पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने खर्च कम करने के लिए छोटा सा घर लिया. वीआईपी कल्चर और सुरक्षा पर होने वाले खर्च पर भी लगाम कसी. लेकिन इन तमाम कदमों के बीच अर्थशास्त्रियों को खान की यह नीति कुछ ठोस नहीं लगती.
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पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री इमरान खान ने देश में खर्च में कटौती की एक नई मुहिम छेड़ दी है. मकसद है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की मदद लेने से बचना. इस मुहिम के तहत सरकार अब वीआईपी प्रोटोकॉल पर कम खर्च करेगी. आम जनता में इस बात को लेकर उत्साह है क्योंकि पिछली सरकारों में नेताओं के खर्चे, जनता की आंखों में खटकते रहे हैं. लेकिन अर्थशास्त्री इसे महज एक लोकलुभावन नीति और पॉपुलिस्ट स्टंट मान रहे हैं. वे आलोचनात्मक स्वर में कहते हैं कि सरकार लोगों को गुमराह करने के लिए ऐसा कर रही है, ताकि गंभीर आर्थिक मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाया जा सके.
हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब पाकिस्तान में किसी प्रधानमंत्री ने इस तरह की मुहिम छेड़ी है. इसके पहले भी 1980 के दशक में सैनिक तानाशाह जिया उल हक ने सत्ता संभालने के बाद उदार शासन के विरोध में "इस्लामिक सादगी" का विचार पेश किया था. कुछ इसी तरह की बात पूर्व प्रधानमंत्री मोहम्मद खान जुनेजो और नवाज शरीफ के शासन काल में 1980 और 1990 के दशक में सामने आई थी. लेकिन इन कोशिशों का कोई ठोस नतीजा नहीं निकला.
पाकिस्तान का आर्थिक संकट
पाकिस्तान पर तकरीबन 95 अरब डॉलर का अनुमानित कर्ज है. देश को हर साल कर्ज भुगतान के लिए 24 अरब डॉलर की आवश्यकता होती है. वहीं देश का व्यापार घाटा भी 2018 के वित्तीय वर्ष में 37.7 अरब डॉलर के करीब पहुंच गया है. इसी वित्तीय वर्ष में पाकिस्तान ने 61 अरब डॉलर आयात पर खर्च किया है. दिलचस्प है कि आयातित माल में बड़ा हिस्सा ऐसे माल का है जिसका इस्तेमाल चीन के नेतृत्व वाली पाकिस्तान-चाइना इकोनॉमिक कॉरिडोर परियोजना में होना है.
इमरान खान को कितना जानते हैं आप?
पाकिस्तान में बदहाल अर्थव्यवस्था और कुशासन का आरोप झेल रहे प्रधानमंत्री इमरान खान की मुश्किलें लगातार बढ़ रहीं हैं. क्रिकेटर से राजनेता बने इमरान खान का अब तक का सफर बेहद दिलचस्प है, चलिए जानते हैं.
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पूरा नाम?
क्या आप इमरान खान का पूरा नाम जानते हैं? उनका पूरा नाम है अहमद खान नियाजी इमरान, लेकिन बतौर क्रिकेटर और राजनेता वह दुनिया के लिए हमेशा इमरान खान रहे हैं.
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करियर की शुरुआत
इमरान खान के क्रिकेट करियर की शुरुआत 16 साल की उम्र में हुई, जब उन्होंने 1968 में लाहौर की तरफ से सरगोधा के खिलाफ पहला फर्स्ट क्लास क्रिकेट मैच खेला.
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पढ़ाई से पहले क्रिकेट
1970 में वह पाकिस्तान की राष्ट्रीय टीम का हिस्सा बन गए. यानी उनकी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई थी और उनके अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर का आगाज हो चुका था.
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इंग्लिश क्रिकेट में धाक
बाद में वह पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए. वहां भी उनके खेल के चर्चे होने लगे. वह 1974 में ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी इलेवन के कप्तान बने. उन्होंने काउंटी क्रिकेट भी खेला.
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पाकिस्तान की कप्तानी
इमरान खान 1982 में पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के कप्तान बने. बतौर कप्तान उन्होंने 48 टेस्ट मैच खेले जिनमें से पाकिस्तान ने 14 जीते, आठ हारे और बाकी ड्रॉ रहे.
