तीन महीने के भीतर 20वीं मौत. दक्षिण भारत का टेक्सटाइल उद्योग महिला कामगारों के लिए मौत का कुआं सा बन गया है. आए दिन होती मौतें अब वहां आम बात है.
विज्ञापन
तमिलनाडु भारत के टेक्सटाइल उद्योग का गढ़ है. राज्य में 1000 से ज्यादा मिलें हैं. निर्यात के आंकड़े देखने पर लगता है कि उद्योग बढ़िया चल रहा है. लेकिन गहराई से झांके तो कामगारों की सिसकियां सुनाई पड़ती हैं. फरवरी, मार्च और अप्रैल 2018 में ही में वहां अब तक 20 टेक्सटाइल कामगारों की मौत हो चुकी है. ज्यादातर कर्मचारी या तो फैक्ट्रियों के भीतर मारे गए या फिर हॉस्टल में. पुलिस ने ज्यादातर मामलों को खुदकुशी करार दिया.
स्थानीय अधिकारियों के मुताबिक गारमेंट उद्योग के कर्मचारियों को काम के दबाव से लेकर यौन उत्पीड़न तक का सामना करना पड़ता है. सामाजिक जागरुकता का अभियान चलाने वाले एक संगठन के अलोयसियस अरोकियाम के मुताबिक, "फैक्ट्रियों के भीतर बहुत ही ज्यादा तनाव और मानसिक चोटें मिलती हैं. काम के दबाव और भावनात्मक मुद्दों को दरकिनार कर कामगारों को सिर्फ मशीन की तरह समझा जाता है. उन्हें कोई सलाह मशविरे संबंधी मदद नहीं मिलती और जब किसी की मौत होती है तो किसी को जिम्मेदार नहीं माना जाता."
अप्रैल 2018 में 17 साल की नाबालिग महिला कामगार की मौत हुई. उसका शव हॉस्टल में मिला. तमिलनाडु टेक्सटाइल एंड कॉमन लेबर यूनियन के अध्यक्ष थिवयराखिनी सेसूरज के मुताबिक, "परिवार को आशंका है कि मिल के भीतर उसका यौन उत्पीड़न किया गया, जिसके चलते उसने आत्महत्या की. इस बात की गंभीरता से कभी जांच ही नहीं हुई कि युवा क्यों मारे जा रहे हैं. हम वरिष्ठ अधिकारियों की अगुवाई में ठोस जांच की मांग कर रहे हैं."
बच्चे नहीं, मजदूर
तस्वीर: AFP/Getty Images
बच्चे नहीं, मजदूर
हर साल 12 जून को बाल श्रम विरोधी अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है. लेकिन दुनिया भर में अब भी करीब 17 करोड़ बच्चे मजदूरी कर रहे हैं. 1999 में विश्व श्रम संगठन (आईएलओ) के सदस्य देशों ने एक संधि कर शपथ ली कि 18 साल के कम उम्र के बच्चों को मजदूर और यौनकर्मी नहीं बनने दिया जाएगा.
तस्वीर: imago/Michael Westermann
मेड इन इंडिया तौलिये
दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में बाल मजदूर. इस फैक्ट्री में तौलिये बनाए जाते हैं. मजदूरी करने वाला यह बच्चा करोड़ों बाल मजदूरों में एक है. आईएलओ के मुताबिक एशिया में ही 7.80 करोड़ बच्चे मजदूरी कर रहे हैं. पांच से 17 साल की उम्र की युवा आबादी में से करीब 10 फीसदी से नियमित काम कराया जाता है.
तस्वीर: imago/imagebroker
स्कूल से कोई वास्ता नहीं
पढ़ाई लिखाई या खेल कूद के बजाए ये बच्चे ईंट तैयार कर रहे हैं. भारत में मां-बाप की गरीबी कई बच्चों को मजदूरी में धकेल देती है. भारत के एक ईंट भट्टे में काम करने वाली इस बच्ची को हर दिन 10 घंटे काम करना पड़ता है, बदले में मिलते हैं 60 से 70 रुपये.
तस्वीर: imago/Eastnews
सस्ते मजदूर
भारत की जनगणना रिपोर्ट के मुताबिक देश में 1.26 करोड़ बाल मजदूर हैं. ये सड़कों पर समान बेचते हैं, सफाई करते हैं, या फिर होटलों, फैक्ट्रियों और खेतों में काम करते हैं. व्यस्क मजदूरों की तुलना में बाल मजदूर को एक तिहाई मजदूरी मिलती है.
