कावेरी जल विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर कर्नाटक ने राहत की सांस ली है. वार्षिक बजट की तैयारियों में लगे मुख्यमंत्री ने फैसले का स्वागत किया है.
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कर्नाटक के एक अधिकारी ने बताया, "मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने संतोष जताया है कि इस विवाद में राज्य के पक्ष में फैसला आया और कावेरी नदी से मिलने वाले पानी में राज्य की हिस्सेदारी को बढ़ाकर सर्वोच्च न्यायालय ने उनके रुख को आंशिक रूप से स्वीकार किया, जिसमें पीने के उद्देश्य से बेंगलुरू को अधिक पानी आवंटित करने का निर्णय भी शामिल है."
सिद्धारमैया ने संवाददाताओं से बातचीत में फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि वह वकीलों से परामर्श करने और अंतिम आदेश को पढ़ने के बाद प्रतिक्रिया देंगे. मुख्यमंत्री ने कहा, "हमें सर्वोच्च न्यायालय से कुछ न्याय मिला, जिससे मैं चिंतामुक्त और खुश हूं. मैं अपनी कानूनी टीम से बात करने और फैसले को पढ़ने के बाद आपके पास वापस लौटूंगा, क्योंकि मैं सुबह से राज्य के बजट को पेश करने की तैयारी कर रहा हूं."
कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण द्वारा 2007 में दिए गए फैसले के खिलाफ कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल द्वारा दायर याचिकाओं पर अंतिम फैसला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कर्नाटक की हिस्सेदारी में 14.75 टीएमसी फुट का इजाफा किया, जिसमें से बेंगलुरू को 4.75 टीएमसी फुट पानी दिया जाएगा. कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू मंड्या जिले में स्थित कावेरी नदी से 120 किलोमीटर दूर है.
कहां कहां हो रहे हैं पानी पर झगड़े
भारत में कावेरी जल विवाद हो या सतलुज यमुना लिंक का मुद्दा, पानी को लेकर अकसर खींचतान होती रही है. वैसे पानी को लेकर झगड़े दुनिया में और भी कई जगह हो रहे हैं. एक नजर बड़े जल विवादों पर.
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ब्रह्मपुत्र नदी विवाद
2900 किलोमीटर लंबी ब्रह्मपुत्र नदी चीन के तिब्बत से निकलती है. अरुणाचल प्रदेश और असम से होते हुए ये बांग्लादेश में गंगा में मिल जाती है. उर्जा के भूखे चीन के लिए जहां इस नदी का पनबिजली परियोजनाओं के लिए महत्व है, वहीं भारत और बांग्लादेश के बड़े भूभाग को ये नदी सींचती है. भारत और चीन के बीच इसके पानी के इस्तेमाल के लिए कोई द्विपक्षीय संधि नहीं है लेकिन दोनों सरकारों ने हाल में कुछ कदम उठाए हैं.
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ग्रांड रेनेसॉ बांध और नील नदी
2011 में अफ्रीकी देश इथियोपिया ने ग्रांड इथियोपियन रेनेसॉ बांध बनाने की घोषणा की. सूडान की सीमा के नजदीक ब्लू नील पर बनने वाले इस बांध से छह हजार मेगावॉट बिजली बन सकेगी. बांध बनाने का विरोध सूडान भी कर रहा है लेकिन मिस्र में तो इससे पानी की आपूर्ति प्रभावित होने का खतरा है. 1929 और 1959 में संधियां हुई हैं. लेकिन इथियोपिया किसी बात की परवाह किए बिना बांध बना रहा है जो 2017 तक पूरा हो सकता है.
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इलिसु बांध और तिगरिस नदी
तुर्की सीरियाई सरहद के पास तिगरिस नदी पर इलिसु बांध बना रहा है. इस महत्वाकांक्षी परियोजना के से सिर्फ तिगरिस बल्कि यूफ्रेटस की हाइड्रोइलेक्ट्रिक क्षमताओं का भरपूर इस्तेमाल किया जाना है. तुर्की अपनी अनातोलियन परियोजना के तहत तिगरिस-यूफ्रेटस के बेसिन में कई और बांध और हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट लगाना चाहता है. लेकिन इससे सबसे बड़ा घाटा इराक का होगा जिसे अब तक इन नदियों का सबसे ज्यादा पानी मिलता था.
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सिंधु जल संधि विवाद
पानी के बंटवारे के लिए विश्व बैंक ने 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक संधि कराई जिसे सिंधु जल संधि के नाम से जाना जाता है. इसके तहत ब्यास, रावी और सतलज नदियों का नियंत्रण भारत को सौंपा गया जबकि सिंधु, चेनाब और झेलम का नियंत्रण पाकिस्तान को. पानी का बंटवारा कैसे हो, इसे लेकर विवाद रहा है. चूंकि पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियां भारत से होकर जाती है, भारत इसका इस्तेमाल सिंचाई के लिए कर सकता है.
