राकेश टिकैत नए कृषि कानूनों के विरोध में जारी किसान आंदोलन का बड़ा चेहरा हैं. लेकिन ये तेवर उन्हें विरासत में मिले हैं. उनका परिवार हमेशा किसानों के हक में खड़ा रहा है और पहले भी कई बार सरकार की आंखों में चुभता रहा है.
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जिस तरह का आंदोलन इन दिनों दिल्ली की सीमा पर चल रहा है, ठीक वैसे ही आंदोलन का नेतृत्व तीन दशक पहले राकेश टिकैत के पिता महेंद्र सिंह टिकैत ने किया था. मौजूदा किसान आंदोलन कई महीनों से चल रहा है. इस दौरान कड़ाके की सर्दी में कई प्रदर्शनकारियों की मौतें हुईं, पुलिस से टकराव हुआ, इंटरनेट बंद किया गया और किसानों के कुछ धड़े आंदोलन से अलग भी हुए. लेकिन 51 साल के राकेश टिकैत अपने रुख पर कायम हैं. एक वीडियो में उन्हें आंखों में आंसुओं के साथ यह कहते हुए सुना जा सकता है, "अगर ये कानून वापस नहीं लिए गए तो राकेश टिकैत आत्महत्या कर लेगा."
उनके इस वीडियो ने सोशल मीडिया पर हंगामा मचा दिया. किसान आंदोलन के समर्थकों में एक नए उत्साह का संचार हुआ. वीडियो गाजीपुर बॉर्डर पर बना था जिसमें टिकैत कह रहे हैं कि वे इस जगह को खाली नहीं करेंगे. सभा में उनके भाषण के बाद अगले दिन हजारों लोग अपने ट्रैक्टर और ट्रॉली लेकर धरना स्थल पर पहुंच गए.
अपनी धरती के लिए सड़क पर भारतीय किसान
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आंसुओं का असर
वीडियो देखने के बाद उत्तर प्रदेश के एक किसान गिरिराज सिंह भी गाजीपुर बॉर्डर के लिए निकले. लेकिन वह सड़कों पर खड़े किए गए अवरोधों और रास्ते बंद किए जाने से घंटों तक जूझते रहे. वह कहते हैं, "उस दिन टिकैत नहीं, बल्कि सब रोए थे." हरियाणा से आए एक किसान कुलदीप त्यागी कहते हैं, "यह आंदोलन का फिर जन्म होने जैसा था."
नवंबर से किसान दिल्ली के बाहरी इलाकों में धरने पर बैठे हैं. कई दौर की वार्ताओं के बावजूद सरकार उन्हें नहीं मना पाई है. स्थिति इतनी गंभीर है कि इसे 2014 में सत्ता आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए सबसे बड़ा संकट बताया जा रहा है. किसानों का कहना है कि वे कानूनों को वापस लिए जाने तक डटे रहेंगे. नए कानूनों के तहत किसान मुक्त बाजार में अपनी फसल बेच पाएंगे, जबकि किसान सरकार की तरफ से न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी चाहते हैं. किसानों का कहना है कि नए कानून उन्हें बड़ी बड़ी कंपनियों का मोहताज बना देंगे. लेकिन सरकार का कहना है कि नए कानूनों से कृषि के क्षेत्र में निवेश बढ़ेगा और इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी. भारत में दो तिहाई लोग किसी ना किसी तरह खेती बाड़ी के काम में ही लगे हैं.
किसानों का आंदोलन अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सुर्खियां बटोर रहा है. पॉप सुपरस्टार रिहाना और जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग ने किसानों के समर्थन में ट्वीट किए हैं, जिसका मोदी समर्थकों ने तीखा विरोध किया है. कई अभिनेताओं और खिलाड़ियों ने इसे भारत के अंदरूनी मामलों में दखल बताया.
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विदेशी सेलेब्रिटी कर रहे हैं किसान आंदोलन की पैरवी
कई अंतर्राष्ट्रीय जाने-माने लोगों ने भारतीय किसानों द्वारा किए जा रहे आंदोलन का समर्थन किया है. समर्थन में किए जा रहे ट्वीट्स की कड़ी अब बढ़ती जा रही है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने इन्हें गैरजिम्मेदाराना बताया है.
तस्वीर: Sean Kilpatrick/The Canadian Press/ZUMAPRESS.com/picture alliance
रिहाना
रिहाना विश्वभर में जानी जाने वाली अमेरिकी पॉप गायिका हैं. उन्होंने मंगलवार को किसान आंदोलन पर एक ट्वीट कर पूछा कि "हम इस पर कोई बात क्यों नहीं कर रहे" और साथ ही हैशटैग 'फार्मर्स प्रोटेस्ट्स' को दुनिया भर में पहुंचा दिया. ट्वीट के नतीजतन कई और अमेरिकी सेलिब्रिटीज ने इस पर अपने विचार व्यक्त किए.
