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किंग कोबरा का गढ़ है उत्तराखंड का नैनीताल

हृदयेश जोशी
२८ अगस्त २०२०

राज्य वन विभाग की ताजा रिपोर्ट कहती है कि पूरे उत्तराखंड में पिछले 5 साल में 62% से अधिक बार किंग कोबरा-साइटिंग केवल नैनीताल जिले में ही हुई है.

किंग कोबरा
किंग कोबरा भारतीय का नेशनल रेप्टाइल है और यह दुनिया का सबसे बड़ा ज़हरीला सांस है.तस्वीर: Jignasu Dolia

भारत का नेशनल रेप्टाइल किंग कोबरा देश के कई हिस्सों में पाया जाता है. इनमें रेन-फॉरेस्ट एरिया जैसे भारत के पूर्वी और पश्चिमी घाट, उत्तर-पूर्वी राज्य, सुंदरबन और अंडमान के कुछ इलाके आते हैं. इसके अलावा पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के कुछ जिलों में भी किंग कोबरा यदा-कदा देखा जाता है लेकिन पिछले कुछ सालों में राज्य के एक खास हिस्से में इसकी मौजूदगी अधिक रिकॉर्ड हुई है.

राज्य के वन विभाग की रिसर्च विंग ने एक रिपोर्ट तैयार की है जिससे ये संकेत मिलते हैं कि उत्तराखंड का नैनीताल जिला किंग कोबरा का गढ़ बन रहा है.  रिपोर्ट दावा करती है कि उपलब्ध आंकड़ों के हिसाब से रेन फॉरेस्ट वाले परंपरागत हैबीटाट के बाहर "नैनीताल में संभवत: किंग कोबरा की सबसे अधिक संख्या है.”

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नैनीताल में बढ़ती मौजूदगी के प्रमाण!  

उत्तराखंड के पांच जिलों में किंग कोबरा के होने के सुबूत मिले हैं. इनमें हर जिले में किंग कोबरा की साइटिंग के आंकड़ों को इस रिपोर्ट में इकट्ठा किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार साल 2015 से जुलाई 2020 के बीच पूरे राज्य में  किंग कोबरा कुल 132 बार देखा गया. इनमें से 83 बार किंग कोबरा की मौजूदगी नैनीताल जिले में ही रिकॉर्ड की गई जबकि देहरादून में किंग कोबरा को 32 बार देखा गया. इसके अलावा पौड़ी जिले में 12 बार किंग कोबरा दिखा जबकि उत्तरकाशी में सिर्फ 3 और हरिद्वार में तो 2 बार ही इसकी साइटिंग रिकॉर्ड हुई.

वन विभाग के शोधकर्ता हैरान हैं कि आखिर नैनीताल जिले में ही किंग कोबरा की इतनी मौजूदगी कैसे बढ़ रही है. खासतौर से तब जबकि किंग कोबरा एक "कोल्ड ब्लडेड” प्राणी है जिसके लिए वातावरण का बदलता तापमान दुश्वारी पैदा करता है.

इस शोध में कहा गया है कि किंग कोबरा का घोंसला - यह दुनिया का एकमात्र सर्प है जो अंडे देने के लिए घोंसला बनाता है - उत्तराखंड में पहली बार साल 2006 में नैनीताल जिले की भवाली फॉरेस्ट रेंज में दिखा. फिर साल 2012 में मुक्तेश्वर में 2303 मीटर की ऊंचाई में इसका घोंसला मिला. इतनी ऊंचाई पर किंग कोबरा का होना दुनिया भर में एक रिकॉर्ड है. 

पूरे उत्तराखंड राज्य में नैनीताल जिले में किंग कोबरा की मौजूदगी के सबसे अधिक सुबूत मिले हैंतस्वीर: Noman Siddiqui

इस रिपोर्ट को तैयार करने वाले रिसर्च फेलो ज्योति प्रकाश कहते हैं, "पिछले 5 साल में देहरादून और हरिद्वार जैसे बड़े जिलों में किंग कोबरा की रिकॉर्डेड साइट को जोड़ भी दें, तो नैनीताल में इससे ढाई गुना अधिक बार किंग कोबरा देखा गया है. यहां हमने इसके कई घोंसले भी लोकेट किए हैं.”

