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समाज

किशनगंज डीएम की मंगेतर की मौत से उठते सवाल

समीरात्मज मिश्र
११ दिसम्बर २०१८

बिहार के किशनगंज जिले के डीएम की डॉक्टर मंगेतर की कथित आत्महत्या के बाद उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया. पोस्टमॉर्टम की रिपोर्ट अभी आनी है, पुलिस कई पहलुओं से जांच कर रही है लेकिन इस घटना से कई बड़े सवाल भी उठ रहे हैं.

Symbolbild Scheidung Ehescheidung
तस्वीर: picture-alliance/dpa

पटना में डॉक्टर स्निग्धा के अंतिम संस्कार के वक्त किशनगंज के डीएम महेंद्र सिंह भी मौजूद थे लेकिन उनके चेहरे के भाव देखकर ये कोई भी समझ सकता था कि उनके मन में तमाम सवाल कौंध रहे थे और उन सवालों के जवाब उन्हें कौन दे, ये उनकी समझ में नहीं आ रहा था. जो स्निग्धा एक दिन बाद उनकी दुल्हन बनने जा रही थी, उसे कफन में लिपटी देख उनकी आंखें नम हो गईं. स्निग्धा की मौत से एक दिन पहले ही तिलक की रस्म पूरी हुई थी और सोमवार को डीएम महेंद्र सिंह के घर वाले बारात लेकर जाने की तैयारी कर रहे थे, तभी रविवार को पटना में ये हैरान कर देने वाली घटना हो गई.

शादी से ठीक एक दिन पहले लड़की बहुमंजिली इमारत से कूदकर आत्महत्या कर ले, रिश्ते में बँधने जा रहे दो परिवारों के लिए ये कितना बड़ा सदमा होगा, इसे वो ही समझ सकते हैं. लेकिन जब आत्महत्या करने वाली लड़की ख़ुद डॉक्टर हो, पिता पुलिस विभाग के अवकाश प्राप्त आईजी हों और जिस व्यक्ति से शादी हो रही है वो खुद एक जिले का कलेक्टर हो, तो ऐसी स्थिति में ये घटना एक बड़ा सामाजिक विमर्श भी खड़ा कर देती है.

महेंद्र सिंह आईएएस अधिकारी हैं और इस वक्त किशनगंज के जिला कलेक्टर के पद पर तैनात हैं. पटना की रहने वाली स्निग्धा के पिता सुधांशु कुमार भी आईपीएस थे, अब रिटायर हो चुके हैं. और पटना के एक अपार्टमेंट में रहते हैं. स्निग्धा ने इसी अपार्टमेंट की 14वीं मंजिल से कूदकर रविवार को कथित तौर पर आत्महत्या की है. हालांकि पुलिस इसकी जांच कई अन्य पहलुओं से भी कर रही है क्योंकि अभी तक पुलिस को कोई सुसाइड नोट नहीं मिला है. स्निग्धा डॉक्टर थीं और इस समय कोलकाता के एक मेडिकल कॉलेज से पीजी कर रही थीं. बताया जा रहा है कि यहीं उनकी किसी सहपाठी से मित्रता थी और शायद दोनों शादी करना चाहते थे. लेकिन स्निग्धा के परिवार ने उनकी शादी महेंद्र सिंह से तय की थी और विवाह के पूर्व की सभी रस्में भी पूरी कर दी गई थीं.

इस घटना ने हाल के दिनों में कुछ अधिकारियों की मौत और उनमें भी ज्यादातर आत्महत्या की यादों को तो ताजा कर ही दिया है उन कारणों पर भी सोचने पर विवश कर दिया है जो बेमेल विवाह की वजह से पैदा होते हैं. पिछले साल बक्सर के डीएम मुकेश पांडेय ने घरेलू कलह की वजह से दिल्ली में मॉल से कूदकर जान दे दी थी. पिछले महीने जमुई में डीएम की पत्नी अपनी माँ के साथ डीएम आवास के बाहर धरने पर बैठ गई थीं और अब किशनगंज के डीएम महेंद्र कुमार की होने वाली पत्नी ने कूदकर जान दे दी.

यही नहीं, इसी साल कानपुर में तैनात आईपीएस अधिकारी सुरेंद्र दास की आत्महत्या का मामला और पिछले साल लखनऊ में कर्नाटक कैडर के आईएएस अधिकारी अनुराग तिवारी की रहस्यमय मौत का मामला भी कहीं न कहीं बेमेल विवाह और घरेलू झगड़ों से जुड़ा हुआ बताया जा रहा है. संघ लोक सेवा आयोग के जरिए चयनित आईएएस और आईपीएस जैसे अधिकारी समाज में अच्छा खासा रसूख रखते हैं, खासतौर पर उत्तर प्रदेश और बिहार में इसे काफी महत्व दिया जाता है. अमीर परिवार और राजनीतिक घरानों के लोग धन और प्रतिष्ठा के बल पर अपनी लड़कियों की शादी के लिए इन्हीं सेवाओं में चुने गए लड़कों को प्राथमिकता देते हैं.

