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कितने सुरक्षित पाकिस्तान के परमाणु बम

८ अक्टूबर २०१३

पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की सुरक्षा पर अक्सर सवाल उठते रहते हैं. पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने दुनिया को आश्वस्त किया है कि देश के परमाणु हथियार सुरक्षित हैं. हालांकि कुछ सुरक्षा विशेषज्ञ संतुष्ट नहीं हैं.

तस्वीर: FAROOQ NAEEM/AFP/Getty Images

यह पहली बार नहीं है कि पाकिस्तानी नेता ने दुनिया को बताया हो कि देश के परमाणु हथियार सुरक्षित हाथों में हैं. लगातार भरोसा देने के बावजूद पिछले काफी समय से पश्चिमी देश पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की सुरक्षा पर चिंता जताते रहे हैं. 1998 में अपना इकलौता परमाणु परीक्षण करने वाला पाकिस्तान इस्लामी चरमपंथ से जूझ रहा है जिससे देश के पूरी तरह से ठप्प हो जाने का खतरा है. पिछले दशक में इस्लामी चरमपंथियों ने ना सिर्फ नागरिकों को बल्कि सैन्य ठिकानों और छावनियों को भी निशाना बनाया है. कुछ अंतरराष्ट्रीय जानकारों का कहना है कि तालिबान और अल कायदा की नजर पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर है.

पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने देश के नेशनल कमांड सेंटर का दौरा किया जो पाकिस्तान के परमाणु केंद्रों की जिम्मेदारी संभालती है. प्रधानमंत्री के साथ सेना के अधिकारी भी थे. जानकारों का कहना है कि जब सुरक्षा का मामला हो तो पाकिस्तान में आखिरी फैसला सेना ही करती है. दौरे के बाद प्रधानमंत्री ने कहा कि पाकिस्तान, "इलाके में शांति चाहता है और वह हथियारों की दौड़ में शामिल नहीं होगा." इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि देश के परमाणु हथियार "पूरी तरह सुरक्षित" हैं.

तस्वीर: Reuters

इस्लामाबाद में रहने वाली रक्षा मामलों की विशेषज्ञ मारिया सुल्तान पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से सहमत हैं और कहती हैं कि पाकिस्तान के परमाणु नियंत्रण प्राधिकरण की देश के परमाणु हथियारों पर अच्छी पकड़ है. मारिया सुल्तान ने डीडब्ल्यू से कहा, "पाकिस्तान के पास यह क्षमता है कि वह अपने परमाणु हथियारों की निगरानी कर सके, और इसके लिए जो तकनीक इस्तेमाल की जा रही है वह काफी उन्नत है." उन्होंने जोर दे कर कहा कि पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर पश्चिम की चिंता "अकारण" है.

'सेना का तालिबानीकरण'

हालांकि पाकिस्तान के नागरिक और सैन्य संस्थान परमाणु हथियारों के कठोर सरकारी नियंत्रण में रहने का दावा करते हैं लेकिन रक्षा जानकारों को डर है कि इस्लामी चरमपंथियों के इस्लामाबाद पर कब्जे की सूरत में यह हथियार आतंकवादियों के हाथ में जा सकते हैं. लंदन में रहने वाले पाकिस्तानी पत्रकार और रिसर्चर फारुक सुल्हेरिया ने डीडब्ल्यू से कहा, "पाकिस्तानी सेना का तालिबानीकरण एक ऐसी चीज है जिसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते. क्या होगा अगर तालिबान ने परमाणु हथियारों पर कब्जा कर लिया?"

तस्वीर: picture-alliance/dpa

सुल्हेरिया की चिंता संभवतया उचित भी है. तालिबान चरपंथियों ने बार बार यह साबित किया है कि वो ना सिर्फ नागरिकों बल्कि सैन्य ठिकानों को भी निशाना बनाने में सक्षम हैं. अगस्त 2012 में बंदूक और रॉकेट लॉन्चरों से लैस चरमपंथियों ने पंजाब प्रांत के वायु सेना अड्डे कामरा पर हमला बोल दिया. कामरा वायु सेना की बड़ी छावनियों में है और यहां से लड़ाकू और निगरानी विमानों के कई स्क्वैड्रन संचालित होते हैं. हालांकि वायु सेना के अधिकारियों के मुताबिक हमले में इसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा. पाकिस्तान के उत्तर पश्चिमी स्वात घाटी में तालिबान का गहरा प्रभाव है. रक्षा जानकारों के मुताबिक कई परमाणु केंद्र हैं जो इस इलाके से ज्यादा दूर नहीं. हालांकि इसके बावजूद राजनीतिक और रक्षा विश्लेषक जाहिद हुसैन ने डीडब्ल्यू से कहा, पश्चिमी देश, "बेकार में चिंतित हैं." हुसैन का कहना है, "पाकिस्तान ने अपना परमाणु परीक्षण 15 साल पहले किया था और तब से अब तक कुछ नहीं हुआ. पाकिस्तान ने परमाणु हथियारों की सुरक्षा सुनिश्चित की है."

