क्या कावेरी जल बंटवारे के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले से तीस्ता नदी के पानी पर बांग्लादेश के साथ समझौते की राह निकलेगी? कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी का पानी लंबे समय से झगड़े की जड़ रहा है.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बांग्लादेश दौरों और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के बीते साल के भारत दौरे के बावजूद तीस्ता नदी के पानी पर विवाद दोनों देशों के संबंधों की राह में रोड़ा बना हुआ है. इसके लिए ममता बनर्जी के अड़ियल रवैये को जिम्मेदार माना जाता है. ममता बनर्जी के विरोध के चलते ही अब तक तीस्ता और गंगा बैराज पर प्रस्तावित समझौते परवान नहीं चढ़ सके हैं.
राज्य में सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस की दलील है कि तीस्ता नदी के पानी के बंटवारे पर होने वाले समझौते से जहां उत्तर बंगाल में खेती पर प्रतिकूल असर पडने का अंदेशा है, वहीं गंगा बैराज योजना से दक्षिण बंगाल के कई जिलों में बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा. राज्य सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री कहते हैं कि मुख्यमंत्री कई बार इन समस्याओं को केंद्र के सामने उठा चुकी हैं. लेकिन वहां से अब तक कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला है.
शेख हसीना के साथ बेहतर संबंधों के बावजूद ममता इस मुद्दे पर राज्य के हितों की कीमत पर कोई समझौता करने को तैयार नहीं हैं. बीते साल शेख हसीना के भारत दौरे के दौरान भी ममता ने राज्य के हितों का हवाला देते हुए तीस्ता समझौते को उसके मौजूदा प्रारूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया था. तीस्ता समझौता नहीं होने के विरोध में बांग्लादेश सरकार ने वहां पद्मा नदी से आने वाली हिल्सा मछलियों के निर्यात पर भी लंबे अरसे तक रोक लगा रखी थी. इसके बावजूद ममता टस से मस नहीं हुईं.
कहां कहां हो रहे हैं पानी पर झगड़े
भारत में कावेरी जल विवाद हो या सतलुज यमुना लिंक का मुद्दा, पानी को लेकर अकसर खींचतान होती रही है. वैसे पानी को लेकर झगड़े दुनिया में और भी कई जगह हो रहे हैं. एक नजर बड़े जल विवादों पर.
तस्वीर: AFP/Getty Images
ब्रह्मपुत्र नदी विवाद
2900 किलोमीटर लंबी ब्रह्मपुत्र नदी चीन के तिब्बत से निकलती है. अरुणाचल प्रदेश और असम से होते हुए ये बांग्लादेश में गंगा में मिल जाती है. उर्जा के भूखे चीन के लिए जहां इस नदी का पनबिजली परियोजनाओं के लिए महत्व है, वहीं भारत और बांग्लादेश के बड़े भूभाग को ये नदी सींचती है. भारत और चीन के बीच इसके पानी के इस्तेमाल के लिए कोई द्विपक्षीय संधि नहीं है लेकिन दोनों सरकारों ने हाल में कुछ कदम उठाए हैं.
तस्वीर: DW/B. Das
ग्रांड रेनेसॉ बांध और नील नदी
2011 में अफ्रीकी देश इथियोपिया ने ग्रांड इथियोपियन रेनेसॉ बांध बनाने की घोषणा की. सूडान की सीमा के नजदीक ब्लू नील पर बनने वाले इस बांध से छह हजार मेगावॉट बिजली बन सकेगी. बांध बनाने का विरोध सूडान भी कर रहा है लेकिन मिस्र में तो इससे पानी की आपूर्ति प्रभावित होने का खतरा है. 1929 और 1959 में संधियां हुई हैं. लेकिन इथियोपिया किसी बात की परवाह किए बिना बांध बना रहा है जो 2017 तक पूरा हो सकता है.
तस्वीर: CC BY-SA 2.0/Islam Hassan
इलिसु बांध और तिगरिस नदी
तुर्की सीरियाई सरहद के पास तिगरिस नदी पर इलिसु बांध बना रहा है. इस महत्वाकांक्षी परियोजना के से सिर्फ तिगरिस बल्कि यूफ्रेटस की हाइड्रोइलेक्ट्रिक क्षमताओं का भरपूर इस्तेमाल किया जाना है. तुर्की अपनी अनातोलियन परियोजना के तहत तिगरिस-यूफ्रेटस के बेसिन में कई और बांध और हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट लगाना चाहता है. लेकिन इससे सबसे बड़ा घाटा इराक का होगा जिसे अब तक इन नदियों का सबसे ज्यादा पानी मिलता था.
