अमेरिका से बातचीत व दक्षिण कोरिया के साथ जारी शांति प्रक्रिया के बीच उत्तर कोरिया ने एक नया हथियार सिस्टम टेस्ट किया है. उत्तर कोरिया ने इसे "टैक्टिकल गाइडेड वेपन" बताया है.
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उत्तर कोरिया की समाचार एजेंसी केसीएनए ने खुद नए हथियार के विकास और उसके परीक्षण की जानकारी दी है. रिपोर्टों के मुताबिक गुरुवार को परीक्षण के दौरान उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन मौके पर मौजूद थे. सब कुछ उन्हीं की निगरानी में हो रहा था. टेस्ट के बाद किम ने कहा कि इस प्रोजेक्ट का सफल विकास "उत्तर कोरिया की युद्धक क्षमता के लिए बेहद अहम लम्हा" है.
केएनसीए के मुताबिक टेस्ट फायर की कमांड खुद किम ने दी. परीक्षण के दौरान कई निशानों पर अलग अलग ढंग से फायरिंग की गई. गुरुवार को किम ने एयर और एंटी-एयरक्रॉफ्ट फोर्स के बेस का भी दौरा किया. रिपोर्टों के मुताबिक युद्ध अभ्यास जैसी स्थितियों में किम ने सेना की तैयारी पर संतोष जताया.
अमेरिका और उत्तर कोरिया के शीर्ष अधिकारियों के बीच हनोई में हुई वार्ता की नाकामी के बाद प्योंगयांग ने पहली बार सार्वजनिक रूप से हथियारों को प्रदर्शन किया है. फरवरी 2019 में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉ़नल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के शासक किम वियतनाम की राजधानी हनोई में वार्ता के लिए मिले. लेकिन बातचीत नाकाम रही.
कोरिया को बांटने वाली जंग
25 जून 1950 को कोरियाई युद्ध शुरू हुआ. इसमें सोवियत रूस समर्थित उत्तर कोरिया की तरफ से 75000 सैनिक पश्चिम समर्थित दक्षिण कोरिया से भिड़ने चले. जुलाई आते आते अमेरिकी सेना भी दक्षिण कोरिया की ओर से आ गई.
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अंतरराष्ट्रीय साम्यवाद के खिलाफ
अमेरिकी अधिकारियों के लिए यह अंतरराष्ट्रीय साम्यवाद के खिलाफ जंग थी. उनके पास इस युद्ध का विकल्प एक ही था रूस और चीन के साथ जंग या फिर कुछ लोग जिसकी चेतावनी देते है यानी तीसरा विश्वयुद्ध. अमेरिका इससे बचना चाहता था.
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50 लाख लोगों की मौत
1953 के जुलाई के अंत में जंग खत्म हुई तो सब मिला कर 50 लाख लोगों की जान जा चुकी थी. इसमें आधे से ज्यादा आम लोग थे. 40 हजार से ज्यादा अमेरिकी सैनिक कोरिया में मारे गए और 1 लाख से ज्यादा घायल हुए.
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जापानी साम्राज्य का हिस्सा
बीसवीं सदी की शुरुआत से ही कोरिया जापानी साम्राज्य का हिस्सा था. दूसरा विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद अमेरिका और रूस को यह तय करना था कि दुश्मनों के साम्राज्य का क्या किया जाए. 1945 में अमेरिका के दो अधिकारियों ने इसे 38 वें समानांतर के साथ दो हिस्से में बांटने का फैसला किया.
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38 वां समानांतर
यह वो अक्षांश रेखा है जो पृथ्वी की भूमध्य रेखा से उत्तर में 38 डिग्री पर स्थित है. यह यूरोप, भूमध्यसागर, एशिया, प्रशांत महासागर, उत्तर अमेरिका, और अटलांटिक सागर से होकर गुजरती है. कोरियाई प्रायद्वीप में इसके एक तरफ उत्तर तो दूसरी तरफ दक्षिण कोरिया है.
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रूस और अमेरिका
दशक का अंत होते होते दो राष्ट्र अस्तित्व में आ गए. दक्षिण में साम्यवाद विरोधी नेता सिंगमान री को अमेरिका का थोड़े ना नुकुर के साथ समर्थन मिला तो उत्तर में साम्यवादी नेता किम इल सुंग को रूस का वरदहस्त. दोनों में से कोई अपनी सीमा में खुश नहीं था और सीमा पर छिटपुट संघर्ष लगातार हो रहे थे. जंग शुरू होने के पहले ही दोनों ओर के 10 हजार से ज्यादा सैनिक मारे जा चुके थे.
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कोरिया की जंग और शीत युद्ध
इतना होने पर भी अमेरिकी अधिकारी उत्तर कोरिया के हमले से हतप्रभ थे. उन्हें इस बात की चिंता थी कि यह दो तानाशाहों के बीच सीमा युद्ध ना होकर दुनिया को अपने कब्जे में करने की साम्यावादी मुहिम का पहला कदम है. यही वजह थी कि तब फैसला करने वालों ने हस्तक्षेप नहीं करने जैसे कदमों के बारे में सोचना गवारा नहीं किया. उत्तर कोरिया सोल की तरफ बढ़ा और अमेरिकी सेना साम्यवाद के खिलाफ तैयार होने लगी.
