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कुंभ में हदें पार करते फोटोग्राफर

२५ जनवरी २०१३

कोई महिला जब नहाए तो उसे न तो घूरना चाहिए, न ही उसकी तस्वीर लेनी चाहिए. यह सामान्य शिष्टाचार है, लेकिन कुंभ में कैमरामैन खुले आम इसका उल्लंघन कर रहे हैं. विदेशी महिलाओं का तो वे किसी भी हद तक पीछा कर रहे हैं.

तस्वीर: Suhail Waheed

आस्था, अर्चना, श्रद्धा और पवित्रता के संगम कुंभ में श्रद्धालुओं की भीड़ के साथ साथ हर तरफ कैमरामैन चौकस होकर घूमते नजर आते हैं. पल पल पर नजरें गडाए और हर वक्त किसी घटना, दुर्घटना या किसी खूबसूरत लम्हे की तस्वीर उतारने के लिए बेताब. लेकिन इसी बीच अगर विदेशी युवतियां दिख जाएं तो उनके पीछे लग जाना कुंभ मेले में आम बात सी हो चली है. विदेशी महिलाओं का पीछा इस उम्मीद में किया जा रहा है कि जब वे नहाएंगी तो फोटो लिया जाएगा. फोटोग्राफरों की इस 'अति सक्रियता' को रोकने के लिए यूपी सरकार ने बाकायदा कानून बना रखा है.लेकिन इस कानून के खुले आम उल्लंघन को कोई रोकने वाला नहीं है.

कुंभ में महिलाओं के लिए संगम के करीब पौन किलोमीटर का किनारा महिला घाट के रूप में आरक्षित है. आम तौर पर यहां भीड़ कम नजर आती है. यहां कोई समस्या नहीं. असली समस्या मुख्य घाटों पर है जहां काफी भीड़ रहती है और वहां अधिकांश महिलायें अपने परिवार के साथ आती हैं और पति पत्नी साथ साथ डुबकी लगाते हैं. ये एक धार्मिक रीति भी है. ये महिलायें स्नान के बाद तट पर ही छुप छुपा कर कपड़े बदलती हैं.

प्रतिबंधित क्षेत्र में फोटोग्राफरतस्वीर: Suhail Waheed

मेला प्रशासन की दलील

मेला प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी एसपी द्विवेदी कहते हैं कि कपड़े बदलने की समुचित व्यवस्था की गई है. मुख्य 14 घाटों पर करीब 30 अस्थाई चेंज रूम बनाए गए हैं. लेकिन घाटों का नजारा बताता है कि इस इंतजाम का कोई मतलब नहीं. असली दिक्कत शुरू होती है जब अखाड़े के साथ हजारों श्रद्धालु स्नान के लिए आते हैं. इनके महामंडलेश्वर और नागा बाबा स्नान की शुरुआत करते हैं. स्नान के बाद पुरुष तो तहमद या गमछा लपेट कपड़े बदल लेते हैं लेकिन महिलाओं को किसी न किसी का सहारा लेना पड़ता है और घूरती निगाहों से बचने के जतन भी करने पड़ते हैं.

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि ये ऐसी समस्या है जिसका इलाज हमारे पास भी नहीं है. विदेशी खुले माहौल के हैं. हालांकि उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि हजारों भारतीय महिलायें भी क्यों खुले में ही कपड़े बदल रही हैं.

विदेशी महिलाओं के स्नान के बाद खुले में कपड़े बदलने का दृश्य लोग बेताब भी दिखते हैं. इसके लिए बाकायदा धक्का मुक्की होती है. फोटोग्राफरों के लिए तो ये अवसर सबसे कीमती होता है. बड़े और लंबे लेंस वाले कैमरे लेकर ये लोग इन विदेशी महिला श्रद्धालुओं के आगे पीछे दौड़ते देखे जा सकते हैं. हालांकि संगम पर मुख्य स्नान स्थल से 100 मीटर की दूरी तक फोटोग्राफरों का प्रवेश कुंभ मेला एक्ट की धारा-18 के तहत प्रतिबंधित है. लेकिन इस कानून का खुले आम उल्लंघन होता है और फोटोग्राफर संगम में उतर कर बीचों बीच घुटनों घुटनों पानी में खड़े होकर श्रद्धालुओं के बहुत करीब से फोटो खींच रहे हैं.

