दुनियाभर में दिखाई देने वाली चीजों में काला और सफेद रंग होना बेहद सामान्य बात है. लेकिन काला और सफेद रंग तो असल में रंग ही नहीं हैं. काले और सफेद के साथ स्लेटी रंग को भी रंग नहीं माना जाता. इसकी वजह क्या है?
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हमारे आसपास काले रंग की भरमार है जैसे कौआ, काली बिल्ली, काले कपड़े, जूते और यहां तक की काली तितलियां. बच्चों को सिखाने के लिए सभी रंगों की जानकारी देने वाली रंग पट्टिकाएं काले रंग से शुरू होती हैं और सफेद रंग पर खत्म होती हैं. लेकिन सच्चाई यह है कि काला रंग असल में रंग ही नहीं है.
सफेद और स्लेटी भी रंग नहीं है. दरअसल विज्ञान की भाषा में किसी चीज को रंगीन तब माना जाता है जब वह एक निश्चित तंरग दैर्ध्य यानी वेवलेंथ की रोशनी को परावर्तित करता है या कहें वापस भेज देता है. जैसे एक पीला केला रोशनी के स्पैक्ट्रम के पीले कलर को परावर्तित करता है और बाकी रंगों को सोख लेता है. देखने वाले की आंखों में पीली रोशनी पहुंचती है. इसलिए देखने वाले की आंखों को यह पीला ही दिखाई देता है.
रंग का पता लगाना इंसान के दिमाग का काम है. एक काली चीज रोशनी के दृश्य स्पैक्ट्रम की सभी तीव्रताओं को सोख लेती है और कुछ भी परावर्तित नहीं करती है. सफेद चीजें दृश्य स्पैक्ट्रम की सभी तीव्रताओं को परावर्तित कर देती हैं. इसका उदाहरण प्रिज्म से देखा जा सकता है. प्रिज्म रोशनी को सतंरगी रोशनी में अपवर्तित कर देता है. मतलब प्रिज्म से निकलने वाली रोशनी सात रंगों में टूट जाती है. इन सबसे ही इंद्रधनुष बनता है.
तो क्या किसी काली टोपी को देखकर यह कहना गलत होगा कि यह है टोपी काले रंग की है? एकदम गलत तो नहीं है क्योंकि आम बोलचाल में काले रंग को भी दूसरे रंगों की तरह एक रंग ही माना जाता है. लेकिन विज्ञान की भाषा में काले और सफेद को सात्विक रंग या एक्रोमैटिक कलर कहा जाता है.
सात्विक रंगों में काले और सफेद रंग के अलावा स्लेटी भी शामिल है. फिलहाल दुनियाभर में वैज्ञानिक सबसे गहरे काले रंग के पदार्थ की खोज कर रहे हैं. 2018 तक यह रिकॉर्ड वांटाब्लैक के नाम है. यह पदार्थ कार्बन नैनो टूथ से बना हुआ है जो सिर्फ 0.035 प्रतिशत रोशनी को ही परावर्तित करता है. इसलिए इस पदार्थ से बनी हुई चीजें समतल दिखाई देती हैं. यह एक ब्लैक होल के बाद अब तक देखा गया सबसे गहरे रंग का पदार्थ है.
शुरुआती बड़े फोटोग्राफरों ने दुनिया की सबसे बड़ी विनाशलीलाओं में एक पहले विश्व युद्ध को भी अपनी कला का मूल भाव बनाया. ये कला का नमूना भी हैं और बर्बादी के सबूत भी.
तस्वीर: TASCHEN
तबाही के दस्तावेज
पहले विश्वयुद्ध के दौरान फोटोग्राफी को मुख्य रूप से दुष्प्रचार और सैन्य हितों के लिए इस्तेमाल होने वाला जरिया माना जाता था. इस तस्वीर में मास नदी और तबाह वेरदां शहर दिख रहा है. 1916 के पतझड़ में जर्मन सेना के 400 सैनिकों ने मिल कर यह हवाई तस्वीर ली थी. कुछ आम लोगों ने भी दहशत और खुशियों की तस्वीरें ली हैं.
तस्वीर: TASCHEN
विश्वयुद्ध के बाद पहला सूर्यास्त
"द फर्स्ट वर्ल्ड वार इन कलर" नाम की एक किताब में 300 से ज्यादा रंगीन तस्वीरें हैं जो यूरोप, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के अभिलेखागारों से ली गई हैं. इसका संपादन पीटर वाल्टर ने किया है. यह जंग के दौरान हुई घटनाओं का ब्यौरा देती हैं जिनमें 1914 की लामबंदी से लेकर 14 जुलाई 1919 को लंदन, न्यूयॉर्क और पेरिस में जीत के जश्न तक की तस्वीरें हैं.
