर बढ़ता दबाव
जहां तक समानता की बात है तो कांग्रेस और एसपीडी पार्टियों की समानता बस यहीं तक है. कांग्रेस पार्टी पिछले कई दशकों से जीतने के लिए परिवार और कुनबे का सहारा लेती रही है और पार्टी की लोकतांत्रिक संरचना, सदस्यों और चुनावों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया है. इसके विपरीत एसपीडी पार्टी के अंदर खुली बहस और नियमित चुनावों वाली लोकतांत्रिक पार्टी है. कांग्रेस के विपरीत इस पार्टी में पुराने चांसलरों के बेटे और बेटियां पार्टी पर कब्जा किए नहीं दिखते और न ही सांसदों के बच्चे संसद की सीटों पर परिवार का कब्जा बनाए हुए हैं.
एसपीडी पार्टी फिर भी जनता की पार्टी होने का दर्जा खोने की हालत में पहुंच गई है, उसका जनाधार खत्म हो रहा है, पार्टी के समर्थक उसका साथ छोड़ते जा रहे हैं. इसकी एक वजह तो आर्थिक संरचना में आ रहा बड़ा परिवर्तन है. जब जर्मनी में मजदूर आंदोलन से शुरू होकर सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी बनी तो देश औद्योगिक क्रांति के दौर से गुजर रहा था और उसे मजदूरों के हितों को समझने और उसका प्रतिनिधित्व करने वाली पार्टी की जरूरत थी. एसपीडी के संगठनों ने मजदूरों को संगठित करने, उन्हें प्रशिक्षित करने और उनके लिए सुविधाएं जुटाने में अहम भूमिका अदा की है. लेकिन आधुनिक अर्थव्यवस्था में परंपरागत मजदूर रहे नहीं और नए कामगारों को एसपीडी आकर्षित नहीं कर पा रही है.
जर्मनी में चुनाव लड़ने के लिए क्या चाहिए
जर्मनी में चुनाव लड़ने के लिए क्या चाहिए
सीडीयू और एसपीडी जैसी बड़ी पार्टियां तो चुनावी सूची में होंगी ही, लेकिन छोटी पार्टियों के लिए जर्मन आम चुनाव के बैलट में जगह बनाना बड़ी बात है. देखिए कैसे होता है ये काम.
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24 सितंबर को जब जर्मन नागरिक अपनी नई सरकार चुनने के लिए वोट देंगे तो ज्यादातर सीडीयू, एसपीडी, ग्रीन पार्टी या शायद एएफडी को वोट दें. लेकिन कई पार्टियों का नाम तो वोटर पहली बार सीधे बैलट पेपर पर ही देखते हैं.
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बैलेट पेपर में नाम लाने के लिए छोटी पार्टियों को पहला काम तो ये करना पड़ता है कि समय पर चिट्ठी 'लेटर ऑफ इंटेंट' भेज कर अपनी मंशा जाहिर करें. और दूसरा काम ये सिद्ध करना होता है कि वे असल में एक राजनैतिक दल हैं.
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ऐसी पार्टी जिसके पिछले चुनाव से लेकर अब तक बुंडेसटाग या किसी राज्य की संसद में कम से कम पांच सदस्य भी ना रहे हों, वह गैर-स्थापित पार्टी मानी जाती है. इन्हें चुनाव से पहले लिखित में 'लेटर ऑफ इंटेंट' भेजना पड़ता है. इसे "बुंडेसवाललाइटर" यानि केंद्रीय चुनाव प्रबंधक को भेजना होता है और यह पत्र चुनाव की तारीख से 97 दिन पहले मिल जाना चाहिए.
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इस लेटर ऑफ इंटेंट पर पार्टी प्रमुख और दो उप प्रमुखों के हस्ताक्षर होने चाहिए. उनके कार्यक्रमों का ब्यौरा होना चाहिए और साथ ही एक राजनीतिक दल के तौर पर उनके स्टेटस का सबूत होना चाहिए. जर्मन कानून (पार्टाइनगेजेत्स) के आधार पर चुनाव प्रबंधक और टीम तय करते हैं कि पार्टी मान्य है या नहीं. इसके लिए उनका मुख्यालय जर्मनी में होना चाहिए और कार्यकारिणी के बहुसंख्यक सदस्य जर्मन नागरिक होने चाहिए.
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इसके पहले 2013 में हुए संसदीय चुनावों में वोटरों के पास 30 से भी अधिक पार्टियों में से चुनने का विकल्प था. इनमें से केवल पांच दल ही बुंडेसटाग में जगह बना पाये. ये थे सीडीयू और उसकी बवेरियन सिस्टर पार्टी सीएसयू, एसपीडी, लेफ्ट पार्टी डी लिंके और ग्रीन पार्टी.
