कानकून में ना नुकर के लिए ही मिलेंगे देश
२९ नवम्बर २०१०नया समझौता करने का प्रयास पिछले साल कोपेनहेगेन में विफल हो गया था और पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि एक प्रभावी जलवायु संरक्षण समझौता करने की संभावना कानकून में भी नहीं दिख रही है.
एक तो अंतिम समझौते से पहले होने वाले गहन प्रयासों की कमी दिख रही है और दूसरे सम्मेलन पर सबसे ज्यादा ग्रीनहाउस गैसों की निकासी करने वाले देशों अमेरिका और चीन के बीच गहरे मतभेदों का साया साफ दिख रहा है. दोनों देश एक दूसरे पर कार्बन डाई ऑक्साइड की निकासी को कम करने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं करने के आरोप लगा रहे हैं.
अमेरिका में कांग्रेस के चुनाव के परिणामों ने नए समझौते के प्रयासों को और जटिल बना दिया है. राष्ट्रपति बराक ओबामा अमेरिकी उत्सर्जन को 2005 के मुकाबले 17 फीसदी कम करने के अपने लक्ष्य को शायद ही लागू कर पाएं. चुनावों में जीतने वाली रिपब्लिकन पार्टी के बहुत से नेता ग्लोबल वॉर्मिंग के वैज्ञानिक दावों को सही नहीं मानते और अमेरिकी उद्योग के लिए जलवायु संरक्षण के कदमों के असर को अस्वीकार करते हैं.
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि वर्तमान साल 19वीं सदी में जलवायु के आंकड़े जमा करने की शुरुआत के बाद से सबसे गरम साल साबित हो सकता है. उनका कहना है कि बढ़ते तापमान का असर बाढ़, सूखा, रेगिस्तानी तूफान और समुद्र के बढ़ते जलस्तर के रूप में सामने आ सकता है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: वी कुमार