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कार्टून में कोलकाता से बर्लिन

२८ जून २०१३

सारनाथ बैनर्जी ने एक ग्राफिक नॉवेलिस्ट के तौर पर पूरी दुनिया में नाम कमाया है. भारत और यूरोप में आम जिंदगी से प्रेरणा ले कर सारनाथ दिलचस्प कार्टून तैयार करते हैं.

तस्वीर: DW

सारनाथ बैनर्जी भारत के सबसे रचनात्मक कॉमिक्स बनाने वालों में गिने जाते हैं और उन्हें कई बार पुरस्कार भी दिए गए हैं.

अक्सर वह विदेश जाते हैं. कांगो, चीन ब्राजील से कॉमिक्स रिपोर्ताज बनाते हैं. 2012 में ओलंपिक खेलों के लिए उन्होंने एक पोस्टर बनाया था जो लंदन में कई सौ बार देखा सकता था. विषय थाः पराजित

सारनाथ डेढ़ साल से बर्लिन में रह रहे हैं और वहीं से हिंदू अखबार के लिए कॉमिक्स बनाते हैं. एक तरह से वह चित्रकार संवाददाता हैं जो भारतीयों के लिए जर्मनी की झलक पेश करते हैं. जर्मनी में अपने तजुर्बे के बारे में वह बताते हैं, "जब मैं यहां रहने जर्मनी आया, डेढ़ साल पहले, मैं शहर से जुड़ नहीं सका. यहां कई चिंताएं ऐसी थी जो मेरी नहीं थी. तो मैंने जासूस की भूमिका ले ली. मैं जासूस हूं लेकिन अपराध कहीं नहीं. मैं सड़कों को, लोगों को देखता हूं. मैं चीजें भी देखता हूं. उन्हें लेता हूं, देखता हूं. इनका अपना जीवन होता है, एक इतिहास होता है."

सारनाथ डेढ़ साल से बर्लिन में रह कर कॉमिक्स बना रहे हैं.तस्वीर: Findlay Kember/AFP/Getty Images

जादुई दुनिया

40 साल के सारनाथ बैनर्जी बर्लिन के अंडरग्राउंड सबवे से बहुत आकर्षित होते हैं, "सबवे दरवाजे जैसे हैं. ये जादुई जगहे हैं. जैसे कि एक शहर के सबवे में आप जाएं और जब निकलें तो दूसरे ही शहर में निकलें. लगता है जैसे आप किसी जादुई दुनिया में हैं." यही जादू सारनाथ बैनर्जी दैनिक जीवन में पकड़ना चाहते हैं. एक अनजान की तरह वह वो देख पाते हैं जिन्हें स्थानीय लोग देख ही नहीं पाते. 

सबवे के प्लेटफॉर्म को भी वह एक अलग ही नजरिए से देखते हैं, "प्लेटफॉर्म के बीचोंबीच एक अजीब सा कमरा होता है, सिंगल रूम, यह एक बेडरूम वाला घर भी हो सकता है. एक ऐसे आदमी का जिसे भीड़ से, खुले स्पेस से डर लगता है. इसलिए वह अपना जीवन इसी कमरे में बिताता है और खाना खरीदने के लिए सिर्फ रात में निकलता है. मैं भी शहर को फैंटसी भरी स्पेस के तौर पर ही देखता हूं. यहीं वो अजीब, अनजान सा कुछ आता है."

सारनाथ बैनर्जी बर्लिन के अंडरग्राउंड सबवे से बहुत आकर्षित हैं.तस्वीर: Fotolia/Maximilian Niemann

आवाजों का माहौल

सारनाथ जिस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं उसका नाम है 'उनहाइमलिष'. यह एक जर्मन शब्द है जिसका मतलब है अजीब. यह इंसानों के बीच खालीपन को दिखाता है, कि कैसे वे किस तरह अपनी अकेली दुनिया बनाते हैं और एक दूसरे के नजदीक लेकिन अलग अलग जीते रहते हैं. अपने प्रोजेक्ट के बारे में सारनाथ का कहना है, "मैं आवाज और टोन का माहौल बनाता हूं. स्पेस का भी. वहां होने की भावना का. ताकि लोगों को मेरी स्थिति समझ में आए. जैसे वो खुद उसी जगह में खड़े हों. इसके लिए आपको लंबे टेक्स्ट की कोई जरूरत नहीं. मैं इन्हें चित्रों में बनाता हूं इसीमें संवाद बन जाते हैं."

यह संवाद बर्लिन में कोलकाता से बिलकुल अलग है और इनकी आवाजों का माहौल भी. सारनाथ का मानना था कि जहां से वह आए हैं, उसमें और जर्मन समाज में फर्क नहीं हो सकता, बल्कि वह एक ही सिक्के के दो विपरीत पहलू हैं और कम ही मौकों पर इनका आपस में संवाद होता है. लेकिन समय के साथ उन्हें लगा कि ऐसा होना जरूरी नहीं. यही विपरीतार्थी चीजें सारनाथ बैनर्जी का ध्यान खींचती हैं. और बर्लिन में ऐसा बहुत कुछ है.

रिपोर्ट: आभा मोंढे

संपादन: ईशा भाटिया

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