कॉरपोरेट अस्पताल की अपनी नौकरी से असंतुष्ट एक मनोवैज्ञानिक एक ऐसी टीम में शामिल हो गईं, जो तेलंगाना में किसानों की खुदकुशी रोकने के लिए काम करती है.
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पेश से मनोवैज्ञानिक श्रुति नाइक यह जानना चाहती थीं कि आखिर भारत के ग्रामीण क्षेत्र में खासकर किसानों के बीच व्याप्त संकट का कारण क्या है. उन्होंने इसे जानने और इसका समाधान तलाशने के काम को चुनौती के रूप में स्वीकार किया. श्रुति कहती हैं, "मैंने महसूस किया कि समस्या कितनी गंभीर है और बाहर की दुनिया में किस प्रकार भ्रांति फैलाई जाती है."
किसानों की हेल्पलाइन
किसान मित्र हेल्पलाइन के अपने दफ्तर में आईएएनएस से बातचीत में उन्होंने कहा, "किसान परिस्थितियों, आर्थिक असमानता और खेती से संबंधित समस्याओं के शिकार हैं. उनके पास कर्ज चुकाने का कोई जरिया नहीं है. उनको निजी साहूकार और बैंक परेशान करते हैं. वे हमेशा इस बात को लेकर चिंतित रहते हैं कि वे कर्ज कैसे चुकाएंगे और परिवार का भरण-पोषण कैसे करेंगे."
वर्ष 2017 में राज्य के विकराबाद जिले की तत्कालीन जिला कलेक्टर दिव्या देवराजन ने सुझाव दिया कि एनजीओ को इस मसले पर काम करना चाहिए. हालांकि उन्होंने माना कि इसके लिए महज हेल्पलाइन से काम नहीं चलेगा.
श्रुति ने बताया, "कभी-कभी संकटग्रस्त किसान हमारे पास नहीं आ सकते, क्योंकि मदद मांगने को कलंक समझा जाता है. उसके बाद हमने क्षेत्रीय दल बनाने का फैसला लिया जो किसानों से बात कर सके."
वह सात सदस्यों की टीम की अगुवाई करती हैं, जिसमें सभी महिला सदस्य हैं. काउंसल कॉल्स लेती हैं और किसानों से उनकी समस्याओं का ब्योरा नोट करती हैं. इसके बाद उसे संबंधित क्षेत्र स्तरीय संयोजक को भेज देती हैं जो समस्या के समाधान में जुट जाते हैं.
श्रुति ने बताया, "हमें अब तक जमीन, फसल, भुगतान, कर्ज और बैंक से संबंधित मसलों को लेकर 8,000 कॉल्स मिले हैं. हमने 4,000 मामलों का समाधान करने की कोशिश की है. मसला यह है कि संकट आने से पहले समस्या का समाधान हो."
आत्महत्या कर चुके किसानों के परिवारों के लिए
संगठन खुदकुशी करने वाले किसानों के परिवारों की मदद व उनके पुनर्वास के लिए भी सरकार के साथ मिलकर काम करता है. 2018 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आदिलाबाद में 120 विधवाओं और उनके परिवारों की एक बैठक बुलाई और सरकार की मदद से उनके लिए वैकल्पिक आजीविका की व्यवस्था की.
तेलंगाना में असली समस्या काश्तकारों की है. सर्वेक्षण के अनुसार, तेलंगाना में खुदकुशी करने वाले किसानों में 75 फीसदी काश्तकार हैं, जो किराये की जमीन पर खेती करते हैं.
इन्हें रायतू बंधु योजना के तहत शामिल नहीं किया गया है, जिसके तहत सरकार किसानों को प्रति एकड़ सालाना 8,000 रुपये बतौर निवेश सहायता प्रदान करती है.
किसान मित्र ने किराये की जमीन पर खेती करने वाले 5,000 किसानों की मदद की है. उन्होंने कुछ बैंकरों से समझौता कर संयुक्त दायी समूहों का गठन किया है. प्रत्येक समूह में चार-पांच सदस्य होते हैं. प्रत्येक समूह को एक लाख रुपये का ऋण मुहैया कराया जाता है.
-- मोहम्मद शफीक (आईएएनएस)
ये हैं भारतीय किसानों की मूल समस्याएं
भारत की पहचान एक कृषि प्रधान देश के रूप में रही है लेकिन देश के बहुत से किसान बेहाल हैं. इसी के चलते पिछले कुछ समय में देश में कई बार किसान आंदोलनों ने जोर पकड़ा है. एक नजर किसानों की मूल समस्याओं पर.
