दलितों के मसीहा भीमराव अंबेडकर को अपना बनाने के लिए कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच कुश्ती शुरू हो गई है. मंगलवार को कांग्रेस के राहुल गांधी ने अंबेडकर के जन्मस्थान मऊ जाकर उन्हें श्रद्धांजलि समर्पित की.
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दरअसल इस वर्ष 14 अप्रैल से अंबेडकर का 125वां जन्मदिवस वर्ष मनाया जा रहा है और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने इसे मनाने के लिए एक समिति का गठन भी कर दिया है. इसके अलावा उसने 197 करोड़ रुपये की लागत से अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र की स्थापना की घोषणा भी कर दी है.
एक समय था जब दलित, जिन्हें आधिकारिक तौर पर अनुसूचित जाति कहा जाता है और महात्मा गांधी ने जिन्हें ‘हरिजन’कहना शुरू किया था,कांग्रेस का पक्का जनाधार हुआ करते थे. लेकिन पिछले चार दशकों के दौरान वे धीरे-धीरे कांग्रेस से दूर चले गए. महाराष्ट्र में तो शुरू से ही अंबेडकरवादी पार्टियां थीं लेकिन फिर उत्तर भारत में दलित कांशीराम-मायावती के नेतृत्व के पीछे लामबंद होते गए. अभी भी मायावती का जादू उत्तर भारत के दलितों पर खासा चढ़ा हुआ है. मायावती राजनीति को अंबेडकर की शब्दावली में समझती हैं और अपने अनुयायियों को समझाती हैं.
दूर का रिश्ता भी नहीं
लेकिन इस समय कांग्रेस और बीजेपी जैसी पार्टियां अंबेडकर की विरासत पर अपना हक जमाने में जुटी हैं जिनका अंबेडकर और उनके विचारों से कभी दूर का रिश्ता भी नहीं रहा. भीमराव अंबेडकर के महात्मा गांधी के साथ दलितों के उत्थान के प्रश्न पर गंभीर मतभेद थे. वे ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ चले राष्ट्रीय आंदोलन में भी शरीक नहीं हुए क्योंकि उनका पूरा ध्यान दलित समुदाय के उत्थान पर केंद्रित था. यहां यह याद रखना होगा कि अधिकांश दलितों को सवर्ण हिंदू अछूत समझते थे और उन्हें सामान्य मानवीय अधिकारों से भी वंचित रखा जाता था. जहां गांधी आस्थावान हिंदू थे,वहीं अंबेडकर जाति व्यवस्था के समूल नाश के लिए प्रतिबद्ध थे और उन्होंने घोषणा की थी कि वे हिंदू के रूप में पैदा तो जरूर हुए हैं लेकिन मरेंगे नहीं. अपनी मृत्यु से कुछ ही समय पहले उन्होंने अपने हजारों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था. उनका कांग्रेस से कभी संबंध नहीं रहा.
अस्मिता की राजनीति
ऐसा व्यक्ति किसी हिंदुत्ववादी पार्टी का आदर्श पुरुष हो सकता है,यह बात भी गले से नहीं उतरती. लेकिन इस समय बीजेपी भी यह दिखाने में लगी है कि अंबेडकर की विरासत और जीवन मूल्यों के प्रति उससे अधिक कोई और गंभीर नहीं है. हाल ही में जिस प्रकार केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय के निर्देश पर आईआईटी मद्रास में अंबेडकर पेरियार स्टडी सर्कल की मान्यता रद्द की गई,उससे भी स्पष्ट होता है कि अंबेडकर और उनके हिंदू धर्म विरोधी विचारों को हजम करना बीजेपी के लिए आसान नहीं है.
हवा में मोदी, कब कब कहां कहां गए
प्रधानमंत्री पद संभालने के पहले साल में नरेंद्र मोदी ने 365 में से 55 दिन विदेश में बिताए. साल भर में उन्होंने कुल 18 देशों का दौरा किया. यह संख्या अब 28 हो चुकी है. गिनती जारी है..
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भूटान
जून 2014 में बतौर प्रधानमंत्री अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए मोदी ने भूटान को चुना. पड़ोसी देश भूटान के साथ भारत के दशकों से अच्छे संबंध रहे हैं.
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ब्राजील
इसके बाद जुलाई में मोदी ब्रिक्स शिखर सम्मलेन के लिए ब्राजील पहुंचे. यहां चीन, ब्राजील, रूस और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्राध्यक्षों से उनकी मुलाकात हुई.
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नेपाल
अगस्त 2014 में मोदी नेपाल पहुंचे. संसद में भाषण देने के बाद वे पशुपतिनाथ मंदिर के दर्शन करने पहुंचे. नवंबर में वे सार्क शिखर सम्मलेन के लिए एक बार फिर नेपाल आए. नेपाल एकमात्र ऐसा देश है जहां प्रधानमंत्री मोदी दो बार जा चुके हैं.
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जापान
अगस्त के अंत ने मोदी ने जापान का दौरा किया. राजधानी टोक्यो के अलावा वे क्योटो भी गए और दो बुद्ध मंदिरों के दर्शन करने भी पहुंचे.
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अमेरिका
सितंबर में मोदी ने अमेरिका का रुख किया, जहां ना केवल उन्होंने राष्ट्रपति ओबामा से मुलाकात की, बल्कि संयुक्त राष्ट्र महासभा को भी संबोधित किया. अमेरिका में मोदी का किसी रॉकस्टार जैसा स्वागत हुआ.
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म्यांमार
अक्टूबर में मोदी भारत में ही रहे लेकिन नवंबर में उनके कई दौरे हुए. म्यांमार में वे आसियान शिखर सम्मलेन के लिए पहुंचे. यहां से वे ऑस्ट्रेलिया, फिर फिजी और उसके बाद नेपाल गए.
