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कामकाजी महिलाओं के आड़े आती अदृश्य दीवार

ग्रैहम लूकस११ अक्टूबर २०१४

दुनिया भर में महिलाओं को नौकरी में पक्षपात का सामना करना पड़ता है. वेतन और तरक्की के आंकड़ों पर नजर डालेंगे, तो यह बात साफ दिखाई देगी. डॉयचे वेले के ग्रैहम लूकस का कहना कि इस अदृश्य दीवार को तोड़ना होगा.

Arbeitnehmer immer unzufriedener
तस्वीर: Fotolia/Pfluegl

बहुत से देशों में महिलाओं को पुरुषों के ही बराबर काम करने के बावजूद उनसे कम तनख्वाह मिलती है. दकियानूसी खयालात वाले पुरुष आज भी यही बहस करते हैं कि औरतों की सही जगह घर पर बच्चों के साथ है. फिर भी हर जगह महिलाएं अहम भूमिकाएं निभा रही हैं. वक्त भले ही बदल रहा हो, पर पुरुषों की विचारधारा वहीं अटकी हुई है.

जिन देशों में महिलाएं कामकाजी वर्ग का बड़ा हिस्सा हैं, वहां भी उनके साथ भेदभाव होता है. कई बार उन्हें इसलिए तरक्की नहीं दी जाती क्योंकि मैनेजमेंट में मौजूद पुरुषों का सोचना है कि बच्चे होने के कारण वे कई सालों तक काम से छुट्टी ले लेंगी. नतीजतन उच्च पदों पर और आधिकारिक बैठकों में पुरुष ही नजर आते हैं. उच्च पदों पर बैठे ये पुरुष मैनेजर अपने "आदमियों के क्लब" में और पुरुषों को ले आते हैं और यही लोग कंपनियां चलाते हैं. अपनी बिजनेस डील वे गोल्फ कोर्स पर या फिर किसी क्लब में ड्रिंक्स के बाद तय करना पसंद करते हैं. सब फैसले सिर्फ पुरुषों के ही बीच ले लिए जाते हैं. महिलाओं के लिए इनका हिस्सा बनना मुश्किल हो जाता है. और अगर महिलाएं चाहें भी तो भी पुरुष उन्हें स्वीकार नहीं कर पाते.

क्यों लें नडेला की नसीहत?

जर्मनी में कुछ समय पहले उच्च पदों पर महिलाओं की संख्या बढ़ाने का संकल्प लिया गया. लेकिन इसके बावजूद ताजा आंकड़े बताते हैं कि देश में उच्च पदों पर महिलाओं की संख्या लगातार घट रही है. महिलाएं आबादी का आधा हिस्सा भले ही हों, पर बोर्ड रूम में उनका हिस्सा केवल 5.8 फीसदी के आसपास है. 2016 से जर्मनी में नया कानून लागू होगा जिसके तहत शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों में महिलाओं के लिए 30 फीसदी कोटा होगा. हालांकि उद्योगपति इसके खिलाफ हैं, जबकि वे जानते हैं कि सफल महिलाओं को समान वेतन दिलवाने में यह एक अहम कदम साबित होगा.

माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला के वेतन पर बयान से जो विवाद खड़ा हुआ है वह भी दिखाता है कि कॉरपोरेट जगत में जब महिलाएं सामान अधिकार मांगती हैं को उन्हें किस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. महिलाएं नडेला की नसीहत क्यों मानें? क्यों उन्हें वेतन बढ़ने का इंतजार करना चाहिए और आगे बढ़ कर अपने पुरुष सहयोगियों जितना ही वेतन नहीं मांगना चाहिए? क्यों महिलाओं के लिए एक अदृश्य दीवार हो जिसे वे लांघ ना सकें?

पुरुष करें घर का काम

बात साफ है कि आज की आधुनिक दुनिया में महिलाओं के खिलाफ इस तरह के भेदभाव को किसी भी तरह से ठीक नहीं ठहराया जा सकता. उन्हें काम पर अपने प्रदर्शन और कंपनी की सफलता में भागीदारी के लिए आंका जाना चाहिए, रूढ़ीवादी पुरुषों की सोच या औरतों को लेकर उनके नजरिए पर नहीं.

हाल के दिनों में हुए कई सर्वेक्षणों से हम यह भी जानते हैं कि शादीशुदा जिंदगी का भी सारा बोझ अधिकतर महिलाओं के ही कंधों पर डाला जाता है क्योंकि पुरुष घर के कामों से खुद को दूर ही रखना चाहते हैं. लेकिन अब वक्त आ गया है कि चीजों को बदला जाए, दफ्तर में भी और घर में भी.

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