तस्वीर: Reuters

साफ सुथरा नहीं इतिहास

हालांकि पाकिस्तान के परमाणु सुरक्षा का इतिहास उतना साफ सुथरा नहीं जितना कि हुसैन दावा करते हैं. 2005 में पाकिस्तान के परमाणु बम के "जनक" डॉ ए क्यू खान ने परमाणु तकनीक उत्तर कोरिया और ईरान को बेचने की बात कबूल की. 2001 में खान को पाकिस्तान के पूर्व सैनिक शासक और राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने देश के परमाणु कार्यक्रम के पद से हटा दिया. खान को 2004 में गिरफ्तार करने के बाद पांच साल तक नजरबंद रखा गया. 2009 में कोर्ट के आदेश पर उन्हें थोड़ी आजादी मिली.

पाकिस्तान के सैन्य और नागरिक नेतृत्व पर खान के साथ नरमी बरतने का आरोप लगते हैं लेकिन वो यह कह कर अपना बचाव करते हैं कि खान ने जो कुछ किया वह "व्यक्तिगत तौर" पर किया उसमें सरकार का कोई हाथ नहीं था. हालांकि पाकिस्तान और पश्चिमी देशों में ऐसा मानने वाले लोगों की कमी नहीं जिनके मुताबिक खान ने सरकार की मदद से ही सब कुछ किया.

खान इस्लामियों और पाकिस्तान की जनता के बीच बराबर रूप से लोकप्रिय हैं. ये वो लोग हैं जो परमाणु हथियारों को देश की सुरक्षा के लिये "जरूरी" मानते हैं. पाकिस्तान की राजनीतिक और धार्मिक पार्टियां भारत और पश्चिमी देशों के खिलाफ परमाणु हथियारों को नारे की तरह इस्तेमाल करती हैं. कराची यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले अब्दुल बासित कहते हैं, "परमाणु बम हमारा रक्षक है. यह हमारी संप्रभुता की गारंटी है. जब तक हमारे पास बम है कोई भी पाकिस्तान को नुकसान नहीं पहुंचा सकता और यही कारण है कि अमेरिका, भारत और पश्चिमी देश इसके खिलाफ साजिश कर रहे हैं."

लंदन में रहने वाले जमात ए इस्लामी के कार्यकर्ता असीमुद्दीन की भी राय कुछ ऐसी ही है. वह कहते हैं कि पाकिस्तान को परमाणु हथियारों की जरूरत इसलिए है क्योंकि उसका पड़ोसी भारत परमाणु शक्ति से लैस है और उसके साथ तीन लड़ाइयां भी हो चुकी हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "जंग रोकने के लिए पाकिस्तान को परमाणु हथियार चाहिए."

दूसरी तरफ सुल्हेरिया की राय में दुनिया को पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर ज्यादा चौकस रहने की जरूरत है. उनके मुताबिक परमाणु हथियारों को लेकर पाकिस्तान की सनक बाहरी खतरों से ज्यादा घरेलू राजनीति से जुड़ी है. उन्होंने कहा, "राजनेता परमाणु नारे का इस्तेमाल लोगों को शांत करने के लिए करते हैं. 1980 से ही जिहाद सरकार के सिद्धांत में शामिल है और जिहाद के लिए देश को 'आखिरी हथियार' यानी परमाणु बम की जरूरत है." सुल्हेरिया जैसे जानकार मानते हैं कि लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था, लगातार बढ़ता इस्लामी खतरा और परमाणु हथियारों का प्रेम सब मिला कर परमाणु संकट की दावत का सामान तैयार है. उनका यह भी कहना है कि सरकार और प्रधानमंत्री को परमाणु सुरक्षा के बारे में बयान जारी करने के अलावा और भी बहुत कुछ करने की जरूरत है.

रिपोर्टः शामिल शम्स/एनआर

संपादनः महेश झा

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