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कुंठा में जी रहा है आम भारतीय

१९ दिसम्बर २०१२

घर से निकलते वक्त भारत में पुरुष यह नहीं सोचते कि अंधेरे में जब वह लौटेंगे, तो कोई उन्हें छेड़ेगा या उनका बलात्कार भी हो सकता है. उन्हें न अपने कपड़ों की चिंता करनी पड़ती है और न ही बस में घूरती आंखों या बदतमीजियों की.

तस्वीर: dapd

सामाजिक या संवैधानिक रूप से देखें तो वैसे महिलाओं को भी परेशानी नहीं होनी चाहिए लेकिन होती है. दिन में भी और रात को तो बहुत ज्यादा. रविवार को दिल्ली में एक 23 साल की महिला का जब बलात्कार हुआ तो अचानक लोग एक बार फिर महिलाओं की सुरक्षा पर बहस करने लगे हैं. राजनेता सुरक्षा बढ़ाने की बात कर रहे हैं तो बुद्धिजीवी समाज में शिक्षा की कमी, भारत में तेजी से होते विकास और परंपरा और नई जीवनशैली में टकराव को महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा का कारण मान रहे हैं.

इस बीच समाचार चैनलों में दिखाए जा रहे तस्वीरों में देखा जा सकता है कि विरोध प्रदर्शन करने निकले लोगों ने मुख्यमंत्री के घर के बाहर बैरिकेड को तोड़ने की कोशिश की. पुलिस ने एक प्रदर्शनकारी को हिरासत में लिया है. उधर डॉक्टरों का कहना है कि बलात्कार की शिकार महिला की हालत बिगड़ रही है. अब तक पुलिस ने बस के ड्राइवर सहित चार लोगों को गिरफ्तार किया है. पुलिस और दो संदिग्धों की तलाश में है. पीड़ित लड़की के दोस्त की हालत भी काफी गंभीर बताई जा रही है.

तस्वीर: dapd

बलात्कार की घटना ने दिल्ली की महिलाओं के मन में पल रहे डर को और बढ़ा दिया है. डॉयचे वेले से बातचीत में दिल्ली की रहने वाली बोहनी बंदोपाध्याय कहती हैं, "इस शहर में जिस तरह से पुरुष महिलाओं से पेश आते हैं, वह अमानवीय है. महिलाओं का सम्मान नहीं होता, अगर बलात्कार के मामले बढ़ते हैं तो इसमें कोई हैरानी वाली बात नहीं. शाम के सात बजे के बाद मैं अपनी गाड़ी या मेट्रो पर सफर करती हूं. ऑटो लेना या चलकर जाने में मुझे डर लगता है." ओइंद्री नियोगी सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं. 25 साल की ओइंद्री का मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से एक ही सवाल है, "वह कहती हैं कि हम अब कड़ी कार्रवाई करेंगे. लेकिन मेरा सवाल है कि हमें कड़ी कार्रवाई से पहले ऐसे हादसे क्यों देखने पड़ते हैं."

महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के इन मामलों को देखा जाए तो लगता है कि भारतीय समाज में हर कदम पर महिलाओं को नीचा दिखाने की कोशिश की जाती है और बलात्कार इसका सबसे बड़ा सबूत है. एक मेडिकल छात्रा के बलात्कार से यह समझा जा सकता है. ऐसी घटनाओं से साफ है कि भारत में एक महिला पढ़ सकती है, कमा सकती है, रात को अकेले घूम सकती है, लेकिन कहीं न कहीं उसे इस बात का अहसास दिलाया जाता है कि वह एक पुरुष की ताकत का सामना नहीं कर सकती. महिलाओं को पुरुषों से नीचे दिखाने की यह सोच भी बलात्कार के लिए किसी न किसी रूप में जिम्मेदार है.

तस्वीर: dapd

जानकार एक और वजह को भी इसका जिम्मेदार मानते हैं और वह है बड़े शहरों में निम्न मध्यमवर्गीय लोगों की निराशा. वरिष्ट वकील कामिनी जायसवाल ने कहा कि कम पैसे और सुविधाओं में खर्च चलाने वाले लोग अपनी वर्तमान या भावी जिंदगी में वह सब कुछ नहीं देख पाते जो उन्हें अपने सामने मौजूद बड़े लोगों की जिंदगी में नजर आता है. उन्हें यह यकीन ही नहीं होता कि उनकी भी कभी भरी पूरी पारिवारिक जिंदगी होगी. यह सोच उन्हें हताश करती है और कई बार ऐसी घटनाओं की वजह बनती है. जहां तक सरकार और कानून की बात है तो बलात्कार से निपटने के लिए भारत में कानून है लेकिन समस्या उनका पालन कराने की है. वकील कामिनी जायसवाल कहती हैं,"कानून में तो सब ठीक हैं, कानून व्यवस्था में परेशानी है. संदिग्धों को गिरफ्तार करने और उन्हें सजा दिलाने में सालों लग जाते हैं.

सवाल यह भी है कि सरकार कितना कर सकती है? भारत में लोगों को अपने भीतर झांकना होगा और पता करना होगा कि उनका अपना रवैया ऐसा क्यों है. परंपरा और विकास में तालमेल न होना केवल बहाना है, क्योंकि आधुनिक समाज में उम्मीद की जाती है कि एक व्यक्ति मानसिक तौर पर परिपक्व होगा. अगर भारतीय परंपरा की बात की जाए तो आर्मेनिया से आई छात्रा गयाने हाकोब्यान पूछती हैं, "भारत को जहां देवी पूजा के लिए जाना जाता है, क्या यहां की महिलाओं से ऐसा सलूक होता है?" इस सवाल का जवाब हां ही हो सकता है. भारत में देवियों की पूजा होती है, लेकिन गायाने को यह नहीं पता कि जब तक महिलाएं घरों में रहेंगी और देवियों की तरह चुपचाप खिड़कियों से कैलेंडर की तरह झांकती रहेंगी, तभी तक सब ठीक है. भारत में देवियां रात को फिल्म नहीं देखने जातीं, वह भी अपने पुरुष दोस्तों के साथ.

रिपोर्टः मानसी गोपालकृष्णन

संपादनः एन रंजन

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