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वनडे करियर
इमरान ने 139 एकदिवसीय मैचों में पाकिस्तानी टीम का नेतृत्व किया. इनमें से 77 जीते, 57 हारे और एक मैच का कोई नतीजा नहीं निकला.
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वर्ल्ड चैंपियन
पाकिस्तान ने अब तक सिर्फ एक बार क्रिकेट का वर्ल्ड कप जीता है और 1992 में यह कारनामा इमरान खान की कप्तानी में हुआ था.
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सबसे सफल कप्तान
इमरान पाकिस्तान के लिए सबसे सफल कप्तान साबित हुए, जिनकी तुलना अकसर भारत के पूर्व कप्तान कपिल देव से हुई है. दोनों ऑलराउंडरों के रिकॉर्ड भी प्रभावशाली रहे हैं.
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सियासत में कदम
इमरान खान ने 1996 में पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ पार्टी बना कर सियासत में कदम रखा. 2013 के आम चुनाव में उनकी पार्टी दूसरे स्थान पर रही और 2018 में पहले पर.
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निजी जीवन
इमरान खान अपनी निजी जिंदगी को लेकर भी सुर्खियों में रहते हैं. 65 साल की उम्र में उन्होंने तीसरी शादी की. इससे पहले सेलेब्रिटी जमैमा और टीवी एंकर रेहाम खान उनकी पत्नी रह चुकी हैं.
तस्वीर: PIT
गंभीर आरोप
रेहाम खान ने अपनी किताब में इमरान पर गंभीर आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि किसी महिला को इमरान की पार्टी में तभी बड़ा पद मिलता है जब वह इमरान के साथ हमबिस्तर हो.
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पाकिस्तान के ट्रंप
कई लोग इमरान खान पर पॉपुलिस्ट होने का आरोप लगाते हैं. चरमपंथियों के प्रति उनकी नरम सोच पर कई लोग सवाल उठाते हैं. कई कट्टरपंथियों से उनके करीबी रिश्ते रहे हैं.
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अमेरिका के आलोचक
प्रधानमंत्री बनने से पहले इमरान खान आतंकवाद के खिलाफ अमेरिकी जंग और उसमें पाकिस्तान की भागीदारी पर सवाल उठाते रहे हैं. वे इसे पाकिस्तान की कई मुसीबतों की जड़ मानते थे. लेकिन पीएम बनने के बाद उन्हें पता चला कि अमेरिका से रिश्ते कितने जरूरी हैं.
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भ्रष्टाचार के खिलाफ
इमरान खान हमेशा से पाकिस्तान में भ्रष्टाचार को बड़ा मुद्दा बनाते रहे थे. पूर्व पीएम नवाज शरीफ खास तौर से उनके निशाने पर रहे. लेकिन आज वो खुद बदहाल अर्थव्यवस्था और कुशासन का आरोप झेल रहे हैं.
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लोकप्रियता
इमरान खान युवाओं में बेहद लोकप्रिय रहे हैं. नया पाकिस्तान बनाने का उनका नारा युवाओं की जुबान पर रहा. 2012 में वह एशिया पर्सन ऑफ द ईयर चुने गए. लेकिन अब उनकी छवि बदल रही है. उन पर अपने चुनावी वादों को पूरा ना करने के आरोप लग रहे हैं.
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देश के कारोबारी भी अब ये शिकायत कर रहे हैं कि सरकार चीन की कंपनियों को ज्यादा लाभ दे रही है. चीन के सस्ते सामानों की बाजारों में बाढ़ आ गई है जिसके चलते स्थानीय कारोबार प्रभावित हो रहा है. इन सब मुद्दों पर बात करने की बजाय प्रधानमंत्री इमरान खान ने पहले भाषण में सरकारी अधिकारियों के खर्चों में कटौती की बात कही है. प्रधानमंत्री बनने के बाद इमरान खान ने कहा था कि वह प्रधानमंत्री आवास की बजाय तीन कमरों वाले छोटे घर में रहेंगे और सरकारी खर्चों को कम करेंगे. देश के पूर्व वित्त सचिव वकार मसूद मानते हैं कि ये तरीके देश की आर्थिक समस्याओं को नहीं सुलझा सकते.
सैन्य खर्च का क्या?