तस्वीर: imago/imagebroker
अमानवीय हालात
आईएलओ की 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक 50 फीसदी बच्चे खतरनाक परिस्थितियों में काम करते हैं. कई रात भर काम करते हैं. कई बच्चों को श्रमिक अधिकार भी नहीं मिलते हैं. उनकी हालत गुलामों जैसी है.
तस्वीर: AFP/Getty Images
मेड इन बांग्लादेश
बांग्लादेश में बाल मजदूरी काफी प्रचलित है. यूनिसेफ के मुताबिक देश में करीब 50 लाख बच्चे टेक्सटाइल उद्योग में मजदूरी कर रहे हैं. टेक्सटाइल उद्योग बांग्लादेश का सबसे बड़ा एक्सपोर्ट सेक्टर है. यहां बनने वाले सस्ते कपड़े अमीर देशों की दुकानों में पहुंचते हैं.
तस्वीर: imago/Michael Westermann
महानगर में अकेले
कंबोडिया में प्राइमरी स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या सिर्फ 60 फीसदी है. स्कूल न जाने वाले ज्यादातर बच्चे अपने माता-पिता के साथ काम करते हैं. हजारों बच्चे ऐसे भी है जो सड़कों पर अकेले रहते है. राजधानी नोम पेन्ह की ये बच्ची सामान घर तक पहुंचाती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
लंबी है सूची
हालांकि दुनिया भर में सन 2000 के बाद बाल मजदूरों की संख्या गिरी है लेकिन एशिया के ज्यादातर देशों में हालात नहीं सुधरे हैं. बांग्लादेश, अफगानिस्तान, नेपाल, कंबोडिया और म्यांमार में अब भी ज्यादा पहल नहीं हो रही.
तस्वीर: AFP/Getty Images
8 तस्वीरें1 | 8
कर्मचारियों के हितों की बात करने वाले संगठनों के मुताबिक तिरुपुर और इरोड जिले में भी कर्मचारियों की मौत के 10 नए मामले सामने आए हैं. इन जिलों को भारत की टेक्सटाइल वैली कहा जाता है. गारमेंट उद्योग से जुड़ी ज्यादातर फैक्ट्रियां यहीं हैं. इरोड में चैरिटी का काम करने वाली संस्था रीड के डायरेक्टर करुप्पु सामी प्रशासन पर भी गंभीर आरोप लगा रहे हैं, "जिन हॉस्टलों में ये लड़कियां रहती हैं वे ठीक से रजिस्टर्ड ही नहीं हैं. कर्मचारियों की संख्या की भी एकाउंटिंग नहीं की गई. 2015 से 2017 के बीच हमने कर्मचारियों की मौत के 55 मामले दर्ज किए, सभी मिल के हॉस्टल में आत्महत्या के मामले थे. यह कोई आम बात नहीं है."
मिल मालिक इन आरोपों का खंडन करते है. 650 से ज्यादा फैक्ट्रियां तमिलनाडु मिल एसोसिएशन की सदस्य हैं. एसोसिएशन के मुताबिक वह कर्मचारियों को परामर्श सेवाएं मुहैया करा रही है. एसोसिएशन के अधिकारी के वेंकटचलम कहते हैं, "मौत के सारे मामले काम से जुड़े नहीं हैं. कई मामलों में पारिवारिक समस्या से चलते वो ऐसा करते हैं. हम नियोक्ता के तौर पर अपनी भूमिका से दूर नहीं भाग रहे हैं, हाल ही में हमने लड़कियों से सीधे बात करने के लिए सीनियर डॉक्टरों को भी बुलाया."
भारत का टेक्सटाइल उद्योग हर साल करीब 42 अरब डॉलर का निर्यात करता है. इसकी धुरी तमिलनाडु है, जहां फैक्ट्रियों में बड़ी संख्या में महिलाएं काम करती हैं. निर्धन परिवारों से आने वाली ये महिलाएं फै्क्ट्री मालिकों द्वारा बनाए गए या किराये पर लिए गए हॉस्टलों में रहती हैं. घर से दूर आईं इन महिलाओं को फैक्ट्रियों में बहुत ज्यादा देर तक काम करने के लिए मजबूर किया जाता है. इस दौरान यौन उत्पीड़न और गाली गलौज भी आम है. दिन भर के काम काज के बाद थकी हारी महिलाएं जब हॉस्टल लौटती हैं तो अकेलापन उन्हें घेर लेता है.
