अमेरिकी अखबारों और टीवी चैनलों पर इन दिनों चल रही चुनावी गहमागहमी देखकर बड़ी आसानी से ये गलतफहमी हो सकती है कि अमेरिका में मिडटर्म या मध्यावधि चुनाव नहीं बल्कि राष्ट्रपति चुनाव हो रहे हैं.
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एक तरफ डॉनल्ड ट्रंप देश के एक कोने से दूसरे कोने का चक्कर लगा रहे हैं, लाल टोपियां लगाए गोरे चेहरों का हुजूम उनकी रैलियों में दो साल पहले की तरह ही अमेरिका को फिर से महान बनाने के नारे बुलंद कर रहा है, तो दूसरी तरफ बराक ओबामा अपने चिर-परिचित अंदाज में उस अमेरिका को जगाने की कोशिश कर रहे हैं जिसने आठ साल पहले एक अश्वेत राष्ट्रपति को चुनकर इतिहास रचा था.
चुनाव में दांव पर हैं कांग्रेस के निचले सदन या प्रतिनिधि सभा की सभी 435 सीटें, सीनेट की लगभग एक तिहाई यानी 35 सीटें और 50 राज्यों में से 36 के गवर्नरों की सीटें. फिलहाल कांग्रेस के दोनों सदनों में रिपब्लिकन पार्टी बहुमत में है लेकिन चुनावी सर्वेक्षणों की मानें तो प्रतिनिधि सभा डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ जाती नजर आ रही है. वहीं सीनेट में राष्ट्रपति ट्रंप की पार्टी अपनी बढ़त बनाए रखेगी इसके पूरे आसार हैं.
भारत, यूरोप या दुनिया के किसी और कोने में बैठे लोगों को ये सब अमेरिकी घरेलू राजनीति के एक चटपटे मसालेदार एपिसोड की तरह लग सकता है लेकिन सही मायने में देखें तो यह चुनाव अमेरिका के साथ-साथ पूरी दुनिया के लिए बेहद अहमियत रखते हैं. और उसकी सबसे बड़ी वजह है एक शख्स - डॉनल्ड ट्रंप.
चुनावी टिकट पर भले ही ट्रंप ना हों लेकिन इस बार का हर वोट एक तरह का रेफरेंडम है उनकी नीतियों और उनकी पिछले दो सालों की राजनीति पर. और राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इसके नतीजे न सिर्फ आने वाले दिनों में, बल्कि दशकों तक अमेरिका और पूरी दुनिया की दिशा तय करेंगे. जिन पहलुओं पर इसका सीधा असर नजर आ सकता है, उनमें सबसे अव्वल है राजनीतिक तेवर.
ट्रंप ने अपने होटलों, कसीनों, टोपियों और टाईयों की तरह अपनी राजनीति को भी अलग ब्रांड की तरह पेश किया है जिसका मूलमंत्र है, हर हाल में जीत. इसकी खासियत है पूरे देश को साथ लाने की कोशिश के बजाए सिर्फ अपने कट्टर समर्थकों को जोश में भरना और एकजुट रखना यानी घोर ध्रुवीकरण. इसके लिए विपक्ष के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करना पड़े, दसियों झूठ बोलने पड़ें, मीडिया की विश्वसनीयता खत्म करनी पड़े या फिर एक अंजान दुश्मन का डर पैदा करना पड़े, ट्रंप राजनीति में सबकुछ जायज है.
अगर इस चुनाव में रिपब्लिकंस की जीत होती है, तो यह सीधे तौर पर ट्रंप राजनीति की जीत होगी. इसके पूरे आसार हैं कि पूरी दुनिया में ये दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी राजनीति का एक कामयाब मॉडल बनकर उभरेगा और उसके मैस्कट होंगे डॉनल्ड ट्रंप.
इसका दूसरा सीधा असर दुनिया भर में आप्रवासन और शरणार्थी नीतियों पर दिख सकता है. ट्रंप ने अपने दो सालों में आप्रवासन नीतियों को लगातार सुर्खियों में रखा है, कभी बंद हो चुकी स्टील मिलों की वजह बताकर, कभी कुछ देशों से आने वाले मुसलमानों पर रोक लगाकर, तो कभी अमेरिका की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के लिए खतरा बता कर.
देखिए कुछ तस्वीरें जिनमें आपको ट्रंप ही ट्रंप दिखेंगे
उफ्फ.. यहां भी ट्रंप
दुनिया भर में अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप चर्चा में रहते हैं. कहीं उनके बयान चर्चा का विषय हैं, कहीं उनका स्टाइल. देखिए कुछ तस्वीरें जिनमें आपको ट्रंप ही ट्रंप दिखेंगे.
तस्वीर: H. Schäfer
ट्रंप की याद आई ना?
