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किसान गतिरोध में सुप्रीम कोर्ट ने की मध्यस्थता पेशकश

१६ दिसम्बर २०२०

भारत की सर्वोच्च अदालत ने किसान आंदोलन के कारण पैदा हुए गतिरोध का हल निकालने के लिए रास्ता सुझाया है. लेकिन 24 घंटे के भीतर अगर इस पेशकश पर फैसला नहीं लिया गया तो हालात नहीं बदलेंगे.

Indien Shahjahanpur | Bauernproteste | Deregulierung Landwirtschaft
तस्वीर: AP/dpa/picture alliance

भारत की राजधानी में तीन हफ्ते से हजारों किसान केंद्र सरकार के नए कृषि सुधार कानूनों का विरोध कर रहे हैं. पंजाब और हरियाणा से बड़ी संख्या में दिल्ली पहुंचे इन किसानों के साथ केंद्र सरकार पांच दौर की बातचीत भी कर चुकी है लेकिन कोई हल नहीं निकल रहा है. केंद्र सरकार ने किसानों की मांगे मानने का आश्वासन दिया, लेकिन किसान तीनों नए कृषि सुधार कानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े हैं.

इस गतिरोध को तोड़ने के लिए बुधवार को भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, पंजाब और हरियाणा  सरकार को नोटिस जारी किया है. सर्वोच्च अदालत का कहना है कि अगर गुरुवार तक नोटिस का जवाब नहीं दिया गया तो मामला बिगड़ सकता है. गुरुवार के बाद सुप्रीम कोर्ट में शीतकालीन छुट्टियां हो जाएंगी.

किसान आंदोलन राष्ट्रीय मुद्दा?

सर्वोच्च अदालत का कहना है कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो किसानों का प्रदर्शन एक राष्ट्रीय मुद्दा बन जाएगा.  सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अगुवाई में तीन जजों की पीठ ने कहा, "अब तक तो प्रदर्शन कर रहे किसानों के साथ आपकी समझौता वार्ता का असर नहीं हुआ है." इसके बाद अदालत ने सभी संबंधित पक्षों को शामिल करते हुए एक पैनल बनाने का फॉर्मूला सुझाया.

भारत में किसानों का आंदोलनतस्वीर: AP/dpa/picture alliance

पहले अध्यादेश लाकर सितंबर 2020 में संसद में पास कराए गए इन कृषि कानूनों के विरोध में किसानों ने दिल्ली को दूसरे राज्यों से जोड़ने वाले कई हाइवे बंद कर रखे हैं. प्रदर्शनों का असर उत्तर भारत के उद्योगों और कारोबारों पर भी पड़ रहा है. 

कॉरपोरेट चक्रव्यूह में फंसने की चिंता

आंदोलनकारी किसानों का कहना है कि नए कानून उन्हें कॉरपोरेट लालच की भेंट चढ़ा देंगे. वहीं केंद्र सरकार का कहना है कि देश में किसानों और खेती की खस्ताहालत ठीक करने के लिए सुधार जरूरी हैं. प्रदर्शनों के बाद सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देने का भरोसा दिलाया. लेकिन किसान इस वादे को लेकर आशंकित हैं.

भारत की 60 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर करती है. देश के कई हिस्सों में हर साल 5,000 से ज्यादा किसान आत्महत्या करते हैं. कुछ कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि नए कृषि सुधार कानून देश के बाकी हिस्सों के लिए ठीक हैं, लेकिन बड़ी मात्रा में गेंहू और चावल उगाने वाले पंजाब और हरियाणा के किसानों को इनमें अपना नुकसान दिख रहा है. हालांकि सरकार के कई समर्थक भी मान रहे हैं कि कृषि सुधार कानून बनाने से पहले संबंधित पक्षों से बातचीत की जानी चाहिए थी.

ओएसजे/एमजे (एपी, एएफपी)

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