इन सारी बातों के बीच इमरान खान ने सैन्य बजट को लेकर अब तक कोई टिप्पणी नहीं की है. सैन्य बजट सरकार के लिए दूसरा सबसे बड़ा खर्च है. भारत, अफगानिस्तान, चीन और ईरान के साथ सीमा साझा करने वाले पाकिस्तान का रक्षा बजट बहुत बड़ा है. देश हर साल इस पर तकरीबन 12 अरब डॉलर खर्च करता है.
पाकिस्तान के अंग्रेजी अखबार एक्सप्रेस टि्ब्यून के पूर्व संपादक मोहम्मद जियाउद्दीन कहते हैं कि पाकिस्तान की संसद में रक्षा बजट पर कोई चर्चा नहीं होती. यहां के सैन्य अधिकारी टैक्स कम देकर कई सौ कारोबार चला रहे हैं. लेकिन इमरान खान की खर्च कटौती नीति उन लोगों को इससे बाहर रखती है." एक अन्य अर्थशास्त्री अजरा तलत सईद मानते हैं कि कोई भी सरकार इतनी शक्तिशाली नहीं है कि वह सैन्य बजट को कम कर सके.
चीन करेगा पाकिस्तान की मदद?
पाकिस्तान और अमेरिका के संबंधों में पिछले कुछ समय से तनाव नजर आ रहा है. ऐसे में संभव है कि चीन देश की नई सरकार के साथ सहयोग बढ़ाने की पेशकश करे. लेकिन इस पर भी मतभेद हैं. कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं कि चीन पर भरोसा करना समझदारी नहीं है. अर्थशास्त्री सईद कहते हैं, "चीन मदद के लिए कोई बेल आउट पैकेज दे सकता है लेकिन उसकी कोई भी मदद बिना शर्त नहीं मिलेगी. हम पहले भी चीन से बड़े कर्ज ले चुके हैं."
हालांकि अर्थशास्त्रियों के बीच इस बात पर सहमति नजर आती है कि पाकिस्तान को किसी भी बेलआउट पैकेज के लिए आईएमएफ से संपर्क करना चाहिए. लेकिन ट्रंप प्रशासन के पाकिस्तान पर अपनाए गए कड़े रुख के चलते यह मुश्किल हो गया है. अमेरिका का आईएमएफ में बड़ा दबदबा है. अमेरिका पहले ही पाकिस्तान को चेतावनी दे चुका है कि वह मदद की राशि का इस्तेमाल चीन के कर्ज चुकाने के लिए न करे.
आतंकवाद और मदद
प्रधानमंत्री इमरान खान अफगानिस्तान में बढ़ रहे उग्रवाद और चरमपंथ के लिए अमेरिकी दखल को जिम्मेदार मानते हैं. साथ ही इस मुद्दे के राजनीतिक समाधान की वकालत करते हैं. खान और पाकिस्तानी सेना का रुख आतंकवाद के मुद्दे पर लगभग एक जैसा नजर आता है. दोनों पक्ष ही मानते हैं कि पाकिस्तान आतंकवाद जैसी किसी समस्या के लिए जिम्मेदार नहीं है.
सत्ता संभालने के बाद अब तक इमरान खान ने पाकिस्तान की जमीन पर पनप रहे जिहाद जैसे मुद्दों पर जुबान नहीं खोली है. आतंकवाद जैसे मुद्दों पर इमरान खान की ये नीतियां आपस में विरोधाभासी नजर आती हैं. इस स्थिति में यह तो नहीं कहा जा सकता कि अमेरिका फिलहाल पाकिस्तान को कोई भी आर्थिक रियायत देगा.
पाकिस्तान बनने से अब तक की पूरी कहानी
पाकिस्तान का 70 साल का इतिहास उथल पुथल से भरा है. एक ऐसा देश जो ना सिर्फ पाकिस्तानी सेना के हाथों की कठपुतली रहा है, बल्कि राजनेताओं के सियासी दाव पेंच भी उसका इम्तिहान लेते रहे हैं. जानिए पाकिस्तान में कब क्या हुआ..
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1947
अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद भारत का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान अस्तित्व में आया. पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना देश के गवर्नर जनरल बने जबकि लियाकत अली खान को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. लेकिन इसके एक साल बाद ही जिन्नाह का निधन हो गया जो टीबी की बीमारी से पीड़ित थे.
