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अदालत के कहने पर भी नहीं हुआ कानून का अनुवाद

हृदयेश जोशी
११ अगस्त २०२०

दिल्ली, कर्नाटक और मद्रास हाइकोर्ट ने सरकार से प्रस्तावित पर्यावरण संबंधी ईआईए ड्राफ्ट का 22 भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने को कहा था. इस मामले पर केंद्र सरकार ने अब सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.

UN-Bericht zu Umweltschäden - Antibiotika im Wasser
तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Kaiser

दिल्ली हाइकोर्ट ने केंद्र सरकार से उस याचिका पर जवाब देने को कहा जिसमें यह मांग की गई है कि अदालत के आदेश की "जानबूझ कर अवमानना” करने के लिए उस पर कार्रवाई हो. मामला पर्यावरणीय प्रभाव आकलन यानी ईआईए नोटिफिकेशन-2020 का है. दिल्ली हाइकोर्ट ने पिछली 30 जून को सरकार को निर्देश दिया था कि वह सभी 22 भारतीय भाषाओं में नोटिफिकेशन का अनुवाद करे जिससे लोग नियमों में बदलाव समझ सकें और अपने सुझाव जमा कर सकें.

दिल्ली हाइकोर्ट में केंद्र सरकार के खिलाफ अवमानना की याचिका लगाने वाले विक्रांत तोंगड ने डीडब्ल्यू-हिन्दी से कहा, "यह एक बहुत गंभीर मुद्दा है. सरकार ने अदालत के 30 जून के आदेश के मुताबिक नोटिफिकेशन के अनुवाद भारतीय भाषाओं में नहीं किए हैं जिसकी वजह से हमें अदालत में यह (अवमानना की) अपील करनी पड़ी.”

क्या है पूरा मामला?

असल में केंद्र सरकार पर्यावरणीय प्रभाव आकलन से जुड़े 2006 के नियमों में बदलाव के लिए ड्राफ्ट नोटिफिकेशन लायी है. किसी भी विकास परियोजना को मंजूरी मिलने से पहले यह रिपोर्ट तैयार की जाती है कि उस प्रोजेक्ट का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा. उस रिपोर्ट को ईआईए रिपोर्ट कहा जाता है. इसे हरी झंडी मिलने के बाद ही प्रोजेक्ट पर काम आगे बढ़ता है. सरकार के प्रस्तावित बदलावों को लेकर जानकारों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने कड़ी आपत्ति की है.

गंदे झाग में डूबी नदीतस्वीर: Reuters/A. Abidi

मिसाल के तौर पर सड़क, रेल और पाइपलाइन जैसे कई प्रोजेक्ट्स के लिए अब जन-सुनवाई की बंदिश नहीं रहेगी. पहले रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े प्रोजेक्ट "रणनीतिक” माने जाते थे लेकिन अब सरकार किसी अन्य प्रोजेक्ट को भी इस दायरे में ला सकती है और उसके बारे में कोई जानकारी जनता को नहीं दी जाएगी. इसी तरह पड़ोसी देशों के साथ नियंत्रण रेखा के 100 किलोमीटर के दायरे को "सीमावर्ती क्षेत्र” घोषित करने की बात है जिससे वहां लगने वाले प्रोजेक्ट के लिए पर्यावरण नियमों की रोक-टोक नहीं रहेगी. ऐसा हुआ तो उत्तर पूर्वी राज्यों का एक बड़ा हिस्सा पर्यावरणीय पड़ताल के दायरे से बाहर हो जाएगा. इसके अलावा नए नियमों के हिसाब से कई प्रोजेक्ट पर्यावरणीय प्रभाव आकलन की मंजूरी के बिना ही शुरू किए जा सकते हैं और वह बाद में ईआईए-अनुमति का आवेदन कर सकते हैं.

समय सीमा और भाषा का विवाद

पहला विवाद इस ड्राफ्ट ईआईए-2020 पर सुझावों के लिए सरकार द्वारा तय की गई समय सीमा को लेकर उठा. पर्यावरण कार्यकर्ताओं की आपत्ति के बाद कोर्ट ने 30 जून की समय सीमा को बढ़ाकर 11 अगस्त किया. पर्यावरण कार्यकर्ताओं का आरोप है कि कोरोना महामारी की आड़ में सरकार इन नियमों को आनन-फानन में अमली जामा पहना देना चाहती है. उनका कहना है कि इन बदलावों पर कोरोना महामारी पर नियंत्रण किए जाने तक जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए. उधर पिछली 30 जून को ही दिल्ली हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की मांग पर सरकार से 10 दिन के भीतर 22 भारतीय भाषाओं में नोटिफिकेशन का अनुवाद करने को कहा.

