गांधी परिवार के बाद दो दशक से कांग्रेस पार्टी में सबसे ताकतवर नेता रहे अहमद पटेल का निधन हो गया है. वो 71 वर्ष के थे और कोविड-19 से संक्रमित हो जाने के बाद उनकी हालत नाजुक हो गई थी.
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असम के पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई की मृत्यु के तुरंत बाद अहमद पटेल का देहांत कांग्रेस पार्टी के लिए दूसरा बड़ा झटका है. अपनी मृत्यु से पहले कांग्रेस पार्टी के कोषाध्यक्ष का पद संभाल रहे अहमद अपने आप में पार्टी में सत्ता के एक केंद्र थे. इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी तक और सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी तक, वो पार्टी के नेतृत्व की चार पीढ़ियों के नेताओं के करीब रहे.
1977 में इंदिरा गांधी ने उन्हें लोक सभा चुनाव लड़ने के लिए चुना, जिसमें वो जीत भी गए और उसके बाद वो तीन बार लोक सभा के सदस्य और चार बार राज्य सभा के सदस्य रहे. 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें अपना संसदीय सचिव नियुक्त किया और उसके बाद पूरी उम्र वो गांधी परिवार के नेताओं के करीबी सलाहकार रहे.
राजीव गांधी के निधन के बाद सोनिया गांधी को राजनीति में लाने, पार्टी की बागडोर उनके हाथों में सौंपने और उन्हें एक अनिच्छुक राजनेता से 'सुपर प्राइम मिनिस्टर' बनाने में अहमद पटेल की भूमिका को अहम माना जाता है. उनके निधन पर जारी किए अपने शोक संदेश में सोनिया गांधी ने पटेल को अपना ऐसा "कॉमरेड, विश्वसनीय सहकर्मी और दोस्त" बताया जिसका "स्थान कोई और नहीं ले सकता".
प्रधानमंत्री के "अहमद भाई"
इन दिनों भी जब पार्टी में पुरानी और नई पीढ़ी के नेताओं के बीच संघर्ष चल रहा है, इन हालात में वो दोनों खेमों के बीच एक पुल का काम कर रहे थे. पार्टी के एक युवा नेता ने डीडब्ल्यू को बताया कि पटेल के निधन से पार्टी में चल रहा संकट और गहरा जाएगा क्योंकि उनके बाद अब स्थिति को संभालने वाला कोई नहीं बचा.
पटेल गुजरात के रहने वाले थे और माना जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी नजदीकी रिश्ते रखने वाले गिनती के कांग्रेस नेताओं में वो शामिल थे. प्रधानमंत्री ने अपने शोक संदेश में उन्हें "अहमद भाई" कह कर संबोधित किया है.
कई जानकारों का कहना है कि मोदी से उनकी इसी करीबी के कारण गुजरात में कांग्रेस पिछले दो दशकों में बीजेपी को मजबूती से टक्कर नहीं दे पाई. हालांकि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अहमद पटेल के खिलाफ भ्रष्टाचार के कुछ मामलों में केंद्रीय एजेंसियों ने जांच शुरू कर दी.
गुजरात की ही कंपनी स्टर्लिंग बायोटेक और उसके मालिक संदेसाड़ा परिवार के खिलाफ बैंकों से धोखाधड़ी और धन शोधन के आरोपों की जांच में ईडी ने पटेल से भी कई बार पूछताछ की. जांच अभी भी चल रही है.
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के कई दिग्गज नेता लोकसभा चुनाव में हार गए हैं. कांग्रेस नेताओं समेत कई क्षेत्रीय दिग्गजों और राजनीतिक विरासत संभाल रहे कई उम्मीदवारों को भी करारी मात मिली है. एक नजर ऐसे ही बड़े नामों पर
तस्वीर: DW/P. Mani
राहुल गांधी
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी बीजेपी की स्मृति ईरानी से अमेठी की सीट हार गए हैं. यह पहला मौका है जब गांधी परिवार का कोई सदस्य अमेठी से हारा है. 1980 में संजय गांधी इस सीट से चुने गए. उनकी असमय मृत्यु के बाद राजीव गांधी 1981 से लेकर 1991 तक सांसद बने रहे. 1999-2004 तक सोनिया गांधी सांसद रहीं और 2004 के बाद से यह सीट राहुल गांधी के पास थी.
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मल्लिकार्जुन खड़गे
लोकसभा में कांग्रेस के नेता रहे मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक में अपनी सीट गुलबर्गा से चुनाव हार गए. वो पिछली बार इस सीट से सांसद थे. यह पहली बार है जब खड़गे को किसी चुनाव में हार का सामना करना पड़ा हो.
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ज्योतिरादित्य सिंधिया
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया अपनी पारंपरिक गुना सीट भी नहीं बचा सके हैं. साल 1957 के बाद से यह पहली बार होगा जब सिंधिया परिवार का कोई भी सदस्य लोकसभा में नहीं होगा. ज्योतिरादित्य करीब 1.25 लाख वोटों से हारे हैं.