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आर्थिक रूप से उदारवादी मानी जाने वाली एफडीपी को बुंडेसटाग में जगह पाने के लिए जरूरी 5 फीसदी वोट भी नहीं मिल सके थे. पांच प्रतिशत की चौखट पार करने वाले को ही संसद में प्रवेश करने को मिलता है. ऐसा ही अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) के साथ भी हुआ.
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एएफडी और एफडीपी दोनों पार्टियां तो बहुत कम अंतर से पांच प्रतिशत की शर्त को पूरा करने से चूक गयीं. लेकिन कई दूसरी बहुत छोटी पार्टियां जैसे एनीमल प्रोटेक्शन पार्टी, मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट पार्टी और कुछ अन्य तो कुछ हजार वोट लेकर बहुत पीछे रह गयी थीं.
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समस्याओं से जूझती पार्टी
एसपीडी की दूसरी समस्या है जनाधार वाले नेताओं के अभाव की. इसका भी बदलती संरचनाओं से लेना देना है. पहले राष्ट्रीय स्तर के नेता लंबे अनुभवों के बाद नेतृत्व संभालते थे. अब सही राजनीतिक फैसलों के लिए विषय की जानकारी वाले नेताओं की जरूरत होती है जो आम तौर पर युवा होते हैं. उनकी पारिवारिक और सामाजिक जरूरतें राजनीति की जरूरतों से मेल नहीं खाती. कानून आधारित देशों में राजनीति में होने का मतलब गैरकानूनी ताकत या प्रभाव होना भी नहीं होता. और चूंकि तनख्वाह मिलती है तो हफ्ते में सरकार का काम और वीकएंड में पार्टी का काम. परिवार के लिए अक्सर समय ही नहीं होता. इसके अलावा राजनीति में उतनी कमाई भी नहीं होती जितनी उद्यमों में ऊंचे पदों पर होती है. और वे अक्सर राजनीति के उतार चढ़ाव छोड़ गैर सरकारी उद्यमों की नौकरी ले लेते हैं.
एसपीडी की एक और समस्या है कि पिछले सालों में चुनावों में उसके वोट कम होते गए हैं. इसकी वजह से संसदों और विधान सभाओं के उसके प्रतिनिधि कम होते गए हैं. अर्थ ये हुआ है कि पार्टी को चलाने वाले नेता कम होते गए हैं. ऊपर से हार के बाद आलोचना का दबाव बर्दाश्त न कर पाने के चलते कई नेताओं ने नैतिक कारणों से इस्तीफा दे दिया है. अब इतने लोग बचे ही नहीं जो राष्ट्रीय स्तर पर देश की सबसे पुरानी पार्टी की बागडोर संभाल सकें. ज्यादातर का राजनीतिक कद इतना बड़ा नहीं. जो लोग राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी नेतृत्व में हैं उनमें से किसी को पार्टी सदस्य अध्यक्ष के रूप में स्वीकार करेंगे, इसका भरोसा नहीं.
सदस्यों की भागीदारी
एसपीडी भी कांग्रेस की ही तरह अस्तित्व के संकट में घिरी है. एसपीडी की आंद्रेया नालेस की तरह कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी पार्टी की चुनावी हार के बाद इस्तीफा दे दिया. राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस पार्टी अनिश्चय का सामना कर रही है और एक के बाद एक नेता अलग अलग कारण देकर पार्टी छोड़ रहे हैं तो एसपीडी ने सक्रिय होने और आम सदस्यों को अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया में शामिल करने का फैसला किया है. नेताओं के पास समय की कमी की समस्या से निबटने के लिए पार्टी ने दो अध्यक्षों का विकल्प चुना है जिसमें पुरुष और महिला दोनों होंगे.
ये हैं जर्मनी की मुख्य राजनीतिक पार्टियां
ये हैं जर्मनी की मुख्य राजनीतिक पार्टियां
जर्मन संसद बुंडेसटाग में कुल सात पार्टियां मौजूद हैं. ऐसा कम ही होता है कि ये एक दूसरे से किसी बात पर सहमत दिखें. जानिए क्या हैं इन पार्टियों की नीतियां और कैसे हैं ये एक दूसरे से अलग.
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क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक पार्टी (सीडीयू)
सीडीयू संसद में सबसे बड़ी पार्टी है. पारंपरिक रूप से यह सेंटर-राइट पार्टी रही है. लेकिन चांसलर अंगेला मैर्केल के नेतृत्व में पार्टी का रुझान मध्य की ओर ज्यादा रहा है. लेफ्ट पार्टियों की तुलना में सीडीयू रूढ़िवादी मानी जाती है. यह यूरोपीय संघ और नाटो में सदस्यता का समर्थन करती है.
