तमिलनाडू के सैकड़ों किसान दिल्ली में सरकार से मदद की उम्मीद में प्रदर्शन कर रहे हैं. एक अध्ययन से पता चलता है कि जैसे जैसे तापमान बढ़ेगा भारत ऐसी और अधिक त्रासदियों का सामना करेगा. इस तरह के जलवायु परिवर्तन से सूखा बढ़ेगा और फसलें बर्बाद होंगी.
खेती स्वाभाविक तौर पर एक जोखिम भरा व्यवसाय है. जिसमें सालाना आय मौसम के भरोसे तय होती है. भारत में जिन जगहों पर जलवायु परिवर्तन का ज्यादा असर हो रहा है वहां पर यह और ज्यादा जोखिमभरा होता जा रहा है.
विशेषज्ञों का कहना है कि अध्ययन के नतीजे चेतावनी देंगे. खासकर उस स्थिति में जहां भारत का औसतन तापमान 2050 तक 3 डिग्री सेंटीग्रेट बढ़ जाएगा. 2050 तक इस तरह के अनियमित मौसम में और अधिक बढ़ोतरी होगी, सूखे और बाढ़ या तूफान जैसी घटनाओं में इजाफा होगा.
खेती हमेशा ही एक बड़े जोखिम वाला काम रहा है और एक बार की फसल की बर्बादी किसी को अवसाद में पहुंचा सकती है. किसानों को हमेशा से भारत के हृदय और आत्मा की तरह देखा गया है लेकिन पिछले तीन दशक से वे अपनी खराब होती आर्थिक स्थितियों को भी देख रहे हैं.
भारत के सकत घरेलू उत्पाद में एक तिहाई हिस्सा रखने वाले किसान इस समय भारत की 2.26 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था में सिर्फ 15 प्रतिशत का योगदान दे पा रहे हैं.
किसानों के आत्महत्या करने की कई वजहें हो सकती हैं. खराब फसल की पैदावार, वित्तीय तबाही या कर्ज, सामुदायिक सहायता की कमी और खुद को नुकसान पहुंचाने के आसान तरीकों तक पहुंच.
जीन संवर्धित कपास से वैसे तो किसानों को धनी होना था लेकिन इसने उनकी जान ले ली. महाराष्ट्र के विदर्भ से किसानों की कहानी, तस्वीरों के साथ.
तस्वीर: Isabell Zipfelकपास की खेती में नुकसान के कारण जान देने वालों में से एक किसान. गैर सरकारी संगठनों के मुताबिक नब्बे के दशक से अब तक दो लाख से ज्यादा किसान अपनी जान ले चुके हैं.
तस्वीर: Isabell Zipfelपीछे रह जाती हैं औरतें, जिन्हें अपने परिवार को पालना है. विकल्प के अभाव में ये औरतें खेत में काम करने को मजबूर होती हैं. कई किसान खेत में कपास के साथ सोया भी उगाते हैं. भारत में कपास बहुत छोटे खेतों में बोया जाता है, मशीनों की मदद के बिना.
तस्वीर: Isabell Zipfelभारत में 90 फीसदी खेतों में अब जीन संवर्धित बीटी कपास उगाया जाता है. अमेरिकी कंपनी मोनसैंटो ने कपास के बीज में बासिलस थुरिंजिएंसिस (बीटी) बैक्टीरिया का जीन डाला ताकि पौधा कीड़ों से बचा रहे. कपास का ये बीज महंगा है, एक से ज्यादा बार बोया भी नहीं जा सकता.
तस्वीर: Isabell Zipfelभारत मोनसैंटो के लिए बड़ा बाजार है. यहां एक करोड़ बीस लाख हेक्टेयर में कपास की खेती की जाती है. वर्धा में बीटी कपास बीज के साथ ही खरपतवार हटाने वाला राउंडप भी बेचा जा रहा है. ये भी मोनसैंटो का ही है. बीटी बीज राउंडप के प्रति प्रतिरोधी है.