स्वीडेन की 18-वर्षीय ग्रेटा थुनबर्ग जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में जानी-मानी एक्टिविस्ट हैं. उन्होंने भी ट्विटर पर दिल्ली के कुछ हिस्सों में हो रहे इंटरनेट बंद के बारे में एक खबर शेयर की और कहा कि “हम भारत में #फार्मर्स प्रोटेस्ट्स के साथ एकजुटता में खड़े हैं."
तस्वीर: Steffen Trumpf/dpa/picture alliance
अमांडा सेर्नी
अमांडा सेर्नी एक प्रसिद्ध इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर हैं. उन्होंने अपने अकाउंट पर तीन भारतीय वृद्ध महिलाओं की तस्वीर को साझा किया है और लिखा, "पूरी दुनिया देख रही है. इस मुद्दे को समझने के लिए आपको भारतीय, पंजाबी या फिर दक्षिणी एशियाई होने की जरूरत नहीं है. आपके पास केवल मानवता की भावना होनी चाहिए. बोलने के अधिकार, प्रेस के अधिकार, वर्कर्स के लिए समानता और गरिमा जैसे आम अधिकारों की हमेशा मांग करें."
तस्वीर: Scott Roth/Invision/AP/picture alliance
मीना हैरिस
मीना हैरिस अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भतीजी हैं. वह पेशे से वकील हैं और उन्होंने भी ट्वीट करते हुए लिखा है, “उग्र राष्ट्रवाद अमेरिकी राजनीति में एक ताकत के रूप वैसे ही उभरा है जैसा कि भारत में है या कई और देशों में. इसे केवल तभी रोका जा सकता है जब लोग इस वास्तविकता के प्रति जाग जाएं कि तानाशाही जाने वाली नहीं है."
तस्वीर: DNCC/Getty Images
लिली सिंह
मशहूर यूट्यूबर लिली सिंह ने भी किसान आंदोलन का समर्थन किया है. उन्होंने रिहाना के ट्वीट को दोबारा साझा करते हुए उनका शुक्रिया भी अदा किया है. लिली सिंह कनाडा में भारतीय मूल की कलाकार हैं और उनका चैनल "सुपरवूमन" देश-विदेश में काफी प्रसिद्ध है.
तस्वीर: Chris Pizzello/Invision/AP/picture alliance
जिम कोस्टा
अमेरिका के प्रभावशाली विदेश मामलों की समिति के सदस्य डेमोक्रेट जिम कोस्टा ने कहा कि "शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार का हमेशा सम्मान किया जाना चाहिए."
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रूपी कौर
लघु कविता लिखने वाली विश्व प्रसिद्ध कवयित्री रूपी कौर ने भी रिहाना को धन्यवाद किया है. उन्होंने फार्म बिल के बारे में विस्तार से लिखा है और आगे पूछा है कि अगर अन्नदाता इस लड़ाई में हारेंगे तब करोड़ों हिन्दुस्तानियों को खाना कौन देगा?"
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जमीला जमील
जमीला जमील एक प्रसिद्ध ब्रिटिश अदाकारा हैं. वह समसामयिक मुद्दों पर अपने विचार रखती रहती हैं. उन्होंने रिहाना के ट्वीट को रीट्वीट किया है और ट्विटर पर अपने 11 लाख से ज्यादा फॉलोवर तक पहुँचाया है.
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जस्टिन ट्रुडो
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने पिछले साल दिसम्बर में ही कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों को अपना समर्थन दिया था और कहा था कि स्थिति चिंताजनक है. भारतीय विदेश मंत्रालय ने तब इस टिप्पणी को 'भारत के आंतरिक मामलों में अस्वीकार्य हस्तक्षेप' बताया था.
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उम्मीदों का भार
राकेश टिकैत अचानक इस आंदोलन का चेहरा बन गए हैं. ठीक वैसे ही जैसे 1988 में उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत बने थे. उस वक्त वह पांच लाख किसानों को लेकर दिल्ली पहुंचे थे और गन्ने की कीमतें बढ़ाने की मांग के साथ सरकारी इमारतों के सामने धरने पर बैठ गए थे.
