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नस्ल से नहीं तय होता कुत्ते का व्यवहार

क्लेयर रोठ
१४ मई २०२२

अगर आप किसी खास विशेषता वाले कुत्ते की तलाश में हैं तो इस बारे में उसकी नस्ल से ज्यादा जानकारी उस माहौल से मिलेगी जिसमें वो पला बढ़ा है.

Dubai | Happy Bark Day | Ein Hundecafé
तस्वीर: Rula Rouhana/REUTERS

जब हम कुत्तों की नस्ल के बारे में सोचते हैं तो हमारे दिमाग में वही रटी रटाई छवियां उभरती हैं. गोल्डन रिट्रीवर दोस्ताना कुत्ते होते हैं. पिट बुल्स आक्रामक और बॉर्डर कॉलीज बड़े चंचल और अतिसक्रिय होते हैं.

हालांकि अब पता चला है कि ऐसे तमाम अंदाजे संभवतः गलत होते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ मेसाचुएट्स चान मेडिकल स्कूल, एमआईटी के ब्रॉड इन्स्टीट्यूट, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और डार्विन आर्क फाउंडेशन से जुड़े रिसर्चरों ने पाया है कि कुत्ते की नस्ल, उसकी खूबी या विशेषता का आम संकेत नहीं होती है.

कुत्ते के व्यवहार के बारे में हम जो कुछ भी जानते हैं ज्यादातर वो किंवदंतियों और रूढ़ियों पर आधारित है. हालांकि इस ताजा अध्ययन में कुत्ते की आनुवंशिकी को खंगाला गया, 2,155 कुत्तों की डीएनए सिक्वेन्सिंग की गई और 18,385 कुत्तों के मालिकों का सर्वेक्षण किया गया.

इस अध्ययन में रिसर्चरों ने पाया कि सिर्फ 9 फीसदी नस्लों में ही व्यवहार का अंदाजा लगाया जा सकता है. अध्ययन के एक लेखक मारयी अलोसों के मुताबिक, "कुत्ता कैसा दिखता है, इससे ये वाकई पता नहीं चल पाएगा कि उसका व्यवहार कैसा होगा."

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कहां से आया पालतू कुत्ता

कुत्ते जब कुत्ते नहीं थे, तो वे भेड़िए थे. भेड़िए सहस्त्राब्दियों बाद कुत्तों में रूपांतरित हुए और पिछले कुछ सौ साल से ही गोल्डन रिट्रीवर या पग्स के रूप में उन्हें पाला और पैदा किया जाने लगा. 

अध्ययन में शामिल कैथरीन लॉर्ड कहती हैं कि कुत्ते भेड़ियो के वंशज हैं जो मानव सभ्यता के शुरुआती वर्षो मे कचरा खाकर जीवित बचे रह गये.

कुत्तों की नस्ल का उनके स्वभाव पर कम उतना असर नहीं होता जितना माहौल कातस्वीर: Jula/imago images

लॉर्ड के मुताबिक जैसे जैसे भेड़िये या कुत्ते, इंसानों के नजदीक रहने लगे, उन्होंने खुद को हमारे हिसाब से ढाल लिया और इसका उल्टा नहीं हुआ. 

लोगों ने जल्द ही महसूस किया कि कुत्ते उपयोगी हो सकते हैं. वे शिकारियों या परभक्षियों पर भौंक सकते हैं या भेड़ों की रखवाली कर सकते हैं.

लॉर्ड कहती हैं, "लोगों ने किसी किस्म की चयन प्रक्रिया शुरू कर दी होगी, लेकिन वो ऐसी नहीं रही होगी जैसी कि आज हम ब्रीडिंग को लेकर सोचते हैं. वो इस तरह रही होगी कि चलो अच्छा ये कुत्ता बढ़िया काम कर रहा है, तो इसे ज्यादा खाना देना चाहिए."

इस तरह उस कुत्ते के जीवित रह पाने की संभावना ज्यादा होगी, वो प्रजनन कर पाएगा और अपनी नयी पीढ़ी को अपनी खूबियां दे पाएगा.

