कोविड-19 की घातक लहर के बीच नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों ने एक बार फिर महा रैली निकालने की घोषणा की है. जून 2020 में पंजाब से शुरू हुए इस आंदोलन को अगले महीने एक साल पूरा हो जाएगा.
विज्ञापन
देश में फैली कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के बीच किसान कुछ महीनों से ठंडे पड़े अपने आंदोलन को एक बार फिर से खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. 26 मई को इन किसानों को दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाले छह महीने पूरे हो जाएंगे और वो इस मौके का इस्तेमाल एक बार फिर आंदोलन में जान फूंकने के लिए करना चाह रहे हैं. किसानों ने 26 मई को काला दिवस के रूप में मनाने की योजना बनाई है और इसके लिए कई राज्यों से भारी संख्या में किसानों को दिल्ली की सीमाओं पर जमा होने की अपील की है.
पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों से कई किसानों के दिल्ली की तरफ चल देने की खबरें आ रही हैं. किसानों की कोशिश है कि एक बार फिर आंदोलन की तरफ केंद्र सरकार का ध्यान वापस लिया जाए. किसान सरकार के तीन नए कृषि कानूनों का विरोध तो जून 2020 से ही कर रहे हैं, जब ये कानून अध्यादेश के रूप में पास हुए थे. 26 नवंबर 2020 को किसान संसद के बाहर विरोध प्रदर्शन करने के लिए दिल्ली की ओर निकल गए थे, लेकिन दिल्ली में घुसने से ठीक पहले पुलिस द्वारा रोके जाने के बाद उन्होंने दिल्ली की सीमाओं पर ही प्रदर्शन शुरू कर दिया.
महामारी के बीच आंदोलन
उसके बाद सरकार और किसानों के बीच कई दौर की बातचीत भी हुई लेकिन पूरी प्रक्रिया बेनतीजा रही. सरकार का आखिरी प्रस्ताव तीनों कानूनों को छह महीनों के लिए रोक देने का था लेकिन किसानों की मांग थी कि कानूनों को पूरी तरह से निरस्त ही किया जाए. इसके बाद सरकार ने बातचीत बंद कर दी. किसान अब चाह रहे हैं कि सरकार बातचीत फिर से शुरू करे. लेकिन इस बार किसानों के जमावड़े को लेकर ऐसी चिंताएं भी व्यक्त की जा रही हैं कि इस का देश में फैली हुई महामारी की घातक लहर पर क्या असर पड़ेगा.
बीते महीनों में महामारी की पिछली लहर में जब यह आंदोलन चल रहा था, तब स्थिति इतनी भयावह नहीं थी जितनी इस बार है. इस लहर में संक्रमण के नए मामलों ने और संक्रमण से मरने वालों की संख्या ने रिकॉर्ड स्तर हासिल किए. दिल्ली समेत कई शहरों में इतनी भयावह स्थिति सामने आई कि अस्पतालों और स्वास्थ्य-कर्मियों पर भारी दबाव पड़ गया. अस्पतालों में बिस्तरों, दवाओं और यहां तक कि ऑक्सीजन की भी कमी हो गई.
दिल्ली, महाराष्ट्र, गोवा और कर्नाटक समेत कई स्थानों पर अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से ही कई लोगों की जान चली गई. मरने वालों की संख्या इतनी बढ़ गई कि श्मशानों के बाहर भी घंटों लंबी कतारें लग रही थीं. इस लहर में ग्रामीण इलाकों से भी संक्रमण के अभूतपूर्व प्रसार की खबरें आ रही हैं. कई लोगों का कहना है कि इन हालात में किसानों को बड़ा जमावड़ा कहीं सुपर-स्प्रेडर (संक्रमण को कई गुना फैलाने वाला आयोजन) ना बन जाए.
किसानों के भी एक धड़े में इसे लेकर चिंता है. पिछले दिनों सिंघु बॉर्डर पर कम से कम दो किसानों की कोविड-19 हो जाने के बाद मौत भी हो गई. लेकिन इसके बावजूद कई किसान निराश नहीं हुए हैं और 26 मई के कार्यक्रम को सफल बनाने दिल्ली की तरफ चल पड़े हैं. देखना होगा कि अब प्रशासन का किसानों के आंदोलन के प्रति क्या रवैया रहता है.