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वीरप्पा मोइली
कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के वीरप्पा मोइली चिकबल्लापुर सीट से चुनाव लड़ रहे थे. उन्हें बीजेपी के बीएन बाचेगौड़ा ने करीब पौने दो लाख वोट से हरा दिया.
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शीला दीक्षित
लगातार 15 साल दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित दिल्ली उत्तर पूर्व से चुनाव मैदान में थीं. उनके सामने दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी थे. शीला दीक्षित करीब साढ़े तीन लाख वोट से चुनाव हार गई हैं.
तस्वीर: AP
महबूबा मुफ्ती
जम्मू कश्मीर की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की नेता महबूबा मुफ्ती को भी अनंतनाग सीट पर हार का मुंह देखना पड़ा है. वह यहां से कई बार जीत चुकी हैं.
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शिबू सोरेन
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख अपने गढ़ दुमका में हार गए है. भारतीय राजनीति का आदिवासी चेहरा माने वाले सोरेन को बीजेपी के सुनील सोरेन ने करारी शिकस्त दी है. झारखंड बनने के बाद से शिबू सोरेन तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.
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दिग्विजय सिंह
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की लोकसभा सीट से प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह मैदान में थे. उनके सामने मालेगांव धमाकों की आरोपी बीजेपी की प्रज्ञा सिंह ठाकुर थीं. दिग्विजय सिंह करीब 3 लाख 10 हजार वोट से हार गए हैं.
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एच.डी देवेगौड़ा
मोदी लहर से पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा भी नहीं बच सके हैं. वह कर्नाटक की तुमकुर सीट नहीं बचा पाए और बीजेपी उम्मीदवार से हार गए. अपनी पारंपरिक सीट हासन को अपने पोते के लिए छोड़कर वह तुमकुर से चुनाव लड़ रहे थे.
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भूपिंदर हुड्डा
हरियाणा के तीन बार लगातार मुख्यमंत्री रहे भूपिंदर हुड्डा सोनीपत सीट से चुनाव लड़ रहे थे. उन्हें बीजेपी के रमेश चंद्र कौशिक ने करीब 1 लाख 65 हजार वोटों से हराया.
तस्वीर: Imago Images/Hindustan Times/S. Arora
हरीश रावत
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के नेता हरीश रावत नैनीताल-उधमसिंहनगर सीट से बीजेपी के अजय भट्ट को चुनौती दे रहे थे. लेकिन अजय भट्ट ने उन्हें करीब सवा तीन लाख वोटों से मात दी.
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अशोक चव्हाण
महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण नांदेड सीट से मैदान में थे. उनके सामने बीजेपी के प्रतापराव पाटिल थे. पाटिल ने चव्हाण को करीब 35 हजार वोट से हरा दिया.
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सुशील कुमार शिंदे
भारत के पूर्व गृहमंत्री और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेसी नेता शिंदे सोलापुर सीट से अपनी किस्मत आजमा रहे थे. उन्हें बीजेपी के स्वामी सिद्धेश्वर ने करीब डेढ़ लाख वोटों से हरा दिया.
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शरद यादव
नीतिश कुमार के जनता दल (यूनाइटेड) से बगावत कर अलग हुए दिग्गज नेता शरद यादव को मधेपुरा सीट से एनडीए की ओर से उतारे गए जदयू उम्मीदवार दिनेश चंद्र यादव ने भारी अंतर से हराया है. शरद यादव इस सीट पर महागठबंधन की ओर से चुनाव लड़ रहे थे.
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शत्रुघ्न सिन्हा
बीजेपी समर्थक माने जाने वाले कायस्थों की बहुलता वाली बिहार की पटना साहिब सीट पर मुकाबला दो कायस्थों के बीच ही था. नीतीश कुमार का काम और एनडीए का नाम रविशंकर को जीत दिला गई और दो बार जीत चुके शत्रुघ्न सिन्हा को उनकी स्टार छवि भी नहीं बचा पाई.
तस्वीर: Imago Images/Hindustan Times
प्रिया दत्त
मुंबई नॉर्थ-सेंट्रल से कांग्रेस की उम्मीदवार और दिवंगत अभिनेता सुनील दत्त की बेटी प्रिया दत्त दो बार इस सीट से सांसद रह चुकी हैं. बीजेपी की पूनम महाजन ने उन्हें एक लाख से अधिक वोटों से हराया है.
तस्वीर: AFP/Getty Images
जया प्रदा
समाजवादी पार्टी के आजम खान पहली बार रामपुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़े और उन्होंने बीजेपी की प्रत्याशी अभिनेत्री जया प्रदा को एक लाख 30 हजार से ज्यादा मतों से हरा दिया. समाजवादी पार्टी की की टिकट पर जया प्रदा 2004 से 2014 तक रामपुर से सांसद रहीं.
तस्वीर: DW/N. Begum
राज बब्बर
उत्तर प्रदेश की फतेहपुर सीकरी सीट से उम्मीदवार बने पूर्व अभिनेता और कांग्रेस नेता राज बब्बर भी अपनी सीट नहीं बचा सके हैं. 2014 में वह गाजियाबाद में भी बुरी तरह हारे थे.