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वंश बढ़ाने में जीन की भूमिका

शोधकर्ताओं के मुताबिक आधुनिक ब्रीडिंग में नस्ल की दिखावट या रूप-रंग पर ध्यान दिया जाता है. एक कुत्ते का व्यवहार, हजारों साल से अपने पर्यावरण और अपने आसपास के लोगों के हिसाब से ढलने से बनता है.

कुछ ऐसी खूबियां या विशिष्ट व्यवहार होते हैं जो किसी खास नस्ल में ही मिलते हैं, जैसे कि "आज्ञाकारी” होना है यानी किसी आदेश पर हरकत में आने की क्षमता या फिर भौंकने की उसकी सहज प्रवृत्ति इसे उसकी नस्ल से जोड़ा जा सकता है लेकिन आक्रामकता जैसे लक्षण किसी एक नस्ल से सीधे सीधे तौर पर जोड़ना मुश्किल है. 

रिसर्चरों का कहना है कि आक्रामक व्यवहार का संबंध कुत्ते की जींस से ज्यादा उस माहौल से है जिसमें वो पला-बढ़ा होता है. 

कुत्ते के आचरण पर उसकी ट्रेनिंग का बहुत असर होता हैतस्वीर: Colourbox

इस रिसर्च रिपोर्ट के सह-लेखक एलिनर कार्लसन के मुताबिक, इसीलिए आपको कभी कोई ग्रेट डेन कुत्ता, किसी चवावा कुत्ते के आकार का नहीं मिलेगा या कोई चवावा, ग्रेट ड्रेन जितना बड़ा मिलेगा. हालांकि यह संभव है कि चवावा में ग्रेट ड्रेन जैसा व्यवहार या इसका उल्टा भी आपको दिख जाये. 

कुत्तों की ब्रीड पर कानूनन रोक

कुत्तों की कुछ ऐसी नस्लें है जिन्हें पालने पर कानूनी रोक लगी है. कुछ ऐसे कानून भी बने हैं जो खतरनाक समझे जाने वाले कुत्तों के मालिकों को ज्यादा बीमा प्रीमियम भुगतान करने को बाध्य करते हैं.

अमेरिका में शहर दर शहर और राज्यों में कई सारे कानून बने हैं जिनके जरिए कुछ खास नस्लों को पालने की मनाही है. जर्मनी में टेरियर कुत्ते की चार ब्रीड ऐसी हैं जिन्हें देश में लाने तक की मनाही है. ये हैं बुल टेरियर, पिट बुल टेरियर, अमेरिकन स्टेफॉर्डशायर टेरियर और स्टेफॉर्डशायर बुल टेरियर.

अपनी रिसर्च के आधार पर कार्लसन का कहना है कि ब्रीड-केंद्रित कानूनों का कोई मतलब नहीं है. लेकिन ब्रीडिंग को कानूनी जामा पहनाने के कुछ और कारण जरूर हैं. 

कार्लसन के मुताबिक, "ये इनब्रीडिंग यानी अंतःप्रजनन को अनिवार्य तौर पर रोकने के लिए है. आप अपनी इच्छा के मुताबिक ब्रीड चाहते हैं लेकिन इससे आबादी की विविधता में कमी आती है. यह कोई अच्छी बात नहीं है. आबादी में जितनी कम विविधता होगी, जानवर उतने ही ज्यादा अंतःप्रजनन से पैदा होंगे और उतनी ही ज्यादा आनुवंशिक बीमारियों का खतरा भी सहेंगे."

ऐसा लग सकता है कि बीमारियों को भी हरकतों और व्यवहारों की तरह किसी ब्रीड में "थामा" जा सकता है. हालांकि कार्लसन का कहना है, "अगर आप आठ कुत्तों से एक ब्रीड शुरू करना चाहते हैं और उनमें से एक कुत्ते में अपने मातापिता की जींस की कोई चीज आ जाती है तो उसमें कैंसर पनपने का खतरा बहुत ज्यादा होगा. आठ में से एक कुत्ते में ये होगा. अगर आपकी तैयार की हुई कुत्तों की नस्ल बढ़ते बढ़ते एक लाख कुत्तों तक पहुंच गई, तो भी आठ में से एक कुत्ता इसकी जद में होगा और नस्ल में कैंसर की समस्या घर कर जाएगी."

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