तमिलनाडु की महिला टेक्सटाइल कर्मचारियों की कहानियां अब अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी जगह पा रही हैं. अगर हालत ऐसे ही बने रहे तो टेक्सटाइल उद्योग की छवि को गहरा धक्का लगना तय है. इस आशंका को टालने के लिए डिंडीगुल जिले में स्थानीय प्रशासन अब पहली बार वर्कशॉप आयोजित करने जा रहा है. वर्कशॉप का मकसद 200 बुनाई मिलों में काम काज की परिस्थितियों को बेहतर बनाना है. डिंडीगुल के अधिकारी टीजी विनय कहते हैं, "आइडिया यह है कि महिलाओं को उत्पीड़न की शिकायत करने के लिए प्रेरित किया जाए, काम के दबाव से निपटने में उनकी मदद की जाए. साथ ही उन्हें पढ़ाई जारी रखने का मौका भी देने की कोशिश है.
दुनिया में 4 करोड़ लोग अब भी गुलाम
दुनिया हर रोज तरक्की के नये आयाम स्थापित कर रही है, विज्ञान भी प्रगति कर रहा है लेकिन अब भी दुनिया भर में तकरीबन 4 करोड़ लोग गुलामों की तरह जिंदगी बिता रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/M. Tama
कैसी है गुलामी
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और वॉक फ्री फाउंडेशन ने इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ माइग्रेशन (आईओएम) के साथ मिलकर एक स्टडी की है जिसके मुताबिक दुनिया में 2.5 करोड़ लोग बेगारी करने के लिए मजबूर हैं तो वहीं 1.5 करोड़ लोग जबरन शादियों में जीवन बिता रहे हैं.
तस्वीर: Getty Images/M. Tama
बाजार तक पहुंच
रिपोर्ट के मुताबिक लगभग डेढ़ से ढाई करोड़ लोग निजी क्षेत्रों में बेगारी करने के लिए मजबूर हैं. निजी क्षेत्रों में ऐसे लोग निर्माण कार्य, कृषि क्षेत्र में काम कर रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि बेगारी से जूझते इन मजदूरों की सेवाएं और इनकी बनाई वस्तुयें बाजार में वैध चैनलों के जरिये पहुंचती हैं.
तस्वीर: Getty Images/C. McGrath
हमारे ही आसपास
रिपोर्ट की मानें तो जो भोजन हम कर रहे हैं, जो कपड़े हम पहन रहे हैं इन्हें भी ये मजदूर तैयार कर रहे हैं. यहां तक कि हमारे आस-पास की इमारतों में भी ये साफ-सफाई का काम करते हैं.
तस्वीर: picture alliance/ZUMA Press/M. Hasan
एशिया, अफ्रीका और अरब देश
बेगारी और जबरन विवाह जैसे मामले अफ्रीका और एशिया प्रशांत क्षेत्र में अधिक सामने आते हैं. डाटा की कमी के चलते अरब देशों की स्थिति का ठीक-ठीक ब्यौरा नहीं मिलता लेकिन आशंका है कि इस क्षेत्र में गुलामी में जीवन बिता रहे लोगों की संख्या अधिक भी हो सकती है.
तस्वीर: Getty Images/P. Bronstein
बेगारी बनी मजबूरी
ऋण न चुका पाने वाले आधे से अधिक लोग बेगारी करने के लिए मजबूर हैं. वहीं तकरीबन 40 लाख लोग प्रशासनिक दवाब के चलते बेगारी कर रहे हैं. रिपोर्ट मानव तस्करी और अवैध आप्रवासियों की भी चर्चा करती है साथ ही आप्रवासन नीतियों को बेहतर बनाने पर जोर देती है.
तस्वीर: imago/imagebroker
पीड़ित वर्ग
जबरन विवाह की शिकार अधिकतर लड़कियां और महिलाएं बलात्कार पीड़ित और मानव तस्करी का शिकार हैं. इनमें से कुछ घरेलू कामकाज करने के लिए मजबूर हैं, वहीं तकरीबन 40 लाख लोग और 10 लाख से भी अधिक बच्चे यौन शोषण का शिकार हैं.
तस्वीर: imago/imagebroker
बच्चों के खराब हालात
इसके पहले आईएलओ ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि दुनिया में 5-17 साल के तकरीबन 15.2 करोड़ बच्चे बाल श्रम से पीड़ित हैं. इनमें से एक तिहाई बच्चे शिक्षा से वंचित हैं तो 38 फीसदी बच्चे खतरनाक जगहों पर काम कर रहे हैं.