इस परिंदे का राजनीति से तो कोई नाता नहीं. लेकिन जब से डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए हैं, चीन में पाए जाने वाले गोल्डन फीजेंट नाम के इस परिंदे की लोकप्रियता बढ़ गई है.
तस्वीर: Reuters
"सबसे अच्छी वोदका"
जब से डॉनल्ड ट्रंप चुनावी मैदान में उतरे, इस्राएल में ट्रंप वोदका की लोकप्रियता बढ़ गई. बेशक इसका लाइसेंस ट्रंप के पास ही है. इसकी शुरुआत 2006 में हुई. लेकिन 2011 में अमेरिका में इसे बंद कर दिया. अब सिर्फ यह इस्राएल में मिलती है. इसे दुनिया की सबसे अच्छी वोदका कह कर बेचा जाता है.
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मुखौटों की मांग
जापान में ट्रंप के मुखौटे खूब बिक रहे हैं. ओगावा स्टूडियो जापान में रबड़ के मुखौटे बनाने वाली अकेली कंपनी है. उसके 23 कर्मचारी हर दिन ऐसे 350 मुखौटे बना रहे हैं.
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हूबहू ट्रंप
दुनिया की अकेली सुपरपावर कहे जाने वाले अमेरिका की बागडोर अगले चार साल तक इसी शख्स के हाथ में रहेगी. ऐसे में, लगता है कि ओगावा स्टूडियो का धंधा खूब चमकेगा.
अपने बयानों के अलावा ट्रंप अपने हेयरस्टाइल को लेकर भी चर्चा में रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति के आधिकारिक विमान एयरफोर्स वन को हेयरफोर्स वन बताते हुए इस कार्टून में चुटकी ली गई है.
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खबरदार
ये कार्टून बताता है कि ट्रंप का हर ट्वीट धमाका करने की ताकत रखता है. नजर इस बात पर है कि क्या वो राष्ट्रपति पद संभालने के बाद भी इसी तरह बिंदास होकर बयान देंगे?
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ट्रंप के दीवाने
अमेरिका के कामकाजी तबके के एक बड़े हिस्से का उन्हें समर्थन मिला.
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नई सुबह?
अमेरिकी सियासत में ट्रंप का उदय किसी चमत्कार से कम नहीं है. चुनाव प्रचार के आखिर तक उन्होंने खारिज करने वालों की कमी नहीं थी. लेकिन सितारों ने उनका साथ दिया.
"मेक अमेरिका ग्रेट अगेन"
इस नारे के साथ ट्रंप ने अमेरिका के बड़े समुदाय का समर्थन हासिल करने में कामयाबी पाई.
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जमकर उड़ा मजाक
चुनाव प्रचार के दौरान जितना मजाक ट्रंप का उड़ा, शायद हाल के समय में किसी अमेरिकी उम्मीदवार का नहीं उड़ा होगा. वैसे ये ट्रंप नहीं, बल्कि उनका भेस बनाए हुए अमेरिकी कमेडियन जॉन डोल हैं.
तस्वीर: H. Schäfer
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जैसे-जैसे चुनाव करीब आए हैं, इस मामले पर उन्होंने अपने तेवर और कड़े किए हैं. सेंट्रल अमेरिका से अमेरिका में शरण मांगने आ रहे लोगों की भीड़ को उन्होंने अमेरिका पर आक्रमण का नाम दिया है. दक्षिणी सीमा पर 15,000 सैनिक तैनात करने का एलान किया है. आप्रवासियों को बलात्कारी और हत्यारा करार दिया है. और उनके समर्थकों के लिए यह आप्रवासन अब सबसे अहम मुद्दा बन चुका है. भारत, जर्मनी, ब्रिटेन, ब्राजील समेत दुनिया के कई हिस्सों में आप्रवासन एक गर्म राजनीतिक बहस का हिस्सा है और ट्रंप की आप्रवासन नीति यदि एक कामयाब चुनाव की चाबी बनती है, तो फिर उस चाबी के डुप्लीकेट पूरी दुनिया में बनेंगे.
विश्व व्यापार नीति, विदेश नीति, जलवायु परिवर्तन, धार्मिक सहिष्णुता, इन सब मुद्दों पर ट्रंप का एक अलग ही रुख रहा है और इस चुनाव की जीत-हार इन सब की भी दिशा तय करेगी. ओबामा ने कहा है कि इस चुनाव में किसी और चीज से ज्यादा अमेरिका का चरित्र दांव पर है.
जब 2016 में ट्रंप की जीत हुई तो बहुतों ने कहा कि लोग बदलाव चाहते थे, इसलिए उन्हें वोट दिया. कुछ ने कहा ट्रंप की नफरत फैलाने वाली, नस्लवाद को बढ़ावा देने वाली, लोगों को बांटने वाली, डर फैलाने वाली बातें बस चुनावी बातें हैं और वे ऐसा कुछ नहीं करने वाले जो वे कह रहे हैं.
