नए कृषि कानूनों के विरोध में कई राज्यों के किसानों ने भारत-बंद का आह्वान किया है. कई विपक्षी पार्टियों, व्यापार संघों, बाजार समितियों और ट्रक चालकों के समर्थन से बंद का व्यापक असर होने का अंदेशा है.
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बंद सुबह 11 बजे से दिन के तीन बजे तक लागू किया जाएगा. इस दौरान चक्का-जाम यानी हर तरह के यातायात बंद रहने का आह्वान किया गया है. दिल्ली समेत कुछ राज्यों में यातायात सेवाएं प्रभावित रहने का अंदेशा है. कृषि मंडियां और कुछ स्थानों पर दुकानें और दफ्तर भी बंद रह सकते हैं.
चूंकि राष्ट्रीय राजधानी आंदोलन का केंद्र बनी हुई है, बंद का असर सबसे ज्यादा दिल्ली और एनसीआर में ही रहने की संभावना है. सरकारी बसें और मेट्रो तो चलती रहेंगी लेकिन ऑटो और टैक्सी ना मिलने में समस्या हो सकती है. दिल्ली में कई सीमा बिंदुओं को और राष्ट्रीय राजमार्गों को बंद कर दिया है और कई स्थानों पर ट्रैफिक दूसरे मार्गों की तरफ मोड़ा जा रहा है.
फल, सब्जियों, दूध इत्यादि की आपूर्ति में कमी भी हो सकती है. किसान प्रतिनिधियों ने आश्वासन दिया है कि बंद के दौरान हिंसा नहीं होगी और एम्बुलेंस जैसी आपात सेवाओं को भी रुकने नहीं दिया जाएगा. कई बैंक संघों ने भी कहा है कि उनके सदस्य काम तो ठप्प नहीं करेंगे लेकिन किसानों के समर्थन में हाथों पर काले पट्टे बांध कर काम करेंगे.
किसानों और सरकार के बीच बातचीत के पांच दौर हो चुके हैं और छठे दौर की बातचीत बुधवार को होनी है. पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से आए किसान 12 दिनों से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं. वे दिल्ली के अंदर धरना देना चाहते हैं लेकिन प्रशासन ने उन्हें शहर की सीमाओं पर ही रोका हुआ है.
किसानों की मांग है कि संसद का विशेष सत्र बुला कर तीनों कानूनों को निरस्त किया जाए. केंद्र सरकार कई बार कह चुकी है कि वो किसानों की मांग के प्रति सहानुभूति रखती है लेकिन उनकी मांगों को मानने के संबंध में अभी तक कोई स्पष्ट घोषणा नहीं की है.
बल्कि सोमवार सात दिसंबर को एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर संकेत दिया कि उनकी सरकार पीछे नहीं हटेगी. "सुधारों" की बात करते हुए उन्होंने कहा कि पिछली सदी के कानून इस सदी में विकास के रास्ते में अवरोधक हैं और उन्हें बदलना ही पड़ेगा.
सबसे पहले अध्यादेश के रूप में जून में लाए गए कानूनों का किसान अपने प्रांतों में विरोध कर रहे थे. लेकिन जब दिल्ली ने उनकी आवाज नहीं सुनी तो वो अपनी मांगों को लेकर दिल्ली ही आ गए. देखिए किसान आंदोलन को कैमरे की नजर से.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
आतंकवादी नहीं किसान
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से हजारों किसान नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए निकले लेकिन पुलिस ने उन्हें दिल्ली की सीमाओं पर ही रोक दिया. राशन-पानी ले कर आए किसानों ने वही डेरा जमाया और आंदोलन छेड़ दिया. पुलिस के डंडे, ठंडे पानी की बौछार और आंसू गैस के गोलों के अलावा किसान प्रदर्शनकारियों ने जाहिल, आढ़तियों के एजेंट और आतंकवादी होने तक के आरोपों का सामना किया.
