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समाज

किस हाल में हैं यूपी बिहार के क्वारंटीन सेंटर

समीरात्मज मिश्र
१६ अप्रैल २०२०

कोरोना संकट के बीच देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग जब अपने घरों को लौटे तो वे सरकारों के लिए एक तरह से मुसीबत बन गए. बिहार सरकार ने तो सीधे तौर पर उनके आने पर पहले पाबंदी लगा थी.

Wanderarbeiter in Quarantäne in Uttar Pradesh un Bihar in Indien
तस्वीर: DW/S. Mishra

बिहार के विपरीत उत्तर प्रदेश ने आने वालों को पहले जांच प्रक्रिया से गुजारते हुए अपने घरों को जाने की सलाह दी. बाद में बिहार सरकार ने भी ऐसा ही किया. दोनों जगहों पर अन्य राज्यों से आए हुए प्रवासियों को चौदह दिन तक एहतियात के तौर पर घर से दूर रोकने के लिए क्वारंटीन सेंटर बनाए गए. बाहर से आए सभी लोगों को पहले चौदह दिन तक यहां रहना है, फिर मेडिकल जांच के बाद अपने घर जाना है. यहां रुकने और खाने-पीने की सारी व्यवस्था सरकार ने की है. बिहार में जहां करीब तीन सौ होटलों और हॉस्टलों को क्वारंटीन सेंटरों में तब्दील किया गया वहीं यूपी में शहरी इलाकों में कॉलेजों के हॉस्टलों और कुछ अन्य सरकारी इमारतों को जबकि गांवों में प्राइमरी स्कूलों को क्वारंटीन सेंटर बनाया गया. यहां, उन सभी लोगों को रहना अनिवार्य है, जो बाहर से आए हैं.

जिन लोगों में किसी तरह के कोरोना संक्रमण के लक्षण पाए गए उन्हें मेडिकल क्वारंटीन में रखा गया है जो कि अस्पतालों में बनाए गए हैं. लेकिन पिछले कई दिनों से ऐसा देखने में आ रहा है कि क्वारंटीन सेंटरों से लोग या तो भागने की कोशिश कर रहे हैं या फिर मौका पाते ही रात में अपने घरों को चले जाते हैं और दिन में फिर वहीं आ जाते हैं. यूं तो सरकारी स्तर पर सुविधाएं भी मुहैया कराई जा रही है और निगरानी भी की जा रही है लेकिन भागने वाले लोगों का आरोप है कि क्वारंटीन सेंटरों में किसी तरह की सुविधा नहीं है और खाने-पीने से लेकर सोशल डिस्टैंसिंग जैसे एहतियाती उपाय भी नहीं किए गए हैं.

उत्तर प्रदेश का मामला

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के पिपरी शादीपुर गांव में बीस मजदूरों को गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में क्वारंटीन किया गया था. अब तो ये लोग चौदह दिन बिताकर अपने घरों को जा चुके हैं लेकिन इनमें से कई मजदूरों ने शिकायत की थी कि सभी लोगों को न सिर्फ स्कूल के एक कमरे में रखा गया था बल्कि साफ-सफाई के नाम पर सिर्फ एक साबुन दिया गया था. सभी लोगों को सिर्फ एक शौचालय से काम चलाना पड़ता था, जबकि स्कूल में एक और शौचालय था जिसे बंद रखा गया था. उन्हीं मजदूरों में से एक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि निगरानी और जांच के नाम पर कभी कोई नहीं आया. खाने के नाम अनाज और दाल दे दिए जाते थे और उसे लकड़ी जलाकर पकाना पड़ता था क्योंकि रसोई गैस नहीं थी. मामला संज्ञान में आने के बाद उन सभी लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई जो इसके लिए जिम्मेदार थे. गांव के प्रधान के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज हुई और प्रधान की गिरफ्तारी भी हुई. लेकिन गांव के प्रधान का कहना था कि उसे सरकार की ओर से किसी तरह का सहयोग नहीं मिला था, जो कुछ भी व्यवस्था थी, वो उन्होंने खुद की थी.

पास पास सोते हैं लोगतस्वीर: DW/S. Mishra

पिछले दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में तहसील मुख्यालय पर बने एक क्वारंटीन सेंटर में करीब डेढ़ दर्जन लोग कमरे में लगी लोहे की खिड़की तोड़कर भाग गए. भागने से पहले उन्होंने एक वीडियो के माध्यम से सेंटर में व्याप्त अनियमितताओं की चर्चा की थी और कहा था कि उन्हें ठीक से खाना भी नहीं मिल रहा है. बुलंदशहर के डीएम रवींद्र कुमार ने दूसरे अधिकारियों के साथ जब सेंटर का दौरा किया तो आरोप सही पाए गए. डीएम रवींद्र कुमार का कहना था, "दिक्कतें दोनों ओर से थीं. यह सही है कि जो सुविधाएं अपेक्षित थीं, वो वहां नहीं दी जा रही थीं जबकि सरकार की ओर से वो सुविधाएं मुहैया कराई गई थीं. दूसरी ओर, जो लोग भागे हैं, ये यहां चौदह दिन रुकना भी नहीं चाहते थे. इन्हें ऐसा लगा कि हंगामा करेंगे तो इन्हें जल्दी छुट्टी दे दी जाएगी, जबकि इन्हें समझना चाहिए कि ऐसा इन्हीं की भलाई के लिए किया गया है.”