एक तरफ आस्था दूसरी तरफ संघर्षतस्वीर: Suhail Waheed

एक राष्ट्रीय अखबार के दिल्ली से आए फोटोग्राफर अरविन्द कुमार कहते हैं कि कुंभ में फोटो नहीं खींचेंगे तो करेंगे क्या. लखनऊ के एक प्रतिष्ठित अखबार की प्रमुख अंजलि चंद्रा भी कहती हैं, "कुंभ बहुत बड़ा फोटो इवेंट होता है, इस तरह का प्रतिबंध समझ में नहीं आता और हम लोगों की भी अपनी सीमाएं हैं, कोई ऐसा वैसा फोटो मान लीजिये फोटोग्राफर ले भी आए तो हम छापते नहीं है. यानी एक तरह से हम किसी अनैतिक फोटोग्राफ्री को बढ़ावा तो नहीं दे रहे हैं." लेकिन अंजलि के पास इस बात का जवाब नहीं कि जब ऐसे वैसे फोटो अखबार नहीं छाप रहे हैं तो फोटोग्राफरों में ऐसी तस्वीरों के लिए होड़ क्यों मची है. अक्सर ऐसे आरोप भी लगते हैं कि कई फोटोग्राफर अपने निजी मनोरंजन के लिए ऐसी तस्वीरें लेते हैं.

परेशान होती महिलाएं

स्नान के बाद खुले में कपड़े बदलने वाली विदेशी महिलायें भी इन हरकतों से परेशान हैं. रूस की मिक मेत्योलोवा कड़ाके की ठंड में सुबह सुबह स्नान कर जब संगम तट पर कपड़े बदलने लगीं तो फोटोग्राफरों के अलावा अन्य लोगों ने भी उन्हें घेर लिया. उन्होंने अपनी एक सहेली की मदद से बिलकुल बोरे में बंद हो जाने वाले स्टाइल में कपडे बदले. कुछ देर बाद जब वह कुछ सामान्य हुईं तो नाराजगी भरे स्वर में उन्होंने कहा, "यह तनाव देना वाला है, लेकिन क्या किया जाए." जब उनसे कहा कि उधर चेंज रूम तो था तो बोलीं, "हम लोग अपने बाबा के साथ आए हैं."

संगम पर स्नान के बाद कुछ विदेशी महिला श्रद्धालु दौड़ दौड़ कर संगम से थोड़ी दूर सुनसान इलाका तलाश कर वहां अपने पुरुष साथियों के सर्किल के बीच वस्त्र बदलती रहीं. ज़्यादातर ने अपने पुरुष साथियों का सहारा लिया और बाकी को जैसे बन पड़ा उन्होंने अपने बदन से गीले वस्त्रों को उतार गर्म कपड़े पहने. ये विदेशी श्रद्धालु जिस अखाड़े के थे उनके कुछ साधु फोटोग्राफरों के प्रति निरविकार रहे. ज्यादा पूछने पर तो एक दो ने उल्टा हमें ही लताड़ लगा दी. वैसे भी अखाड़ों के छोटे-बड़े बाबा लोग पत्रकारों से कम और फोटोग्राफरों के साथ ज्यादा आत्मीयता से रहते हैं, कुछ बाबाओं के लिए तो फोटोग्राफर भी आखिरकार लोकप्रियता बढ़ाने का ही जरिया हैं.

रिपोर्ट: सुहेल वहीद, लखनऊ

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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