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क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू)
सीएसयू बवेरिया प्रांत में सीडीयू की सहोदर पार्टी है. राष्ट्रीय स्तर पर दोनों पार्टियां एक साथ सीडीयू/सीएसयू के रूप में काम करती हैं. सामाजिक मुद्दों में सीएसयू को सीडीयू से भी अधिक रूढ़िवादी माना जाता है. बवेरिया प्रांत में पार्टी ने सभी सरकारी इमारतों में क्रॉस लगाने के आदेश दिए हैं.
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सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी)
एसपीडी जर्मनी की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है और मुख्य सेंटर-लेफ्ट के रूप में सीडीयू/सीएसयू की सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी भी. 2017 के चुनावों के बाद इन पार्टियों ने मिल कर गठबंधन सरकार बनाई. गठबंधन की विफल कोशिशों के बाद चुनाव होने के लगभग छह महीने बाद देश में सरकार बन सकी.
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अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी)
एएफडी उग्र दक्षिणपंथी पार्टी है, जिसका गठन पहली बार 2013 में हुआ. 2017 के चुनावों के बाद पहली बार कोई धुर दक्षिणपंथी पार्टी संसद में पहुंच पाई है और यह सबसे बड़े विपक्ष का काम कर रही है. एएफडी मैर्केल की शरणार्थी नीति से इत्तेफाक नहीं रखती और ना ही यूरो और यूरोपीय संघ का समर्थन करती है.
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फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी (एफडीपी)
एफडीपी को भले ही कभी भी 15 फीसदी से ज्यादा वोट ना मिले हों लेकिन सरकार बनाने में एफडीपी का हमेशा ही बड़ा हाथ रहा है. कभी एसपीडी के साथ, तो कभी सीडीयू/सीएसयू के साथ एफडीपी गठबंधन बनाती रही है. हालांकि 2017 के चुनावों के बाद उसने गठबंधन से दूर रहने का फैसला किया. धार्मिक मुद्दों और समलैंगिकों के विवाह पर पार्टी के उदारवादी विचार हैं.
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ग्रीन पार्टी
अस्सी के दशक में पर्यावरण के मुद्दों के साथ ग्रीन पार्टी का गठन हुआ. कृषि सुधार और परमाणु ऊर्जा को खत्म करने जैसे मुद्दों पर पार्टी आवाज उठाती रही है. इसके अलावा यह कई सामाजिक विरोध आंदोलनों की अगुवाई भी करती रही है. सामाजिक मुद्दों पर इस पार्टी का उदारवादी मत है लेकिन कई अन्य मुद्दों पर पार्टी के सदस्यों में आपसी मतभेद भी दिखे हैं.
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वामपंथी पार्टी (डी लिंके)
डी लिंके का गठन 2007 में हुआ लेकिन इसे 1989 तक पूर्वी जर्मनी (जीडीआर) पर राज करने वाली सोशलिस्ट यूनिटी पार्टी (एसईडी) का वंशज माना जाता है. आज भी जर्मनी के पूर्वी हिस्से में ही इसे लोकप्रियता हासिल है. मुख्यधारा की पार्टियां अक्सर इससे दूर ही रहना पसंद करती है. डी लिंके नाटो की सदस्यता का भी विरोध करती है.
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भविष्य में पार्टी नेतृत्व में लैंगिक समानता रहेगी. ग्रीन पार्टी और वामपंथी डी लिंके पार्टी में पहले से ही ऐसी व्यवस्था है. 7 जोड़ियों ने अध्यक्ष पद के लिए मैदान में उतरने का फैसला किया है, जिसका सबसे प्रमुख चेहरा वित्त मंत्री ओलाफ शॉल्स हैं. युवा उम्मीदवारों में विदेश राज्य मंत्री मिषाएल रोठ और क्रिस्टीना कंपमन की जोड़ी है. आने वाले हफ्तों में 26 पार्टी ईकाइयों में वे पार्टी सदस्यों के सामने अपनी उम्मीदवारी लेकर जा रहे हैं. इन पार्टी सम्मेलनों के पूरा होने के बाद ऑनलाइन और चिट्ठी के जरिए पार्टी के 4,20,000 सदस्य नए अध्यक्षों की जोड़ी का चुनाव करेंगे. आखिर में एक पार्टी सम्मेलन में वे विधिवत पदभार संभालेंगे.
लोकतंत्र की जिम्मेदारी संभालने वाली पार्टियों का खुद का लोकतांत्रिक होना जरूरी है. उन्हें सिर्फ लोकतांत्रिक होने का अहसास ही नहीं देना होगा, सचमुच में लोकतांत्रिक होना होगा. सत्ता में रहने वाली पार्टियों के लिए ये आसान नहीं होता क्योंकि सरकार चलाते हुए पार्टी चलाना कभी कभी मुश्किल हो जाता है और सत्तारूढ़ पार्टियां सरकार को समर्थन देने के चक्कर में चांसलर या पार्टी नेता की पार्टियों में तब्दील हो जाती है. एसपीडी ने आम पार्टी सदस्यों को पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में शामिल कर पार्टी के जनाधार को मजबूत करने का महत्वपूर्ण कदम उठाया है. उसे इसका फायदा भी मिला है.