तस्वीर: Mohsin Javed
बात चंद किसानों की नहीं
हजारों की संख्या में किसान जीन तीन नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं, वो हैं आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून और कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून. इनका उद्देश्य ठेके पर खेती को बढ़ाना, भंडारण की सीमा तय करने की सरकार की शक्ति को खत्म करना और अनाज, दालों, सब्जियों के दामों को तय करने को बाजार के हवाले करना है.
तस्वीर: Mohsin Javed
आर-पार की लड़ाई
किसान सिर्फ भारी संख्या में ही नहीं आए, बल्कि महीनों का राशन साथ लेकर आए हैं. सरकार ने नए कानूनों को किसानों के लिए कल्याणकारी बताया है, लेकिन किसानों का मानना है कि इनसे सिर्फ बड़े उद्योगपतियों का फायदा होगा और छोटे और मझौले किसानों को अपने उत्पाद के सही दाम नहीं मिल पाएंगे. उनका कहना है कि इन कानूनों की वजह से कृषि उत्पादों की खरीद की व्यवस्था में छोटे और मझौले किसानों का शोषण बढ़ेगा.
तस्वीर: Mohsin Javed
पुलिस की बर्बरता का सामना
जय जवान और जय किसान का नारा लगाने वाले देश में किसान और जवान आमने सामने हैं. आंदोलन के दौरान किसानों को पुलिस की लाठियों का भी सामना करना पड़ा. कई बुजुर्ग किसान घायल हो गए और हालात कठिन होने की वजह से कुछ किसानों की मौत भी हो गई.
तस्वीर: Mohsin Javed
सर्दी में संघर्ष
सभी स्थानों पर किसान या तो खुले में या पतले शामियानों के नीचे दिन और रात बिता रहे हैं. सड़क-मार्ग से ही राजधानी आए किसान अपने ट्रैक्टरों को भी साथ लाए हैं, जो अब यहां पर उनका वाहन भी बना हुआ है, बेंच भी, बिस्तर भी और छत भी.
तस्वीर: Mohsin Javed
लंबी जद्दोजहद की तैयारी
किसान मान कर आए हैं कि केंद्र सरकार आसानी से उनकी मांगें नहीं मानेगी. इसलिए वो लंबे समय तक डेरा डालने की तैयारी करके आए हैं. धरना स्थलों पर खुद ही रोज अपना खाना पकाते हैं और खा-पी कर फिर धरने पर बैठ जाते हैं. सरकार के साथ बातचीत में भी वे अपना ही खाना लेकर जाते हैं और सरकारी खाना ठुकरा देते हैं.
तस्वीर: Seerat Chabba/DW
महिला शक्ति भी मौजूद
आंदोलन सिर्फ पुरुषों के कंधों पर ही नहीं चल रहा है. कुछ महिलाएं गांवों में खेती संभाल रही हैं तो कुछ मोर्चे पर डटी हुई हैं और पुरुषों का कंधे से कंधा मिला कर साथ दे रही हैं.
तस्वीर: Mohsin Javed
किताबों का साथ भी
धरना स्थलों पर प्रदर्शनकारियों का साथ देने, उनका हौसला बढ़ाने और उनकी सेवा करने कई लोग पहुंचे हुए हैं. कोई खाना खिला रहा है, कोई पानी पिला रहा है, कोई डॉक्टरी मदद दे रहा है तो कोई किताबें भी बांट रहा है.
तस्वीर: Mohsin Javed
मीडिया से नाराजगी
प्रदर्शनकारियों में मीडिया के एक धड़े के खिलाफ भी सख्त नाराजगी है. उनका आरोप है कि कुछ बड़े मीडिया संस्थान सिर्फ सरकार का पक्ष जनता के सामने परोस रहे हैं और सिर्फ किसानों की आलोचना कर रहे हैं.
तस्वीर: Mohsin Javed
हुक्के के बिना कैसे हो किसान आंदोलन
विशेष रूप से दिल्ली और नॉएडा की सीमा पर धरने पर बैठे पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आए किसान जरूरत जी दूसरी चीजों के साथ हुक्का भी साथ लाए हैं. सरकार के सामने पहले पलक किसानों की ना झपक जाए, इसीलिए इस लंबी लड़ाई में धैर्य और हुक्के का सहारा भी लिया जा रहा है.