लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा के बाद किसानों के आंदोलन के समर्थन में महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में बंद बुलाया है. राज्य सरकार ने घोषणा की है कि आपात सेवाओं के अलावा राज्य में सब कुछ एक दिन के लिए बंद रहेगा.
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राज्य में महाराष्ट्र विकास आघाड़ी गठबंधन सरकार के घटक दलों शिव सेना, कांग्रेस और एनसीपी ने खुद ही एक प्रेस वार्ता करके बंद के आयोजन के बारे में जानकारी दी थी. बंद का आह्वान उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हाल ही में हुई घटना की पृष्ठभूमि में किया जा रहा है.
तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में गाड़ियों के एक काफिले ने कृषि कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों को कुचल दिया था, जिसमें चार किसानों की मौत हो गई थी. इन गाड़ियों में से कम से कम एक गाड़ी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा की थी.
सरकारी 'बंद'
मौके पर मौजूद कई चश्मदीद गवाहों ने कहा है कि यह गाड़ी मिश्रा का बेटा आशीष मिश्रा चला रहा था. उत्तर प्रदेश पुलिस ने आशीष के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया है और उसे गिरफ्तार कर लिया है.
महाराष्ट्र बंद के बारे में बताते हुए शिव सेना नेता संजय राउत ने पत्रकारों से कहा, "गठबंधन की तीनों पार्टियां सक्रिय रूप से बंद में हिस्सा लेंगी. लखीमपुर खीरी में जो हुआ वो संविधान की हत्या थी, कानून का उल्लंघन था और देश के किसानों को मारने की एक साजिश थी."
बंद के तहत पूरे राज्य में दुकानों को बंद रखने की योजना है. व्यापारियों के कई संगठनों ने बंद को समर्थन देने का फैसला किया है. मुंबई में भी दुकानें बंद रहेंगी. बस, ऑटो और टैक्सी सेवाएं भी बाधित होने की खबरें आ रही हैं, लेकिन लोकल ट्रेनें चल रही हैं.
बीजेपी ने बंद का विरोध किया है और चेतावनी भी दी है कि अगर व्यापारियों को दुकानें बंद करने के लिए मजबूर किया गया तो पार्टी इसका विरोध करेगी.
निष्पक्ष जांच की जरूरत
कांग्रेस ने इसके अलावा इस मुद्दे को लेकर अलग से राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन की भी घोषणा की है. पार्टी ने सभी राज्यों में अपनी प्रदेश इकाइयों से राज भवन या केंद्र सरकार के कार्यालयों के आगे मौन व्रत का आयोजन करें.
पार्टी ने मांग की है लखीमपुर खीरी वारदात में शामिल सभी लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के साथ साथ केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा को बर्खास्त भी किया जाना चाहिए.
इस बीच आशीष मिश्रा को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है. मीडिया में आई कुछ खबरों में दावा किया गया है कि आशीष से पूछताछ करने वाले एसआईटी ने बताया कि वारदात के दिन वो कहां था इस बारे में उसने स्पष्ट जवाब नहीं दिए हैं.
चश्मदीद गवाहों ने यह भी दावा किया है कि आशीष ने किसानों पर गोली भी चलाई थी. कुछ खबरों में यह भी बताया गया है कि उसकी गाड़ी से खाली कारतूस भी बरामद हुए थे और और वो इनके बारे में भी एसआईटी को स्पष्ट जवाब नहीं दे पाया.
उसके खिलाफ लगे सभी आरोपों की निष्पक्ष जांच हो पाए इसके लिए उसके पिता के मंत्रिपद छोड़ देने की मांग भी भी जोर पकड़ रही है.
चार महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसान
तीन कृषि कानून के खिलाफ किसानों के आंदोलन को चार महीने पूरे हुए. वे कड़ाके की ठंड, तूफान और बारिश सह चुके हैं लेकिन उत्तर भारत में गर्मी तेजी से बढ़ रही है. देखिए, टीकरी बॉर्डर पर किस तरह से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
महिला शक्ति
कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन 26 नवंबर 2020 को शुरू हुआ और 26 मार्च 2021 को इसके चार महीने पूरे हो गए. आंदोलन के शुरुआती दौर में पुरुष किसान आगे रहे और उसके कुछ दिनों बाद ही महिलाओं ने आंदोलन की नई अलख जगाई. अब बड़े पैमाने पर महिलाएं आगे रहती हैं और आंदोलन को आगे बढ़ाती हैं.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
आंदोलन का रंग
किसान आंदोलन में शामिल होने वाली महिलाएं पीले दुपट्टे या फिर हरे दुपट्टे डालना पसंद करती हैं. वे पीले रंग को भगत सिंह से जोड़ कर देखती हैं. वे कहती हैं कि भगत सिंह की याद में वे पीले रंग के कपड़े पहनती हैं. कई महिलाएं हरे रंग के कपड़े में भी दिख जाएंगी, जो कि कृषि से जुड़ा रंग है. पुरुष भी पीली पगड़ी पहनते हैं.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
एक और जत्था आया