तस्वीर: TASCHEN
रंगों की नवीनता
पहली बार रंगीन तस्वीरें ऑटोक्रोम तकनीक का इस्तेमाल कर तैयार की गईं. इसके लिए लुमियर बंधुओ ने 1904 में पेटेंट लिया. इसमें सूक्ष्म कण कलर फिल्टर का काम करते थे. यह आधुनिक डिजिटल फोटोग्राफी और पेंटिंग की तरह लगता था. इस तस्वीर में फ्रांस का जहाज अलसाक दिख रहा है जिसे 3 अक्टूबरर 1915 को मार गिराया गया.
तस्वीर: TASCHEN/LVR LandesMuseum Bonn
मोर्चे पर
ऑटोक्रोम तकनीक में लंबे वक्त के एक्सपोजर की जरूरत पड़ती थी, मोर्चे के पास ली गई तस्वीरों के लिए अकसर बहुत सावधानी से पोज बनाया जाता था. हालांकि इसके बाद भी हम इन तस्वीरों से उस वक्त की मुश्किलों और तकलीफों के बारे में जान सकते हैं. तस्वीर में एक मोटरचालित तोप दिख रही है जो हवाई सुरक्षा के लिए इस्तेमाल होती थी. तस्वीर 1916 में वेरदां में ली गई.
तस्वीर: TASCHEN
दान के लिए अपील
यह तस्वीर अमेरिकन कमेटी फॉर डिवास्टेटेड फ्रांस ने 1918 में ली थी, इसमें फ्रांस का एक आयुधागार दिख रहा है. कमेटी का मकसद फ्रांसीसी युद्ध शरणार्थियों की तकलीफ कम करना था. तस्वीरें इसलिए ली गईं ताकि अमेरिकी लोग यह कल्पना कर सकें कि यूरोप में क्या हो रहा है और उन्हें दान देने के लिए तैयार किया जा सके.
तस्वीर: Collection Mark Jacobs
परिवार के लिए निजी तस्वीरें
पहली बार ना सिर्फ सरकार बल्कि आम लोग भी पहले विश्व युद्ध की तस्वीर लेने में कामयाब हुए. इसका नतीजा ना सिर्फ दुष्प्रचार वाली तस्वीरों के रूप में बल्कि मोर्चे पर लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी और उनके निजी अनुभवों के रूप में भी सामने आया. फ्रांसीसी सेना में तस्वीर लेने की मनाही थी लेकिन इसका पालन सख्ती से नहीं होता था. यहां एक सैनिक कंक्रीट के बंकर पर पोज दे रहा है.
तस्वीर: TASCHEN/LVR LandesMuseum Bonn
हवाई जंग
पहले विश्व युद्ध में इतिहास की पहली हवाई जंग भी लड़ी गई. यहां तस्वीर में फ्रांस का एक जंगी विमान दिख रहा है. युद्ध शुरू होते समय फ्रांस और ब्रिटेन के पास कुल उतने ही विमान थे जितने जर्मनों के पास. रॉयल फ्लाइंग कोर की हवाई निगरानी की वजह से 1914 में जर्मनों को 'मागने की लड़ाई' में रोका जा सका.
तस्वीर: TASCHEN
रोलिंग टैंक
पहला टैंक 1916 के पतझड़ में ब्रिटिश सेना ने मोर्चों पर घेरेबंदी तोड़ने के लिए इस्तेमाल किया. 1918 में इस ब्रिटिश टैंक की आमिएंस के पास पेरोन में तस्वीर खींची गई. मित्र सेना के पास करीब 6000 टैंक थे. पहले जर्मनी ने इस नए हथियार की ताकत को कम कर आंका. जर्मनों के अपने पहले टैंक ए7वी को विकसित करते करते 1918 का वसंत आ गया था.
तस्वीर: Collection Mark Jacobs
जंग की रफ्तार
पहले विश्व युद्ध के दौरान तैयार हुए नए हथियारों में जंगी जहाजों से लेकर टैंक और जहरीली गैस जैसे हथियार शामिल थे. मोटर वाली गाड़ियों के ज्यादा इस्तेमाल ने जंग के मोर्चों को ज्यादा खतरनाक बना दिया. हालांकि इसके साथ ही यह सुविधा भी आ गई कि घायल सैनिकों को तुलनात्मक रूप से जल्दी अस्पताल पहुंचाया जाने लगा. 1914 में ब्रिटेन की यह एंबुलेंस इसी काम में जुटी थी.
तस्वीर: TASCHEN
कला और सबूत
शुरुआती बड़े फोटोग्राफर अपनी फोटो की क्रोम प्लेटों को चार साल तक बचाए रखन में कामयाब रहे. उनका काम ना सिर्फ उस बड़े युद्ध की गवाही देता है बल्कि वह कला का भी एक बेजोड़ नमूना है जिसे फिर से देखा जाना चाहए. पीटल वाल्थर की "द फर्स्ट वर्ल्ड वार इन कलर" अंग्रेजी और जर्मन दोनों भाषाओं में छपी है.