कहीं संकटग्रस्त इलाकों में फंसे, तो कहीं बाल विवाह जैसी कुरीति का शिकार बन कर स्कूलों से निकाले गये - दुनिया के हर चार में से एक बच्चे का बचपन ऐसे ही छीना जा रहा है.
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अंतरराष्ट्रीय चैरिटी 'सेव द चिल्ड्रेन' ने 'बचपन का अंत' नाम की एक सूची बनायी है और उसमें विश्व के 72 देशों की रैंकिंग की है. यह वे देश हैं जहां बच्चे बीमारियों, संघर्षों और कई तरह की सामाजिक कुरीतियों के शिकार बनाये जाते हैं. सबसे ज्यादा प्रभावित हैं पश्चिम और केंद्रीय अफ्रीका के बच्चे, जहां के सात देश इस सूची के सबसे खराब 10 देशों में शामिल हैं. अपनी तरह की इस पहली सूची में सबसे बुरे हालात हैं नाइजर, अंगोला और माली में जबकि सबसे ऊपर रहे नॉर्वे, स्लोवेनिया और फिनलैंड.
'सेव द चिल्ड्रेन' का कहना है कि इन 70 करोड़ बच्चों में से ज्यादातर विकासशील देशों के वंचित समुदायों से आते हैं. इन समुदायों में बच्चों तक स्वास्थ्य, शिक्षा और तकनीकी विकास का फायदा नहीं पहुंच पाया है. चैरिटी के प्रमुख कार्यकारी हेली थॉर्निंग-श्मिट ने कहा, "इनमें से कई बच्चे गरीबी और भेदभाव के एक जहरीले मिश्रण से ग्रस्त हैं. और इन्हें ऐसे कई अनुभव होते हैं जो बचपन को मार देते हैं."
कुछ महत्वपूर्ण आंकड़ों पर नजर डालिए. स्कूल जाने वाले बच्चों की उम्र के हर छह में से एक बच्चा स्कूल से बाहर है. यानि 26 करोड़ बच्चे. लगभग 17 करोड़ बच्चे बाल श्रमिकों के रूप में काम कर रहे हैं, जिनमें से आधे तो खनन, कचरा बीनना और कपड़ा फैक्ट्रियों में काम करने जैसे खतरनाक कामों में लगे हैं. पांच साल से कम उम्र के एक चौथाई बच्चे यानि करीब 15-16 करोड़ बच्चों में कुपोषण के कारण विकास कुंद है.
डेढ़ करोड़ लड़कियों की शादी हर साल 18 साल से पहले ही कर दी जाती है, और 15 से 19 के बीच की उम्र में वे मां भी बन जाती हैं. इसके अलावा दुनिया भर में कई जगहों पर चल रहे युद्धों और संघर्षों के कारण करीब तीन करोड़ बच्चों के घर छूट गये हैं. बच्चे कई देश में ही आतंरिक विस्थापन के शिकार हुए हैं. इस समय ऐसे एक करोड़ से भी अधिक बच्चे हैं जो या तो रिफ्यूजी कैंपों में रहने को मजबूर हैं या शरण की तलाश में हैं.
आरपी/एके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
बाल अधिकारों पर बेहतर नहीं हालात
किड्सराइट्स इंडेक्स दुनिया में बच्चों को दिये जाने वाले अधिकारों की स्थिति को दर्शाता है. यह बताता है कि बच्चों को किस हद तक उनके अधिकार दिये जा रहे हैं. इस साल की रैंकिंग सकारात्मक रुझान दर्शाती है.
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भेदभाव
इस इंडेक्स के मुताबिक दुनिया भर में जातीय, धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक बच्चों के साथ भेदभाव किया जाता है. लेखकों के मुताबिक उनकी प्राथमिकता इस तथ्य पर लोगों का ध्यान आकर्षित करना है.
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मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीका
अध्ययन के मुताबिक इस तरह का भेदभाव मध्य पूर्व और उसके आस-पास के क्षेत्रों के अलावा उत्तरी अफ्रीका के क्षेत्रों में अधिक नजर आता है.
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यूरोप-टॉप 8
बाल अधिकारों के सकारात्मक रुझान सबसे अधिक यूरोप में नजर आते हैं. 165 देशों की कुल सूची के टॉप 10 में आठ स्थान पर यूरोपीय देश शामिल हैं.
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बेहतरीन देश
सूची में पहला स्थान मिला है पुर्तगाल को, दूसरे पर नॉर्वे और फिर स्विजरलैंड, आइसलैंड, स्पेन, फ्रांस और स्वीडन है. इसके बाद थाइलैंड और ट्यूनीशिया और दसवें स्थान पर है फिनलैंड.
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पिछड़े देश
वहीं दूसरी ओर, चाड, सीरिया लियोन, अफगानिस्तान और मध्य अफ्रीकन गणराज्य हैं, इनका स्थान 165 देशों की सूची में सबसे नीचे है.
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रैंकिंग मानदंड
ये रैंकिंग पांच मानदंडों पर आधारित है: जीवन का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, संरक्षण का अधिकार, और हर देश के ऐसे प्रयास जो बाल अधिकारों को सुनिश्चित करते हैं.
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ब्रिटेन
इस सूची में 156वां स्थान मिला है ब्रिटेन को. अध्ययन के मुताबिक ब्रिटेन बाल अधिकारों को लागू करने के मामले में काफी पिछड़ा हुआ देश है.
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जर्मनी
जर्मनी की रैंकिंग पर संतोष जाहिर किया जा सकता है. इसका सूची में 18वां स्थान है. हालांकि साल 2016 की सूची में जर्मनी 12वें स्थान पर था.
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संभावनायें
अध्ययन में देशों की प्रतिबद्धता को न सिर्फ ठोस आधार पर बल्कि भावी संभावनाओं के आधार पर भी मापा गया है. यही कारण है कि थाईलैंड और ट्यूनिशिया टॉप-10 देशों की सूची में शामिल हैं.