अब राकेश टिकैत जहां धरने पर बैठे हैं, वहां उनके पिता के बहुत सारे पोस्टर लगे हैं. वह कहते हैं कि उनके परिवार से बहुत उम्मीदें हैं, खास कर उत्तर प्रदेश के किसानों को, "मैं उनकी उम्मीदों को पूरा करने की कोशिश करूंगा. जिस काम के लिए मैं यहां आया हूं, उसे पूरा करके रहूंगा."
बहुत से लोग राकेश टिकैत के साथ सेल्फी लेते हैं और उन्हें अपने गांव जमा चंदा लाकर देते हैं. पत्रकार और विश्लेषक अजॉय बोस कहते हैं कि टिकैत ने जिस तरह किसानों में उत्साह भरा है, वह सरकार के लिए सिरदर्द बन गया है. सरकार को लगा था कि 26 जनवरी को होने वाली हिंसा के साथ आंदोलन खत्म हो जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इस हिंसा में सैकडों लोग घायल हुए थे.
टिकैत के बारे में बोस कहते हैं, "उन्हें खारिज कर पाना मुश्किल है. वह मुख्यधारा के नेता हैं जिन्हें आप राष्ट्र विरोधी नहीं कह सकते. वह सिख भी नहीं हैं तो आपने उन्हें खालिस्तानी भी नहीं कह सकते." टिकैत कहते हैं कि प्रदर्शन अभी महीनों तक चल सकता है, भले उन्हें पानी की सप्लाई रोक दी जाए या फिर उन्हें कैंप को कंटीली तारों से घेर दिया जाए.
हरियाणा से आए 69 वर्षीय किसान हरिंदर राणा कहते हैं कि मोदी ने "गलत आदमी से पंगा ले लिया. वह (टिकैत) ऐसे ही नहीं जाने देंगे."
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मोदी सरकार ने कब कब लोगों की नाराजगी झेली
मोदी सरकार इन दिनों अपने सबसे मुश्किल इम्तिहान का सामना कर रही है. नए कृषि कानूनों के खिलाफ धरने पर बैठे किसान आंदोलनकारी हटने का नाम नहीं ले रहे हैं. एक नजर उन घटनाओं पर, जब मोदी सरकार को लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Kiran
किसान आंदोलन
कई हफ्तों से दिल्ली की सीमाओं पर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान प्रदर्शन कर रहे हैं और सरकार से नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं है. इस बीच, 26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद स्थिति काफी तनावपूर्ण हो गई है.
तस्वीर: Dinesh Joshi/AP/picture alliance
नागरिकता संशोधन अधिनियम
नरेंद्र मोदी सरकार ने जब 2019 में नागरिकता संशोधन विधेयक पारित किया तो इसके खिलाफ देश में कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए. धर्म के आधार पर पड़ोसी देशों के शरणार्थियों को नागरिकता देने वाले इस कानून को आलोचकों ने संविधान विरोधी बताया.
तस्वीर: DW/Dharvi Vaid
धारा 370
5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाली धारा 370 को खत्म कर दिया. कई विपक्षी पार्टियों ने इसका तीखा विरोध किया. हिंसक विरोध प्रदर्शनों की आशंका को देखते हुए केंद्र सरकार ने कई महीनों तक जम्मू कश्मीर में कर्फ्यू लगाए रखा.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMAPRESS.com/M. Mattoo
नोटबंदी
8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने का एलान कर दिया. सरकार का कहना था कि काले धन को बाहर लाने के लिए उसने यह कदम उठाया. लेकिन असंगठित क्षेत्र के कई उद्योग चौपट हो गए और लोग बेरोजगार हो गए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee
जेएनयू की नारेबाजी
दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी अकसर सुर्खियों में रहती है. लेकिन 2016 में यूनिवर्सिटी परिसर में कन्हैया कुमार और अन्य छात्र नेताओं पर लगे देशद्रोह के आरोपों ने इसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में ला दिया. आंदोलन को दबाने के लिए पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/R. Gupta
लिंचिंग
2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के कुछ महीनों बाद गौरक्षा के नाम देश के अलग अलग हिस्सों में लिंचिंग घटनाएं हुईं. गोमांस रखने या खाने के आरोप में कुछ समुदायों को निशाना बनाया गया. इसके बाद सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हुए, कई लोगों ने अपने पुरस्कार लौटाए.
तस्वीर: Imago/Hundustan Times
रोहित वेमुला
हैदराबाद यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रहे एक दलित छात्र रोहित वेमुला की जुलाई 2015 में आत्महत्या ने भारत के बड़े शैक्षणिक संस्थानों में जाति आधारित भेदभाव को उजागर किया. इसके बाद सड़कों पर उतरे लोगों ने उन तत्वों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की जिनकी वजह से "रोहित वेमुला को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा."