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कितना खतरनाक है कोरोना वायरस कोविड-19?

२६ फ़रवरी २०२०

वैज्ञानिक अब भी नहीं बता सकते कि कोरोना वायरस कोविड-19 कितना घातक है. नया वायरस दुनिया के अलग अलग देशों तक पहुंच रहा है लेकिन इसके साथ ही इसका रहस्य भी गहराता जा रहा है.

Deutschland Düsseldorf Rosenmontagszug | Coronavirus Motivwagen
तस्वीर: Reuters/T. Schmuelgen

वायरस से प्रभावित लोगों के मरने की दर में चीन के ही अलग अलग शहरो में फर्क है. कोविड-19 को पैदा करने वाला वायरस नए नए देशों तक जिस तेजी से पहुंच रहा है उस वजह से मृत्यु की मामूली दर भी बड़ी संख्या में लोगों की जान ले सकती है. ऐसे में इस गुत्थी को सुलझाना जरूरी है कि वायरस प्रभावित एक जगह में दूसरी जगह से बेहतर क्यों है.

डॉक्टर ब्रुस आयलवार्ड डब्ल्यूएचओ के दूत हैं और हाल ही में अपनी टीम के साथ चीन का दौरा कर वापस आए हैं. आयलवार्ड ने मंगलवार को चेतानी दी, "जब तक आप इसे एक जगह नियंत्रण कर पाएंगे तब तक दूसरी जगह इसके बहुत बुरे नतीजे सामने आ जाएंगे."

कोविड-19 से प्रभावित लोगों की मृत्यु दर क्या है

तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Gul

मध्य चीन के विहान में सबसे पहले नए कोरोना वायरस का पता चला. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक यहां 2 से 4 फीसदी मरीजों की मौत हुई है. हालांकि वायरस से ज्यादा प्रभावित चीन के ही दूसरे इलाकों में मृत्यु दर इससे काफी कम यानी 0.7 फीसदी ही है.

एक जगह का वायरस दूसरी जगह से ज्यादा अलग नहीं है. कोविड-19 ने सबसे पहले वुहान पर धावा बोला. इससे पहले कि कोई बीमारी को समझ पाता इसने वहां की स्वास्थ्य सेवाओं को अपनी चपेट में ले लिया. आमतौर पर ऐसा होता है कि इलाज शुरू होने के पहले ही शुरुआती मरीजों पर इसका ज्यादा असर हो चुका होता है. 

चीन के दूसरे इलाकों में जब तक लोग बीमार होते अधिकारी उससे पहले ही इसकी पहचान करने में सक्षम हो चुके थे और इस बीमारी से होने वाली हर मौत अब उनके रडार पर आ गई. कोविड-19 का कोई विशेष इलाज तो नहीं है, शुरुआत में अगर ध्यान रखा जाए तो इससे फायदा हो सकता है. चीन ने शुरुआत में बीमारी के लक्षण दिखने और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने के बीच 15 दिन का समय लिया. अब यह घट कर 3 दिन रह गया है.

हालांकि आयलार्ड लोगों से जब यह कहते सुनते हैं कि मृत्युदर ज्याद नहीं है और ज्यादातर मामले मामूली संक्रमण के हैं तो उन्हें निराशा होती है. वे अफसोस जताते हुए कहते हैं कि जितने लोग तब मर रहे थे, अब भी उतने ही मर रहे हैं.

चीन के बाहर कोरोना से मौत

पिछले हफ्ते तक चीन से बाहर जितने लोगों में कोविड-19नका संक्रमण हुआ उन सबने चीन की यात्रा की. जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञ लॉरेन साउर का कहना है कि आमतौर पर यात्रा करने वाले लोग स्वस्थ होते हैं, इसलिए उनकी बीमारी के ठीक होने के आसार ज्यादा रहते हैं. इसके अलावा वापस आने वाले यात्रियों में संक्रमण की जांच करने वाले देशों ने बहुत पहले यह काम शुरू कर दिया और तब तक उनके चिकित्सा तंत्र पर इसका बहुत दबाव भी नहीं पड़ा था.

तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/E. Noroozi

अब यह स्थिति बदल रही है. जापान, इटली और ईरान में और चीन के बाहर मरने वालों की तादा बढ़ रही है. आयलार्ड चेतावनी के सुर में कहते हैं कि अधिकारियों को सचेत रहना होगा क्योंकि कुछ देशों में गंभीर मरीज ज्यादा हैं जबकि हल्के संक्रमण वाले कम. चीन के वुहान का भी यही हाल है.

कोविड-19 दूसरी बीमारियों की तुलना में कैसा है

इस वायरस के ही एक भाई ने 2003 में सार्स का रोग फैलाया था. तब सार्स से प्रभावित हुए 10 फीसदी मरीजों की मौत हुई थी. फ्लू वायरस एक अलग तरह के वायरसों का परिवार है और इसमें कुछ सदस्य दूसरों की तुलना में ज्यादा घातक हैं. औसतन मौसमी फ्लू से मृत्यु की दर 0.1 फीसदी रहती है. अगर कोविड-19 के कारण अब तक हुई मौतों से इसकी तुलना करें तो यह बहुत कम है. हालांकि हर साल दुनिया के करोड़ों लोग फ्लू की चपेट में आते हैं और हर साल लाखों लोगों की मौत भी होती है.

कोरोना वायरस से सबसे ज्यादा खतरा किसे?

बुजुर्ग, खास तौर से जो लंबे समय से किसी मर्ज के शिकार हैं जैसे कि दिल या फिर फेफड़े की कोई बीमारी, सबसे ज्यादा खतरा उनको है.

तस्वीर: picture-alliance/Photoshot

युवाओं में मौत होने का खतरा ज्यादा नहीं है लेकिन कई युवाओं की मौत भी हुई है. इनमें 34 साल का चीन का वो डॉक्टर भी शामिल है जिसने चीन की सरकार को इस बीमारी के खतरे से आगाह किया था. सरकार ने उल्टा उसे ही डांट पिला दी और झूठमूठ का डर फैलाने का आरोप लगा कर उसे प्रताड़ित किया.

चीन के 80 फीसदी मरीजों में जब वायरस का पता चला तो वे हल्के बीमार थे. इसकी तुलना में 13 फीसदी लोगों के गंभीर रूप से बीमार होने के दौरान उनमें वायरस की जानकारी मिली. आयलार्ड के मुताबिक जो लोग ज्यादा बीमार रहने के दौरान इसकी चपेट में आए उनकी मौत का खतरा ज्यादा है. कुछ हल्के बीमार लोगों की मौत के भी मामले सामने आए हैं लेकिन इसके पीछे कारण का पता नहीं चल सका है.

डब्ल्यूएचओ का कहना है कि वायरस के हल्के संक्रमण वाले लोग आमतौर पर दो हफ्ते में ठीक हो रहे हैं. गंभीर रूप से बीमार लोगों को ठीक होने में 3-6 हफ्ते का समय लग रहा है.

एनआर/आईबी (एपी)

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