पंजाब और हरियाणा के आंदोलनरत किसानों के साथ मंगलवार को हुई बैठक के विफल होने पर अब सरकार की निगाहें तीन दिसंबर को होने वाली अहम बैठक पर टिकीं हैं.
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केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने आईएएनएस से बातचीत के दौरान किसान आंदोलन का जल्द से जल्द हल निकालने की उम्मीद जताई है. उन्होंने कहा, "तीन दिसंबर को होने वाली बातचीत में कुछ न कुछ समाधान होने की उम्मीद है. सरकार किसानों के मुद्दे सुलझाने के लिए तत्पर है, इसीलिए सकारात्मक माहौल में बातचीत चल रही है."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृहराज्य गुजरात से राज्यसभा सांसद और केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "देखते हैं कि कल तीन दिसंबर की बैठक के बाद क्या नतीजा सामने आता है. लेकिन सरकार की पूरी कोशिश है कि किसानों से बातचीत कर मुद्दों को जल्द से जल्द सुलझाया जाए. बातचीत के बाद निश्चित तौर पर आंदोलन खत्म होगा."
क्या सरकार तीनों कानूनों को लेकर किसानों को समझाने में नाकाम रही, जिसकी वजह से यह आंदोलन खड़ा हो गया? इस सवाल पर रूपाला ने कहा, "मैं यह मानता हूं कि जो लोग आंदोलन कर रहे हैं, उनसे इसका जवाब लेना चाहिए. फिर आपको मेरा कमेंट लेना चाहिए. मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि सरकार किसानों की समस्याओं को सुलझाने के लिए प्रतिबद्ध है. निश्चित तौर पर मामला सुलझेगा."
कृषि कानूनों के खिलाफ 'दिल्ली चलो आंदोलन' के तहत 26 नवंबर से पंजाब और हरियाणा के किसान संगठनों ने राजधानी की सीमा का घेराव किया है, जिससे आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में भी समस्या खड़ी होने के साथ आवागमन भी प्रभावित हुआ है. किसान संगठनों से बातचीत कर सरकार गतिरोध दूर करने में जुटी है. इसी सिलसिले में मंगलवार को दो बार बैठक हुई थी. पहली बैठक करीब 32 किसान संगठनों के नेताओं के साथ विज्ञान भवन में हुई जिसमें केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेल और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल तथा वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री सोम प्रकाश सहित कृषि मंत्रालय के अफसर सरकार की तरफ से शामिल हुए थे.
हालांकि, करीब साढ़े तीन घंटे तक चली बैठक बेनतीजा रही थी जिसके बाद शाम साढ़े सात बजे से कृषि मंत्रालय में हुई एक अन्य बैठक में भारतीय किसान यूनियन के प्रतिनिधियों ने राकेश टिकैत के नेतृत्व में हिस्सा लिया. दोनों बैठकों में मंत्रियों ने किसान नेताओं से नए कानूनों पर लिखित में आपत्तियां उपलब्ध कराने के लिए कहा ताकि तीन दिसंबर को फिर से होने वाली बैठक में उन आपत्तियों पर सही तरह से चर्चा हो सके. अब तीन दिसंबर को दोपहर 12 बजे से होने वाली बैठक पर सभी की निगाहें टिकीं हैं.
नवंबर में कश्मीर में केसर की फसल होने लगती है. इसे दुनिया जाफरान के नाम से भी जानती है. खेती का मुख्य इलाका पुलवामा जिले में पंपोर है. पत्रकार गुलजार बट ने केसर के फूल चुनते किसानों को तस्वीरों में कैद किया है.
तस्वीर: Gulzar Bhat/DW
मसालों का राजा
जाफरान यानि केसर को मसालों का राजा माना जाता है. हालांकि कश्मीर में केसर की खेती तीन इलाकों में होती है लेकिन घाटी के पंपोर इलाके में सबसे ज्यादा फसल के कारण इसे कश्मीर का केसर टाउन कहा जाता है.
तस्वीर: Gulzar Bhat/DW
क्वालिटी केसर
पुलवामा जिले में सालाना 60-80 क्विंटल उच्च क्वालिटी के केसर की खेती होती है. किसानों के अनुसार अच्छी क्वालिटी के एक ग्राम केसर के लिए बाजार में 250 से 300 रुपये तक मिलता है.