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सिंधु जल संधि विवाद
पानी के बंटवारे के लिए विश्व बैंक ने 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक संधि कराई जिसे सिंधु जल संधि के नाम से जाना जाता है. इसके तहत ब्यास, रावी और सतलज नदियों का नियंत्रण भारत को सौंपा गया जबकि सिंधु, चेनाब और झेलम का नियंत्रण पाकिस्तान को. पानी का बंटवारा कैसे हो, इसे लेकर विवाद रहा है. चूंकि पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियां भारत से होकर जाती है, भारत इसका इस्तेमाल सिंचाई के लिए कर सकता है.
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शायाबुरी बांध
दक्षिण पूर्व एशियाई देश लाओस मेकॉन्ग नदी पर शायाबुरी बांध बना रहा है जिसका उसके पड़ोसी देश और पर्यावरणविद् विरोध कर रहे हैं. बांध के बाद ये नदी कंबोडिया और वियतनाम से गुजरती है. उनका कहना है कि बांध के कारण उनके मछली भंडार और लाखों लोगों की जिंदगियां प्रभावित होंगी. गरीब लाओस शायाबुरी बांध को अपनी आमदनी का जरिया बनाना चाहता है. उसकी योजना इससे बनने वाली बिजली को पड़ोसी देशों को बेचना है.
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पानी पर सियासत
मध्य पूर्व में जॉर्डन नदी का बेसिन इस्राएल और अन्य देशों के बीच सियासत का एक अहम मुद्दा है. मध्य पूर्व में पानी के स्रोतों की कमी होने की वजह इस्राएल, पश्चिमी तट, लेबनान, सीरिया और जॉर्डन के बीच अकसर खींचतान होती रहती है. 1960 के दशक में पानी के बंटवारे को लेकर इस्राएल और अरब देशों के बीच तीन साल तक चले गंभीर विवाद को जल युद्ध का नाम दिया जाता है.
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ममता की दलील
तीस्ता के पानी के बंटावरे का मुद्दा तृणमूल कांग्रेस के लिए एक अहम और संवेदनशील मुद्दा रहा है. बंगाल के सिंचाई मंत्री राजीव बनर्जी कहते हैं, "यह मुद्दा स्थानीय लोगों के हितों से जुड़ा है. हितों की बलि देकर कोई समझौता नहीं हो सकता." गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना के बाद तीस्ता भारत और बांग्लादेश होकर बहने वाली चौथी सबसे बड़ी नदी है.
सिक्किम की पहाड़ियों से निकल कर भारत में लगभग तीन सौ किलोमीटर का सफर करने के बाद यह नदी बांग्लादेश पहुंचती है. वहां इसकी लंबाई 121 किलोमीटर है. बांग्लादेश के 14 फीसदी इलाके सिंचाई के लिए इसी नदी पर निर्भर हैं. इससे वहां की 7.3 फीसदी आबादी को प्रत्यक्ष रोजगार मिलता है. दरअसल, वर्ष 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बांग्लादेश दौरे के समय ही इस समझौते की तैयारी हो गई थी. लेकिन आखिरी मौके पर ममता ने अड़ंगा डाल दिया. उसी समय से यह समझौता दोनों देशों के आपसी संबंधों की राह में सबसे बड़ा रोड़ा रहा है.
ममता की दलील है कि पानी के बंटवारे से राज्य के किसानों को भारी नुकसान होगा. वह कहती हैं, "उत्तर बंगाल के किसानों की आजीविका तीस्ता के पानी पर निर्भर हैं. पानी की कमी से लाखों लोग तबाह हो सकते हैं." वैसे, ममता कहती रही हैं कि बातचीत के जरिए तीस्ता के मुद्दे को हल किया जा सकता है. बावजूद इसके मौजूदा राजनीतिक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए इसके आसार कम ही हैं. दूसरी ओर, शेख हसीना भी ममता की राजनीतिक मजबूरी समझती हैं. लेकिन उनकी अपनी भी मजबूरी है. वह चाहती हैं कि भारत सरकार आम सहमति से इस समस्या के समाधान की दिशा में ठोस पहल करे.
स्वच्छ पेयजल के लिए छटपटाते देश
दुनिया के छठे सबसे समृद्ध मुल्क में बड़ी आबादी के पीने का साफ पानी नहीं मिलता. भारत विश्व के ऐसे प्यासे देशों में शामिल है, जहां पानी बेहद मंहगा है.
तस्वीर: Reuters/M. Gupta
6. घाना
घाना के बड़े हिस्से में अब भी पानी की सप्लाई के लिए कोई पाइपलाइन सिस्टम नहीं है. वहां लोग अपनी आय का 25 फीसदी हिस्सा पीने के साफ पानी के लिए खर्च करते हैं.