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शायाबुरी बांध
दक्षिण पूर्व एशियाई देश लाओस मेकॉन्ग नदी पर शायाबुरी बांध बना रहा है जिसका उसके पड़ोसी देश और पर्यावरणविद् विरोध कर रहे हैं. बांध के बाद ये नदी कंबोडिया और वियतनाम से गुजरती है. उनका कहना है कि बांध के कारण उनके मछली भंडार और लाखों लोगों की जिंदगियां प्रभावित होंगी. गरीब लाओस शायाबुरी बांध को अपनी आमदनी का जरिया बनाना चाहता है. उसकी योजना इससे बनने वाली बिजली को पड़ोसी देशों को बेचना है.
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पानी पर सियासत
मध्य पूर्व में जॉर्डन नदी का बेसिन इस्राएल और अन्य देशों के बीच सियासत का एक अहम मुद्दा है. मध्य पूर्व में पानी के स्रोतों की कमी होने की वजह इस्राएल, पश्चिमी तट, लेबनान, सीरिया और जॉर्डन के बीच अकसर खींचतान होती रहती है. 1960 के दशक में पानी के बंटवारे को लेकर इस्राएल और अरब देशों के बीच तीन साल तक चले गंभीर विवाद को जल युद्ध का नाम दिया जाता है.
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मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अमिताव रॉय और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की पीठ ने तमिलनाडु को मिलने वाले पानी को 192 टीएमसी फुट से घटाकर 177.25 टीएमसी फुट कर दिया. पीठ ने कहा कि कावेरी न्यायाधिकरण ने तमिलनाडु में नदी के बेसिन में उपलब्ध भूजल पर ध्यान नहीं दिया था.
अशांति की आशंका
कर्नाटक किसान संघ के प्रमुख जी. मदे गौड़ा ने मैसूर के लोगों से शांति बनाए रखने और किसी भी अप्रिय घटना से बचने की अपील की है, क्योंकि यह फैसला आंशिक रूप से राज्य के पक्ष में है. गौड़ा ने मंड्या में संवाददाताओं से कहा, "हम अदालत के फैसले को पढ़ने के बाद अपनी आगे की योजना के बारे में निर्णय लेंगे कि यह हमारे लिए कितना लाभकारी सिद्ध होगा, खासकर क्षेत्र के किसानों के लिए."
इसके बावजूद प्रशासन को अशांति फैलने की आशंका बनी हुई है. बेंगलुरू, मंड्या, मैसूर और चामराजनगर में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए सुरक्षा कड़ी कर दी गई है. अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक कमल पंत ने कहा, "हमने मंड्या और मैसूर जिलों में स्थित जलाशयों के आसपास अतिरिक्त सुरक्षा बलों को तैनात किया है, ताकि उनकी और बांधों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके."
ऐसा ही चला तो पड़ जाएंगे पीने के पानी के लाले
भले ही अभी आपके घर के नल में पानी आता हो लेकिन हमेशा ऐसे ही चलेगा, यह सोचना गलतफहमी होगी. जनसंख्या के साथ बढ़ती जा रही मांग, खेती और जलवायु परिवर्तन के कारण कई इलाकों में अभी ही पानी की बेहद कमी हो चुकी है.
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पानी बिच मीन पियासी
हमारी धरती के दो-तिहाई हिस्से के पानी से ढके होने के बावजूद पानी की कमी की बात अविश्वसनीय लगती है. कुल मिलाकर धरती पर एक अरब खरब लीटर पानी से भी अधिक है. लेकिन समस्या यह है कि इसका ज्यादातर हिस्सा नमकीन पानी का है और इंसान की प्यास बुझाने के काम नहीं आ सकता.
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बिन पानी सब सून
धरती पर मौजूद कुल जल का केवल ढाई प्रतिशत ही ताजा पानी है. इसमें से भी दो-तिहाई हिस्सा ग्लेशियर और बर्फीली चोटियों के रूप में कैद है. इसका मतलब हुआ कि इंसान के पीने, खाना पकाने, जानवरों को पिलाने या कृषि के लिए उपलब्ध पानी की मात्रा बहुत ही कम है.
पानी का चक्कर
असल में पानी एक नवीकरणीय स्रोत है. प्रकृति में जल चक्र चलता रहता है जिससे हमारे पृथ्वी ग्रह पर जल यानी H2O की मात्रा हमेशा एक समान बनी रहती है. इसलिए पानी के पृथ्वी से खत्म होने का खतरा नहीं हैं. असल खतरा इस बात का है कि भविष्य में हमारे पास सबकी जरूरत पूरी करने के लिए पर्याप्त साफ पानी होगा या नहीं.
