जर्मनी में एक प्रोफेसर को समय से लाइब्रेरी की किताबें ना लौटाने पर 2250 यूरो यानी करीब दो लाख रुपये का जुर्माना लगा है. प्रोफेसर मामले को अदालत तक ले गईं लेकिन जज ने भी कोई राहत नहीं दी.
विज्ञापन
एक अच्छे पुस्तकालय के बिना कॉलेज और यूनिवर्सिटी की पढ़ाई की कल्पना करना ही मुश्किल है. यहीं पर ऐसी दुर्लभ किताबें मिलती हैं जिन तक आम तौर पर छात्रों और शिक्षकों का पहुंचना मुश्किल होता है. भारत में स्टूडेंट अकसर किताब को लाइब्रेरी से ले कर उसकी कॉपी करा लेते हैं और फिर किताब लौटा देते हैं. लेकिन जर्मनी में ऐसा करना मुमकिन नहीं है. कॉपीराइट कानून के तहत कई तरह के नियम हैं. मिसाल के तौर पर आप किसी किताब के 20 पन्नों से ज्यादा की फोटोकॉपी नहीं कर सकते. अगर आपके पास इस ज्यादा फोटोकॉपी किए हुए पन्ने मिले, तो आप पर जुर्माना लग सकता है. लेकिन अगर किताब कुछ सालों से प्रकाशित ही ना हो रही हो, तो ऐसे में उसकी कॉपी बनाने की इजाजत है.
ऐसे में लोग अकसर लाइब्रेरी से किताब ले कर लंबे समय तक उसे लौटाते ही नहीं हैं, खास कर शिक्षक. जर्मनी के क्रेफेल्ड शहर की एक साइकॉलोजी की प्रोफेसर ने भी ऐसा ही किया. प्रोफेसर जीना केजटेले ने 2015 के समर सेमेस्टर में यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी से 50 किताबें लीं थीं. नियम के अनुसार जुलाई तक इन किताबों को लौटाना था. लेकिन प्रोफेसर सितंबर में लाइब्रेरी पहुंचीं. इस पर उन्हें 2250 यूरो का बिल थमा दिया गया. लाइब्रेरी के नियम के अनुसार देर से किताब लौटाने पर प्रति दिन हर किताब पर दो यूरो का जुर्माना लगता है. बाद में इसे बढ़ा कर पांच यूरो कर दिया जाता है और 30 दिन तक भी किताब ना लौटाने की स्थिति में प्रतिदिन 20 यूरो का जुर्माना गिना जाता है. इस तरह से अधिकतर जुर्माना 25 यूरो प्रति दिन का होता है.
प्रोफेसर ने इतना बड़ा जुर्माना देने से इनकार किया और मामले को अदालत में ले गईं. उन्होंने कहा कि शिक्षकों के प्रति लाइब्रेरी का यह रवैया सही नहीं है और इतना बड़ा जुर्माना बेतुका है. प्रोफेसर के वकील ने यह दलील भी दी कि वे शहर से बाहर थीं और ऐसे में उन्हें लाइब्रेरी के नोटिस मिले ही नहीं. लेकिन जज पर इन बातों का कोई असर नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि इस तरह का जुर्माना बेहद जरूरी है ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि किताबें समय रहते लौट आएं और बाकी के लोग भी उनका इस्तेमाल कर सकें.
आईबी/एके (डीपीए, एएफपी)
जर्मन बच्चे कितने पढ़ाकू, कितने बिंदास
जर्मन बच्चे कितने पढ़ाकू, कितने बिंदास
जर्मनी में एक साल के भीतर कितने बच्चे होते हैं, या बच्चों को कितनी पॉकेट मनी मिलती है, या फिर उन्हें क्या पसंद है, क्या नहीं? चलिए जानते हैं इन्हीं सब सवालों के जवाब.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/N. Försterling
पॉकेट मनी
जर्मनी में छह से नौ साल के बच्चों को साल में औसतन 380 यूरो यानी लगभग तीस हजार रुपये पॉकेट मनी के तौर पर मिलते हैं. इनमें लड़कियों (394 यूरो) को लड़कों (366 यूरो) से थोड़े से ज्यादा पैसे मिलते हैं. ये पैसे बच्चे आम तौर पर खाने पीने पर खर्च करते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
पढ़ाकू बच्चे
जर्मनी में लोगों को किताबें पढ़ने का बहुत शौक है. बच्चे भी इस मामले में पीछे नहीं हैं. छह से 11 साल के 54 फीसदी जर्मन बच्चों को आप किताबी कीड़ा कह सकते हैं. यानी ये बच्चे रोजाना एक किताब पढ़ लेते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
स्टाइल
चार से 13 साल की उम्र के बीच वाले 58 फीसदी बच्चे खुद तय कर सकते हैं कि उन्हें क्या पहनना है और क्या नहीं. दिलचस्प बात यह है कि भारत समेत कई अन्य देशों की तरह जर्मनी में बच्चों को यूनिफॉर्म पहन कर स्कूल नहीं जाना होता. मतलब है जो पसंद आए, वह पहनो.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M. Shipenkov
रिकॉर्ड बच्चे
जर्मनी में 2016 के दौरान 7,92,000 बच्चे पैदा हुए. 1973 के बाद यह पहला मौका है जब जर्मनी में प्रति मां 1.5 बच्चे पैदा हुए हैं. आठ करोड़ से ज्यादा की आबादी के साथ जर्मनी यूरोप में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश है.
तस्वीर: imago/imagebroker
विदेशी बच्चे
जर्मनी में 2015 के दौरान जन्म लेने वाले हर पांच बच्चों में से एक ऐसा था जिसकी मां के पास किसी अन्य देश की नागरिकता है. इस संख्या में 20 फीसदी की बढ़ोत्तरी की वजह जर्मनी में शरणार्थियों और पूर्व यूरोप से प्रवासियों का आगमन है.
तस्वीर: Fotolia
राष्ट्रपति के बच्चे
1949 से जर्मनी में 80285 बच्चे ऐसे रहे जिनके मानद अभिभावक जर्मन राष्ट्रपति हैं. जिन माता पिता को सातवां बच्चा होता है, उनके इस बच्चे का अभिभावक जर्मन राष्ट्रपति होता है. इसके तहत एक प्रमाणपत्र और हर महीने 500 यूरो (लगभग चालीस हजार रुपये) मिलते हैं.
तस्वीर: picture alliance/AA
दूध के दांत
जर्मनी में छह साल की उम्र में बच्चों के दूध के दांत गिरने के बाद नए दांत आते हैं. बच्चों को छोटी उम्र से ही दांतों को साफ करना सिखा दिया जाता है, ताकि उनके दांत चमकते रहें और बीमारियों से बचे रहें.
तस्वीर: picture-alliance/chromorange
डॉक्टर के पास
वर्ष 2014 में जर्मनी में हादसों या फिर अन्य वजह से चोटिल होने के कारण 17 लाख बच्चों को डॉक्टर के पास जाना पड़ा. इनमें से लगभग दो लाख बच्चे ऐसे थे जिन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.