संघ लोक सेवा आयोग से जुड़े एक अधिकारी बताते हैं कि इन परीक्षाओं के परिणाम आने से पहले ही कई लोग चयनित अभ्यर्थियों की लिस्ट पाने की कोशिश करने लगते हैं. उनके मुताबिक, "इस लिस्ट के हिसाब से अपनी जाति, समुदाय और क्षेत्र की वरीयता के हिसाब से रिश्तों का चयन किया जाता है. हां, इस लिस्ट में चुने जाने वाले लड़के की सामाजिक-आर्थिक हैसियत का कोई ध्यान नहीं रखा जाता.”

जानकारों के मुताबिक, लड़के की सामाजिक-आर्थिक हैसियत का मेल न मिलाना ही बाद में बेमेल शादी और उसकी वजह से होने वाली तमाम दिक्कतों का सबब बनता है. दिल्ली के एक प्रतिष्ठित संस्थान में समाज शास्त्र पढ़ाने वाले सर्वेश कुमार कहते हैं, "लड़की वाले तो सिर्फ लड़के की संभावित ऊंची हैसियत देखकर शादी कर देते हैं लेकिन लड़का अपने अतीत को नहीं भूल पाता. अपने माँ-बाप के अलावा रिश्तेदार और दोस्त भी उसी पृष्ठभूमि के होते हैं जिससे कुछ समय पहले तक उसका जुड़ाव रहता है. ऐसे में संवेदनशील और भावुक किस्म के लड़कों के साथ कई बार स्थितियां बहुत प्रतिकूल हो जाती हैं, खासकर तब जबकि लड़की वालों की ओर से उसे उन्हीं के समाज में घुलने-मिलने का दबाव रहता है.”

लिस्ट देखकर रिश्ता तय कर देना, जाहिर है, ऐसे में लड़की की पसंद और नापसंद अक्सर तो पूछी ही नहीं जाती और यदि उसकी पसंद की बात सामने आती भी है तो दरकिनार कर दिया जाता है. डॉक्टर स्निग्धा की मौत के मामले को फिलहाल इसी मानसिकता से जोड़कर देखा जा रहा है.

सर्वेश कुमार के मुताबिक, "समाज का एक बड़ा हिस्सा पद और प्रतिष्ठा भले ही हासिल कर ले रहा है सामाजिक ताने-बाने में आज भी वैसे ही उलझा हुआ है, जैसे कि मध्यकालीन और सामंती युग का समाज था. लड़की ही नहीं, लड़के की भी इच्छा और पसंद का खयाल नहीं रखा जाता. ये रिश्ते ऐसा नहीं है कि सिर्फ लड़कियों के परिवार के लोग अपनी मर्जी से तय करते हैं, लड़कों के परिवार वाले भी ऐसा ही करते हैं. ऐसी परिस्थितियों में दो ही स्थितियां होती हैं, या तो लड़के-लड़की परिवार से विद्रोह करें या फिर जीवन भर उसका दंश झेलते रहें.”

जानकारों का ये भी कहना है कि ऐसे रिश्ते आगे चलकर न सिर्फ पारिवारिक तनाव की वजह बनते हैं बल्कि कई बार अवैध संबंधों को भी जन्म देते हैं. ऐसी शादियां घर-परिवार और समाज के दबाव में हो तो जाती हैं लेकिन आगे चलकर इनका इस तरह से बने रहना, मुश्किल हो जाता है. हालांकि कुछ लोग ये भी तर्क देते हैं कि पहले तो शादियां ऐसे ही होती थीं लेकिन समाजशास्त्रियों के मुताबिक, अब समय बदल गया है.

जेएनयू के शोध छात्र सुशील सिंह कहते हैं, "पहले शादियां बचपन में होती थीं, मां-बाप की हैसियत देखकर होती थीं और वही तय करते थे. आज लड़के और लड़की शिक्षित हैं, करियर के साथ अपना जीवन अपने हिसाब से जीना चाहते हैं, ऐसे में परिवार वालों को भी उनकी पसंद-नापसंद का ध्यान रखना चाहिए.”

सुशील सिंह के मुताबिक, स्थितियां बदल जरूर रही हैं, लेकिन बहुत धीमी गति से.

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