किसानों और सरकार की बातचीत बंद है, लेकिन इस बीच आंदोलन में पैसा कहां से आ रहा है इसकी जांच की जा रही है. सवाल उठ रहे हैं कि सरकार गतिरोध को खत्म करने के प्रयासों की जगह किसानों के आंदोलन को शक की नजर से क्यों देख रही है.
तस्वीर: Mohsin Javed
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भारतीय किसान यूनियन (एकता-उग्राहां) पंजाब के सबसे बड़े किसान संघों में से एक है और उसके सदस्य भी नए कृषि कानूनों के विरोध में लगभग चार हफ्तों से दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर डटे हुए हैं. संघ के अध्यक्ष जोगिंदर उग्राहां ने मीडिया को बताया है कि उन्हें केंद्र सरकार ने विदेश से मिले चंदे के बारे में जानकारी देने को कहा है.
उग्राहां ने बताया कि उन्होंने दुनिया भर में फैले उनके रिश्तेदारों, दोस्तों और समर्थकों से अपील की थी कि वे आंदोलन जारी रखने में संघ की वित्तीय सहायता करें. इसके बाद विदेश से आर्थिक मदद के रूप में वाकई चंदे में कुछ रकम उनके एक पदाधिकारी के खाते में आई. लेकिन संघ का कहना है कि उनके बैंक मैनेजर ने उन्हें कहा है कि उन्हें यह दिखाना पड़ेगा कि वो विदेश से पैसा लेने के लिए पंजीकृत हैं या नहीं.
विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए) के अनुसार किसी भी संगठन के लिए विदेशी चंदा स्वीकार करने से पहले पंजीकरण अनिवार्य है. उग्राहां ने बताया कि वो आगे की कार्यवाही के लिए वित्तीय और कानूनी जानकारों की सलाह ले रहे हैं हैं, लेकिन उनका कहना है कि जिस तरह देश में भी लोग उनके आंदोलन के समर्धन में चंदा दे रहे हैं उसी तरह विदेश में रहने वाले भारतीय भी उनके समर्थन में अपनी मेहनत की गाढ़ी कमाई आंदोलनकारियों के लिए भेज रहे हैं.
डटे रहेंगे किसान, ना ठंड का डर ना मौत का
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इस बीच मीडिया में आई खबरों में बताया जा रहा है कि पंजाब में कम से कम 14 आढ़तियों के खिलाफ आयकर विभाग ने कार्यवाही की है. इनमें से कई आढ़तियों को विभाग ने नोटिस भेजे हैं और पटियाला, नवांशहर और फिरोजपुर जिलों में आढ़तियों के संघों के पांच नेताओं के परिसरों पर छापे मारे हैं. आढ़तियों ने कहा है कि विभाग उन सब को परेशान कर रहा है जिन्होंने किसान आंदोलन के लिए वित्तीय मदद भेजी है.
इन छापों के खिलाफ आढ़तियों ने पूरे राज्य में अनाज मंडियों को अनिश्चित-काल के लिए बंद करने का फैसला लिया है. उनका कहना है कि आयकर विभाग की कार्रवाई के बावजूद वो किसान आंदोलन का समर्थन करते रहेंगे. किसानों को तीनों नए कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए एक महीना पूरा होने वाला है. इस दौरान उनकी कई बार केंद्र सरकार के मंत्रियों से बात भी हुई, लेकिन सरकार ने अभी तक उनकी मांग स्वीकार नहीं की है.
दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का प्रदर्शन जारी है. दूसरी ओर सरकार पर दबाव बनाने के लिए सोमवार 21 दिसंबर से किसानों ने क्रमिक भूख हड़ताल शुरू कर दी. सिंघु और गाजीपुर बॉर्डर पर 11 किसान 24 घंटे की भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं.
तस्वीर: IANS
भूख हड़ताल
किसानों ने सोमवार 21 दिसंबर से क्रमिक भूख हड़ताल की शुरुआत कर दी. देशभर में जहां भी किसान आंदोलन कर रहे हैं वहां वे 24-24 घंटे की पारी में भूख हड़ताल करेंगे. उनकी कोशिश है कि इस तरह से वे सरकार पर दबाव बना पाएंगे.
तस्वीर: IANS
11-11 किसान करेंगे भूख हड़ताल
दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश की सीमाओं पर जहां-जहां आंदोलन चल रहा है, वहां हर रोज 11-11 किसान भूख हड़ताल करेंगे, जब इनके 24 घंटे पूरे होंगे तो अगले दिन दूसरे किसान नेता भूख हड़ताल शुरू कर देंगे.
तस्वीर: IANS
भोजन त्यागने की अपील
आंदोलनकारी किसानों ने देशभर के लोगों से किसान दिवस के मौके पर एक समय का भोजन त्याग कर किसानों का सम्मान करने की अपील की है. हर साल 23 दिसंबर किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है.
तस्वीर: IANS
तेज होता आंदोलन
किसान दिल्ली की सीमाओं पर कई दिनों से डटे हुए हैं. वे राशन-पानी के साथ अपना आंदोलन चला रहे हैं. किसान संगठनों को आम लोगों के साथ-साथ अन्य संगठनों का भी समर्थन प्राप्त है.
तस्वीर: Altaf Qadri/AP Photo/picture alliance
आंदोलन में जान गंवाने वालों को श्रद्धांजलि
आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों को श्रद्धांजलि देने के लिए सभा आयोजित की गई और उनकी तस्वीरों पर फूल चढ़ाए गए. किसानों का कहना है कि उन्होंने तीन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने के लिए अपनी जान दी.
तस्वीर: IANS
"श्रद्धांजलि दिवस"
किसान आंदोलन के दौरान अलग-अलग कारणों से जान गंवाने वाले 30 किसानों को रविवार 20 दिसंबर को गाजीपुर बॉर्डर और सिंघु बॉर्डर पर श्रद्धांजलि दी गई. इन लोगों की मौत ठंड, बीमारी और सड़क हादसों में हुई थी.
तस्वीर: IANS
कला जगत के लोगों का समर्थन
सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों के समर्थन में कलाकार भी उतर रहे हैं. मशहूर कव्वाल साबरी सूफी ब्रदर्स ग्रुप अपने अन्य कलाकारों के साथ सिंघु बॉर्डर पर रविवार को पहुंचे और किसान आंदोलन को समर्थन दिया.
तस्वीर: IANS
सर्द रात और आंदोलन
दिल्ली-एनसीआर में इस वक्त कड़ाके की ठंड पड़ रही है. खुले आसमान के नीचे ना सिर्फ किसानों के लिए बल्कि सुरक्षाबलों के लिए रात गुजारना मुश्किल भरा है. किसान आग जलाकर सर्द हवाओं से बचने की कोशिश करते हैं. वे अपने साथ रजाई और कंबल भी लेकर आए हैं.
तस्वीर: Seerat Chabba/DW
आंदोलन का अंत कब?
कृषि कानून के खिलाफ किसानों का आंदोलन 26 नवंबर से जारी है. कड़ाके की ठंड में सीमाओं पर डटे किसान कृषि कानून को वापस लेने की मांग पर अड़े हैं. किसानों का कहना है कि सरकार अगर कानून वापस लेती है तो वे दो घंटे में बॉर्डर खाली कर चले जाएंगे. किसानों का कहना है कि उनका राजनीतिक दलों से कोई लेना देना नहीं है. इस बीच सरकार ने एक बार फिर बातचीत का न्योता भेजा है.