नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों का कई देशों के सांसदों, संगीतकारों, अभिनेताओं और ऐक्टिविस्टों ने समर्थन किया है. इनमें स्वीडन की पर्यावरण ऐक्टिविस्ट ग्रेटा थुनबेर्ग और अंतर्राष्ट्रीय पॉप-स्टार रिहान्ना शामिल हैं.
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मंगलवार शाम रिहान्ना ने किसानों के धरना स्थलों पर सरकार द्वारा इंटरनेट बंद कर दिए जाने के बारे में ट्वीट कर कहा, "हम इसके बारे में बात क्यों नहीं कर रहे हैं"? उसके कुछ घंटों बाद जलवायु परिवर्तन के खिलाफ युवाओं का आंदोलन खड़ा करने वाली ऐक्टिविस्ट ग्रेटा थुनबेर्ग ने भी किसानों के प्रदर्शन को समर्थन देने के बारे में ट्वीट किया. फिर एक के बाद एक कई अंतर्राष्ट्रीय हस्तियों और संस्थानों ने किसानों के आंदोलन पर ट्वीट कर किसानों के अपना समर्थन व्यक्त किया.
इनमें अमेरिकी अभिनेता जॉन क्यूजैक, ब्रिटेन के सांसद तनमनजीत सिंह, ब्रिटेन की ही एक और सांसद क्लॉडिया वेब, अमेरिकी अधिवक्ता और उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस की भांजी मीना हैरिस, कनाडा की यूट्यूबर लिली सिंह, यूगांडा की पर्यावरण ऐक्टिविस्ट वनेसा नकाते, अंतरराष्ट्र्रीय मानवाधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच, अमेरिकी पर्यावरण ऐक्टिविस्ट जेमी मारगोलिन जैसी हस्तियां शामिल हैं.
संयुक्त किसान मोर्चा ने रिहान्ना को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद दिया और यह उम्मीद जताई कि इससे उनके आंदोलन के बारे में आम लोगों में जानकारी फैलेगी. इस बीच किसान आंदोलन पर संसद के दोनों सदनों में भी सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध छिड़ गया है. सरकार किसानों के प्रदर्शन पर संसद में 15 घंटों की चर्चा कराने को तैयार हो गई है. चर्चा शुक्रवार को कराने का निर्णय लिया गया है लेकिन विपक्ष चर्चा तुरंत शुरू कराना चाह रहा है.
दूसरी तरफ दिल्ली की सीमाओं पर सरकार द्वारा लगाए गए तरह तरह के बैरिकेडों से किसान नाराज हैं. सवाल उठ रहे हैं कि इस तरह की घेराबंदी करके सरकार किसानों से बातचीत को कैसे आगे बढ़ाएगी. किसान यह भी मांग कर रहे हैं कि 26 जनवरी की घटनाओं के संबंध में हिरासत में लिए किसानों को भी रिहा किया जाए. उधर दिल्ली पुलिस ने पंजाबी अभिनेता और राजनीतिक कार्यकर्ता दीप सिद्धू को खोजने के प्रयास भी शुरू कर दिए हैं.
पुलिस ने सिद्धू के बारे में जानकारी देने के लिए एक लाख रुपयों के इनाम की घोषणा की है. किसान संगठनों का आरोप है कि सिद्धू ने कुछ किसानों को बरगला कर 26 जनवरी की अप्रिय घटनाओं को अंजाम दिया. सिद्धू पर बीजेपी के इशारे पर किसान आंदोलन को बदनाम करने की साजिश का हिस्सा होने के भी आरोप लगे हैं. हालांकि बीजेपी कह चुकी है कि सिद्धू अब पार्टी के साथ नहीं हैं.
मोदी सरकार इन दिनों अपने सबसे मुश्किल इम्तिहान का सामना कर रही है. नए कृषि कानूनों के खिलाफ धरने पर बैठे किसान आंदोलनकारी हटने का नाम नहीं ले रहे हैं. एक नजर उन घटनाओं पर, जब मोदी सरकार को लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Kiran
किसान आंदोलन
कई हफ्तों से दिल्ली की सीमाओं पर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान प्रदर्शन कर रहे हैं और सरकार से नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं है. इस बीच, 26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद स्थिति काफी तनावपूर्ण हो गई है.
तस्वीर: Dinesh Joshi/AP/picture alliance
नागरिकता संशोधन अधिनियम
नरेंद्र मोदी सरकार ने जब 2019 में नागरिकता संशोधन विधेयक पारित किया तो इसके खिलाफ देश में कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए. धर्म के आधार पर पड़ोसी देशों के शरणार्थियों को नागरिकता देने वाले इस कानून को आलोचकों ने संविधान विरोधी बताया.
तस्वीर: DW/Dharvi Vaid
धारा 370
5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली धारा 370 को खत्म कर दिया. कई विपक्षी पार्टियों ने इसका तीखा विरोध किया. हिंसक विरोध प्रदर्शनों की आशंका को देखते हुए केंद्र सरकार ने कई महीनों तक जम्मू कश्मीर में कर्फ्यू लगाए रखा.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS.com/M. Mattoo
नोटबंदी
8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने का एलान कर दिया. सरकार का कहना था कि काले धन को बाहर लाने के लिए उसने यह कदम उठाया. लेकिन असंगठित क्षेत्र के कई उद्योग चौपट हो गए और लोग बेरोजगार हो गए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee
जेएनयू की नारेबाजी
दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी अकसर सुर्खियों में रहती है. लेकिन 2016 में यूनिवर्सिटी परिसर में कन्हैया कुमार और अन्य छात्र नेताओं पर लगे देशद्रोह के आरोपों ने इसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में ला दिया. आंदोलन को दबाने के लिए पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Gupta
लिंचिंग
2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के कुछ महीनों बाद गौरक्षा के नाम देश के अलग अलग हिस्सों में लिंचिंग घटनाएं हुईं. गोमांस रखने या खाने के आरोप में कुछ समुदायों को निशाना बनाया गया. इसके बाद सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हुए, कई लोगों ने अपने पुरस्कार लौटाए.
तस्वीर: Imago/Hundustan Times
रोहित वेमुला
हैदराबाद यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रहे एक दलित छात्र रोहित वेमुला की जुलाई 2015 में आत्महत्या ने भारत के बड़े शैक्षणिक संस्थानों में जाति आधारित भेदभाव को उजागर किया. इसके बाद सड़कों पर उतरे लोगों ने उन तत्वों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की जिनकी वजह से "रोहित वेमुला को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा."