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कुर्द अपना धर्म छोड़ कर पारसी क्यों बन रहे हैं?

२४ अक्टूबर २०१९

उत्तरी इराक के एक प्राचीन लेकिन उजड़े हुए मंदिर में एक उत्सव के दौरान फैजा फुआद कुर्दों की उस जमात में शामिल हो गईं जो इस्लाम को छोड़ कर अपने पूर्वजों के जरथुष्ट यानी पारसी धर्म को अपना रहे हैं.

Irak Darbandikhan Tempel Kurden Zoroastrismus Zeremonie
तस्वीर: AFP/S. Hamed

इस्लामिक स्टेट के जिहादी गुटों के साथ कई सालों से चली आ रही हिंसा के कारण बहुत से लोगों का इस्लाम से मोहभंग हुआ है. इतना ही नहीं सरकार के दमन के लंबे इतिहास ने भी इराक के स्वायत्तशासी कुर्द इलाके में रहने वाले लोगों को मजबूर किया है कि वे सदियों पुराने अपने धर्म के रास्ते पर चल कर अपनी पहचान को जिंदा करें.

इराक के स्वायत्तशासी कुर्द इलाके में पारसियों के शीर्ष पुजारी असरवान काद्रोक कहते हैं, "इस्लामिक स्टेट की क्रूरता देखने के बाद बहुत से लोगों ने अपने धर्म के बारे में दोबारा सोचना शुरू किया है." ईरानी सीमा के पास दरबंदीखान में फुआद के धर्म परिवर्तन की रस्मों के दौरान पुजारी और उनके सहायकों ने सादे कपड़े पहन रखे थे. इस दौरान उन्होंने जरथुष्ट धर्मग्रंथ अवेस्ता से कुछ छंदों का पाठ किया. इस धर्म में सादे कपड़े पवित्रता की निशानी हैं. इन लोगों ने फुआद की कलाई पर तीन गांठें लगा कर एक धागा बांधा जो इस धर्म के मूल सिद्धांतों अच्छे शब्द, अच्छे विचार और अच्छे काम का प्रतीक हैं. जरथुष्ट धर्म में नए नए शामिल हुए लोगों ने इन तीन सिद्धांतों से बंधे रहने और प्रकृति को बचाने की शपथ ली. इसमें पानी, हवा, अग्नि, पृथ्वी, जीव जंतु और इंसानों का सम्मान करने की बात शामिल है.

तस्वीर: AFP/S. Hamed

ये लोग आग की पूजा करते हैं. इनका मानना है कि आग ने अंधेरे को खत्म कर रोशनी फैलाई. भारत में मुंबई से 200 किलोमीटर दूर गुजरात के उद्वदा में पारसियों का एक पुराना मंदिर है. कहा जाता है कि यहां दुनिया की सबसे पुरानी आग जल रही है.सदियों पुराने इस धर्म को मानने वालों की तादाद पूरी दुनिया में अब महज 2 लाख के आसपास है. इसमें एक बड़ी तादाद भारत के महाराष्ट्र और गुजरात में हैं. भारत में यह समुदाय कारोबार की दुनिया में काफी प्रभावशाली है. धर्म के नियमों के मुताबिक सिर्फ पारसी मां बाप की संतान ही जरथुष्ट हो सकती है. इनमें से अगर कोई एक दूसरे धर्म का हो तो संतान को धर्म में शामिल नहीं किया जा सकता. भारत के पारसी इस नियम का कठोरता से पालन करते हैं और इसी वजह से उनकी आबादी तेजी से घट रही है. तो फिर सवाल है कि कुर्द कैसे पारसी धर्म में शामिल हो रहे हैं?

मध्यपूर्व मामलों के जानकार फज्जुर रहमान कहते हैं, "मुमकिन है कि दूसरे इलाके के पारसियों ने धर्म में आंतरिक सुधार किया हो. एक सच्चाई यह भी है कि कुर्द अपनी कबीलाई संस्कृति से पूरी तरह अलग नहीं हुए हैं और सुन्नियों ने चूंकि कभी उन्हें पूरी तरह से अपनाया नहीं बल्कि उनका दमन किया इसलिए वे वापस अपनी जड़ों की ओर जा रहे हैं." भारत में भी लंबे समय से जरथुष्ट धर्म में सुधार करने की मांग हो रही है लेकिन अब तक इसमें कोई कामयाबी नहीं मिल सकी है.

फैजा फुआदतस्वीर: AFP/S. Hamed

गले में फारावार की माला पहने फुआद ने कहा, "मैं बहुत खुश हूं और तरोताजा महसूस कर रही हूं." फारावार की माला इस धर्म के बड़े आध्यात्मिक प्रतीकों में शामिल है. ये माला फुआद को पुजारी ने भेंट में दी.  फुआद ने बताया कि वे लंबे समय से इस धर्म का अध्ययन कर रही थीं और इसके सिद्धांतों ने उन्हें इसे अपनाने पर विवश किया. वे कहती हैं, "यह जिंदगी को आसान बनाता है. यह ज्ञान और सिद्धांतों के बारे में है. यह मानव और प्रकृति की सेवा करता है."

जरथुष्ट धर्म की नींव प्राचीन ईरान में कोई 3500 साल पहले पड़ी थी. हजारों साल तक यह ताकतवर पारसी साम्राज्य का आधिकारिक धर्म रहा लेकिन सन 650 में अंतिम जरथुष्ट राजा की हत्या और इस्लाम के उदय ने इसे लंबे समय के लिए अंत की ओर धकेल दिया. हालांकि दमन की तमाम कोशिशों के बावजूद भी धर्म जिंदा रहा. ईरान में इस्लाम का असर बढ़ने के बाद मुट्ठी भर पारसी भाग कर भारत आ गए और फिर यहीं के हो कर रह गए. यही वजह है कि भारत में इस धर्म को फलने फूलने का मौका मिला. इस धर्म को मानने वाले लोगों में मशहूर ब्रिटिश गायक फ्रेडी मर्क्यूरी भी हैं. मर्क्यूरी का जरथुष्ट परिवार वास्तव में भारत के गुजरात से आया था.