नैनीताल के मनोरा, भवाली और नैना फॉरेस्ट रेंज में किंग कोबरा आसानी से दिख रहा है. रिपोर्ट कहती है, "मनोरा और भवाली रेंज, जहां किंग कोबरा सबसे अधिक बार देखा गया, वहां तापमान 1.5 डिग्री से 24 डिग्री के बीच बदलता है. कोल्ड ब्लडेड किंग कोबरा का इतने बदलते तापमान पर जीवित रहना और इतनी ऊंचाई (2303 मीटर) पर उसका घोंसला पाया जाना एक गहन शोध का विषय है.”

ज्योति प्रकाश ने डीडब्ल्यू को बताया, "मुक्तेश्वर में करीब 2200 मीटर की ऊंचाई है, जबकि जिम कॉर्बेट पॉर्क का तराई वाला इलाका 300 से 400 मीटर पर है. एक ही जिले में इतनी अलग अलग ऊंचाई पर किंग कोबरा की अच्छी साइटिंग होना हमें हैरान करता है. यह किंग कोबरा की अनुकूलन क्षमता का सुबूत तो है लेकिन इस पर और गंभीर रिसर्च करने की जरूरत है.”

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किंग कोबरा: एक शीर्ष परभक्षी

भोजन श्रंखला में किंग कोबरा एपेक्स प्रीडेटर यानी सबसे ऊपर है. प्रकृति में जहां अन्य सांप चूहों को खाकर उनकी संख्या नियंत्रित करते हैं, वहीं किंग कोबरा का भोजन सिर्फ सांप हैं. यानी वह प्रकृति में सांपों की संख्या को नियंत्रित करता है. विरले मौकों पर ही किंग कोबरा सांप के अलावा छिपकली या गिरगिट जैसे अन्य जीवों को खाता है. इस तरह से यह धरती पर सांपों की संख्या नियंत्रित करने में एक रोल अदा करता है.

किंग कोबरा भारत में वन्य जीव कानून के तहत संरक्षित प्राणियों में है और इसकी कई खासियत हैं, जो इसे विश्व भर के बाकी सर्पों से अलग करती हैं. आकार के हिसाब से यह दुनिया का सबसे बड़ा विषैला सांप है, जिसकी लंबाई 18 फुट तक हो सकती है. यह दुनिया में सांपों की अकेली प्रजाति है जिसमें मादा अंडे देने से पहले अपना घोंसला बनाती है.

अंडों से बच्चे निकलने में 80 से 100 दिन लगते हैं और तब तक मादा किंग कोबरा अपने अंडों की तत्परता से रक्षा रहती है. जानकार कहते हैं कि इस दौरान वह तकरीबन 2 महीने तक भूखी ही रहती है. यह दिलचस्प है कि अंडों से बच्चे निकलने से ठीक पहले मादा किंग कोबरा हमेशा वह जगह छोड़कर चली जाती है.

जानकार कहते हैं कि इस विषय पर गहन शोध की ज़रूरत है कि किंग कोबरा की नैनीताल में इतनी साइटिंग कैसे हो रही हैतस्वीर: Noman Siddiqui

विराट और शांतिप्रिय प्राणी 

किंग कोबरा एक बेहद शांतिप्रिय या जानकारों की भाषा में नॉन-कॉम्बेटिव (आक्रमण न करने वाला) सांप है. भारत में सांपों की कई जहरीली प्रजातियां हैं लेकिन चार ही सांप हैं, जिनके काटने से अधिकांश मौतें होती हैं. ये हैं रसेल्स वाइपर, सॉ स्केल वाइपर, क्रेट और इंडियन कोबरा. इन चारों को "बिग-फोर” कहा जाता है. अपने शांतिप्रिय स्वभाव के कारण ही बहुत विषैला होने के बावजूद  किंग कोबरा "बिग-फोर” में नहीं गिना जाता. 