तस्वीर: DW/G. Hilse
5. भारत
भारत में शुद्ध पेयजल 7.5 करोड़ लोगों की पहुंच से बाहर है. गंदे पानी से होने वाली बीमारियों के चलते हर साल भारत में 1,40,000 बच्चे मारे जाते हैं. प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से भारत में लोग 17 फीसदी पैसा पानी पर खर्च करते हैं.
तस्वीर: Reuters/M. Gupta
4. मेडागास्कर
50 लीटर साफ पानी खरीदने के लिए मेडागास्कर के लोगों को 45 फीसदी आय खर्च करनी पड़ती है. जो लोग इतना पैसा खर्च नहीं कर सकते वे नदियों से पानी भरकर लाते हैं.
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3. इथियोपिया
अफ्रीकी देश इथियोपिया में लोग अगर खुद पानी ढोयें तो उनकी 15 फीसदी आमदनी खर्च हो. लेकिन अगर वो किसी और से पानी खरीदें तो 150 फीसदी आय स्वाहा हो जाए.
तस्वीर: Reuters/T. Negeri
2. कंबोडिया
बीते 15 साल में कंबोडिया ने स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति के मामले में काफी प्रगति की है. राजधानी नोमपेन्ह में अब हर वक्त पानी मिलता है. लेकिन ग्रामीण इलाकों में रहने वाली देश की 80 फीसदी जनता को साफ पानी नहीं है.
तस्वीर: Getty Images/O.Havana
1. पापुआ न्यू गिनी
हर दिन सप्लाई होने वाले 50 लीटर पानी के लिए प्रति व्यक्ति आय का 54 फीसदी हिस्सा खर्च करना पड़ता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक देश की 60 फीसदी आबादी की पहुंच में पीने का साफ पानी नहीं है.
तस्वीर: Reuters/ASRC/Martin Wurt
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पुराना है विवाद
तीस्ता नदी के पानी पर विवाद देश के विभाजन के वक्त से ही चला आ रहा है. तीस्ता के पानी के लिए ही ऑल इंडिया मुस्लिम लीग ने वर्ष 1947 में सर रेडक्लिफ की अगुवाई में गठित सीमा आयोग से दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी को तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में शामिल करने की मांग उठाई थी. लेकिन कांग्रेस और हिंदू महासभा ने इसका विरोध किया था. तमाम पहलुओं पर विचार के बाद सीमा आयोग ने तीस्ता का ज्यादातर हिस्सा भारत को सौंपा था. उसके बाद वर्ष 1971 में पाकिस्तान से आजाद होकर बांग्लादेश के गठन के बाद पानी का मुद्दा दोबारा उभरा. वर्ष 1972 में इसके लिए भारत-बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग का गठन किया गया.
शुरूआती दौर में दोनों देशों का ध्यान गंगा, फरक्का बांध और मेघना व ब्रह्मपुत्र नदियों के पानी के बंटवारे पर ही केंद्रित रहा. लेकिन वर्ष 1996 में गंगा के पानी पर हुए समझौते के बाद तीस्ता के पानी के बंटवारे की मांग ने जोर पकड़ा. वर्ष 2010 में दोनों देशों के बीच समझौते के अंतिम प्रारूप पर सहमति भी बन गई. इसके अगले साल यानि 2011 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के ढाका दौरे के दौरान दोनों देशों के राजनीतिक नेतृत्व के बीच इस नदी के पानी के बंटवारे के एक नए फॉर्मूले पर सहमति बनी. लेकिन ममता के विरोध की वजह से उस पर अमल नहीं हो सका.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ममता के विरोध की वजह यह है कि समझौते के तहत किस देश को कितना पानी मिलेगा, यह साफ नहीं है. जानकारों का कहना है कि समझौते के प्रारूप के मुताबिक, बांग्लादश को तीस्ता का 48 फीसदी पानी मिलना है. लेकिन ममता की दलील है कि वैसी स्थिति में उत्तर बंगाल के छह जिलों में सिंचाई व्यवस्था पूरी तरह ठप हो जाएगी. बंगाल सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति से अध्ययन कराने के बाद बांग्लादेश को मॉनसून के दौरान नदी का 35 या 40 फीसदी पानी उपलब्ध कराने और सूखे के दौरान 30 फीसदी पानी देने का प्रस्ताव रखा था. लेकिन बांग्लादेश को यह मंजूर नहीं था. इसकी वजह यह है कि वहां दिसंबर से अप्रैल तक तीस्ता के पानी की जरूरत सबसे ज्यादा होती है. गर्मी के सीजन में उन इलाकों को भारी सूखे का सामना करना पड़ता है.