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साम्यवादियों की शुरुआती बढ़त
पहले यह जंग सुरक्षात्मक थी और मित्र देशों पर भारी पड़ी. उत्तर कोरिया की सेना अनुशासित, प्रशिक्षित, और उन्नत हथियारों से लैस थी जबकि री की सेना भयभीत, परेशान और हल्के से उकसावे पर मैदान छोड़ने के लिए तैयार थी. यह कोरियाई प्रायद्वीप के लिए सबसे सूखे और गर्म दिन थे. अमेरिकी सैनिक भी बेहाल थे.
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नई रणनीति
गर्मी खत्म होते होते अमेरिकी सेना के जनरलों ने युद्ध को नई दिशा दी. अब उनके लिए कोरियाई युद्ध का मतलब हमलावर जंग हो गई जिसमें उन्हें उत्तर कोरिया को साम्यवादियों से आजाद कराने का लक्ष्य रखा. शुरुआत में बदली नीति सफल रही और उत्तर कोरियाई सैनिकों को सोल से खदेड़कर 38 वें समानांतर के पार पहुंचा दिया गया.
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चीन का डर और दखल
जैसे ही अमेरिकी सेना सीमा पार कर उत्तर में यालू नदी की ओर बढ़ी चीन को अपनी सुरक्षा का डर सताने लगा और उसने इसे चीन के खिलाफ जंग कह दिया. चीनी नेता माओत्से तुंग ने अपनी सेना उत्तर कोरिया में भेजी और अमेरिका को यालू की सीमा से दूर रहने को कहा.
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चीन से लड़ाई नहीं
अमेरिका राष्ट्रपति ट्रूमैन चीन से सीधा युद्ध नहीं चाहते थे क्योंकि इसका मतलब होता एक और बड़ा युद्ध. अप्रैल 1951 में अमेरिकी सेना के कमांडर को बर्खास्त किया गया और जुलाई 1951 में राष्ट्रपति और नए सैन्य कमांडर ने शांति वार्ता शुरू की. 38 समानांतर पर लड़ाई भी साथ साथ चल रही थी. दोनों पक्ष युद्ध रोकने को तैयार थे लेकिन युद्धबंदियों पर समझौता नहीं हो पा रहा था.
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युद्ध खत्म हुआ
आखिरकार दो साल की बातचीत के बाद 27 जुलाई 1953 को संधि पर दोनों पक्षों के दस्तखत हुए. इसमें युद्धबंदियों को जहां उनकी इच्छा हो रहने की आजादी मिली, नई सीमा रेखा खींची गई जो 38 पैरलल के करीब ही थी और इसमें दक्षिण कोरिया को 1500 वर्गमील का इलाका और मिल गया. इसके साथ ही 2 मील की चौड़ाई वाला एक असैन्य क्षेत्र भी बनाया गया. यह स्थिति आज भी कायम है.
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ऐसा माना जाता है कि किम इस नए "रणनीतिक हथियार" का परीक्षण नवंबर 2018 में की करना चाह रहे थे. लेकिन अमेरिका के साथ बातचीत की संभावना के चलते तब परीक्षण टाल दिया गया. उत्तर कोरिया इस नए हथियार को "स्टील की दीवार" जैसा बता रहा है. प्योंगयांग के मुताबिक नया हथियार मिसाइल से अलग है.
टैक्टिकल या रणनीतिक हथियार ऐसे हथियारों को कहा जाता है जो युद्ध टालने या लड़ाई के दौरान दुश्मन को घुटने टेकने पर मजबूर करने के लिए इस्तेमाल किए जा सकें. परमाणु हथियार टैक्टिकल वैपन की श्रेणी में आते हैं. इन हथियारों से लैस देश आम तौर पर तनाव की स्थिति में भी एक दूसरे के साथ सैन्य टकराव टालने की कोशिश करते हैं.
उत्तर कोरिया के मामले में ये ऐसे हथियार हो सकते हैं जो संभावित रूप से अमेरिकी सीमा तक परमाणु हथियार ढोने में सक्षम हों. अमेरिकी राष्ट्रपति कार्यालय के मुताबिक वह उत्तर कोरिया के टेस्ट से जुड़ी रिपोर्टों से वाकिफ है. इससे ज्यादा प्रतिक्रिया नहीं दी गई.
कई परमाणु और मिसाइल परीक्षण करने के बाद किम जोंग उन ने अप्रैल 2018 में कहा कि उनका देश न्यूक्लियर टेस्ट और इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम रोक देगा. उन्होंने सीमा पर जाकर दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जेई इन से ऐतिहासिक मुलाकात की. फिर दोनों देशों के बीच कई समझौते भी हुए. लेकिन हाल के दिनों में आई सैटेलाइट तस्वीरों से पता चला है कि उत्तर कोरिया के न्यूक्लियर साइट पर हलचल हो रही है. ये हलचल किस इरादे से हो रही है, इसका पता अभी नहीं चला है.