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भूमि पर अधिकार
देश में कृषि भूमि के मालिकाना हक को लेकर विवाद सबसे बड़ा है. असमान भूमि वितरण के खिलाफ किसान कई बार आवाज उठाते रहे हैं. जमीनों का एक बड़ा हिस्सा बड़े किसानों, महाजनों और साहूकारों के पास है जिस पर छोटे किसान काम करते हैं. ऐसे में अगर फसल अच्छी नहीं होती तो छोटे किसान कर्ज में डूब जाते हैं.
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फसल पर सही मूल्य
किसानों की एक बड़ी समस्या यह भी है कि उन्हें फसल पर सही मूल्य नहीं मिलता. वहीं किसानों को अपना माल बेचने के तमाम कागजी कार्यवाही भी पूरी करनी पड़ती है. मसलन कोई किसान सरकारी केंद्र पर किसी उत्पाद को बेचना चाहे तो उसे गांव के अधिकारी से एक कागज चाहिए होगा.ऐसे में कई बार कम पढ़े-लिखे किसान औने-पौने दामों पर अपना माल बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं.
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अच्छे बीज
अच्छी फसल के लिए अच्छे बीजों का होना बेहद जरूरी है. लेकिन सही वितरण तंत्र न होने के चलते छोटे किसानों की पहुंच में ये महंगे और अच्छे बीज नहीं होते हैं. इसके चलते इन्हें कोई लाभ नहीं मिलता और फसल की गुणवत्ता प्रभावित होती है.
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सिंचाई व्यवस्था
भारत में मॉनसून की सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. इसके बावजूद देश के तमाम हिस्सों में सिंचाई व्यवस्था की उन्नत तकनीकों का प्रसार नहीं हो सका है. उदाहरण के लिए पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में सिंचाई के अच्छे इंतजाम है लेकिन देश का एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी है जहां कृषि, मॉनसून पर निर्भर है. इसके इतर भूमिगत जल के गिरते स्तर ने भी लोगों की समस्याओं में इजाफा किया है.
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मिट्टी का क्षरण
तमाम मानवीय कारणों से इतर कुछ प्राकृतिक कारण भी किसानों और कृषि क्षेत्र की परेशानी को बढ़ा देते हैं. दरअसल उपजाऊ जमीन के बड़े इलाकों पर हवा और पानी के चलते मिट्टी का क्षरण होता है. इसके चलते मिट्टी अपनी मूल क्षमता को खो देती है और इसका असर फसल पर पड़ता है.
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मशीनीकरण का अभाव
कृषि क्षेत्र में अब मशीनों का प्रयोग होने लगा है लेकिन अब भी कुछ इलाके ऐसे हैं जहां एक बड़ा काम अब भी किसान स्वयं करते हैं. वे कृषि में पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल करते हैं. खासकर ऐसे मामले छोटे और सीमांत किसानों के साथ अधिक देखने को मिलते हैं. इसका असर भी कृषि उत्पादों की गुणवत्ता और लागत पर साफ नजर आता है.
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भंडारण सुविधाओं का अभाव
भारत के ग्रामीण इलाकों में अच्छे भंडारण की सुविधाओं की कमी है. ऐसे में किसानों पर जल्द से जल्द फसल का सौदा करने का दबाव होता है और कई बार किसान औने-पौने दामों में फसल का सौदा कर लेते हैं. भंडारण सुविधाओं को लेकर न्यायालय ने भी कई बार केंद्र और राज्य सरकारों को फटकार भी लगाई है लेकिन जमीनी हालात अब तक बहुत नहीं बदले हैं.
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परिवहन भी एक बाधा
भारतीय कृषि की तरक्की में एक बड़ी बाधा अच्छी परिवहन व्यवस्था की कमी भी है. आज भी देश के कई गांव और केंद्र ऐसे हैं जो बाजारों और शहरों से नहीं जुड़े हैं. वहीं कुछ सड़कों पर मौसम का भी खासा प्रभाव पड़ता है. ऐसे में, किसान स्थानीय बाजारों में ही कम मूल्य पर सामान बेच देते हैं. कृषि क्षेत्र को इस समस्या से उबारने के लिए बड़ी धनराशि के साथ-साथ मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धता भी चाहिए.
तस्वीर: DW/P. Mani Tewari
पूंजी की कमी
सभी क्षेत्रों की तरह कृषि को भी पनपने के लिए पूंजी की आवश्यकता है. तकनीकी विस्तार ने पूंजी की इस आवश्यकता को और बढ़ा दिया है. लेकिन इस क्षेत्र में पूंजी की कमी बनी हुई है. छोटे किसान महाजनों, व्यापारियों से ऊंची दरों पर कर्ज लेते हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों में किसानों ने बैंकों से भी कर्ज लेना शुरू किया है. लेेकिन हालात बहुत नहीं बदले हैं.