तस्वीर: Isabell Zipfelबीटी कपास के कारण विदर्भ में होने वाला कपास बिलकुल गायब हो गया है. खरपतवार हटाने वाली दवाई राउंडप हर कहीं बिकती है. ये दवाइयां अक्सर बहुत जहरीली होती हैं लेकिन फिर भी बिना मास्क और दस्ताने पहने डाली जाती हैं.
तस्वीर: Isabell Zipfelकपास के लिए जमीन का बहुत उपजाऊ होना जरूरी नहीं है लेकिन इसे बढ़ने के लिए लगातार पानी चाहिए. कुछ बीटी कपास सूखा बिलकुल नहीं झेल सकते और विदर्भ में पानी की बड़ी समस्या है. यहां के किसान मानसून पर निर्भर हैं.
तस्वीर: Isabell Zipfelहर साल कपास के महंगे जीन संवर्धित बीज खरीदना, फसल का कम होना और बारिश नहीं होना.. इन सबके कारण किसान बुरी तरह कर्ज में डूब जाते हैं. वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार जीतने वाली वंदना शिवा इसी को किसानों की आत्महत्या का मुख्य कारण मानती हैं.
तस्वीर: Isabell Zipfelबीटी कपास के इस्तेमाल के बाद से विदर्भ के कई किसान ज्यादा लागत और कम फसल की शिकायत करते हैं. परेशानी इसलिए और बढ़ जाती है कि पानी नहीं है. भारत के दूसरे हिस्सों में इसी कपास के कारण अच्छी फसल होने की भी रिपोर्टें हैं.
तस्वीर: Isabell Zipfelमहिला के घर में रखी हुई कपास. पति की मौत के बाद उसने सारी फसल घर मंगवा ली. वह उन एक करोड़ भारतीयों में शामिल है, जो खेती करते हैं. दुनिया भर का एक चौथाई कपास भारत से आता है. चीन और अमेरिका के बाद ये कपास का सबसे बड़ा उत्पादक है.
तस्वीर: Isabell Zipfelविदर्भ में किसान बीटी कपास से दुखी हैं. हालांकि क्या इन आत्महत्याओं का कारण बीटी कपास का आना था, इस पर विवाद है. ये सभी तस्वीरें इजाबेल सिप्फेल ने ली हैं.
तस्वीर: Isabell Zipfel भारत में कई किसान कमरतोड़ कर्ज से छुटकारा पाने के लिए जहरीले कीटनाशक पी लेते हैं क्योंकि कुछ मामलों में सरकार पीड़ित परिवार को मुआवजा भी देती है. यह परिस्थिति आत्महत्या के लिए एक प्रतिकूल प्रोत्साहन प्रदान करता है.
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के साथ एक भारतीय मनोचिकित्सक और मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ विक्रम पटेल कहते हैं, "हम दुनिया को गर्म होने से नहीं बचा सकते. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम आत्महत्याओं के लिए कुछ नहीं कर सकते." जिसमें आर्थिक स्थिरता प्रदान करने के लेकर मानसिक स्वास्थ्य पर और ज्यादा ध्यान देना शामिल है.
भारत में फसल पहले ही तूफान, भीषण सूखा, लू और दूसरे मौसमों को झेलती है. और कितनी जगहों पर फसल अब भी बरसात के भरोसे होती है. वैज्ञानिक पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि पृथ्वी का तापमान बढ़ने से इस तरह से आपदाएं और अधिक होंगी.
हाल में कुछ राज्यों ने हजारों करोड़ के कर्ज माफ जरूर कर दिए हैं. लेकिन इससे हालात में ज्यादा अंतर नहीं नजर आ रहा है. भारत में हर साल दस हजार से ज्यादा किसान आत्महत्या कर लेते हैं.
एसएस/एनआर(एपी)