जहां सांपों की ज्यादातर प्रजातियां इंसानी बसावट के आसपास रहती हैं और कई बार लोगों के घरों में भी घुस जाती हैं, वहीं किंग कोबरा जंगल में रहना ही पसंद करता है और इंसान से उसका सामना कम ही होता है. इसके काटने की घटनाएं पूरे देश में बहुत कम हैं. उत्तराखंड वन विभाग की यह रिपोर्ट किंग कोबरा के स्वभाव का प्रमाण है. इसके मुताबिक राज्य में अब तक किंग कोबरा के काटने की एक भी घटना दर्ज नहीं हुई है.

किंग कोबरा पर जानकारों की राय 

भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के पीएचडी स्कॉलर जिज्ञासु डोलिया, जो पिछले 10 साल से किंग कोबरा पर इसी क्षेत्र में रिसर्च कर रहे हैं, कहते हैं कि नैनीताल जिला राज्य के सबसे अधिक वनाच्छादित जिलों में है. इसलिए यह इलाका किंग कोबरा के लिए एक बेहतर पनाहगार बनाता है. लेकिन डोलिया इस रिपोर्ट के आधार पर किंग कोबरा की संख्या को लेकर किसी निष्कर्ष पर नहीं जाना चाहते.

किंग कोबरा भारतीय का नेशनल रेप्टाइल है और यह दुनिया का सबसे बड़ा ज़हरीला सांस है.तस्वीर: Jignasu Dolia

किंग कोबरा अकेला सांप है जहां मादा अंडे देने से पहले अपना घोंसला बनाती है और अंडों की करीब 3 महीने तक रखवाली करती है. तस्वीर: Jyoti Prakash Joshi

उनके मुताबिक, "एक बात हमें समझनी होगी कि हमारे पास किंग कोबरा की गिनती का बहुत सटीक तरीका नहीं है, जैसे कि टाइगर की गिनती होती है, जहां हम काफी हद तक सही संख्या पता कर सकते हैं. इसलिए नंबर को लेकर स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता." नैनीताल जिला ऐसा क्षेत्र है, जहां किंग कोबरा बार-बार देखा जाता है और उसका घोंसला भी यहां जंगल में हर साल बना मिलता है.

यह भी सच है कि राज्य की बाकी जगहों की तुलना में नैनीताल क्षेत्र में लोगों में अधिक जागरूकता है, इसलिए वह किंग कोबरा की साइटिंग की रिपोर्टिंग भी करते हैं. जिज्ञासु डोलिया कहते हैं, "असल में नैनीताल का फॉरेस्ट कवर, यहां होने वाली बारिश और भौगोलिक स्थिति से किंग कोबरा के लिए एक अनुकूल मिश्रण तैयार होता है.” 

नैनीताल जिले में किंग कोबरा के जो भी घोंसले मिले, वे चीड़ की नुकीली पत्तियों से बने हैं जबकि अन्य जगहों में इसके घोंसले बांस द्वारा बने मिले हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि चूंकि चीड़ की पत्तियां आसानी से नष्ट नहीं होती, इसलिए यह मादा द्वारा घोंसले के लिए इन पत्तियों के चुनाव की वजह हो सकती है लेकिन जिज्ञासु नहीं मानते की मादा चीड़ को विशेष रूप से ढूंढकर ही उसकी पत्तियों से घोंसला बनाती है, "हमारा अनुभव है कि जो भी उपयुक्त चीज मिलेगी, मादा उससे अपना घोंसला बनाएगी. इस क्षेत्र में चीड़ और बांज अच्छी खासी संख्या में है और वह अंडो के लिए तापमान नियंत्रित करने में काफी मददगार है, इसलिए मादा किंग कोबरा घोंसला बनाने में उसका प्रयोग करती है.”

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