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पाकिस्तान तो गया
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट दिखाती है कि भारत का पड़ोसी देश पाकिस्तान 2025 तक सूख जाएगा. जर्मनी के एक जल विशेषज्ञ योहानेस श्मीस्टर बताते हैं कि "स्थानीय स्तर पर समस्या बहुत गंभीर है" और "आंकड़ें और अवलोकन यही दिखाते हैं कि हालात और बिगड़ते ही जाएंगे."
सिर उठाता स्थानीय जल संकट
सन 2016 की एक स्टडी के मुताबिक, नीदरलैंड्स की यूनिवर्सिटी ऑफ ट्वेंटे ने पाया है कि चार अरब लोगों को हर साल कम से कम एक महीने के लिए पानी की गंभीर कमी झेलनी पड़ेगी. कुछ इलाकों में लोग आज ही सूखे और जल संकट की चपेट में आ चुके हैं. हॉर्न ऑफ अफ्रीका इलाके में लगातर पड़ते सूखे के कारण भूखमरी और बीमारी का प्रकोप है.
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जलवायु परिवर्तन का बड़ा हाथ
इस पर्यावरणीय घटना के कारण दुनिया भर में मौसमों का चक्र और जल चक्र प्रभावित होगा. इससे भी कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ आयेगी. कही कहीं तापमान के बहुत ज्यादा बढ़ जाने से भी पानी की कमी झेलनी पड़ेगी.
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प्रकृति ही नहीं लापरवाही भी कारण
विशेषज्ञ पानी की कमी को "इकोनॉमिक" संकट भी बताते हैं. इसका मतलब हुआ कि इंसान उपलब्ध पानी का किस तरह से प्रबंधन करता है यह भी अहम है. जैसे कि भूजल का बहुत ज्यादा दोहन करना, नदियों और झीलों को सूखने देना और बचे खुचे साफ पानी के स्रोतों को इतना प्रदूषित कर देना कि उनका पानी इस्तेमाल के लायक ना रहे.
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कैसे करें मुकाबला
वॉटरएड के विंसेंट केसी कहते हैं कि साफ पानी के 'इकोनॉमिक' संकट से निपटने के लिए सरकारों को पानी की सप्लाई और संग्रह के ढांचे में और ज्यादा निवेश करना होगा. इसके अलावा खेती को ऐसा बनाना होगा जिसमें पानी की खपत कम हो. कुल ताजे पानी का करीब 70 फीसदी फिलहाल खेतों में सिंचाई और पशु पालन में खर्च होता है.
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बढ़ चुकी हैं जरूरतें
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, एक इंसान हर दिन केवल खाना पकाने और बुनियादी हाइजीन में औसतन 20 लीटर ताजे पानी का इस्तेमाल करता है. कपड़े धोने और नहाने में लगने वाला पानी इसके ऊपर है. जो देश जितने विकसित हैं उतनी ही ज्यादा उनकी पानी की जरूरतें हैं. जैसे जर्मनी में प्रति व्यक्ति रोजाना औसतन 140 लीटर पानी का खर्च है, 30 लीटर तो केवल शौचालय के फ्लश में जाता है.
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कुछ प्रत्यक्ष तो कुछ छिपे हुए खर्चे
आंखों से दिखने वाले पानी की सामान्य खपत के अलावा कई इंसानी गतिविधियों से अप्रत्यक्ष बर्बादी भी होती है. एक डब्बा कॉफी उगाने में 840 लीटर पानी तो एक जींस बनाने में 8,000 लीटर पानी लग जाता है. इन सभी जरूरी कामों में पानी की खपत कम करने के तकनीकी उपाय भी तलाशने होंगे. (काथारीना वेकर/आरपी)
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तमिलनाडु में मिश्रित प्रतिक्रिया
कावेरी नदी जल बंटवारे को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आई है, किसान समुदाय जहां इस फैसले को लागू किए जाने की ओर देख रहे हैं, वहीं राजनीतिक पार्टियों ने इस फैसले को राज्य के साथ धोखा बताया है. किसान नेता पीआर पांडियन ने कहा, "यह ऐतिहासिक निर्णय है, जहां सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि कोई भी राज्य एक नदी पर अपना दावा नहीं कर सकता. केंद्र सरकार को अब नदियों को राष्ट्रीयकृत कर देना चाहिए."
वहीं दूसरी ओर, राजनीतिक नेताओं ने राज्य के जल आवंटन में कमी किए जाने का विरोध किया है. पट्टाली मक्कल काची (पीएमके) के संस्थापक एस रामादास ने कहा कि राज्य के पानी में कटौती तमिलनाडु के साथ अन्याय है. द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के नेता एमके स्टालिन ने एआईएडीएमके सरकार को तमिलनाडु में पानी की हिस्सेदारी घटाने के लिए जिम्मेदार ठहराया. तमिलनाडु कांग्रेस के नेता थिरुनावुक्कारासर ने कहा कि अच्छी बात यह है कि कर्नाटक कावेरी नदी के स्वामित्व का दावा नहीं कर सकता.