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1951
प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की रावलपिंडी में हत्या कर दी गई. कंपनी बाग में वह एक सभा में मौजूद थे कि उन पर दो गोलियां दागी गईं. पुलिस ने मौके पर ही हमलावर को ढेर कर दिया. लियाकत अली को झटपट अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका. उनके बाद बंगाली मूल के ख्वाजा नजीमुद्दीन पाकिस्तान के दूसरे प्रधानमंत्री बने.
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1958
पाकिस्तान को 1956 में पहला संविधान मिला. लेकिन सियासी खींचतान के बीच 1958 में पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति इसकंदर मिर्जा ने संविधान को निलंबित कर मार्शल लॉ लगा दिया. फिर कुछ दिनों बाद ही सेना प्रमुख जनरल अयूब खान ने मिर्जा को हटाया और खुद देश के राष्ट्रपति बन बैठे. पाकिस्तान में पहली बार सत्ता सेना के हाथ में आई.
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1965
पाकिस्तान में अमेरिका जैसी राष्ट्रपति शासन प्रणाली लागू करने वाले अयूब खान ने 1965 में चुनाव कराने का फैसला किया. वह खुद पाकिस्तान मुस्लिम लीग के उम्मीदवार बने जबकि उनके सामने विपक्ष ने जिन्ना की बहन फातिमा जिन्ना को उतारा. फातिमा जिन्ना को भरपूर वोट मिले लेकिन अयूब खान इलेक्ट्रोल कॉलेज के जरिए चुनाव जीत गए.
तस्वीर: imago stock&people
1969
फातिमा जिन्ना के खिलाफ विवादास्पद जीत और भारत के साथ 1965 में हुई जंग के नतीजों से अयूब खान की छवि को बहुत नुकसान हुआ. जबरदस्त विरोध प्रदर्शनों के बीच उन्होंने राष्ट्रपति पद छोड़ दिया और सत्ता अपने आर्मी चीफ जनरल याहया खान को सौंप दी. देश में फिर मार्शल लॉ लगा और सभी असेंबलियां भंग कर दी गईं.
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1970
पाकिस्तान में आम चुनाव कराए गए. पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के नेता शेख मुजीबउर रहमान की पार्टी आवामी लीग को जीत मिली. नेशनल असेंबली की कुल 300 सीटों में से आवामी लीग को 160 सीटें मिली. 81 सीटों के साथ जुल्फिकार अली भुट्टो की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी दूसरे नंबर पर रही. लेकिन आवामी लीग की जीत को स्वीकार नहीं किया गया.
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1971
चुनाव नतीजों को लेकर छिड़े विवाद ने एक युद्ध की जमीन तैयार की. इसमें भारत ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान की मदद की और 1971 में बांग्लादेश के नाम से भारतीय उपमहाद्वीप में एक नए देश का उदय हुआ. बुनियादी तौर पर भारत का विभाजन धर्म के नाम पर हुआ. लेकिन एक धर्म होने के बावजूद पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान एक साथ नहीं रह पाए.
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1972
पाकिस्तान की टूट के लिए याहया खान के शासन को जिम्मेदार माना गया, जिसके कारण उनका सत्ता में रहना मुश्किल होने लगा. ऐसे में, उन्होंने देश की सत्ता जुल्फिकार अली भुट्टो को सौंप दी. देश में लगे मार्शल लॉ को हटाया गया और जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने. 1972 में ही भुट्टो ने पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम शुरू किया.
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1973
पाकिस्तान में फिर एक नया संविधान लागू हुआ जिसके तहत पाकिस्तान को एक संसदीय लोकतंत्र बनाया गया, जिसमें प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख हो. इस तरह भुट्टो राष्ट्रपति से प्रधानमंत्री पद पर आ गए. भुट्टो ने 1976 में जनरल जिया उल हक को अपना चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनाया, जो आगे चल कर उनके लिए मुसीबत बन गए.
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1977
पाकिस्तान में आम चुनाव हुए. भुट्टो की पार्टी को जबरदस्त जीत मिली. लेकिन विपक्ष ने चुनावों में धांधली के आरोप लगाए और देश में विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया. मौके का फायदा उठाते हुए जिया उल हक ने भुट्टो का तख्तापलट किया और संविधान को निलंबित कर देश में फिर से मार्शल लॉ लगा दिया.
