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काठमांडू को भूकंप से सबसे ज्यादा खतरा

२१ सितम्बर २०११

भारत और नेपाल में रविवार को आए भूकंप के बाद राहत और बचाव का काम अब भी चल रहा है जिसमें मरने वालों की संख्या बढ़कर 98 हो गई है. जानकार कहते हैं कि नेपाल की राजधानी काठमांडू 'बड़े भूकंप' के लिए बिल्कुल तैयार नहीं है.

तस्वीर: DW

विशेषज्ञ कहते हैं कि नेपाल की राजधानी काठमांडू दुनिया के उन शहरों में शामिल हैं जहां बड़ा भूकंप आने की आशंकाएं जाहिर की जाती हैं जिसमें हजारों लोगों की जानें जा सकती हैं और लाखों बेघर हो सकते हैं. ब्रिटिश भूविज्ञानी डेव पेट्ले हाल के भूकंप को खतरे की घंटी बताते हैं. 20 लाख लोगों की सघन आबादी वाला काठमांडू शहर दुनिया से सिर्फ तीन सड़कों और एक एयरपोर्ट से ही जुड़ा है.

पेट्ले के मुताबिक, "सबसे चिंता वाला इलाका मध्य और पश्चिमी नेपाल है जहां लंबे समय से कोई बड़ा भूकंप नहीं आया है."

रविवार को आए भूकंप से पूर्वी नेपाल में सैकड़ों घर ध्वस्त हो गए. इस भूकंप का मुख्य केंद्र भारत के सिक्किम राज्य में था. नेपाल के बारे में पेट्ले कहते हैं, "यह भूकंप की आशंका वाला इलाका है जिससे पता चलता है कि यहां बहुत ज्यादा मात्रा में ऊर्जा का भंडार है."

तस्वीर: Beatrix Beuthner

बेबस नेपाल

जहां भारतीय और यूरेशियाई प्लेटें टकराती हैं, नेपाल उस इलाके में पड़ता है. इन्हीं प्लेटों के टकराने से हिमालय बना है. पिछली कुछ सदियों में हर 75 साल बाद काठमांडू की घाटी में एक बड़ा भूकंप आया है. 77 साल पहले आए इसी तरह के भूकंप में काठमांडू में एक चौथाई घर तहस नहस हो गए. जानकार मानते हैं कि इस इलाके में 8.0 की तीव्रता वाला भूकंप कभी भी आ सकता है. पिछले साल हैती में आए 8.0 की तीव्रता वाले भूकंप में दो लाख 25 हजार लोग मारे गए.

काठमांडू शहर का मुख्य हिस्सा बहुत ही सघन रूप से बसा हुआ है वहां संकरी सड़कें हैं और रिक्शे वाले अकसर सड़कों पर बैठी गायों से टकराते रहते हैं. इस इलाके में मिट्टी, ईटों और टिंबर के बहुत से घर भी हैं. ब्रिटेन की डुरहम यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले पेट्ले कहते हैं, "इमारतों को बनाते समय भूकंप के खतरे का ध्यान नहीं रखा गया है. इसीलिए किसी बड़े झटके में बड़ी तबाही हो सकती है."

अमेरिका के एक रिसर्च ग्रुप जियोहैजार्ड इंटरनेशनल ने एशिया और अमेरिकी इलाकों में 6.0 की तीव्रता वाले भूकंप से होने वाली मौतों का अंदाजा लगाया है. 21 शहरों की इस सूची में काठमांडू सबसे ऊपर है जहां इस तीव्रता वाले भूकंप से 69,000 तक मौतें हो सकती हैं. इसके बाद इस्तांबुल और दिल्ली का नंबर आता है.

तस्वीर: picture-alliance / dpa

स्कूलों पर खतरा

काठमांडू की घाटी में हाल के सालों में बड़ी तेजी से शहरीकरण हुआ है, लेकिन बुनियादी ढांचे की कमी और गरीबी के चलते इमारतों को बनाते वक्त भूकंप के खतरे का ध्यान नहीं रखा जाता है. अगर कोई बड़ा भूकंप आता है तो शहर को दुनिया से जोड़ने वाली तीन सड़कें और एयरपोर्ट का अकेला रनवे भी ध्वस्त हो सकता है. जियोहैजार्ड के अध्यक्ष ब्रैन टकर कहते हैं कि शोधकर्ताओं ने काठमांडू में बच्चों की मौत की आशंकाओं पर दिमाग दौड़ाया है क्योंकि तोक्यो जैसी जगहों पर बहुत से स्कूल भी ध्वस्त हुए जिनमें उस वक्त बच्चे मौजूद थे. टकर कहते हैं, "नेपाल में बच्चों की मौतों की आशंका 400 गुना ज्यादा है."

नेपाल में राष्ट्रीय भूकंप तकनीक सोसाइटी (एनएसईटी) ने स्कूलों को भूकंप से निपटने के लिए ज्यादा सक्षम बनाने के प्रयास शुरू किए हैं. यह सोसाइटी नेपाल में 1988 में आए 6.5 की तीव्रता वाले भूकंप के बाद बनाई गई. उस वक्त भूकंप में 700 से ज्यादा लोगों की जानें गईं. एनएसईटी का अनुमान है कि अगर काठमांडू में 7.0 की तीव्रता वाला भूकंप आता है तो दो लाख लोगों की जानें जा सकती हैं जबकि इतने ही लोग गंभीर रूप से घायल होंगे. 15 लाख लोग बेघर हो जाएंगे और 60 प्रतिशत घर ध्वस्त हो जाएंगे.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

मृतक बढ़े

रविवार को आए भूंकप में मरने वालों की संख्या बढ़कर 98 हो गई है. भारत-नेपाल सीमा को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाले इस भूकंप का केंद्र भारत का सीमावर्ती राज्य सिक्किम था. अधिकारियों का कहना है कि अभी कुछ और शवों को निकाला जा सकता है. सिक्किम की राजधानी गंगटोक में सरकारी अधिकारी सोनम लेपचा ने बताया कि कम से कम 65 लोगों की मौत उनके राज्य में हुई है. उन्होंने बताया, "शवों को हवाई यातायात के जरिए विभिन्न जिला अस्पतालों में पहुंचाया जा रहा है. हमें डर है कि कुछ और भी जानें गई हों लेकिन अभी सही सही संख्या बता पाना मुश्किल है."

पुलिस के मुताबिक भारत के दूसरे हिस्सों में भूकंप से 18 लोग मारे गए हैं जबकि नेपाल में आठ लोगों की जानें गई हैं. चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने बताया है कि दक्षिण तिब्बत में भूकंप से सात लोग मारे गए हैं. इस भूकंप के झटके मुख्य केंद्र से एक हजार किलोमीटर दूर पश्चिम में नई दिल्ली और दक्षिण में बांग्लादेश तक महसूस किए गए.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः वी कुमार

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