भाषा का यह मामला कर्नाटक और मद्रास हाइकोर्ट में भी चल रहा है जहां अदालतों ने सरकार से क्षेत्रीय भाषाओं में नोटिफिकेशन की कापी मुहैया कराने को कहा है. मद्रास हाइकोर्ट ने इस मामले में पर्यावरण मंत्रालय को नोटिस दिया है जबकि कर्नाटक हाइकोर्ट ने इस मामले में "सीमित स्टे” लगाया है. कर्नाटक हाइकोर्ट में अगली सुनवाई 7 सितंबर को होनी है.

खतरे में हैं पहाड़ी इलाकेतस्वीर: DW/J. Sehgal

इधर केंद्र सरकार को लगता है कि नोटिफिकेशन के अनुवाद से एक ऐसी परंपरा शुरू हो जाएगी जहां कानून में हर बदलाव का तरजुमा करना पड़ेगा. सरकार ने दिल्ली हाइकोर्ट के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट का रुख किया जहां मामले की सुनवाई 13 तारीख को होनी है.

सरकार की दलील पर सवाल

पर्यावरण मामलों के जानकार और सुप्रीम कोर्ट के वकील ऋत्विक दत्ता का कहना है कि सरकार का यह डर और तर्क बेवजह है कि ईआईए ड्राफ्ट नोटिफिकेशन का अनुवाद क्षेत्रीय भाषाओं में होने से सारे कानूनों पर ऐसे ही अनुवाद की मांग उठेगी. दत्ता कहते हैं कि सभी स्थितियों को एक चश्मे से नहीं देखना चाहिए.

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दत्ता के मुताबिक "जब आप कॉरपोरेट क्षेत्र, पावर सेक्टर या बैंकिंग से जुड़े कानून में बदलाव करते हैं तो आपको उसके बारे में हर गांव को बताने की जरूरत नहीं होती. इसलिए हर कानून को इस नजर से नहीं देखा जा सकता कि आपको हर बार क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करना पड़े. लेकिन वर्तमान बदलाव की तरह अगर आप वन क्षेत्र से जुड़े कानून में बदलाव करेंगे तो जंगल में रह रहे लोगों को उसके बारे में बताना पड़ेगा. उनकी भाषा में अनुवाद करना पड़ेगा. आखिर यह उनके जीवन और जीवनशैली से जुड़ा विषय है.”

दत्ता का कहना है कि जब तक सभी भाषाओं में ईआईए ड्राफ्ट नोटिफिकेशन अनुवाद न हो जाए तब तक इस पर सुझाव देने की प्रक्रिया जारी रहनी चाहिए. अब यह देखना अहम होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस विषय में क्या करता है.

नियमित आती बाढ़तस्वीर: STRDEL/AFP/Getty Images

सरकार ने डर को बेवजह बताया

महत्वपूर्ण है कि ड्राफ्ट नोटिफिकेशन का विरोध पर्यावरण कार्यकर्ता और जानकार ही नहीं कर रहे बल्कि कांग्रेस और शिवसेना जैसी विपक्षी पार्टियों ने इसे लेकर सरकार पर कड़े हमले किए हैं. जहां शिवसेना के आदित्य ठाकरे ने बदलावों पर आपत्ति जताते हुए केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिखा वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक ट्वीट में कहा कि "ईआईए2020 ड्राफ्ट का मकसद साफ है – लूट ऑफ द नेशन. यह एक और खौफनाक उदाहरण है कि भाजपा सरकार देश के संसाधन लूटने वाले चुनिंदा सूट-बूट के ‘मित्रों' के लिए क्या-क्या करती आ रही है.”

जवाब में पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि विपक्ष के पास अभी और कोई काम नहीं है इसलिए वह बेवजह इस ‘आंदोलन' में लगी है. जावड़ेकर के मुताबिक, "ड्राफ्ट नोटिफिकेशन पर बदलाव करने का प्रस्ताव मंत्रालय तैयार किया. पिछले 150 दिन उस पर लोगों ने अपनी राय दी है. नियम है कि 60 दिन जनता की राय के लिए रखा जाता है लेकिन कोविड के चलते हमने 3 महीने अतिरिक्त दिए. हजारों लोगों ने अपने सुझाव दिए हैं मैं उनका स्वागत करता हूं. लेकिन कुछ लोग इतने उतावले हो गए हैं कि उन्होंने अभी आंदोलन करने का ऐलान कर लिया है. ये तो अभी ड्राफ्ट ही है. अभी जो सुझाव आए हैं उस पर विचार होगा. उसके बाद अंतिम मसौदा तैयार होगा.”

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