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कातिन कांड पर रूस से सफाई

१३ फ़रवरी २०१३

कातिन में हुआ कत्लेआम दशकों तक रूस और पोलैंड के रिश्तों में तल्खी की वजह रहा. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान वहां सोवियत खुफिया पुलिस ने 22,000 पोलैंडवासियों को मार डाला था. अब मामला यूरोपीय मानवाधिकार अदालत में है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

पोलैंड ने यूरोपीय मानावाधिकार अदालत में अपील कर 1940 में हुए कत्लेआम की पूरी सच्चाई मांगी है. बुधवार को स्ट्रासबुर्ग की अदालत में सुनवाई शुरू हुई. पोलैंड सरकार की प्रतिनिधि अलेक्जांड्रा मेजिकोव्स्का ने आरोप लगाया, "रूस ने अभी भी कातिन के कत्लेआम की सच्चाई की कुंजी अपने हाथों में रखी हुई है." उन्होंने कहा कि लोगों को यूरोप के सबसे भयानक युद्ध अपराधों में से एक के बारे में जानकारी मिलनी चाहिए. अदालत ने अप्रैल 2012 में मृतकों के परिजनों को सूचना नहीं देने के कारण रूस को दोषी ठहराया था.

स्मारक पर फूलमालाएंतस्वीर: picture-alliance/dpa

लेकिन कत्लेआम में मारे गए 12 लोगों के परिजनों के लिए यह काफी नहीं था. उनका आरोप है कि रूस ने मामले की पूरी जांच कभी नहीं की और न ही जिम्मेदार लोगों को सजा दी. उन्होंने अब रूस से 2004 में रोक दिए गए जांच को फिर शुरू करने और सारे जरूरी दस्तावेज देने की मांग की है. पीड़ित परिजनों के वकील इरेनोएज कामिंस्की ने कहा है कि रूस ने अभी तक युद्ध अपराध के बारे में दस्तावेजों की 35 फाइलों को दबा रखा है. उसने सारे दस्तावेज स्ट्रासबुर्ग की अदालत को भी नहीं दिया है क्योंकि कुछ दस्तावेज गोपनीय हैं.

इनके विपरीत रूस सरकार के प्रतिनिधि गियोर्गी मात्युश्किन ने सारे आरोपों को ठुकरा दिया और इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि रूस ने पोलैंड को 1990 के बाद से वॉरसॉ सरकार को कातिन के अपराध के बारे में बहुत से दस्तावेज सौंप दिए हैं. इसके अलावा रूस ने बार बार इस क्रूर अपराध की हकीकत को स्वीकार किया है और शिकार होने वाले लोगों के नाम जारी किए हैं. उन्होंने कहा कि इसमें बहुत से रूसी भी शिकार हुए थे. रूसी संसद स्टेट डूमा ने 2010 में कातिन जनसंहार की निंदा की थी.

स्मारक पर सैनिक परेडतस्वीर: RIA Nowosti

सितंबर 1939 में सोवियत सैनिकों के पोलैंड घुसने के बाद कातिन और उसके आसपास करीब 22,000 पोलिश नागरिकों को गिरफ्तार कर लिया था और अप्रैल और मई 1940 में उन्हें रूसी खुफिया पुलिस ने सोवियत तानाशाह स्टालिन के आदेश पर मार डाला था. उनमें सेना और पुलिस अधिकारियों के अलावा बुद्धिजीवी और ईसाई धर्मगुरु भी थे. 1943 में उनकी कब्र जर्मन सैनिकों को मिली. नाजियों ने उसका इस्तेमाल अपने प्रचार के लिए किया जबकि सोवियत संघ उसके लिए नाजी जर्मनी को जिम्मेदार ठहराता रहा.

1950 के दशक में एक अमेरिकी जांच आयोग ने कहा कि मॉस्को ने कत्लेआम का आदेश दिया था. मिखाइल गोर्बाचोव के राष्ट्रपति बनने के बाद 1990 में सोवियत संघ ने जिम्मेदारी स्वीकार की और जांच का आदेश दिया. अप्रैल 2012 में स्ट्रासबुर्ग की अदालत ने रूस को पीड़ित परिजनों के साथ अमानवीय बर्ताव का दोषी ठहराया था. इस बात पर विवाद है कि क्या यूरोपीय मानवाधिकार संधि इस ऐतिहासिक अपराध के लिए लागू होती है जो 70 साल पहले हुई. रूस ने इस संधि का 1998 में अनुमोदन किया. रूस का कहना है कि यह संधि पिछले समय से प्रभावी नहीं हो सकती. मुकदमे का फैसला आने में कुछ महीने लगने की संभावना है.

एमजे/एजेए (डीपीए, एएफपी)

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