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कादरी का वाइल्ड कार्ड

१५ जनवरी २०१३

पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में मुहम्मद ताहिरुल कादरी ने भ्रष्टाचार और सरकार की अक्षमता के खिलाफ आंदोलन का बिगुल बजाया तो उनके पीछे हजारों की तादाद में पाकिस्तानी निकल पड़े. आखिर कौन हैं ये ताहिरुल कादरी?

तस्वीर: DW

ताहिरुल कादरी बस कुछ ही हफ्ते पहले कनाडा से पाकिस्तान लौटे हैं. चुनावी सुधार, भ्रष्टाचार और अव्यवस्था को खत्म करने के लिए एक अंतरिम सरकार की मांग ने उन्हें मशहूर कर दिया है. कादरी मानते हैं कि भ्रष्टाचार और सरकार की अक्षमता ने विकास रोक दिया है और अपराध के साथ तालिबानी चरमपंथ को फलने फूलने की जमीन दे दी है.

कादरी की पुकार पर अवाम बंटा हुआ है. कुछ लोग उन्हें सुधारों का मसीहा मान रहे हैं. पंजाब के गुजरांवाला शहर में स्कूल टीचर 25 साल की गुलशन इरशाद बताती हैं कि उन्हें दो साल से वेतन नहीं मिला है, "अधिकारी चाहते हैं कि मैं वेतन लेने के लिए उन्हें रिश्वत दूं लेकिन मैं भ्रष्टाचार के आगे नहीं झुकूंगी. वह (कादरी) पहले शख्स हैं जो पूरी तरह से भ्रष्ट तंत्र को बदलना चाहते हैं."

कादरी या कटपुतली

बहुत से लोग कादरी को सेना की कठपुतली भी मान रहे हैं जिसका इतिहास तख्ता पलट और चुनावों में दखल देने की इबारतों से भरा पड़ा है. ऐसे लोगों का कहना है कि कादरी की मांग असंवैधानिक है और जनता की चुनी सरकार को बगैर चुनाव के किसी और के हाथ में सौंपने से सरकारी तंत्र जिम्मेदार नहीं बनेगा.

प्रमुख टीवी पत्रकार उनके पैसों के स्रोत पर सवाल उठा रहे हैं. एक तरफ भारी मीडिया प्रचार का अभियान चल रहा है तो दूसरी तरफ समर्थकों को लाने के लिए बसों का बेड़ा तैनात है. कादरी का कहना है कि ज्यादातर पैसा उन लोगों की तरफ से दान में आया है जो मौजूदा प्रशासन से तंग आ चुके हैं. दंगा रोकने के इंतजामों से लैस पुलिस के जवान बड़ी संख्या में गलियों और नुक्कड़ों और चौराहों पर तैनात हैं. सरकारी दफ्तरों और दूतावासों की तरफ जाने वाली सड़कों को शिपिंग कंटेनरों की मदद से सील कर दिया गया है.

कादरी का दावा है कि सरकार के खिलाफ उनकी पुकार पाकिस्तान की सड़कों पर 10 लाख से ज्यादा लोगों को उतारेगी. उनके समर्थक कार्यकर्ता माइक और प्रदर्शनकारियों के लिए खाने पीने का इंतजाम करने में जुटे हैं. उत्तरी मियांवाली शहर से आए 30 साल के कमर काजी अपने साथ कंबल और खाना लेकर प्रदर्शन में निकले हैं. उन्हें यकीन है, "हम लोग दो तीन दिन रुक कर विरोध प्रदर्शन करेंगे."

कादरी का एजेंडा

समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में कादरी ने कहा, "हमारा एजेंडा लोकतांत्रिक चुनावी सुधार कराना है. हम नहीं चाहते कि कानून तोड़ने वाले लोग हमारे लिए कानून बनाने वाले बनें." इस्लामी विद्वान का इस तरह राजनीति में शिरकत करना कई लोगों को हैरान कर रहा है. एक तरह से सत्ता के गलियारे में उनकी वाइल्ड कार्ड से इंट्री हो गई है.

सरकार से तंगतस्वीर: dapd

पाकिस्तान में अगर चुनाव तय समय पर हुए तो ऐसा पहली बार होगा जब एक लोगों की चुनी सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा कर सत्ता को वापस बैलेट बक्सों के हवाले किया. पश्चिमी सहयोगी मानते हैं कि आसानी से चुनाव हुए तो देश में लोकतंत्र मजबूत होगा जिसे तालिबानी चरमपंथ और भारत के मुकाबले की अंधी दौड़ ने आर्थिक दलदलों में ढकेल रखा है.

कादरी धार्मिक सहिष्णुता की बात करते रहे हैं और एक बार उन्होंने तालिबान के खिलाफ फतवा जारी किया था. सेना के साथ संबंधों से उन्होंने इनकार किया है और दावा करते हैं कि उनका प्रदर्शन शांतिपूर्ण होगा. हालांकि अपने दूसरे बयानों की वजह से भी वह विवादों में पड़ चुके हैं. सेना ने इसी महीने एक बयान जारी कर साफ किया है कि वह कादरी को समर्थन नहीं दे रही है. कादरी का कहना है, "मैं पूरी दुनिया में लोकतंत्र के बड़े समर्थकों और उसका प्रचार करने वालों में से एक हूं, मेरा सेना के साथ कोई रिश्ता नहीं." मुमकिन है कि लोगों की यादें धुंधली पड़ गई हों लेकिन यही कादरी किसी जमाने में पूर्व सेना प्रमुख और राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के पक्के समर्थक हुआ करते थे. 2006 में कनाडा जाने से पहले कादरी मुशर्रफ के शासन के दौरान नेशनल असेंबली में भी रह चुके हैं.

पाकिस्तान के अखबारों और टीवी कार्यक्रमों में कादरी की धूम है. सिर पर टोपी लगाए और हाथ की उंगलियों से विजय का निशान बनाए कादरी हर जगह दिख रहे हैं. कादरी ने अपने इस्लामी फाउंडेशन का भरपूर इस्तेमाल अपने एजेंडे के लिए किया है और 23 दिसंबर को लाहौर में दो लाख समर्थकों को जुटाने में कामयाब रहे. हालांकि इतने सब से ही कुछ नहीं होगा उन्हें अपने समर्थकों के धार्मिक दायरे को बढ़ाना होगा. देश की कारोबारी राजधानी कराची पर दबदबा रखने वाली एमक्यूएम पार्टी ने पिछले हफ्ते कहा कि वह इस्लामाबाद के प्रदर्शन में कादरी को समर्थन नहीं देगी.

एनआर/एजेए (रॉयटर्स, एएफपी)

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