पहले सम्मेलन में भाग लेने के लिए शुरू में सिर्फ 300 लोगों ने रजिस्ट्रेशन करवाया था लेकिन अंत में उसमें करीब 700 लोगों ने हिस्सा लिया. ताजा सर्वे का कहना है कि जब से पार्टी अध्यक्ष पद के लिए कास्टिंग शुरू हुई है एसपीडी की छवि बेहतर हुई है. हालांकि सर्वे में वह अब भी तीसरे ही स्थान पर है लेकिन ग्रीन पार्टी से अंतर कम हुआ है. अध्यक्ष के चुनाव के लिए क्षेत्रीय पार्टी सम्मेलनों का नुस्खा काम आ रहा है.
कितना अनुदान मिलता है जर्मनी की राजनीतिक पार्टियों को
कितना अनुदान मिलता है जर्मनी की राजनीतिक पार्टियों को
जर्मनी में 2017 में हुए संसदीय चुनाव में 76.2 प्रतिशत मतदाताओं ने हिस्सा लिया. 6 करोड़ 17 लाख लोग मतदान के अधिकारी थे. उनमें से 4 करोड़ 69 लाख लोगों ने वोट दिया. इसी आधार पर मिलता है राजनीतिक दलों को सरकारी अनुदान.
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क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक पार्टी (सीडीयू)
कुल सरकारी अनुदान: 5.58 करोड़ यूरो । कुल वोट: 1 करोड़ 24 लाख । प्रतिशत वोट: 26.8 प्रतिशत । संसद में सीटें: 200 । पार्टी सदस्य: 4,25,910 । पार्टी नेता: आनेग्रेट क्रांप-कारेनबावर । संसदीय दल के नेता: राल्फ ब्रिंकहाउस
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सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी (एसपीडी)
कुल सरकारी अनुदान: 5.64 करोड़ यूरो । कुल वोट: 95.4 लाख । प्रतिशत वोट: 20.5 प्रतिशत । संसद में सीटें: 153 । पार्टी सदस्य: 4,43,152 । पार्टी नेता: आंद्रेया नालेस । संसदीय दल के नेता: आंद्रेया नालेस
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क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू)
कुल सरकारी अनुदान: 1.36 करोड़ यूरो । कुल वोट: 28.69 लाख । प्रतिशत वोट: 6.2 प्रतिशत । संसद में सीटें: 46 । पार्टी सदस्य: 1,40,983 । पार्टी नेता: मार्कुल जोएडर । संसदीय दल के नेता: अलेक्जांडर दोब्रिंट
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फ्री डेमोक्रैटिक पार्टी (एफडीपी)
कुल सरकारी अनुदान: 1.49 करोड़ यूरो । कुल वोट: 49.99 लाख । प्रतिशत वोट: 10.8 प्रतिशत । संसद में सीटें: 80 । पार्टी सदस्य: 63,050 । पार्टी नेता: क्रिस्टियान लिंडनर । संसदीय दल के नेता: क्रिस्टियान लिंडनर
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ग्रीन पार्टी
कुल सरकारी अनुदान: 1.91 करोड़ यूरो । कुल वोट: 41.58 लाख । प्रतिशत वोट: 8.9 प्रतिशत । संसद में सीटें: 67 । पार्टी सदस्य: 65,065 । पार्टी नेता: रॉबर्ट हाबेक और आनालेना बेयरबॉक । संसदीय दल के नेता: कातरिन गोएरिंग एकार्ट और अंटोन होफराइटर
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डी लिंके
कुल सरकारी अनुदान: 1.43 करोड़ यूरो । कुल वोट: 42.97 लाख । प्रतिशत वोट: 9.2 प्रतिशत । संसद में सीटें: 69 । पार्टी सदस्य: 62,300 । पार्टी नेता: कात्या किपलिंग और बैर्न्ड रीसिंगर । संसदीय दल के नेता: सारा वागेनक्नेष्ट और डीटमार बार्च
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अल्टरनेटिव फॉर डॉयचलंड (एएफडी)
कुल सरकारी अनुदान: 1 करोड़ यूरो । कुल वोट: 58.78 लाख । प्रतिशत वोट: 12.6 प्रतिशत । संसद में सीटें: 91 । पार्टी सदस्य: 27,621 । पार्टी नेता: योर्ग मॉयथेन । संसदीय दल के नेता: अलेक्जांडर गाउलंड और अलीस वाइडेल