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ऑस्ट्रेलिया
मोदी 28 साल में पहली बार ऑस्ट्रेलिया पहुंचने वाले भारतीय प्रधानमंत्री हैं. यहां उन्होंने जी20 शिखर सम्मलेन में शिरकत की और सिडनी क्रिकेट ग्राउंड भी गए.
तस्वीर: Reuters/R. Stevens
श्रीलंका
दिसंबर और जनवरी भी मोदी का समय घर पर ही बीता. मार्च 2015 में सेशेल्स और मॉरिशस होते हुए वे श्रीलंका पहुंचे. 1987 में राजीव गांधी के बाद श्रीलंका जाने वाले वे पहले प्रधानमंत्री हैं. मार्च के अंत में वे सिंगापुर भी गए.
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फ्रांस
अप्रैल में मोदी तीन देशों की यात्रा पर निकले. सबसे पहले फ्रांस में उन्होंने राफाल लड़ाकू विमानों का सौदा तय किया. फ्रेंच स्पेस एजेंसी में उन्होंने भारतीय छात्रों के साथ सेल्फी ली.
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जर्मनी
इसके बाद वे जर्मनी पहुंचे जहां उन्होंने चांसलर अंगेला मैर्केल के साथ हनोवर मेले का उद्घाटन किया. राजधानी बर्लिन में उन्होंने जर्मनी में रह रहे भारतीयों को संबोधित किया. यहां से वे कनाडा गए.
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चीन
मई में मोदी ने एक और तीन देशों का दौरा किया. चीन के म्यूजियम में चश्मा लगाए पुतलों के बीच खड़े मोदी की तस्वीरों ने सबका ध्यान खींचा. मोदी ने अपना दौरा राष्ट्रपति शी जिनपिंग के शहर शियान से शुरू किया.
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दक्षिण कोरिया
चीन के बाद वे मंगोलिया और फिर दक्षिण कोरिया पहुंचे. दक्षिण कोरिया के साथ उन्होंने सात समझौतों पर हस्ताक्षर किए.
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बांग्लादेश
जून की शुरुआत में मोदी बांग्लादेश पहुंचे. प्रधानमंत्री शेख हसीना के अलावा वे राष्ट्रपति अब्दुल हामिद से भी मिले. इस दौरान मोदी की शेख हसीना पर महिला होने "के बावजूद" सफल होने की टिप्पणी आलोचनाओं में घिरी रही.
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रूस
जुलाई में वे रूस और पांच अन्य एशियाई देशों का दौरे पर गए. इनमें कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं. मोदी ने रूस में सातवें ब्रिक्स सम्मलेन में भाग लिया.
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यूएई
अगस्त के मध्य में प्रधानमंत्री ने संयुक्त अरब अमीरात का दो दिवसीय दौरा किया. यात्रा के पहले दिन वे शेख जायद मस्जिद गए. यह दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी मस्जिद है. माना जाता है कि मोदी ने जीवन में संभवत: पहली बार किसी मस्जिद में कदम रखा.
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संयुक्त राष्ट्र
सितंबर में संयुक्त राष्ट्र के दौरे पर प्रधानमंत्री मोदी ने जी-4 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया. यह ब्राजील, जापान, जर्मनी का भारत का संगठन है जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के दावेदार हैं.
तस्वीर: Agencia Brasil
ब्रिटेन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चिरप्रतीक्षित ब्रिटेन दौरा. इस दौरे पर प्रधानमंत्री ने महारानी एलिजाबेथ और शाही परिवार के साथ भोजन किया, प्रधानमंत्री डेविड कैमरन के साथ बातचीत की और बेंबली स्टेडियम में भारतीय मूल के हजारों लोगों को संबोधित किया.
तस्वीर: Reuters/D. Lipinski
तुर्की
तुर्की के अंताल्या में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया. इस सम्मेलन को मुख्यतः पर्यावरण सम्मेलन होना था लेकिन पेरिस पर आतंकी हमले के बाद मुख्य ध्यान आतंकवाद और आईएस से लड़ने पर रहा.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/S. Walsh
अब आगे क्या?
अमेरिका, ब्रिटेन और तुर्की के बाद रिपोर्टों के अनुसार नवंबर में ही प्रधानमंत्री मोदी की इस्राएल, फलीस्तीन और सिंगापुर जाने की भी योजना है.
तस्वीर: Reuters/J. Bourg
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लेकिन अस्मिता की राजनीति के इस दौर में कांग्रेस और बीजेपी, दोनों ही अंबेडकर की विरासत पर काबिज होने के लिए प्रयत्नशील हैं,जबकि आज भी दलितों की सामाजिक स्थिति बेहद भयावह है. आज भी गांवों से ऐसी खबरें आती हैं कि घोड़ी पर चढ़कर बारात निकालने पर दलितों की हत्या कर दी गई. दलित महिलाओं के साथ बलात्कार भी दलितों के खिलाफ एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जाता है. इसमें कोई शक नहीं कि पिछले 67 सालों में दलितों की स्थिति में सुधार हुआ है,लेकिन वह सुधार इतना नाकाफी है कि आज भी अनेक स्थानों पर उनके साथ जानवरों जैसा बरताव किया जाता है.
ऐसे में इस बात पर यकीन करना मुश्किल है कि कांग्रेस या बीजेपी दलित वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब होंगे. यह सही है कि दलितों का मायावती से भी कुछ हद तक मोहभंग हुआ है,लेकिन यह भी सही है कि अब दलित राजनीति पहले की अपेक्षा अधिक परिपक्व है. दलित मतदाता इतना भोला नहीं रहा कि वह राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी के दिखावे से भरमा जाए.