दो साल बाद, छह नवंबर को होने वाले चुनावों में दुनिया की नजर इस बात पर भी होगी कि अब जब अमेरिका ट्रंप की चुनावी बातों को हकीकत में तब्दील होते देख रहा है, तब भी वह उन्हें अपनाएगा या फिर उन्हें नकार देगा.
ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध पांच वजहों से हो सकता है नाकाम
ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध पांच वजहों से हो सकता है नाकाम
ईरान पर आर्थिक प्रतिबंधों का निशाना मुख्य रूप से तेल और गैस कंपनियां हैं. ईरान से परमाणु मुद्दे पर बातचीत में प्रवक्ता रहे सैयद हुसैन मुसावियन मानते हैं कि कम से कम 5 ऐसी वजहें हैं जो प्रतिबंधों को नाकाम कर सकती हैं.
भारी मात्रा में तेल का निर्यात
"अमेरिका ईरान से तेल निर्यात को शून्य करना चाहता है, यह अव्यवहारिक है क्योंकि हर दिन ईरान से होने वाले 25 लाख बैरल तेल के निर्यात की कहीं और से भरपाई मुमकिन नहीं है. सऊदी अरब ने इस कमी को पूरा करने की बात कही है लेकिन विशेषज्ञ मान रहे हैं कि सऊदी अरब और उसके सहयोगियों के पास इतनी क्षमता नहीं है. ईरान के तेल निर्यात में कमी के कारण इनकी कीमतें बढ़ेंगी और ईरान इस तरह से अपना नुकसान पूरा कर लेगा."
तस्वीर: Getty Images/B. Mehri
चीन के साथ कारोबारी जंग
"चीन के साथ ट्रंप की कारोबारी जंग और रूस पर अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों के कारण ये देश ईरान के मसले पर अमेरिका का साथ नहीं देंगे. यूरोपीय संघ को भी अमेरिका इस मामले में बड़ा सहयोगी नहीं मान सकेगा क्योकि संघ ईरान के साथ हुए परमाणु डील को अपनी विदेश नीति की उपलब्धि मानता है. साथ ही यूरोपीय संघ में इस तरह के प्रतिबंधों को खुद की पहचान और स्वतंत्रता के लिए खतरा मानने की धारणा मजबूत हो रही है."
तस्वीर: Colourbox
डॉलर का विकल्प
"अमेरिकी प्रतिबंधों ने वैश्विक आर्थिक तंत्र में ऐतिहासिक बदलाव की जमीन तैयार कर दी है. कई दशकों से अमेरिकी डॉलर अंतरराष्ट्रीय बाजार पर हावी रहा है. अमेरिका के ईरान के साथ परमाणु डील से बाहर आने के कारण रूस, चीन, भारत और तुर्की जैसे देशों को ईरान के साथ अपनी मुद्रा में व्यापार करने को बढ़ावा मिला है. अगर यूरोपीय संघ ने भी यूरो में कारोबार शुरू कर दिया तो दूसरे देश भी यूरो को अपना लेंगे."
तस्वीर: Imago/PPE
अमेरिका का एकतरफा रुख
"परमाणु डील पर अमेरिका के अलावा जिन 5 देशों ने दस्तखत किए वे उसे अमेरिका के एकपक्षीय रुख को चुनौती देने का एक जरिया भी मानते हैं. 6 देशों के साथ संयुक्त राष्ट्र समर्थित एक करार को अमेरिका ने एकतरफा कार्रवाई कर तोड़ दिया. अब वह इसे लागू करने वाले देशों को सजा देने की कोशिश में है. अमेरिका की हर कार्रवाई इस धारणा को मजबूत करेगी और उसका विरोध करने के लिए इस करार को बचाने की हर कोशिश होगी."
तस्वीर: Imago/Ralph Peters
क्षेत्रीय राजनीति और जमीनी सच्चाई
"जापान और यूरोपीय संघ डील के पक्ष में हैं. सऊदी अरब, इस्राएल, संयुक्त अरब अमीरात भले ही ट्रंप के फैसले के साथ हैं लेकिन कई देश और इलाके की जमीनी सच्चाई इसके खिलाफ है. तुर्की, ओमान और इराक जैसे देश करार चाहते हैं. सीरीया में रूसी सहयोग से असद गृहयुद्ध जीत गए हैं, अफगानिस्तान में अमेरिका नाकाम है और सऊदी अरब हूथी विद्रोहियों को नहीं हरा पाया है. यह सब ईरान की प्रतिबंधों से लड़ाई आसान कर देगा."