आने वाले खतरे की निशानी हैं ईरान की ये तस्वीरें
ईरान के कोहगिलूयेह और बोयरअहमद प्रांत में सूखे की मार के कारण लोग पीने के पानी को दर बदर भटक रहे हैं. इस इलाके की तस्वीरें जल संकट की तरफ बढ़ती दुनिया की तरफ इशारा करती हैं.
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सूखे जल स्रोत
कोहगिलूयेह और बोयरअहमद प्रांत में पानी ज्यादातर स्रोत सूख गये हैं. इसीलिए पीने के पानी के लिए ग्रामीण इलाके के लोगों को लंबी दूरी तय करनी पड़ रही है. बहुत से ग्रामीण तो तंग आकर शहरों का रुख कर रहे हैं.
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बदतर हालात
ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब कोहगिलूयेह और बोयरअहमद ईरान के सबसे अमीर प्रांतों में से एक हुआ करता था. लेकिन आज यहां पैदा जल संकट से पता चलता है कि अब इलाके की स्थिति क्या है.
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जिंदगी मुश्किल
समाचार एजेंसी इरना के मुताबिक इस प्रांत के ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में जल आपूर्ति का कोई बुनियादी ढांचा नहीं है. ऐसे प्राकृतिक जल स्रोतों के सूख जाने से इलाके के लोगों की जिंदगी मुश्किल हो गयी है.
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सूखे की मार
हाल के सालों में ईरान के कई इलाकों ने सूखे की मार झेली है. जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के कई हिस्सों में मौसम बदल रहा है. इसकी वजह से कहीं भारी बाढ़ तो कहीं सूखे की स्थिति पैदा हो रही है.
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जल बिन सब सून
जल ही जीवन है. इसलिए इस इलाके के लोगों के लिए पीने के पानी का इंतजाम करना आज सबसे बड़ी प्राथमिकता बन गया है. दूर दूर से डिब्बों में पानी भर कर लाना अब इनकी जिंदगी का अहम हिस्सा हो गया है.
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जैसे तैसे गुजारा
तेस्नीम समाचार एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार इस प्रांत में पानी के 210 चश्मे सूख गये हैं. सिर्फ कुछ जल स्रोत ही बचे हैं जो जैसे तैसे लोगों की प्यास बुझा रहे हैं.
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बदलती आबो हवा
सूखे और जल संकट से निपटने के लिए कारगार योजना न बनाने के लिए ईरानी राष्ट्रपति हसन रोहानी को अकसर आलोचना झेलनी पड़ती है. जलवायु परिवर्तन के कारण ईरान में धूल भरी आंधियां भी बढ़ी हैं.
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जल संकट
विशेषज्ञ ईरान के इन हालातों के लिए काफी हद तक जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार मानते हैं. हालांकि पानी की किल्लत ईरान ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई देशों में एक बड़े संकट का रूप लेती जा रही है.
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कहां से मिलेगा पानी
राष्ट्र का कहना है कि अगले 15 सालों में दुनिया भर के जल भंडारों में 40 फीसदी की कमी आयेगी. नीदरलैंड्स की यूनिवर्सिटी ऑफ ट्वेंटे के अध्ययन के अनुसार चार अरब लोगों को हर साल कम से कम एक महीने के लिए पानी की गंभीर कमी झेलनी पड़ेगी.
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क्या निकलेगी राह
तो अब क्या कावेरी जल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तीस्ता व गंगा नदियों पर प्रस्तावित समझौते की राह भी साफ हो सकती है? इस सवाल पर राज्य सरकार की दलील है कि यह दोनों मामले अलग हैं. कावेरी विवाद देश के दो राज्यों के बीच था जबकि तीस्ता और गंगा बैराज समझौते का मामला पड़ोसी देश से जुड़ा है.
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ प्रोफेसर बीएन मंडल कहते हैं, "कावेरी विवाद की तर्ज पर ममता कभी इन समझौतों के लिए राजी नहीं होंगी. केंद्र के साथ राज्य सरकार की लगातार बढ़ती खाई भी इन समझौतों की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है." पर्यवेक्षकों का कहना है कि ममता की दलीलों में कुछ दम जरूर है. लेकिन केंद्र के साथ उनका छत्तीस का आंकड़ा ही फिलहाल इन समझौतों की राह में सबसे बड़ी बाधा है. ऐसे में, यह समस्या अदालत से नहीं बल्कि राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर बातचीत से ही सुलझ सकती है.