चार महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसान
तीन कृषि कानून के खिलाफ किसानों के आंदोलन को चार महीने पूरे हुए. वे कड़ाके की ठंड, तूफान और बारिश सह चुके हैं लेकिन उत्तर भारत में गर्मी तेजी से बढ़ रही है. देखिए, टीकरी बॉर्डर पर किस तरह से किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
महिला शक्ति
कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन 26 नवंबर 2020 को शुरू हुआ और 26 मार्च 2021 को इसके चार महीने पूरे हो गए. आंदोलन के शुरुआती दौर में पुरुष किसान आगे रहे और उसके कुछ दिनों बाद ही महिलाओं ने आंदोलन की नई अलख जगाई. अब बड़े पैमाने पर महिलाएं आगे रहती हैं और आंदोलन को आगे बढ़ाती हैं.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
आंदोलन का रंग
किसान आंदोलन में शामिल होने वाली महिलाएं पीले दुपट्टे या फिर हरे दुपट्टे डालना पसंद करती हैं. वे पीले रंग को भगत सिंह से जोड़ कर देखती हैं. वे कहती हैं कि भगत सिंह की याद में वे पीले रंग के कपड़े पहनती हैं. कई महिलाएं हरे रंग के कपड़े में भी दिख जाएंगी, जो कि कृषि से जुड़ा रंग है. पुरुष भी पीली पगड़ी पहनते हैं.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
एक और जत्था आया
टीकरी बॉर्डर पर आंदोलनकारी पुरुष और महिलाएं हरियाणा और पंजाब से आते हैं. वे या तो ट्रैक्टर ट्रॉली पर सवार हो कर आते हैं या फिर निजी वाहन में आते हैं. लेकिन अधिकतर किसान और महिला आंदोलनकारी ट्रैक्टर ट्रॉली में ही आते हैं. कुछ दिन बाद यह जत्था चला जाएगा और फिर एक नया हुजूम इनकी जगह ले लेगा.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
बच्चे, बूढ़े और जवान
इस तस्वीर में एक महिला के हाथ में छोटा बच्चा है. महिला अपने छोटे बच्चे के साथ प्रदर्शन स्थल के लिए जा रही है. महिला के आगे पीछे कुछ पुरुष और महिला आंदोलनकारी हैं और सबसे पीछे कुछ किशोर भी हैं, जिनके सिर पर पीली पगड़ी है और हाथ में आंदोलन से जुड़ा झंडा है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
जोश में कोई कमी नहीं
कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में महिलाओं ने सारे मिथक तोड़ दिए. दिल्ली की सीमाओं पर जहां कहीं भी आंदोलन हुआ वहां महिलाओं की भागीदारी दिखी. महिलाओं ने खेत, गांव और घरों से निकलकर एक नई मिसाल पेश की, उन्होंने अपनी आवाज भी दुनिया तक पहुंचाने की कोशिश की.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
महिलाओं के लिए अलग टेंट
टीकरी बॉर्डर पर महिलाओं की निजता का ध्यान रखते हुए अलग टेंटों का इंतजाम है. आंदोलनकारी महिलाएं अन्य महिलाओं के साथ ऐसे टेंट साझा करती हैं. निजी कामों के लिए भी महिलाओं के लिए अलग इंतजाम है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
ट्रैक्टर या चौपाल
गांव से आने वाले किसान अपने साथ हुक्का भी लाते हैं. इस ट्रैक्टर पर सवार किसान हरियाणा के हैं और वे भी आंदोलन में शामिल होने के लिए जा रहे हैं और उनके साथ उनका हुक्का भी है. वे कुछ घंटे आंदोलन में बिताएंगे और फिर अपने घर को लौट जाएंगे.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
गौर से सुनो
आंदोलन में शामिल होने वाले लोग मंच पर भाषण देने वालों की बातों को बहुत ही ध्यान से सुनते हैं. वे अपने हक की बात को मुखर तरीके से और लोगों तक पहुंचाने की बात करते हैं और किसानों को तीन कृषि कानून के खिलाफ जागृत करते हैं.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
युवा और मोबाइल
जिस तरह से महिलाएं प्रदर्शन में भाग ले रहीं हैं उसी तरह से युवा भी बढ़ चढ़ कर आंदोलन कर रहे हैं. उनका कहना है कि उनका परिवार किसानी से जुड़ा है और जब उनके दादा, पिता और चाचा आंदोलन के लिए घर से जा सकते हैं तो वे क्यों पीछे रहेंगे. वे आंदोलन से जुड़ी जानकारी सोशल मीडिया पर भी पोस्ट करते हैं.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
भीषण गर्मी अभी बाकी
गर्मी के आने वाले दिनों को देखते हुए आंदोलनकारियों ने फ्रिज और एयर कूलर का भी इंतजाम कर लिया है. उन्होंने अपने ट्रैक्टर को ही रहने के लायक बना लिया है और उसके ऊपर तिरपाल लगा लिया है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
लंबा इंतजार
किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच 11 दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकल पाया है. किसान तीनों नए कृषि कानूनों को पूरी तरह वापस लिए जाने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी दिए जाने की अपनी मांग पर पहले की तरह डटे हुए हैं. किसानों का कहना है कि वे साल भर तक इसी तरह से आंदोलन कर सकते हैं.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
भगत सिंह की याद में
कई टेंटों के बाहर भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव के पोस्टर लगाए गए हैं और क्रांति के नारे भी चस्पा किए गए हैं. 23 मार्च को किसानों ने शहीद दिवस के तौर पर मनाया. 23 मार्च 1931 को अंग्रेजी शासनकाल के दौरान भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
जहां तक नजर वहां तक टेंट
किसानों ने टीकरी बॉर्डर के रास्ते पर सैकड़ों टेंट लगाए हैं. टेंटों में बिजली की व्यवस्था भी है, जिससे मोबाइल चार्ज करने की सुविधा मिलती है और रात को रोशनी का इंतजाम होता है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
लंगर का इंतजाम
टीकरी बॉर्डर पर आंदोलनकारी किसानों के लिए लंगर का इंतजाम है. हफ्ते के सातों दिन बिना रुके लंगर चलता है. यहां तीनों वक्त का भोजन बिलकुल मुफ्त मिलता है. आंदोलन में शामिल होने वाले लोग इसे चलाते हैं और गांवों से राशन आता है.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
पढ़ने का इंतजाम
प्रदर्शनों के साथ-साथ ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया भी जारी है. प्रदर्शनकारियों ने एक 'सड़क पुस्तकालय' भी स्थापित किया है, जहां से लोग पढ़ने के लिए किताब ले सकते हैं और पढ़ाई के बाद उसे लौटा सकते हैं.
तस्वीर: Mohsin Javed
डॉक्टर और दवाएं भी उपलब्ध
प्रदर्शन में भाग लेने वाले हजारों लोगों के लिए न केवल भोजन और पानी बल्कि किसानों ने भी अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखा है. डॉक्टर्स और मेडिकल स्टॉफ हर समय स्वेच्छा से काम करते हैं.