टीकरी बॉर्डर पर आंदोलनकारी पुरुष और महिलाएं हरियाणा और पंजाब से आते हैं. वे या तो ट्रैक्टर ट्रॉली पर सवार हो कर आते हैं या फिर निजी वाहन में आते हैं. लेकिन अधिकतर किसान और महिला आंदोलनकारी ट्रैक्टर ट्रॉली में ही आते हैं. कुछ दिन बाद यह जत्था चला जाएगा और फिर एक नया हुजूम इनकी जगह ले लेगा.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
बच्चे, बूढ़े और जवान
इस तस्वीर में एक महिला के हाथ में छोटा बच्चा है. महिला अपने छोटे बच्चे के साथ प्रदर्शन स्थल के लिए जा रही है. महिला के आगे पीछे कुछ पुरुष और महिला आंदोलनकारी हैं और सबसे पीछे कुछ किशोर भी हैं, जिनके सिर पर पीली पगड़ी है और हाथ में आंदोलन से जुड़ा झंडा है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
जोश में कोई कमी नहीं
कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में महिलाओं ने सारे मिथक तोड़ दिए. दिल्ली की सीमाओं पर जहां कहीं भी आंदोलन हुआ वहां महिलाओं की भागीदारी दिखी. महिलाओं ने खेत, गांव और घरों से निकलकर एक नई मिसाल पेश की, उन्होंने अपनी आवाज भी दुनिया तक पहुंचाने की कोशिश की.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
महिलाओं के लिए अलग टेंट
टीकरी बॉर्डर पर महिलाओं की निजता का ध्यान रखते हुए अलग टेंटों का इंतजाम है. आंदोलनकारी महिलाएं अन्य महिलाओं के साथ ऐसे टेंट साझा करती हैं. निजी कामों के लिए भी महिलाओं के लिए अलग इंतजाम है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
ट्रैक्टर या चौपाल
गांव से आने वाले किसान अपने साथ हुक्का भी लाते हैं. इस ट्रैक्टर पर सवार किसान हरियाणा के हैं और वे भी आंदोलन में शामिल होने के लिए जा रहे हैं और उनके साथ उनका हुक्का भी है. वे कुछ घंटे आंदोलन में बिताएंगे और फिर अपने घर को लौट जाएंगे.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
गौर से सुनो
आंदोलन में शामिल होने वाले लोग मंच पर भाषण देने वालों की बातों को बहुत ही ध्यान से सुनते हैं. वे अपने हक की बात को मुखर तरीके से और लोगों तक पहुंचाने की बात करते हैं और किसानों को तीन कृषि कानून के खिलाफ जागृत करते हैं.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
युवा और मोबाइल
जिस तरह से महिलाएं प्रदर्शन में भाग ले रहीं हैं उसी तरह से युवा भी बढ़ चढ़ कर आंदोलन कर रहे हैं. उनका कहना है कि उनका परिवार किसानी से जुड़ा है और जब उनके दादा, पिता और चाचा आंदोलन के लिए घर से जा सकते हैं तो वे क्यों पीछे रहेंगे. वे आंदोलन से जुड़ी जानकारी सोशल मीडिया पर भी पोस्ट करते हैं.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
भीषण गर्मी अभी बाकी
गर्मी के आने वाले दिनों को देखते हुए आंदोलनकारियों ने फ्रिज और एयर कूलर का भी इंतजाम कर लिया है. उन्होंने अपने ट्रैक्टर को ही रहने के लायक बना लिया है और उसके ऊपर तिरपाल लगा लिया है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
लंबा इंतजार
किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकल पाया है. किसान तीनों नए कृषि कानूनों को पूरी तरह वापस लिए जाने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी दिए जाने की अपनी मांग पर पहले की तरह डटे हुए हैं. किसानों का कहना है कि वे साल भर तक इसी तरह से आंदोलन कर सकते हैं.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
भगत सिंह की याद में
कई टेंटों के बाहर भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव के पोस्टर लगाए गए हैं और क्रांति के नारे भी चस्पा किए गए हैं. 23 मार्च को किसानों ने शहीद दिवस के तौर पर मनाया. 23 मार्च 1931 को अंग्रेजी शासनकाल के दौरान भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
जहां तक नजर वहां तक टेंट
किसानों ने टीकरी बॉर्डर के रास्ते पर सैकड़ों टेंट लगाए हैं. टेंटों में बिजली की व्यवस्था भी है, जिससे मोबाइल चार्ज करने की सुविधा मिलती है और रात को रोशनी का इंतजाम होता है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
लंगर का इंतजाम
टीकरी बॉर्डर पर आंदोलनकारी किसानों के लिए लंगर का इंतजाम है. हफ्ते के सातों दिन बिना रुके लंगर चलता है. यहां तीनों वक्त का भोजन बिलकुल मुफ्त मिलता है. आंदोलन में शामिल होने वाले लोग इसे चलाते हैं और गांवों से राशन आता है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
पढ़ने का इंतजाम
प्रदर्शनों के साथ-साथ ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया भी जारी है. प्रदर्शनकारियों ने एक 'सड़क पुस्तकालय' भी स्थापित किया है, जहां से लोग पढ़ने के लिए किताब ले सकते हैं और पढ़ाई के बाद उसे लौटा सकते हैं.
तस्वीर: Mohsin Javed
डॉक्टर और दवाएं भी उपलब्ध
प्रदर्शन में भाग लेने वाले हजारों लोगों के लिए न केवल भोजन और पानी बल्कि किसानों ने भी अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखा है. डॉक्टर्स और मेडिकल स्टॉफ हर समय स्वेच्छा से काम करते हैं.