बिहार में भी हालत खराब

क्वारंटीन सेंटरों का हाल न सिर्फ यूपी के तमाम जिलों में, खासकर गांवों में खराब है बल्कि बिहार में भी स्थितियां कुछ ऐसी ही हैं. इन सेंटरों में बड़ी संख्या उन्हीं लोगों की है जो देश के कई हिस्सों में मजदूरी करने गए थे और लॉकडाउन के बाद वहां रह पाने का कोई सहारा न देख, अपने घरों को लौट आए थे. बिहार में भी ज्यादातर क्वारंटीन सेंटर पंचायत भवनों में बनाए गए हैं और मानकों की जमकर अनदेखी की जा रही है. दावा किया जाता है कि दो बिस्तरों के बीच कम से कम एक मीटर की दूरी रखी जाती है लेकिन ऐसा शायद ही कोई सेंटर हो जहां इसका पालन किया जा रहा हो. पटना में स्थानीय पत्रकार अतुल कुमार बताते हैं कि कई जगह एक छोटे से कमरे के भीतर 12 से 15 लोगों को रखा जा रहा है. इस स्थिति में सोशल डिस्टैंसिंग की बात करना ही बेमानी होगा. लोग जमीन पर सोने को मजबूर हैं और मच्छरों का आतंक अपने चरम पर है.

भागलपुर के बीरबन्ना गांव में लॉकडाउन के बाद बनारस से करीब 90 लोग लौटे थे. इन सभी लोगों की थर्मल स्क्रीनिंग मायागंज अस्पताल में की गई. सभी के रहने की व्यवस्था पंचायत भवन और सरकारी स्कूल में की गई लेकिन शायद ही ऐसा कोई कमरा रहा हो जिसमें एक दर्जन से कम लोग रह रहे हों. बिहार में करीब पचास हजार लोगों को क्वारंटीन सेंटरों में रखा गया है.

हजारों लोग घरों को निकलेतस्वीर: Surender Kumar

क्वारंटीन सेंटरों में अनियमितताएं

ऐसा नहीं है कि क्वारंटीन सेंटर्स में ही अव्यवस्थाएं हों बल्कि इन सेंटर्स का भी जमकर दुरुपयोग हो रहा है. उत्तर प्रदेश के अयोध्या में पिछले दिनों एक क्वारंटीन सेंटर में शराब और मांस की दावत करने की खबर आई. बताया गया कि ग्राम प्रधान के सहयोग से वहां रुके कुछ लोगों के लिए आए दिन दावत होती थी. यही नहीं, ये लोग रात में अपने घरों में भी चले जाते थे जिससे क्वारंटीन करने का मकसद ही बेमानी हो गया. शिकायत मिलने पर सभी के खिलाफ कार्रवाई की गई. बताया जा रहा है कि ग्रामीण स्तर पर बने क्वारंटीन सेंटरों पर गांव के ही लोगों को रखा गया है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साफतौर पर कहा था कि बाहर से जो भी लोग आएं उन्हें चौदह दिन तक क्वारंटीन में रखना अनिवार्य है और अनियमितता की स्थिति में बड़े अधिकारी दोषी पाए जाएंगे. बावजूद इसके, बड़ी संख्या में लोग छिपकर अपने घरों को आ गए और क्वारंटीन सेंटर में नहीं गए. लखनऊ के मोहनलालगंज तहसील के एक गांव के प्रधान नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं, "मेरे गांव में भी और दूसरे गांवों में भी बड़ी संख्या में लोग बिना क्वारंटीन सेंटर गए, सीधे घरों को चले गए. लोगों से नियमों का पालन करने को कहा गया लेकिन लोग लड़ाई पर आमादा हो गए. पुलिस को भी सूचना दी गई लेकिन कुछ नहीं हुआ. गांव में प्रधान के पास कोई सुरक्षा तो होती नहीं और आने वाले दिनों में चुनाव भी होने वाले हैं. ऐसी स्थिति में ग्राम प्रधान किसी से जबर्दस्ती कैसे कर सकता है.”

शहरों में भी वही हाल

न सिर्फ गांव में बल्कि शहरों में बने क्वारंटीन सेंटर्स अनियमितताओं के शिकार हैं. आए दिन सोशल मीडिया के जरिए ऐसी शिकायतें आती रहती हैं. यह स्थिति तब है जबकि सरकार इनकी व्यवस्था को लेकर बेहद सतर्क और गंभीर है. यूपी में राज्य सरकार के एक बड़े अधिकारी बताते हैं कि सरकारी स्तर पर किसी तरह की कोई कमी नहीं है लेकिन निचले स्तर पर अधिकारी और कर्मचारी कई बार जानबूझकर या फिर अनजाने में लापरवाही कर जाते हैं.

क्वारंटीन सेंटरों की व्यवस्था सरकारें आमतौर पर राहत के पैसे से कर रही हैं. यूपी में एक अधिकारी का कहना था कि राहत के जरिए भी पर्याप्त धनराशि आई है और इसे खर्च भी किया जा रहा है. अधिकारी के मुताबिक, बीडीओ, तहसीलदार और लेखपाल इन केंद्रों की मॉनिटरिंग करते हैं और नियमित रूप से रिपोर्ट देते हैं. क्वारंटीन सेंटर्स में ज्यादातर लोग 29-30 मार्च के बाद आए हैं और उनमें से कुछ लोग 14 दिन की अवधि पूरी भी कर चुके हैं. उत्तर प्रदेश में अब तक करीब सत्तर हज़ार लोगों को क्वारंटीन सेंटर्स में निगरानी में रखा गया है जबकि लगभग दस हजार लोग मेडिकल क्वारंटीन में रखे गए हैं. यहां उन लोगों को रखा गया है जिनमें कोरोना संक्रमण पाए जाने की किसी भी तरह की आशंका थी.

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