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काफ़ी मेहनत के बाद मिली शोहरत!

२ फ़रवरी २००९

भारत में इन दिनों टीवी पर आने वाले सबसे लोकप्रिय टैलंट हंट शोज़ में से एक है ''इंडियन आयडल''. इसी की तर्ज पर जर्मनी में भी टैलंट हंट शो होता है ''जर्मनी को तलाश है सुपरस्टार की'' और 2008 के इसके विजेता रहे थॉमस गोदोय.

जीत के बाद ख़ुशी से उछलते थॉमस गोदोयतस्वीर: AP

थॉमस गोदोय आज जर्मन पॉप संगीत की दुनिया का एक अहम नाम बन गया है. पिछले दिनों उन्होंने जब कोलोन में अपना कार्यक्रम पेश किया तो लगभग दो हजार लोगों की भीड़ उन्हें सुनने आई और कुछ लोगों ने हाथों में पोस्टर और बैनर भी उठा रखे हैं जिन पर लिखा है, ''थॉमस हम तुम्हें बहुत प्यार करते हैं.'' तीस साल के इस गायक ने पिछले साल ही जर्मन पॉप आयडल का ख़िताब जीता है. एक ऐसा टीवी शो जिसमें बहुत से गायकों के बीच मुक़ाबला होता है सुरों का और बेशक जीत के बाद मिलने वाले एक बड़े कॉन्ट्रेक्ट का भी. इस मुक़ाबले में जीत के बाद तो मानो थॉमस गोदोय के करियर को पर ही लग गए. उनकी पहली अलबम ने पॉप चार्ट्स पर राज किया है. इसके अलावा जगह जगह उनके कार्यक्रम भी होते रहे हैं और इन सबके बीच इंटरव्यू का सिलसिला भी चलता रहता है.

अपने चाहने वालों के बीच थॉमस गोदोयतस्वीर: picture-alliance / Jazz Archiv

इस शोहरत से पहले थॉमस को पापड़ भी खूब बेलने पड़े हैं. हैवी मेटल के इस दीवाने को कई साल तक अलग अलग बैंड्स में भी काम करना पड़ा, लेकिन कहीं कोई ऐसी कामयाबी नहीं मिली जिसका ज़िक्र किया जा सके. वह बताते हैं, ''मैंने संगीत तैयार करने में अपना तन मन धन, सब कुछ लगाया. इसके लिए मुझे कॉलेज भी छोड़ना पड़ा. उसके बाद मेरे गुज़ारे का इकलौता ज़रिया सिर्फ़ बेरोज़गारी भत्ता था. वह बड़ा मुश्किल वक़्त था. इतना ही नहीं, जिस बैंड में मैं काम कर रहा था वह भी टूट गया, जिसने मुझे भी तोड़कर रख दिया.''

फिर थॉमस की मां ने उन्हें जर्मन पॉप आयडल में हिस्सा लेने के लिए राज़ी किया और यहां जीत उनके नाम रही. कामयाबी मिलने के बाद थॉमस कहते हैं, " सब कुछ सही हो गया लेकिन यह सब किसी अचंभे से कम नहीं है. कोई बात नहीं, जो कुछ भी पहले हुआ, वह भी सब होना ही था. दरअसल मैंने अपने आपको ठीक उसी तरह पेश किया जैसा मैं शोज़ के दौरान होता हूं. शायद लोगों को यही बात पसंद आई और मुझे इस बात की खुशी है कि मेरे चाहने वालों ने मुझे उसी रूप में पसंद किया जैसा कि मैं हूं.''

पॉप आयडल जैसे टीवी कार्यक्रमों की यह कहकर आलोचना की जाती है कि इनमें पेश होने वाले संगीत में कुछ नयापन नहीं होता है. लेकिन थॉमस का कहना है कि उन्होंने अपने लिए जो चुना वह बिल्कुल सही है. उन्हीं के शब्दों में, ''मैं आज जहां भी जाता हूं, लोग मुझे पहचानते हैं और यह बात बड़ी हिम्मत देती है. इसलिए मुझे लगता है कि जो मैंने किया वह सही था.'' लेकिन थॉमस इस बात को भी मानते हैं कि अपनी पहली एलबम में उनकी ज़्यादा नहीं चली. इसके सिर्फ़ तीन गीत ही उन्होंने लिखे हैं.

लोगों पर ख़ूब चलता है थॉमस के सुरों का जादूतस्वीर: AP

भविष्य में थॉमस पौलैंड में भी जाकर कार्यक्रम पेश करना चाहते हैं. दरअसल यही वह देश हैं जहां उनकी पैदाइश हुई और बचपन के शुरुआती सात साल गुज़रे. इसके बाद वह जर्मनी आए. इसीलिए उनके कंसर्ट में आपको पौलिश गीत भी सुनने को मिलते हैं. बतौर गायक इनके ज़रिए वह पौलिश संगीत की खूबियों को तो सामने रखते ही है, शायद अपनी उड़ जड़ों को भी टटोलते हैं जिनसे उनका नाता है.

थॉमस इस बात को लेकर बहुत ख़ुश है कि वह अब वह सब कर सकते हैं जिसके लिए उन्होंने बरसों मेहनत की. यानी संगीत तैयार करना और जगह जगह लोगों के बीच जाकर अपने कार्यक्रम पेश करना. लेकिन एक बात बताना वह क़तई नहीं भूलते हैं, ''व्यक्तित्व के लिहाज से शोहरत मिलने के बाद मुझमें किसी तरह का कोई बदलाव नहीं आया है. अब भी मैं पहले जैसा ही हूं.''

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