तस्वीर: Gulzar Bhat/DW
परिवार की मदद
केसर के पौधों में जब फूल लग जाते हैं तो उन्हें तोड़ने के लिए खेतों में पूरा परिवार पहुंचता है और फूलों को इकट्ठा किया जाता है. बाद में इन्हीं फूलों से केसर के तार निकाले जाते हैं.
तस्वीर: Gulzar Bhat/DW
सूखे की मार
इस साल उत्पादन कम हुआ है. इसकी वजह बरसात का कम होना है. किसानों का कहना है कि फसल कम होने की मुख्य वजह लंबे वक्त तक मौसम का सूखा रहना है.
तस्वीर: Gulzar Bhat/DW
ड्रिपिंग सिंचाई का फायदा नहीं
यूं तो इस इलाके में केसर के खेतों की सिंचाई के लिए सरकार ने ड्रिपिंग तकनीक शुरू की है. लेकिन किसानों का कहना है कि यह सुविधा बहुत देर से आई और इस साल उसका उतना फायदा नहीं हुआ.
तस्वीर: Gulzar Bhat/DW
जीआई टैग
इस साल से कश्मीर के केसर को जीआई टैग भी मिला है जो उसे दूसरे उत्पादों से अलग करता है और दार्जिलिंग चाय की तरह खास बनाता है. लेकिन बहुत से छोटे किसानों का इसका फायदा मालूम नहीं.
तस्वीर: Gulzar Bhat/DW
होगा फायदा
अक्सर कश्मीरी केसर के नाम पर कम क्वालिटी वाले केसर भी लोगों को बेच दिए जाते हैं. इसकी वजह से कश्मीरी केसर बदनाम हो रहा था. अब जीआई टैग मिल जाने से किसानों को माल बेचने में आसानी होगी.
तस्वीर: Gulzar Bhat/DW
खेतों की सैर
अभी पंपोर का माहौल देश के दूसरे हिस्सों जैसा ही है जहां परिवार की लड़कियां भी फसल कटाने जाती हैं. ये कश्मीरी लड़कियां केसर के फूल जमा कर लौट रही हैं.
तस्वीर: Gulzar Bhat/DW
काम के बाद आराम
केसर के फूलों को चुनने का काम आसान नहीं. क्रोकस के छोटे फूलों को झुककर खोंटने में कमर दुख जाती है. काम के बाद खेतों पर ही थोड़ा आराम अच्छा ही लगता है.
तस्वीर: Gulzar Bhat/DW
केसर वाले इलाके
कश्मीर के जिन दूसरे इलाकों में केसर होता है, वे हैं बड़गाम, श्रीनगर और डोडा. इस बार पंपोर के केसर पार्क में केसर की टेस्टिंग और पैकेजिंग होगी. अच्छी क्वालिटी के केसर को विदेशों में बेचने का लक्ष्य है.
तस्वीर: Gulzar Bhat/DW
सबसे महंगा मसाला
जाफरान दुनिया का सबसे महंगा मसाला है. इसकी वजह ये भी है कि यह कठोर परिश्रम से तैयार किया जाता है. पांच ग्राम जाफरान पाने में केसर के 800 फूलों की जरूरत होती है.
तस्वीर: Gulzar Bhat/DW
स्पेन में जाफरान
करीब 1000 साल से स्पेन में भी केसर की खेती होती है. ला मांचा के पठार में उपजाए जाने वाले स्पेनी केसर को अजाफरान दे ला मांचा कहते हैं. कंसुएगरा शहर में अक्तूबर के अंत में जाफरान महोत्सव मनाया जाता है.
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ईरान में केसर
कहते हैं भारत में केसर ईरानी लोग लेकर आए थे. इसका श्रेय ईरान के सूफी संतों का जाता है. ईरान अभी भी केसर का मुख्य उत्पादक है जहां दुनिया के 90 फीसदी से ज्यादा केसर का उत्पादन होता है.
तस्वीर: Tasnim/M. Nesaei
और ये है केसर
और ये हैं केसर के धागे जो हम बाजार से खरीद कर लाते हैं. फूलों से ये धागे हाथ से एक एक कर निकाले जाते हैं. तभी तो इतना महंगा होता है जाफरान.