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1978
जिया उल हक ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली. उन्होंने सेना प्रमुख का पद भी अपने ही पास रखा. भुट्टो को जिया की "हत्या के साजिश" के आरोप में दोषी करार देकर फांसी पर चढ़ा दिया गया. इसी साल जिया उल हक देश के इस्लामीकरण की अपनी नीति के तहत विवादित हूदूद ऑर्डिनेंस लाए, जिसमें कुरान के मुताबिक सजाएं देने का प्रावधान किया गया.
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1985
पाकिस्तान में आम चुनाव हुए, लेकिन पार्टी के आधार पर नहीं. मार्शल लॉ हटाया गया और नई नेशनल असेंबली ने बीते आठ साल के जिया के कामों पर मुहर लगाई और उन्हें राष्ट्रपति चुना गया. मोहम्मद खान जुनेजो प्रधानमंत्री बनाए गए. इससे पहले 1984 में जिया उल हक ने अपनी इस्लामीकरण की नीति पर एक जनमत संग्रह भी कराया जिसमें 95 समर्थन का दावा किया गया.
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1988
बढ़ते मतभेदों के बीच जिया उल हक ने संसद को भंग कर दिया और जुनेजो की सरकार को भी बर्खास्त कर दिया. 90 दिनों के भीतर उन्होंने देश में नए आम चुनाव कराने का वादा किया. लेकिन 17 अगस्त 1988 को वह अपने 31 अन्य साथियों के साथ एक विमान हादसे में मारे गए. 1978 से लेकर 1988 तक जिया उल हक ने पाकिस्तान पर एक छत्र राज किया.
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1990
भ्रष्टाचार के आरोपों में बेनजीर को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी. राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान ने संसद को भंग कर भुट्टो सरकार को बर्खास्त कर दिया. चुनाव हुए और जिया के दौर में सियासत का ककहरा सीखने वाले नवाज शरीफ देश के प्रधानमंत्री चुने गए. इसके साल भर बाद पाकिस्तान की संसद ने शरिया बिल को मंजूर किया और इस्लामिक कानून पाकिस्तान की न्याय प्रणाली का हिस्सा बने.
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1993
राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान ने नवाज शरीफ सरकार को भी भ्रष्टाचार और नकारेपन के आरोपों में चलता कर दिया. इसी साल खुद उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया. देश में फिर चुनाव हुए जिनमें जीत दर्ज कर बेनजीर भुट्टो दूसरी बार पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं. पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के एक सदस्य फारूक लेघारी को देश का राष्ट्रपति चुना गया.
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1996
राष्ट्रपति लेघारी ने नेशनल असेंबली को भंग कर बेनजीर सरकार को बर्खास्त कर दिया जो भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी थी. इस तरह, दस साल के भीतर देश चौथी बार आम चुनाव की दहलीज पर खड़ा था. 1997 के चुनाव में नवाज शरीफ की पीएमएल (एन) को जबरदस्त जीत मिली और वह दूसरी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने.
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1998
पाकिस्तान ने बलूचिस्तान प्रांत के चघाई की पहाड़ियों में परमाणु परीक्षण किया. इससे चंद दिन पहले भारत ने पोखरण 2 परमाणु परीक्षण किया था. परमाणु परीक्षण के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए. लेकिन इससे भारतीय उपमहाद्वीप में परमाणु हथियारों की होड़ को रोका नहीं जा सका.
तस्वीर: picture alliance / dpa
1999
कारगिल युद्ध के बाद नवाज शरीफ सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ की जगह ख्वाजा जियाउद्दीन अब्बासी को सेना प्रमुख बनाना चाहते थे. लेकिन जैसे ही इसका पता मुशर्रफ को लगा तो उन्होंने नवाज शरीफ का ही तख्तापलट कर दिया और उन्हें नजरबंद कर लिया. इस तरह पाकिस्तान की बागडोर चौथी बार एक सैन्य शासक के हाथ में आई.