तस्वीर: AFP/S. Hamed

इराक के स्वायत्तशासी क्षेत्रीय सरकार के धार्मिक मामलों के मंत्रालय में जरथुष्ट का प्रतिनिधित्व करने वाली अवात तायिब बताती हैं, "सद्दाम हुसैन के शासन के दौरान मेरे पिता जरथुष्ट धर्म का पालन करते थे लेकिन इसे सरकार, पड़ोसियों और यहां तक कि अपने रिश्तेदारों से भी छिपा कर रखते थे" 2014 में इस्लामिक स्टेट के जिहादियों ने उत्तरी इराक के एक बड़े इलाके पर कब्जा कर लिया और उसके बाद जो उन्होंने किया उसे अल्पसंख्यक यजीदियों के खिलाफ नरसंहार का ही नाम दिया जा सकता है. इस्लामिक स्टेट के चरमपंथियों ने इस्लामी कानूनों के एक क्रूर संस्करण को लागू किया जिसका नतीजा तीन साल तक चली जंग, उसके बाद स्वघोषित "खिलाफत" का खात्मा और इलाके की तबाही के रूप में सामने आया.

जरथुष्ट पुजारी काद्रोक का कहना है, "बहुत से लोग मानते हैं कि इस्लामिक स्टेट के सिद्धांत कुर्द सिद्धांतों और परंपरा के बिल्कुल खिलाफ हैं, इसलिए कुछ लोगों ने अपना धर्म छोड़ने का फैसला किया है." काद्रोक हर हफ्ते धर्म परिवर्तन के लिए कार्यक्रम का आयोजन करते हैं ताकि नए लोगों का धर्म में स्वागत कर सकें. इस धर्म को क्षेत्रीय अधिकारियों ने 2015 में मान्यता दी. इसके बाद से अब तक तीन मंदिर बन गए हैं. हालांकि तायिब का कहना है कि सरकार को अभी इस धर्म को मानने वालों के लिए कब्रिस्तान बनाना बाकी है.

तस्वीर: AFP/S. Hamed

इराक के कुर्दों में प्रमुखता सुन्नी मुसलमानों की ही है लेकिन दूसरे धर्मों को मानने वाले लोग भी इनमें शामिल हैं. इनमें सुन्नियों के अलावा शिया, अलवी, यजीदी, पारसी, ईसाई और धर्मनिरपेक्ष लोग भी हैं. स्वायत्तशासी क्षेत्र में रहने वाले लोगों में कुछ के लिए जरथुष्ट की तरफ जाना इराक की सत्ता का विरोध कर अपनी क्षेत्रीय पहचान पर अधिकार जताने का जरिया भी है. अलग अलग देशों की सीमा में बंटे कुर्दों के पास सब कुछ है सिवाए एक देश के जिसे वे अपना कह सकें. फज्जुर रहमान बताते हैं, "कुर्दों के पास अपनी भाषा, सेना, अर्थव्यवस्था, संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली है लेकिन अरब जगत ने कभी उनको मुख्यधारा में शामिल नहीं किया. तुर्की में तो महज कुर्द भाषा बोलने के लिए आपको सजा दी जा सकती है. ऐसे में अगर वे अपना धर्म बदल रहे हैं तो कोई बहुत हैरानी की बात नहीं है." 2017 में इलाके के लोगों ने जनमतसंग्रह में अपनी आजादी के लिए भारी मतदान किया था.

स्वायत्तशासी सरकार में अकेली महिला धार्मिक प्रतिनिधि तायिब का कहना है कि कुर्द समाज जरथुष्टों के प्रति ज्यादा सहिष्णु होता जा रहा है. शुक्रवार की नमाज के दौरान कुर्दों ने तुर्की के उत्तरी सीरिया में अभियान की निंदा के लिए एक कार्यक्रम किया. इस कार्यक्रम में जरथुष्ट पुजारी और उनके सहायक भी पहुंचे. जैसे ही वे कार्यक्रम में पहुंचे मुसलमानों ने उन्हें घेर लिया. उनका खूब स्वागत किया गया और लोग उनके साथ सेल्फी लेने के लिए उतावले हो रहे थे.

इराकी कुर्दिस्तान में इस्लाम अब भी मुख्य धर्म है. जरथुष्ट धर्म को मानने वालों की संख्या के बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है. इस्लामी धर्मगुरु मुल्ला समान का कहना है, "जरथुष्ट हमारे भाई हैं, हमारे दुश्मन नहीं हैं. हमारे दुश्मन तो वे हैं जो हमें मार रहे हैं जैसे (तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप) एर्दोवान."

कुर्दिस्तान में जरथुष्ट धर्म का प्रचार करने वाले यासना संगठन के प्रमुख आजाद सईद मोहम्मद कहते हैं कि कुर्दों को अपने अलग धर्म की जरूरत है जैसे कि मध्यपूर्व के दूसरे देशों में है ताकि वे आक्रमणों और चढ़ाई करने वालों से बच सकें, "हमें अपने प्राचीन धर्म का इस्तेमाल करने की जरूरत है ताकि हम अपनी पहचान को फिर से जिंदा कर सकें और अपना देश बना सकें."

रिपोर्ट: निखिल रंजन (रॉयटर्स)

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