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2000
सुप्रीम कोर्ट ने मुशर्रफ के तख्तापलट को उचित ठहराया और तीन साल के लिए उन्हें सारे अधिकार दे दिए. इसी साल नवाज शरीफ और उनका परिवार निर्वासन में सऊदी अरब चले गए. 2001 में मुशर्रफ पाकिस्तान के राष्ट्रपति बन गए और सेना प्रमुख का पद भी उन्होंने अपने पास ही रखा.
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2002
पाकिस्तान में फिर से आम चुनाव हुए और ज्यादातर सीटें पीएमएल (क्यू) ने जीती. इस पार्टी को मुशर्रफ ने ही बनाया था जिसमें उनके वफादारों को अहम पद मिले. जफरउल्लाह खान जमाली (फोटो में सबसे दाएं) पाकिस्तान के प्रधानमंत्री चुने गए. लेकिन वह दो साल ही पद पर रह पाए. 2004 में उनकी जगह शौकत अजीज को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाया गया.
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2007
राष्ट्रपति मुशर्रफ ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस इफ्तिखार मुहम्मद चौधरी को बर्खास्त कर दिया जिसके बाद देश भर में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए. आखिरकार चौधरी को बहाल किया गया लेकिन मुशर्रफ ने देश में इमरजेंसी लगा दी. इस बीच पाकिस्तानी संसद ने पहली बार अपना पांच साल का निर्धारित कार्यकाल पूरा कर लिया.
तस्वीर: AP
2007
आम चुनावों में हिस्सा लेने के लिए पाकिस्तान पीपल्स पार्टी की नेता बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान लौटीं. उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मुकदमे वापस लिए गए. लेकिन रावलपिंडी में एक चुनावी रैली के दौरान उनकी हत्या कर दी गई. उनकी हत्या उसी कंपनी बाग में हुई जहां पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को कत्ल किया गया था.
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2008
बेनजीर की मौत के बाद चुनावों में पीपीपी को सहानुभूति लहर का फायदा हुआ और नेशनल असेंबली की ज्यादातर सीटें उसके खाते में आईं. यूसुफ रजा गिलानी देश के प्रधानमंत्री बने जबकि बेनजीर के पति आसिफ अली जरदारी ने राष्ट्रपति का पद संभाला. आरोपों और विवादों के बीच पीपीपी की सरकार ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया.
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2013
पाकिस्तान में आम चुनाव हुए और पीएमएल (एन) सत्ता में आई. नवाज शरीफ तीसरी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. क्रिकेट से राजनेता बने इमरान की पार्टी 2013 के चुनाव में तीसरी सबसे बड़ी ताकत बन कर उभरी. 17 प्रतिशत वोटों के साथ उसने राष्ट्रीय संसद की 35 सीटें जीतीं और खैबर पख्तून ख्वाह प्रांत में उसकी सरकार बनी.
तस्वीर: AFP/Getty Images
2017
भ्रष्टाचार के आरोपों में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें किसी सार्वजनिक पद पर रहने और चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दे दिया. उन्होंने प्रधानमंत्री पद अपने विश्वासपात्र शाहिद खाकान अब्बासी को सौंपा. नवाज शरीफ अपने खिलाफ मुदकमों को राजनीति से प्रेरित बताते हैं. पाकिस्तानी सेना से टकराव के कारण भी वह चर्चा में आए.
तस्वीर: Reuters/F. Mahmood
2018
पाकिस्तान में फिर चुनाव हुए. सेना पर आरोप लगे कि वह किसी भी तरह से नवाज शरीफ और उनकी पार्टी को सत्ता से बाहर रखना चाहती थी. चुनाव मैदान में इमरान खान को सेना का समर्थन मिला. चुनाव प्रक्रिया में धांधली के आरोप भी लगे. फिलहाल इमरान पाकिस्तान के पीएम हैं. लेकिन पाकिस्तान बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहा है. कर्ज से लेकर फंड की कमी तक की चुनौतियां इमरान के सामने हैं.
तस्वीर: picture-alliance/empics/D. Farmer
2019
इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने के बाद पाकिस्तान आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. इमरान खान ने अपने चुनाव प्रचार में पाकिस्तान को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने की बात की थी. इमरान खान की तमाम कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान अभी आर्थिक संकट से निकल नहीं पाया है. भारत के साथ चल रहे तनाव से पाकिस्तान को भी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है.